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आओ संस्कृत सीखें
उदा. बोधयति शिष्यं धर्मम् - बोध्यते शिष्यो धर्मम् - शिष्यं धर्म इति वा । भोजयति अतिथिं ओदनं - भोज्यते अतिथि : ओदनम्, - अतिथिं ओदनं वा पाठयति शिष्यं ग्रन्थम्-पाठ्यते शिष्यो ग्रन्थम् - शिष्यं ग्रन्थ इति वा ।
पाठ 29 नियम 9
अद्यतनी
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आटि + अ (ङ) यावि + ङ
11. इ ( णिच् या णिग्) के बाद में अ (ङ) आए तो
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1. धातु का उपान्त्य स्वर ह्रस्व होता है, परंतु जिसके समान स्वर का लोप हुआ हो ऐसे धातु तथा शास्, ओणू, याच्, लोक्, ढौक् आदि धातुओं को छोड़कर ।
उदा. अटि + अ (ङ) - पाठ 35 नियम 3 से
अटिटि + अ नियम 8 से अटित् ।
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कृ करि = चकरि + ङ
यवि = युयवि + ङ
लवि = लुलवि + ङ
कारि + अ (ङ)
लावि + ङ
2. द्वित्व होने के बाद पूर्व के स्वर का (दीर्घ न हो या बाद में संयोग न हो) लघु स्वर पर इच्छादर्शक की तरह कार्य होता है, परंतु समान स्वर का लोप हुआ हो, ऐसे धातुओं को छोडकर ।
उदा. चिकरि + ङ
यियवि + ङ
लिलवि + ङ
3. द्वित्व होने के बाद पूर्व के लघु स्वर का, यदि उसके बाद लघु स्वर हो तो दीर्घ होता है, परंतु स्वरादि धातु तथा समान लोपवाले धातुओं को छोड़कर ।
उदा. अचीकरत् । अयीयवत् । अलीलवत् ।
नियम पहले के प्रत्युदाहरण :
असुसूचत् - यहाँ समान का लोप है, क्यों कि सूच् धातु के अंत में अ समान स्वर है, अतः उपांत्य ह्रस्व नहीं हुआ ।