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आओ संस्कृत सीखें
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पाठ - 32
अव्ययीभाव समास परस्पर ग्रहण कर किया गया युद्ध - इस अर्थ में सप्तम्यंत नाम, दूसरे सप्तम्यंत नाम के साथ. परस्पर प्रहार कर किया गया युद्ध - इस अर्थ में तृतीयांत नाम, दूसरे तृतीयांत नाम के साथ अव्ययीभाव समास होता है। उदा. 1. केशेषु च केशेषु च मिथ: गृहीत्वा कृतं युद्धम्-केशाकेशि युद्धम्, कराकरि ।
2. दण्डैश्च दण्डैश्च मिथः प्रहत्य कृतं युद्धं - दण्डादण्डि युद्धं, गदागदि । 2. पारे, मध्ये, अग्रे और अन्तर् ये नाम षष्ठ्यंत नाम के साथ पूर्व पद की मुख्यता
से विकल्प से अव्ययीभाव समास होते हैं। गङ्गायाः पारम् पारेगङ्गम् पक्षे गङ्गापारम् (षष्ठीतत्पुरुष) गङ्गायाः मध्यम् मध्येगङ्गम् , गङ्गामध्यम् वनस्य अग्रम् अग्रेवणम , वनाग्रम्
गिरेरन्तः अन्तर्गिरि , गिर्यन्तः 3. “अवधारण" दिखाई देता हो तो यावद् नाम दूसरे नाम के साथ पूर्वपद की
मुख्यता से अव्ययी भाव समास होता है। उदा. यावन्ति अमत्राणि तावन्त इति-यावदमत्रम् अतिथिनाम् आमन्त्रयस्व । (बोलने वाले व्यक्ति को बर्तनों की संख्या मालूम है, अतः जितने बर्तन उतने अतिथि कहने से अतिथि की संख्या का निश्चय, जितने बर्तन उतने अतिथि का
ख्याल आता है। 4. अकारांत सिवाय के अव्ययी भाव समास से विभक्ति के प्रत्यय का लोप होता है। 5. अव्ययी भाव समास नपुंसक लिंग में होता है । 6. परि, अप, आ, बहिस् तथा अच् जिसके अंत में हो ऐसे अव्यय नाम, पंचम्यंत
नाम के साथ पूर्वपद की मुख्यता से अव्ययीभाव समास होते हैं। उदा. परि त्रिगर्तेभ्य: परित्रिगर्तम्, अपत्रिगतम्, अपविचारम् ।
आ ग्रामात् - आग्रामम्, बहिर्ग्रामम् । प्राग् ग्रामात् - प्राग्ग्रामम् ।