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आओ संस्कृत सीखें
पाठ - 7
सु आदि पाँचवाँ गण 1. कर्तरि प्रयोग में शित् प्रत्यय लगने पर पाँचवें गण के धातुओं को नु (श्नु)
विकरण प्रत्यय लगता है । उदा. चि + नु (श्नु) + ति 2. नु (श्नु) प्रत्यय के स्वर का ङित् सिवाय के प्रत्यय पर गुण होता है।
उदा. चिनोति 3. नु (श्नु) प्रत्यय अवित् शित् होने से ङित् है अतः धातु के स्वर का गुण नहीं
होता है। उदा. चिनोति में चि के इ का गुण नहीं होगा। 4. पहले संयोग न हो तो प्रत्यय के उ का म् और व् से प्रारंभ होनेवाले अवित् प्रत्ययों पर विकल्प से लोप होता है।
उदा. चि + नु + वस् = चिन्वः, चिनुवः । चिन्मः, चिनुमः । शक् का शक्नुवः शक्नुमः - यहाँ संयोग होने से लोप नहीं हुआ । 5. पहले संयोग न हो तो प्रत्यय के उ के बाद में रहे हि का लोप होता है।
उदा. चिनु + हि = चिनु 'शक्नुहि' में संयोग होने से हि का लोप नहीं हुआ।
परस्मैपदी के रूप चिनोमि चिन्वः, चिनुवः चिन्मः, चिनुमः चिनोषि चिनुथः
चिनुथ चिनोति
चिन्वन्ति
चिनुतः
टिप्पणी : पाँचवाँ, सातवाँ, आठवाँ तथा नौवा गण, ये चार गण अकारात सिवाय
के विकरण प्रत्यय लेनेवाले हैं । यद्यपि 7 वें गण का विकरण प्रत्यय अकारांत हैं, फिर भी वह धातु के स्वर के बाद और अंत्य व्यंजन के पहले आता है, अतः प्रत्ययों में आते का इते आदि नहीं होता है। इसी प्रकार दूसरे और तीसरे गण में भी यही नियम लागू पड़ेगा, क्योंकि उन गणों में तो विकरण प्रत्यय लगता ही नहीं हैं ।