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आओ संस्कृत सीखें
धवश्च खदिरश्च पलाशश्च एतेषां समाहारः धवखदिर पलाशम् धवखदिरपलाशेन, धवखदिरपलाशाय आदि ।
समास एक पद होता है, फिर भी उसमें अलग-अलग शब्द भी पद कहलाते हैं, अतः पद संबंधी कार्य, संधि आदि अवश्य होगी। समास में संधि अवश्य करें । उदा. नीलं च तद् उत्पलं च - नीलोत्पलम्
स्फुराणि च तानि छत्राणि - स्फुरच्छत्राणि
संश्चासौ जनश्च सज्जनः
मनसः भाव मनोभावः ।
राज्ञः पुरुष - राजपुरुष: ( न् का लोप )
गिर : अर्थ - गीरर्थ = (दीर्घ, पाठ २१ नियम ७ )
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विदुषां अनुचरः विद्वदनुचरः - स् का द् हुआ । समास के चार प्रकार
तत्पुरुष
और द्वन्द्व ।
बहुव्रीही, अव्ययीभाव, तत्पुरुष समास के दो भेद कर्मधारय और द्विगु होने से समास के छह भेद होते हैं। कुछ समास नित्य होते हैं। नित्य समास का विग्रह नहीं होता है, परंतु उसके अर्थ के अनुसार वाक्य करते हैं । उदा. अनुरथम् का रथस्य पश्चात्
कुछ समास में पूर्वपद की विभक्ति का लोप नहीं होता है उसे अलुप् समास कहते हैं| उदा. भस्मनि हुतम् - भस्मनिहुतम् ।
समास के कई पूर्व पद और उत्तर पद में भी कई परिवर्तन होते हैं।
समास के अंतिम पद को उत्तर पद और उसके पहले के पद को पूर्व पद कहते हैं। समास के अंत में भी कई समासांत प्रत्यय लगते हैं। समासांत प्रत्ययों का समावेश तद्धित के प्रत्ययों में किया गया है अतः तद्धित के प्रत्ययों पर जो नियम लगेंगे, वे समासांत प्रत्ययों पर भी लगेंगे ।
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एक समान दिखाई देने वाला समास भिन्न-भिन्न प्रकार का भी हो सकता है । उदा. महाबाहु • महांश्चासौ कर्मधारय महान्तौ बाहू यस्य - महाबाहुः - बहुव्रीहि मेघस्य नादः - मेघनादः षष्ठीतत्पुरुष
बाहुश्च महाबाहुः
मेघवत् नादः यस्य स मेघनादः बहुव्रीहि
समासों का विग्रह करते समय निम्न बातें अवश्य जाननी चाहिए ।