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आओ संस्कृत सीखें
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हा धातु के रूप -
पिपूर्मः
पिपूर्थ
अपिपरम्
जिहे जिहीवहे जिहीमहे आदि ‘मा' की तरह । 3. ओष्ठ्य व्यंजन के बाद रहे दीर्घ कृ का कित् ङित् प्रत्यय पर उर् होता है ।
उदा. पिपुर् + तस् = पिपूर्तः, पिपुरति । कर्मणि में - पूर्यते । पृ + त = पूर्तः, पूर्तवान् (भूतकृदन्त) पूर्तिः
पृ के रूप
वर्तमाना पिपर्मि
पिपूर्वः पिपर्षि
पिपूर्थः पिपर्ति पिपूर्तः
पिपुरति ह्यस्तनी अपिपूर्व
अपिपूर्म अपिपः अपिपूर्तम्
अपिपूर्त अपिपः अपिपूर्ताम्
अपिपरुः
विध्यर्थ पिपूर्याम् पिपूर्याव
पिपूर्याम पिपूर्याः पिपूर्यातम्
पिपूर्यात पिपूर्यात्
पिपूर्याताम्
आज्ञार्थ पिपराणि पिपराव
पिपराम पिपूर्हि
पिपूर्तम्
पिपूर्ताम् 4. दा या था ऐसा स्वरूप जिसका हो, उसे दा संज्ञा वाले कहते हैं ।
दा (गण 2) काटना तथा दै (गण 1 परस्मैपदी) शुद्ध करना - ये धातु दा संज्ञावाले नहीं हैं। दा + तस् = ददा + तस् (यहाँ पाठ 14 नियम 9 नहीं लगेगा क्योंकि वहाँ दा संज्ञावाले धातुओं का निषेध किया है। परंतु पाठ 14 नियम 8 लगेगा - दद् + तस् = दत्तः, ददा + अति = ददति ।
पिपूर्युः
पिपूर्त
पिपर्तु
पिपृतु