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आओ संस्कृत सीखें
14. पहले राजा, पहले साधु और पहले तीर्थंकर, ऐसे ऋषभ स्वामी की हम स्तवना
करते हैं ।
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15. एक ही चैतन्य बाल्यावस्था में से युवावस्था और युवावस्था जाता है वैसे एक जन्म से दूसरे जन्म में (भी) जाता है ।
16. आओ, जाओ, बैठो, खड़े हो जाओ, मौन रखो, इस प्रकार आशा रूपी ग्रह से पीड़ित याचको द्वारा धनिक क्रीड़ा करते हैं।
17. क्या करूँ ! कहाँ जाउँ ! किस की शरण स्वीकार करूं ! दुष्ट-दुर्भर उदर से मैं प्राणों द्वारा भी विडंबित हुआ हूँ ।
18. आज रात्रि के प्रारंभ में ही सोया हुआ मेरा यह छोटा पुत्र अचानक महाक्रूर सर्प द्वारा डंसा गया है ।
में से वृद्धावस्था में
19. हे वत्स ! जरा से पीड़ित मनुष्य प्राय: कर दूसरों की निंदा में तत्पर होते हैं। कदम कदम पर क्रोध करते हैं और सिर्फ सोते रहते हैं ।
1.
20. सत्य बोलना चाहिए, प्रिय बोलना चाहिए, सत्य भी अप्रिय लगे, ऐसा नहीं बोलना चाहिए और प्रिय भी असत्य नहीं बोलना चाहिए, यह शाश्वत धर्म है। 21. प्रहर की तरह दिन बीतता है और दिन की तरह मास व्यतीत होता है और मास की तरह वर्ष व्यतीत होता है । वर्ष की तरह यह यौवन व्यतीत होता है और यौवन की तरह जगत् का जीवन चलता रहता है ।
हिन्दी का संस्कृत में अनुवाद
स्वं धनं दातुं दुष्करमस्ति, तपः कर्तुं न प्रतिभाति, एवमेव सुखं भोक्तुं मनोऽस्ति, अपि न भुज्यते ।
2.
अनीतिं कुर्वाणं पुरुषमापदायाति ।
3. अखिलां पृथ्वीं जेतुं त्यक्तुं च व्रतं लातुं पालयितुं च भगवच्छान्तिनाथं बिना भुवनेऽन्यः कोऽपि न शक्नोति ।
4. सिद्धहेमव्याकरणस्याष्टाप्यध्यायानहमध्यैयि ।
5.
अहं सिद्धहेमव्याकरणस्य कर्त्तारमाचार्यहेमचन्द्रं भक्त्या नौमि ।
6. प्रातविंहगा मधुरं रुवन्ति, छात्रा आनन्देनाधीयते, वायु र्मन्दं मन्दं वाति, सर्वे स्वेष्टदेवं स्तुवन्ति, अरुण उदयति, पक्षिणस्स्वीयान्नीडान् विमुच्यारण्यं यान्ति, तन्द्रिलाश्च जनाः शेरते ।
7. कार्यभारेणाधुनाखिलां रात्रिं मया न शय्यते ।