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आओ संस्कृत सीखें
3. त्वं सद्भिस्सह संपृङ्ग्धि तत्त्वं च विन्त्स्व ।
4. मरुवृक्षान्भनक्ति तथा त्वं मम मनोरथानभनक् ।
5.
इष्टस्य वियोगेऽनिष्टस्य च संयोगे मूर्खाः खिन्दतेऽपि यः प्राज्ञस्स न खिन्ते, मन्यते च हि जनः कृतस्य कर्मण: फलं भुनक्ति ।
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1.
जनोऽन्यस्य गुणानेव व्यञ्ज्यात् ।
सा हरिद्रां लवणं मरिचं चाक्षुन्त तदाहं गोधुममपिनषं त्वं चाधुना पिप्पलीं
पिण्डि ।
त्वं मामकार्यं कुर्वाणमरुणस्तच्छोभनतरमकुरुथा: ।
पाठ 11
संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद
जो सत्य वचन बोलता है, जो विशेष उपशम को धारण करता है और जो शत्रु को भी मित्र समान देखता है, उसे मोक्ष मिलता है ।
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6. हे स्त्री,
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8.
वह इस प्रकार विचार करता हुआ जाकर राजा को बोला ।
जाओ ! इस प्रकार प्रधान को कहो ।
यह बालक मुझे महान तेज का बीज (कारण) लगता है ।
आप ही लोक-व्यवहार में अच्छी तरह से निपुण हो ।
तेरे हृदय में से
दुख दूर हो
इस प्रकार गुणवान् चक्रवर्ती पुत्र को प्राप्त कर ।
अरे पुत्र! अरे पुत्र! अरे पुत्र इस प्रकार बोलता हुआ राजा मूर्च्छा खाकर जमीन पर गिरा और प्राणों से मुक्त हुआ ।
9.
जो मन में पश्चाताप हुआ है उसे प्रगट करना शक्य नहीं है । 10. कैकेयी ने भरत के भूषण रूप भरत नाम के पुत्र को जन्म दिया । 11. हम आपकी बुद्धि का उल्लंघन करने में समर्थ नहीं हैं ।
12. हे माता ! खेलने गए कृष्ण ने स्वेच्छा से मिट्टी खाई है ।
'कृष्ण ! सच्ची बात है ? '
इस प्रकार कौन कहता है ?
बलराम कहता है माता ! गलत बात है (मेरा) मुख देखो ।
13. हे भूपाल ! तीन भुवन का उदर बहुत बड़ा हैं, अतः उसमें समाने के लिए अशक्य
भी तेरा यश उसमें समाता है ।