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आओ संस्कृत सीखें
3 1972
8. श्वि, जागृ, शस्, क्षण तथा ह्, म् और य अंतवाले धातु तथा कग, रग, लग,
करु, हस् आदि धातुओं की सेट् स् (सिच्) पर वृद्धि नहीं होती है। उदा. अश्वयीत् । अजागरीत् । अशसीत् । अक्षणीत् ।
___ अग्रहीत् । अवमीत् । अहयीत् । अहसीत् आदि 9. तनादि (तनादि 8वाँ गण) धातुओं से स् (सिच्) का आत्मनेपद के त तथा थास्
प्रत्यय पर विकल्प से लोप होता है। लोप होने पर धातु के अंत्य न् या ण् का लोप होता है और इ (इट्) नहीं होता है। तन् - अतत, अतनिष्ट । अतथाः - अतनिष्ठाः ।
क्षण् - अक्षत, अक्षणिष्ट । अक्षथाः - अक्षणिष्ठाः । 10. आत्मनेपद तृतीय पुरुष एक वचन के त प्रत्यय पर दीप, जन्, बुध् (गण 4) पुर्
ताय और प्याय् धातुओं से स् (सिच्) के बदले इ (चिंच्) विकल्प से होता है
और त का लोप होता है । दीप् अदीपि अदीपिष्ट अदीपिषाताम् अदीपिषत जन अजनि अजनिष्ट अजनिषाताम् अजनिषत पूर अपूरि अपूरिष्ट अपूरिषाताम् अपूरिषत ताय् अतायि अतायिष्ट अतायिषाताम् अतायिषत प्याय् अप्यायि अप्यायिष्ट अप्यायिषाताम् अप्यायिषत अबोधि, बुध (गण 4) धातु अनिट् है, उसके रूप दूसरे प्रकार में आएंगे । कर्मणि प्रयोग : धातु को आत्मनेपद के प्रत्यय लगने से कर्मणि या भावे रूप
बनते हैं। 11. सभी धातु से भावे और कर्मणि में तृतीय पुरुष एक वचन के त प्रत्यय पर स्
(सिच्) के बदले इ (जिच्) होता है और त का लोप होता है । उदा. आसि त्वया, ऐक्षि कटः।
ईक्ष के रूप ऐक्षिषि
ऐक्षिष्वहि ऐक्षिष्ठाः
ऐक्षिषाथाम् ऐक्षिध्वम्, ड्ढ्वम् ऐक्षि
ऐक्षिषाताम् ऐक्षिषत
ऐक्षिष्महि