________________
आओ संस्कृत सीखें
1303
5 वें गण के धातु आप = प्राप्त करना (परस्मैपदी) | अश् = मिलना (आत्मनेपदी) दु = दुःखी होना (परस्मैपदी) | कृ = हिंसा करना (उभयपदी) धृष् = हिम्मत करना (परस्मैपदी)| चि = इकट्ठा करना (उभयपदी) शक् = शक्तिमान होना (परस्मैपदी) | धू = हिलाना (उभयेपदी) श्रु (शृ) = सुनना (परस्मैपदी) | वृ = भजना (उभयपदी) साध् = साधना (परस्मैपदी) | सम् + वृ = बंद करना सु = सोमरस निकालना (परस्मैपदी)| अप + आ + वृ = खोलना स्तृ = ढकना (परस्मैपदी)| वि + वृ = विवरण करना हि = भेजना (परस्मैपदी) | आ + वृ = ढकना
शब्दार्थ अहि = साँप
(पुंलिंग) | सज् = माला (स्त्री लिंग) कुथ = दरी
(पुंलिंग) | अभीष्ट = इच्छित (विशेषण) चंद्रगुप्त = मौर्यवंशी राजा (पुंलिंग) | विरहित = बिना (विशेषण) वर = वरदान
(पुंलिंग)। दात्र = दातरडा (नपुं. लिंग) सचिव = प्रधान (पुंलिंग) | द्रम्म = पैसा (नपुं. लिंग) सामन्त = छोटा राजा (पुंलिंग) | बाहुल्य = अत्यंत (नपुं. लिंग) गुहा = गुफा (स्त्री लिंग)| हा = खेद (नपुं. लिंग) सूची = सुई (स्त्री लिंग)।
संस्कृत में अनुवाद करो : 1. हंसा ने फूल चूने (चि) और उनकी माला बनाई। (चि) 2. पर्वत की गुफा में बैठकर उसने विद्या सिद्ध की । (साध्)
विद्यादेवी ने कहा, “तू वरदान मांग । (वृ)
मैं वरदान प्रदान करने में समर्थ हूँ।” (शक्) 3. अच्छे कार्यों से मनुष्य की कीर्ति लोक में फैलती है । (अश्) 4. शत्रु सैन्य को पराजित करने के लिए उन्होंने हिम्मत की । (घृष्)