________________
आओ संस्कृत सीखें
= अंजन करना
अज्
तृह्य = हिंसा करना पिष् :
= दलना
पृच् = संपर्क करना
भुज् = भोग करना
विज् = चलित होना
हिंस् = हिंसा करना
खिद् = खेद करना
गन्ध = गंधयुक्त द्रव्य
पर = शत्रु
प्रशम =
शांति
प्राज्ञ = बुद्धिमान् बुध = पंडित
राशि = ढेर
वारण = हाथी
विशिख = बाण
हृद = द्रह
50
= जलना
सातवें गण के धातु (परस्मैपदी) | इन्ध् (परस्मैपदी) विद् विचार करना (परस्मैपदी) छिद् = छेद करना
( परस्मैपदी) भिद् = भेद करना (परस्मैपदी) युज् = जोड़ना (परस्मैपदी) रिच् = खाली करना
=
( परस्मैपदी) क्षुद् = पीसना
(आत्मनेपदी)
=
(आत्मनेपदी) (आत्मनेपदी)
(पुंलिंग) लवण = नमक (पुंलिंग) साहस = साहस (पुंलिंग) | सौहार्द = मित्रता
(उभयपदी)
(उभयपदी)
(उभयपदी)
(उभयपदी)
(उभयपदी)
शब्दार्थ
(स्त्रीलिंग)
(पुंलिंग) | अवन्ती = नगरी का नाम (स्त्रीलिंग) (पुंलिंग) पिप्पली = पीपर (पुंलिंग) हरिद्रा = हल्दी (पुलिंग) दैन्य = दीनता
(स्त्रीलिंग)
(पुंलिंग) मर्मन् = मर्म (पुंलिंग) मरिच = मिर्च
( नपुं. लिंग)
( नपुं. लिंग)
( नपुं. लिंग)
( नपुं. लिंग)
( नपुं. लिंग)
( नपुं. लिंग)
संस्कृत में अनुवाद करो
1.
किसी भी जीव को मारना नहीं चाहिए । (हिंस् )
2.
पंडित पुरुष अच्छे-बुरे का विवेक करते हैं (वि + विच)
3. तू संत पुरुषों की संगति कर और तत्त्व का विचार कर (विद्)
4.
जिस प्रकार पवन वृक्षों को उखाड़ (भञ्ज्) देता है, उसी प्रकार तुमने मेरे मनोरथ नष्ट कर दिए। (भञ्ज)
5. इष्ट के वियोग और अनिष्ट के संयोग में मूर्ख मनुष्य खेद करता है । (खिद्) परंतु जो बुद्धिशाली है, वह खेद नहीं करता है ( खिद्) वह तो मानता है कि मनुष्य किए हुए कर्मों का फल प्राप्त करता है। (भुज्)
6. मनुष्य को दूसरों के गुण प्रगट करने चाहिए (वि + अञ्ज्)