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आओ संस्कृत सीखें
192 यह सुनकर राम खुश हुए और बोले, ‘माता ने मेरे भाई भरत के लिए राज्य मांगा, (मार्ग) वह अच्छा किया है । (कृ) राम के इस वचन को सुनकर दशरथ ने जैसे ही मंत्रियों को आदेश (आ+दिश्) दिया, उसी समय भरत बोला, हे स्वामी! मैंने तो पहले से ही आपके साथ दीक्षा लेने की प्रार्थना (प्रार्थितुम्) की है, अतः हे तात ! किसी के वचन से विपरीत करना योग्य नहीं हैं। (नार्हति) राजा ने कहा (वच्) हे वत्स ! 'मेरी प्रतिज्ञा को तू मिथ्या मत कर ।' राम ने राजा को कहा 'मेरे होते हुए भरत राज्य ग्रहण नहीं करेगा । अतः मैं वनवास में जाता हूँ।' इस प्रकार राजा को कहकर (आपृच्छ्य) और नमस्कार करके भरत द्वारा जोर से रोने पर भी राम वनवास की ओर जाने के लिए निकल पड़े। (निर्+या)
हिन्दी में अनुवाद करो 1. अथ रामः ससौमित्रिः सुग्रीवाद्यै वृतो भटैः । .
लङ्काविजय-यात्रायै प्रतस्थे गगनाध्वना । 2. महाविद्याधराधीशाः कोटिशोऽन्येपि तत्क्षणम् ।
चेलू रामं समावृत्य स्वसैन्यैश्छन्नदिङ्मुखाः ।। 3. विद्याधरैराहतानि यात्रातुर्याण्यनेकशः ।
नादैरत्यन्तगम्भीरै र्बिभराञ्चक्रुरम्बरम् ।। 4. विमानैः स्यन्दनैरश्वैर्गजैरन्यैश्च वाहनेः ।
खे जग्मुः खेचराः स्वामिकार्यसिद्धावहंयवः ।। 5. उपर्युदन्वतो गच्छन् ससैन्यो राघवः क्षणात् ।
वेलन्धरपुरं प्राप वेलन्धर-महीधरे ।। 6. समुद्र-सेतू राजानौ समुद्राविव दुर्धरौ ।
तत्र रामाग्रसैन्येनारेभाते योद्धमुद्धतौ ।। 7. तेषां चतुर्णां चतस्रः पुत्र्यो यूयं भविष्यथ ।
मर्त्यत्वमीयुषा भावी तत्र वोऽनेन सङ्गमः ।।