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आओ संस्कृत सीखें
8. परि, वि तथा अव उपसर्ग के बाद क्री धातु आत्मनेपदी है।
उदा. परिक्रीणीते, विक्रीणीते आदि । 9. ज्ञा (जा) धातु के पहले उपसर्ग न हो तो आत्मनेपदी भी होता है।
उदा. जानीते, जानाति । 10. 'छिपाना' अर्थ में तथा सम् तथा प्रति उपसर्ग पूर्वक स्मृति से भिन्न अर्थ में ज्ञा धातु आत्मनेपदी है। उदा. अपजानीते = छिपाता है ।
संजानीते = जानता है।
प्रतिजानीते = प्रतिज्ञा करता है ।
परंतु संजानाति = स्मरण करता है । 11. 'स्म' अव्यय के योग में ह्यस्तन भूतकाल में भी वर्तमाना प्रत्यय होते हैं।
पृच्छति स्म पितरम् - पिता को पूछा। 12. पृ सिवाय के दीर्घ ऋकारांत और लू आदि धातुओं से ति (क्ति) तथा तवत् (क्तवतु) के त का न होता हैं । उदा. → = जीर्णः, जीर्णवान्
तृ = तीर्णः, तीर्णवान् लू = लूनिः, लूनः, लूनवान्
वर्तमान कृदन्त लुनत्, क्रीणत्, मुष्णत् आदि - रूप चिन्वत् की तरह । आत्मनेपदी में - क्रीणानः, गृह्णानः कर्मणि में - पूयते, मुष्यते
पृ का पूर्यते ।
वृ = वूर्यते । कृदंत - पूयमानः । मुष्यमाणः आदि