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आओ संस्कृत सीखें
• पाँचवें गण में स्वरांत और व्यंजनांत दोनों प्रकार के धातु हैं। • आठवें गण में व्यंजनांत ही हैं। पाँचवें और आठवें गण में विकरण प्रत्यय नु, उ अर्थात् उकारांत हैं। पाँचवें गुण के स्वरांत और आठवें गण के व्यंजनांत धातु के रूप समान ही होते हैं ।
• नौवें गण में स्वरांत और व्यंजनांत दोनों प्रकार के धातु हैं। उन दोनों के रूप समान होते हैं, सिर्फ व्यंजनांत धातु के आत्मनेपदी द्वितीय पुरुष एकवचन का रूप भिन्न होता है - उदा. पुषाण । इस गण का विकरण प्रत्यय ना (श्ना) हैं।
• सातवें गण के सभी धातु व्यंजनांत हैं, इस गण का विकरण प्रत्यय स्वर और व्यंजन बीच में आता है। इस कारण इस गण का स्वरूप व्यंजनांत रहता है। पुरुष बोधक प्रत्यय लगने पर अनेक प्रकार की व्यंजन संधियाँ होती हैं। शेष प्रत्ययों में परिवर्तन सभी धातुओं में एक समान होता है। विकरण प्रत्यय ना (श्ना) है।
तीसरा गण विभाग : ( दूसरा - तीसरा गण ) इनमें विकरण प्रत्यय नहीं है, स्वरांत व व्यंजनांत दोनों प्रकार के धातु हैं।
व्यंजनांत धातु के रूप बनाते समय अनेक प्रकार की व्यंजन संधियाँ होती हैं तथा स्वरांत धातु के रूप भिन्न-भिन्न होते हैं।
व्यंजनादि वित् प्रत्ययों पर ब्रू धातु से नित्य और तु, रु और स्तु धातु विकल्प सेई होती है।
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ह्यस्तन भूतकाल के द्-स् प्रत्यय पर अस् धातु से नित्य इ होती है ईश् तथा ईड् धातु से, से ध्वे तथा आज्ञार्थ स्व ध्वम् पर, रुद् आदि पाँच धातु से विध्यर्थ को छोड़ व्यंजनादि शित् प्रत्ययों पर इ होती है।
ह्यस्तनी द् - स् प्रत्यय पर रुदादि पाँच धातु से ई तथा अ होता है तथा अद् धातु अ होता है।
तीसरे गण में द्विरुक्ति होती है।
वर्तमान कृदन्त के रूप : पुंलिंग और नपुसंक लिंग में धुट् प्रत्ययों पर उपान्त्य में ‘न्’ जुड़ता है, परंतु द्वयुक्त (गण तीसरा ) धातुओं में और जक्ष् आदि पाँच धातुओं में पुंलिंग में न् का लोप होता है, नपुंसक लिंग में विकल्प से लोप होता है।
नपुंसक लिंग द्विवचन और स्त्रीलिंग का ई प्रत्यय लगने पर छठे और दूसरे गण के आकारांत धातुओं में अत् का अन्त् विकल्प से होता है। पहले, चौथे, दसवें गण में अत का अन्त् नित्य होता है शेष गणों में अत् का अत् रहता है।