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आओ संस्कृत सीखें
11. उत्तम पुरुष, विद्यावान पुरुष सदैव प्रशंसनीय और पूजनीय होते है । विद्याहीन
पुरुष विद्वान मनुष्यों की सभा में शोभा नहीं पाते है । 12. सत्पुरुषों को वृद्धावस्था पहले चित्त में आती है, उसके बाद काया में आती है,
लेकिन असत्पुरुषों को वृद्धावस्था पहले काया में आती है, लेकिन चित्त में कभी
भी नहीं आती है। 13. कुपित भाग्य के बींधने पर प्राणियों के लिए धर्म ही कवच है, अत: वह (धर्म)
ही हमारा शरण हो । 14. अति दुःखदायी ऐसे विषयों में सुख मानने वाला मनुष्य, आश्चर्य है कि (उसमें)
थोड़ा भी वैराग्य पाता नहीं है, जिस प्रकार अशुचि में भी सुख मानने वाला
अशुचि का कीड़ा अशुचि में वैराग्य नही पाता है। 15. जहाँ दया नहीं, वह दीक्षा नहीं है, वह भिक्षा नहीं है, वह दान नहीं है, वह तप नहीं है, वह ध्यान नही है, (और) वह मौन नहीं है ।
हिन्दी का संस्कृत में अनुवाद 1. कपि र्बालानभ्यधावद्, बाला अत्रस्यन्नतो रक्षायाययस्यन्नक्लाम्यंश्च किन्तु
भीमो नाऽत्रसदत एव रक्षाया अयसन्नक्लामँश्च कौतुकेन कपिं द्रष्टुं
समयसत्। 2. स सह दीव्यद्भयो बालेभ्यः फलानि यच्छति । 3. युधि योधा इषून्निरस्यन्ति इषवश्च योधान् विध्यन्ति । 4. जीर्यतो जनस्य केशा जीर्यन्ति, दन्ता जीर्यन्ति नेत्रे श्रोत्रे च जीर्यतस्तृष्णैका न जीर्यति ।
पाठ 4
संस्कृत का हिन्दी में अनुवाद 1. हे पिता ! (आपके द्वारा) भरत (का) बहुत हर्ष के साथ राज्य के लिए अभिषेक
कराया जाय । 2. हे पुत्री ! तू मुझे और सखियों को मिल । 3. ये मनुष्य मेरे रत्न और सोने वगैरे को छीन लेते हैं । 4. सभी लोग (कर्म द्वारा) लिप्त होते हैं, ज्ञान सिद्ध लिप्त नहीं होता है । 5. मैं सभी प्रकार से (मेरे) खुद के प्रमाद से लज्जा पाया हुआ हूँ, आप मेहरबानी