Book Title: Aao Sanskrit Sikhe Part 02
Author(s): Shivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 319
________________ आओ संस्कृत सीखें 293 हिन्दी का संस्कृत में अनुवाद 1. हे भ्रमर ! तं मागं दृष्ट्वा मा रुदिहि, यस्य वियोगे त्वं म्रियसे सा मालती देशान्तरं गतास्ति । 2. बान्धवेषु करुणं रुदत्सु, जनो म्रियते । 3. यथाकाशे तारामण्डले चन्द्रश्चकास्ति तथा वसुधावलये मुनिमण्डले आचार्यहेमचन्द्रश्चकास्ति । 4. यावजनः श्वसिति तावत्प्राण्यात् । 5. जैना उपवासदिने न किमपि जक्षति । 6. ये पुरुषाः पुरुषार्थं न कुर्वते ते दरिद्रति । । पाठ 13 संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद 1. आप यहीं पर एक मुहूर्त तक बैठो । 2. मारो ! मारो, पास में जाओ, पास में जाओ! पकड़ो पकड़ो । 3. शत्रुओं को तृण समान गिनने वाला अकेला ही रथ में बैठा । 4. क्यों भाई ! तू माता को प्रेमवाली नहीं जानता है ? 5. तृष्णा का छेद करो, क्षमा धारण करो, मद को छोडो, सत्य बोलो । 6. अयश को साफ करने की मैं इच्छा करता हूँ। 7. हे श्रेष्ठी ! भले आए, यह आसन, आप उस पर बैठो । 8. वह मूर्ख से द्वेष करता है, पंडित से नहीं । 9. स्त्री घर कहलाती है । 10. अथवा क्या ! सूर्य को परिश्रम नहीं करना पडता है, या निश्चल (चले बिना) बैठता नहीं है। 11. शत्रु और मित्र पर समान भाव रखने वाला, सम्पूर्ण लोक को आर्द्र-करुण दृष्टि से देखने वाला, प्रमाणसर और प्रिय बोलने वाला (मनुष्य) मोक्षमार्ग में रहता 12. जैसे दावानल से पेडों के झुंड जलते हैं, उसी प्रकार विषय की लोलुपता से मनुष्य का विनाश होता है, इसलिए विष की तरह विषयों को दूर कर समाधि में लीन चित्त (मन) से बैठो।

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