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आओ संस्कृत सीखें
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शब्दार्थ इषु = बाण
(पुंलिंग) | लक्ष = एक राजा (पुंलिंग) कुमार = शंकर का पुत्र (पुंलिंग) | व्रीहि = चावल (पुंलिंग) खदिर = खेर का वृक्ष (पुंलिंग) | व्यंसक = ठग (पुंलिंग) दंश = दंश (पुंलिंग) | व्यय = नाश
(पुंलिंग) द्वि जाति = ब्राह्मण (पुंलिंग) | विश = व्यापारी (पुंलिंग) धव = वृक्ष का नाम (पुंलिंग) | शङ्ख = शंख (पुंलिंग) नकुल = नेवला (पुंलिंग) | शूद्र = शूद्र
(पुंलिंग) न्यग्रोध = वट वृक्ष (पुंलिंग) | क्षत्रिय = क्षत्रिय (पुंलिंग) पत्रिन् = बाण
(पुंलिंग) | पणाङ्गना = वेश्या (स्त्री लिंग) पलाश = पलाश का वृक्ष (पुंलिंग) | भेरी = बड़ा नगाड़ा (स्त्री लिंग) प्रद्युम्न = कृष्ण का पुत्र (पुंलिंग) | अपत्य = संतान (नपुं. लिंग) प्लक्ष = पीपल (पुंलिंग) | छत्र = छत (नपुं. लिंग) मशक = मच्छर (पुंलिंग) | द्वंद्व = युगल _ (नपुं.) मूलराज =चौलुक्यवंशी आद्यराजा (पुं.)/ पीठ = आसन (नपुं. लिंग) धृ.ग. 10 पर धारण करना
__संस्कृत में अनुवाद करो 1. मानों बुद्धि से मयूर व्यंसक और छात्र व्यंसक न हों ऐसे वे दोनों राजा गिरते हुए
बाणों द्वारा, ऊपर गिरते पक्षियों द्वारा पीपल और वटवृक्ष की तरह शोभते थे
(राज्) । 2. स्निग्ध वाणी और चमडी को तथा आसन, छत और पादुका को धारण करते हुए
नारद ने उन दो राजाओं को शस्त्र के गिरने के भय से धव, खदिर और पलाश
में प्रवेश कर देखा। 3. वे दोनों, भाई-बहिन अथवा पुत्र-पुत्री के लिए मानों प्रहार कर रहे थे। (प्र+ह्) 4. 'कुमार के माता-पिता तथा प्रद्युम्न के माता-पिता तुझ पर क्रोध वाले हुए हैं'
इस प्रकार मूलराज बोल रहा था । (ब्रू) 5. घोड़े और रथों के आश्रित रहे हुए शत्रुओं को दंश और मच्छर तुल्य भी नहीं
मानते हुए लाखा राजा ने धनुष धारण किया ।