________________
क्रिया:
कृषीय
आओ संस्कृत सीखें
219 उदा. गेयात्, पेयात् य कारादि आशी: के प्रत्ययों पर दीर्घ होते हैं।
उदा. जीयात् स्तूयात् । 7. इ (बिट्) सिवाय आशीर्वाद में हन् का वध होता है। उदा. वध्यात, आवधिषीष्ट इ (ञिट्) में घानिषीष्ट
कृ के रूप - परस्मैपद क्रियासम् क्रियास्व
क्रियास्म क्रियास्तम्
क्रियास्त क्रियात् क्रियास्ताम्
क्रियासुः आत्मनेपद कृषीवहि
कृषीमहि कृषीष्ठाः कृषीयास्थाम्
कृषीढ्वम् कृषीष्ट कृषीयास्ताम्
कृषीरन् दुह के रूप - परस्मैपद दुह्यासम्
दुह्यास्व दुह्याः दुह्यास्तम्
दुह्यास्त दुह्यात् दुह्यास्ताम्
दुह्यासुः
आत्मनेपद धुक्षीय धुक्षीवहि
धुक्षीमहि धुक्षीष्ठाः धुक्षीयास्थाम् धुक्षीध्वम् धुक्षीयास्ताम्
धुक्षीरन् वह् - उह्यात्, वक्षीष्ट मुद् - मोदिषीष्ट दसवें गण के आशी: के रुप प्रेरक के पाठ में देंगे ।
कर्मणि रूप आत्मनेपद के प्रत्यय तथा पाठ 19 के नियम 18, 19, 20 लगाकर करे। उदा. नेषीष्ट, नायिषीष्ट
दुह्यास्म
धुक्षीष्ट