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आओ संस्कृत सीखें
9. समय पर पके हुए धान्य को किसान काटता है, उसी प्रकार कृतांत जन्मे को काट लेता है । (लू)
10. अपने वचन से छोड़े हुए आहार को मैं क्यों ग्रहण करूँ ? (ग्रह) 11. पंडितजन प्रिय के वियोग रूपी विष के वेग को जानते हैं, (ज्ञा) इसीलिए बिल में रहे साँप की तरह प्रेम को छोड़ देते हैं । (परि + ह)
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12. उसके मुख का बंध और वेणी का बंध शोभा को धारण करता है, मानों चंद्रमा और राहु मल्लयुद्ध करते हैं ।
हिन्दी में अनुवाद करो :
1. अनुजानीत मां यत्र मे बन्धुजनोऽस्ति तत्र गच्छामि । विक्रीणीते स्म भाण्डानि ।
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3. सूत ! नोदयाश्वान्, पुण्याश्रमदर्शनेन तावदात्मानं पुनीमहे । कटु-तुम्ब्या: पक्वमपि फलं कोऽश्नाति ?
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5. अमूनि फलानि गृह्णीत ।
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हुए प्राणी
एषा भवतः कान्ता, त्यज वैनां गृहाण वा ।
‘कस्मात्कर्मणः भवगहने भ्रम्यते, कस्माच्च मोक्षो भवति, इति ज्ञातुं मूढ ! यदि मन्यसे तदा जिनागमान्गवेषय ।
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एष जानाति सर्वं भासुरक ! बहिर्नीत्वा तावत्ताड्यतां यावत्कथयति । 9. विजये ! अपि प्रत्यभिजानासि भूषणमिदम् ?
10. अमूं विद्यां भक्तिप्रवणेन चेतसा निर्विकल्पम्' गृहाण ।
11. जानीहि मदीयमपि लेशतो वृत्तान्तम् ।
12. अनुगृहाणेमां मन:- परितोषाय मे नृपंचन्द्र ! |
13. शीलेन महता पुनाति स्वं कुलद्वयम् ।
14. मुषाण रत्नानि हरामराङ्गनाः
15. विपुलधनमत्रास्ति मदीयं तद् गृहाण भोः ! । 16. दुःखं प्राप्य न दीन: स्यात्सुखं प्राप्य न विस्मितः । मुनि: कर्म - विपाकस्य जानन् परवशं जगत् ।।