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आओ संस्कृत सीखें
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जिहियतु
आज्ञार्थ जिह्याणि
जियाव
जियाम जिहीहि
जिहीतम
जिहीत जिहेतु
जिहीताम् वर्तमान कृदंत - जुह्वत्, जिहियत्, बिभ्यत्, जहत् के रूप तीनों लिंगों में जक्षत् की तरह होंगे। कर्मणि में - हा - हीयते, हीयमानः ।
हू - हूयते, हूयमानः ।
भी - भीयते, भीयमानम् । हीयते । 18. त्वा प्रत्यय पर हा छोडना धातु का हि होता है । उदा. हि + त्वा = हित्वा
तीसरे गण के धातु भी = डरना (परस्मैपदी) | हु = होम करना (परस्मैपदी) हा = त्याग करना (परस्मैपदी) | ही = शर्मिंदा होना (परस्मैपदी)
शब्दार्थ आर्यपुत्र = पति (पुंलिंग)| अम्बक = आँख (नपुं. लिंग) कलाप = समूह (पुंलिंग) अक्ष = नेत्र (नपुं. लिंग) जुह्वान = घी आदिको होमनेवाला (पु.) कुंद = मचकुंद का फूल (नपुं. लिंग) तुषार = बर्फ
(पुंलिंग)| तुण्ड = मुख (नपुं. लिंग) पावक = अग्नि (पुंलिंग) | मुण्ड = मस्तक (नपुं. लिंग) होतृ = हवन करनेवाला ब्राह्मण (पुं.) लक्ष्मन् = चिह्न (नपुं. लिंग) चण्ड = प्रचंड (विशेषण) विभात = प्रभात (नपुं. लिंग) पलित = सफेद बालवाला (विशेषण) समिध् = काष्ठ (स्त्री लिंग) अन्तरिक्ष = आकाश (नपुं. लिंग) | अन्तर् = अंदर (अव्यय)
संस्कृत में अनुवाद करो 1. मैं मौत से डरता नहीं हूँ (भी), क्यों कि अमृततुल्य जिनेश्वर के वचन का पान
किया है।