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आओ संस्कृत सीखें
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13. तपस्या के तेज से दुःसह ऐसे गुरुजन को तू प्रणाम कर, इस प्रकार हम आपको
कह रहे हैं। 14. अरे ! अरे ! राजन् ! यह आश्रम का मृग है । मारने योग्य नहीं है, मारने योग्य
नहीं है। 15. इस अशोक वृक्ष के मूल के नीचे आप तब तक बैठो, जितने में मैं आता हूँ। 16. जो पहले, पृथ्वी के रक्षण के लिए भवनों में निवास चाहते हैं बाद में उनके लिए
वृक्षों के मूल में घर बनते हैं। 17. आपने जिसको संस्कारित किया है, उसके विषय में हम सब चाहते हैं। 18. धर्म के प्रयोजन से अथवा रसनेन्द्रिय की लोलुपता से जो मनुष्य मांस खाते हैं
अथवा प्राणियों को मारते हैं, वे नरक की अग्नि में पकाए जाते हैं। 19. जो शत्रु को मित्र करता है, मित्र से द्वेष रखता है, मित्र को मारता है और खराब
काम करता है, उसे (लोग) मूर्ख मनवाला कहते हैं । 20. मानो देहधारी पुण्य का समूह न हो ! ऐसे ये मुनि हताश ऐसे मेरे द्वारा मारे गए!
कहाँ जाऊँ और क्या करूँ? 21. आपको नाथ (की तरह) स्वीकार करते हैं, आपकी स्तुति करते हैं, आपकी
उपासना करते हैं, वास्तव में आप से अन्य (कोई) रक्षण करने वाला नहीं हैं,
क्या कहूँ और क्या करूँ । 22. पहले सभा में ‘गुणवान' हैं, इस प्रकार जो कहा गया है, उसका दोष प्रतिज्ञा भंग
से डरने वाले मनुष्य को बोलना नहीं चाहिए । 23. विकसित नेत्रवाले सभी लोगों से आशीर्वाद दिया जानेवाला धन सार्थवाह
प्रतिदिन सूर्य की तरह प्रयाण करता था । 24. प्राण, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की स्थिति के लिए (आधार) प्राण हैं, उन
(प्राणों) को मारते हुए क्या नहीं मारा गया और रक्षण करते हुए किसका रक्षण नहीं हुआ।
हिन्दी का संस्कृत में अनुवाद 1. दिनेश ! त्वं तव मुखं हस्तौ पादौ च मृड्ढि नवानि च वसनानि वस्स्व । 2. सायं प्रातश्च गोपो धेनू यॊग्धि । 3. अधुनाखिले भारतवर्षे प्रजाः प्रजा ईशते ।