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आओ संस्कृत सीखें
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कर्मणि-भावे प्रयोग : कर्मणि व भावे प्रयोग में धातु से आत्मनेपद के प्रत्यय लगते हैं । उदा. सृ - सस्रे ।
रुध् - रुरुधे ।
संस् = सस्रंसे । 11. चित्तविक्षेप आदि कारण से क्रिया का स्मरण न हो अथवा की हुई क्रिया को
छिपाना हो तो अद्यतनी (आज) सिवाय के भूतकाल में धातु से परोक्षा प्रत्यय लगते हैं । उदा. 1) सुप्तोऽहं किल विललाप ।
वास्तव में सोते हुए मैंने विलाप किया । 2) मत्तोऽहं किल विचचार ।
वास्तव में उन्मत्त होकर मैं भटका हूँ।
(दूसरों के कहने से विश्वास में आकर कर्ता यह प्रयोग करता है) 3) कलिङ्गेषु ब्राह्मणो हतस्त्वया
कलिंग देश में तुमने ब्राह्मण को मारा हैं 4) नाहं कलिङान्जगाम
__ मैं कलिंग देशमें नही गया। 14. अद्यतन (आज) सिवाय के परोक्ष (स्वयं ने नहीं देखे) भूतकाल में धातु से
परोक्षा के प्रत्यय लगते हैं। उदा. धर्मं दिदेश तीर्थंकरः - तीर्थंकर ने धर्म का उपदेश दिया ।
कंसं जघान कृष्णः - कृष्ण ने कंस को मारा । 15. परोक्ष भूतकाल में परीक्षा की विवक्षा न करे तो ह्यस्तनी होता है । . अभवत् सगरो राजा - सगर राजा हुए
शब्दार्थ इषुधि = बाण (पुंलिंग-स्त्री) | दारक = पुत्र
(पुंलिंग) चाप = धनुष (पुंलिंग-नपुं.) | पक्ष = पंख (पुंलिंग) झंझावात = प्रचंड पवन (पुंलिंग) | प्रलम्बघ्न = कृष्ण
(पुंलिंग)