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आओ संस्कृत सीखेंउपास्ति = सेवा (स्त्री लिंग)| वक्षस् = छाती (नपुं. लिंग) त्रिदशी = देवी (स्त्री लिंग)| वृन्द = समूह (नपुं. लिंग) पौलोमी = इंद्राणी (स्त्री लिंग)| संपादन = प्राप्त कराना (नपुं. लिंग) व्रीडा = लज्जा (स्त्री लिंग)| हैयङ्गवीन = मक्खन (नपुं. लिंग) सुधर्मा = देव सभा (स्त्री लिंग)| उद्धृत = उडा हुआ (विशेषण) अरिष्ट = पाप (नपुं. लिंग)| काञ्चन = सोने का (विशेषण) अवधान = एकाग्रता (नपुं. लिंग)| कुब्ज = कुबडा (विशेषण) ही = खेद के अर्थ में (अव्यय)| ग्रामीण = ग्रामीण (विशेषण) उपानयन = भेंट (नपुं. लिंग)| निज = अपना (विशेषण) चूडारत्नमस्तक पर का रत्न(नपुं.लिंग)| प्रतिम = समान (विशेषण) तिलक = तिलक (नपुं. लिंग)| मलीमस = मैला (विशेषण) निर्वाण = मोक्ष (नपुं. लिंग)| विकल = रहित (विशेषण) प्राभृत = भेंट (नपुं. लिंग)| श्यामल = काला (विशेषण) भरत = भरतक्षेत्र (नपुं. लिंग)।
धातु प्री = खुश होना गण 4 आत्मनेपद। ईर् = बोलना गण 10 परस्मैपद । अव+धू = दूर करना गण 10 परस्मैपद ।
संस्कृत में अनुवाद करो 1. साधा है संपूर्ण भरत जिसने, ऐसा आकाश में रहा हुआ भरत चक्रवर्ती का चक्र
अयोध्या के अभिमुख चला । आद्य प्रयाण के दिन से 60 हजार वर्ष बीतने पर चक्र मार्ग का अनुगामी भरत भी चला । सैन्य द्वारा उडी हुई धूल के संबंध से खेचरों को भी मलिन करता हुआ, हर गोकुल में विकसित दृष्टिवाली गोपाल की स्त्रियों के मक्खन रूपी अर्घ को ग्रहण करता हुआ, हर जंगल में हाथी के कुंभस्थल में पैदा हुए मोती आदि की भेंट को ग्रहण करता हुआ, गाँव-गाँव में उत्कंठित गाँव के वृद्धों को ग्रहण किए (आत्त) और नहीं ग्रहण की गई भेंटों द्वारा अनुग्रह करता हुआ,