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आओ संस्कृत सीखें
जगाद, नाथ ! त्वां नाथामि यद् मयि प्रसीद द्यूतं च मुञ्च ।
3. तस्या वाचं नलो न शुश्राव तां च ददर्शापि न ।
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नलः स्वीयेन भ्रात्रा पुष्पकरेण सह दिदेव ।
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सीता हेममृगं ददर्श रामश्च तं ग्रहीतुं दधाव । रावणः सीतामपहृत्य लङ्कामानिनाय ।
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रामो रावणेन सह युयुधे बहवश्च योधा मनुः ।
8. लक्ष्मणं मृतं मत्वान्तःपुरस्य स्त्रियश्चक्रन्दुः । सीतामसतीं ज्ञात्वा रामस्तां तत्याज ।
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10. पक्वं धान्यं कृषीवला लुलुवुः ।
11. भगवतो जन्म ज्ञात्वा शक्रस्स्वीयात्सिंहासनात्सप्ताष्ट पदानि दूरं गत्वा
भगवन्तं तुष्टाव ।
12. झंझावात उद्यानस्य सर्वान्वृक्षान्बभञ्ज ।
पाठ 25
संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद
1.
हे ब्राह्मण ! तेरे द्वारा कलिंग में ब्राह्मण मारा गया है ? हे प्रभु! मैं कलिंग गया ही नहीं। 'निश्चय मेरे द्वारा कलिंग में ब्राह्मण मरा है' इस प्रकार सोते
हुए तुमने
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बोला है, तो ऐसा क्यों बोला है ?
सोते समय मैंने जो बोला, वह मिथ्या है ।
क्या तुम उसको इस प्रकार नहीं जानते थे कि उस लवण नाम के दानव ने ब्राह्मणों को हमेशा पराभूत किया है, मारा है और खाया है ।
'अति सुंदर वर को हम दी गई हैं' - इस प्रकार उन कन्याओं ने जाना और बहुत खुश हुई ।
कर्ण राजा ने चमडी को, शिबिराजा ने मांस को, मेघवाहन राजा ने जीव को और दधिचि ऋषि ने हड्डियों को दिया, महात्माओं को न देने योग्य (कुछ) नहीं। उस आश्रम में मृग के बच्चों का लालन-पालन करते, तप के कष्ट को नहीं जानते, उन स्त्री पुरुषों ने कितना समय व्यतीत किया।
वह भोजन नहीं खाता था, पानी भी पीता नहीं था और मौनपूर्वक योगी की तरह ध्यान में तत्पर रहता था ।