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आओ संस्कृत सीखें
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4. त्वं गुणिनं जनमीडिषे । 5. अणहिणपुरपत्तनं गुर्जर-राष्ट्रस्य राजधानी आसीत् तद्यूयं न वित्थ । 6. गोपालो यस्मिन्समये धेनूरधोक् तदा वयं व्याकरणमध्यैमहि । 7. अलि: पुष्पाद मधु लेढि । 8. प्रात: सायं च शीतलेन जलेन नयने प्रमृज्यात् । 9. कंचिदपि न द्विष्यात्, कंचिदपि न हन्यात् । 10. ये प्राणिनो घ्नन्ति ते पापेन निजमात्मानं दिहन्ति । 11. त्वमेतां वार्तामवेरपि मां नाऽवक् । 12. स खड्गेन तं मस्तकेऽहन् ।
पाठ 14 ___संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद 1. मिथ्या धर्म को छोड़कर सद्धर्म का आचरण कर । 2. मैं, पति के साथ वृद्धो के सामने जाने में शरमाती हूँ। 3. अभक्त बालकों को भी पूज्य सलाह देते हैं, परंतु छोड़ते नहीं हैं ।
तरुणावस्था समाप्त होने के बाद इंद्रियों की हानि होने पर भी खेद की बात हैं कि वृद्ध भी विषयों की विलासिता को छोड़ते नहीं हैं । वास्तव में शिव की जटा के समूह को, अथवा आकाश को छोड़कर क्षीण भी
चंद्र पृथ्वी पर स्थान बांधता (लेता) नहीं है । 6. दुर्दशा में पड़े हुए पति को तेरे द्वारा भी छोड़ा जाय तो निश्चय ही सूर्य पश्चिम
में उगेगा। 7. अत्यंत क्रोधायमान राजाओ को वास्तव में खुद का कोई आत्मीय नहीं है। स्पर्श
किया हुआ अग्नि, अच्छी तरह से होम करने वाले को भी जला देता है । 8. अंग शिथिल हो गया है, सिर सफेद हो गया है, मुंह में दांत गिर गये है, लकड़ी
लेकर चलता है, तो भी वृद्ध मनुष्य आशा रूपी पिंड़ को छोडता नही है । 9. जैसे भ्रमर प्रभात में, अंदर बर्फवाले मचकुंद के फूल को छोड़ने में और भोगने में समर्थ नहीं है, उसी प्रकार मैं त्याग करने और भोगने में समर्थ नहीं हूँ।
हिन्दी का संस्कृत में अनुवाद 1. अहं मृत्योर्न बिभेमि यतोमृतमिव जिनवचनमपिबम् ।