Book Title: Aao Sanskrit Sikhe Part 02
Author(s): Shivlal Nemchand Shah, Vijayratnasensuri
Publisher: Divya Sandesh Prakashan

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Page 293
________________ आओ संस्कृत सीखें 267 शास् = अशशासत् ओण् = मा ओणिंणत् याच् = अययाचत् लोक् = अलुलोकत् ढौक् = अडुढौकत् नियम दूसरे के प्रत्युदाहरण : अततक्षत्-उसमें बाद का स्वर लघु नहीं है, क्योंकि उसके बाद संयोग हैं। क्ष् (क् + ष) संयुक्त हैं अतः पूर्व के अ का इ नहीं होगा। अचकथत् इसमें समान का लोप है, क्योंकि कथ के अंत में असमान है। (अचीकथत् भी होता है) अचकमत - इसमें इ (णिग्) नहीं है, परंतु पाठ २९ नियम ९ से अ (ङ) प्रत्यय लगकर रूप बना है । णिग् में अचीकमत होगा। नियम तीसरे के प्रत्युदाहरण : अचिक्वणत् - इसमें पूर्व का स्वर लघु नहीं है, क्योंकि उसके पीछे संयोग है, अत: दीर्घ नहीं हुआ। ऊर्गु - औणुनवत् - यहाँ धातु स्वरादि है, अत: पूर्व के णु का स्वर उ दीर्घ नही हुआ । अचकथत् - असुसुखत् - इसमे समान का लोप है । 4. स्मृ, दृ, त्वर, प्रथ्, म्रद्, स्तृ और स्पश् के पूर्व के स्वर का अ होता है । उदा. असस्मरत्, अददरत्, अतत्वरत्, अपप्रथत्, अमम्रदत्, अतस्तरत्, अपस्पशत् । 5. वेष्ट और चेष्ट के पूर्व के स्वर का विकल्प से अ होता हैं । उदा. अववेष्टत्, अविवेष्टत् । अचचेष्टत्, अचिचेष्टत् । 6. गण धातु के पूर्व के स्वर का ई और अ होता है । उदा. अजीगणत्, अजगणत् । 7. भ्राज्, भास्, भाष्, दीप, पीड्, जीव, मील्, कण, रण, वण, भण्, श्रण, ह्वे, हेल्, लुट्, लुप और लप् का उपांत्य विकल्प से ह्रस्व होता है । उदा. अबिभ्रजत् - अबभ्राजत् । अबीभसत् - अबभासत् ।

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