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आओ संस्कृत सीखें
विजया = नाम है उटज = झोपड़ी कलत्र = पत्नी प्रेमन् = प्रेम प्रेषण = भेजना भाण्ड = बर्तन सस्य = घास
(स्त्री लिंग) | अरुण = लाल (नपुं. लिंग) अंतरंग = अंदर का (नपुं. लिंग) | कटु = कडवा (नपुं. लिंग) | निबिड = गाढ (नपुं. लिंग) | परिणत = पका हुआ (नपुं. लिंग) | पुण्य = पवित्र (नपुं. लिंग) | मदीय = मेरा
(विशेषण) (विशेषण) (विशेषण) (विशेषण) (विशेषण) (विशेषण) (विशेषण)
अन्य धातु मथ् = मथना गण 1 (परस्मैपदी) | दृप् = गर्व करना गण 4 (आत्मनेपदी) वेष्ट = बुनना गण 1 (आत्मनेपदी) | गवेष् = शोध करना गण 10 (परस्मैपदी) स्मि = स्मित करना गण1(आत्मनेपदी) | नुद् = प्रेरणा करना गण 10 (परस्मैपदी) धू = धारणा करना 1 (उभयपदी) | वृज् = छोडना गण 10 (परस्मैपदी)
संस्कृत में अनुवाद करो : 1. उस दुरात्मा को गाढ़ बंधनों से बाँधो और कैद में डालो (बन्ध्) । 2. देखो, भ्रमर पुष्प में लीन बना है और शहद पीता है। 3. जब मनुष्य असत्य बोलता है (गृ) तब सज्जन का हृदय दुःखी होता है । 4. तुम पुष्पों की माला गूंथो (ग्रंथ्) व्यर्थ में क्लेश मत करो (क्लिश्) ।
तू फूल की चोरी मत कर (मुष्) ।
तुम तो फूलों को चिमला देते हो (मृद्) । 5. कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्राचार्यजी के व्याकरण को देखकर पंडित अपना मस्तक
धुनाते हैं (धू)। 6. कन्याओं ने अपने घड़े पानी से भरे । (पृ) 7. वृक्ष के पत्तों द्वारा तापस ने अपनी झोपड़ी ढक दी (स्तृ) । 8. मनुष्य वृक्ष पर से फल लेता है और कड़वे पत्ते छोड़ देता है । (वृज् गण १०)
तो भी सज्जन की तरह वह महावृक्ष पत्तों को अपनी गोद में धारण करता है ।