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आओ संस्कृत सीखें
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10. निर्गुणी प्राणियों पर साधु दया करते हैं । वास्तव में चंद्र चाण्डाल के घर से
(गिरती) किरणों को रोक नहीं लेता है। 11. कुलवानों के साथ संगति, पंडितों के साथ मित्रता और ज्ञातिजनों के साथ मेल करने वाला मनुष्य कभी विनाश नहीं पाता है ।
हिन्दी का संस्कृत में अनुवाद अहं भरतस्य पार्श्वे एकं शोभनं पुस्तकमपश्यमवन्वि च, अपि स मह्यं
तन्नायच्छत्। 2. लोकाः कोपं कृत्वा स्वीयां निर्बलतामाविष्कुर्वन्ति ।
भगवान् महावीरो घोरेण तपसा कर्माण्यक्षिणोत् । 4. यस्स्वस्य गुणान्छादयति परस्य च गुणान्प्रकटान्करोति, तस्य सुजनस्य यूयं पूजां कुरुत।
पाठ 9
संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद 1. मुझे छुट्टी दो, जहाँ मेरे बंधुजन है, वहाँ जाउँ। 2. उसने बर्तन बेचे । 3. हे सारथी ! घोड़ों को हांक ! पवित्र आश्रम के दर्शन करके आत्मा को तो पवित्र
करें। ___ कड़वी तुंबड़ी का पका हुआ फल भी कौन खाता है ? 5. इन फलों को आप ग्रहण करो ! 6. यह आपकी स्त्री है, इसको छोडो या अपनाओ । 7. किस कर्म से भव रूपी अटवी में भ्रमण होता है और किस कर्म से मोक्ष मिलता
है, इस प्रकार जानने के लिए, हे मूढ़ ! जो तू समझता है (इच्छा करता है) तो
जैन आगमों को देख । 8. भासुरक ! यह सब जानता है, बाहर ले जाकर जितनी देर में कहे, तब तक तेरे
द्वारा (उसे) मारा जाय । 9. हे विजया ! क्या तू इस भूषण को पहिचानती है? 10. इस विद्या को भक्ति से नम्र मन से विकल्प किए बिना ग्रहण कर । 11. मेरे भी चरित्र को संक्षेप में जान । 12. हे नृपचन्द्र ! मेरे मन के संतोष के लिए तू इस पर प्रसन्न हो जा । 13. महान् शील द्वारा वह अपने दो कुल को पवित्र करती है ।