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आओ संस्कृत सीखें
पुं. लिंग
द्वितीयस्मै द्वितीयाय
अमर =
द्वितीयस्मात्, द्वितीयात्
द्वितीयस्य द्वितीयस्मिन् द्वितीये
अब्द =
अंश = भाग
देव
गच्छ = समुदाय जिनवर = जिनेश्वर
वर्ष
तीर्थंकर = तीर्थस्थापक
परिमल = सुगंध
1.
2.
3.
पुष्य = पुष्यनक्षत्र
मर्त्य = मनुष्य वास = निवास
4.
5.
(पुंलिंग)
अवसर्पिणी=उतरता काल (स्त्रीलिंग)
जल्प् गण - 1 (परस्मै ) = कहेना
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स्त्रीलिंग
द्वितीयस्यै, द्वितीयोग द्वितीयस्याः, द्वितीयायाः
द्वितीयस्याः, द्वितीयायाः
द्वितीयस्याम्, द्वितीयायाम् शब्दार्थ
(पुंलिंग) धृति = धैर्य
(स्त्रीलिंग) ( नपुं. लिंग)
(पुंलिंग) पर्वन् = पर्व
(पुंलिंग) भवन = घर
( नपुं. लिंग)
(पुंलिंग) युग्म = जुड़ा हुआ, जोड़ा (नपुं. लिंग) (पुंलिंग) अतुल = बहुत ज्यादा (विशेषण) (पुंलिंग) अमर्षण = सहन नहीं करनेवाला (विशे.)
(पुंलिंग) ऋजु = सरल
(विशेषण)
(पुंलिंग) धवल = सफेद
(पुंलिंग)
युत = सहित
विश्रुत = प्रसिद्ध स्वाहा = मंत्राक्षर
(विशेषण)
(विशेषण)
(विशेषण)
(अव्यय)
संस्कृत में अनुवाद करो
इस राजा का सैन्य उस राजा के बीसवें भाग जितना भी नहीं है ।
इस दिन से छठे या सातवें दिन वह तुम्हारे नगर में आएगा ।
एक बार - दो बार नहीं किंतु सौ बार सीधी की गई (ऋजुकृतम्) कुत्ते की पूंछ सीधी नहीं रहती है । (स्था)
त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित के दश पर्व हैं, उनमें से चार पर्व मैं पढ़ा हूँ । (अधि + इ)
चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव, नौ वासुदेव और नौ प्रतिवासुदेव ये सब मिलकर तिरसठ शलाकापुरुष एक अवसर्पिणी और एक उत्सर्पिणी में होते हैं।