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आओ संस्कृत सीखें
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पाठ - 6
कर्मणि - भावे प्रयोग 1. य (क्य) प्रत्यय पर धातु का अंत्यस्वर दीर्घ होता है।
उदा. जि + य (क्य) + ते = जीयते । 2. गा, पा (पीना) स्था, सा, दा (दा संज्ञावाले धातु) मा, हा (त्याग करना) इन
धातुओं के अंत्य स्वर आ का व्यंजनादि कित् प्रत्यय पर ई होता है परंतु त्वा का य हो तब ई नहीं होता है। उदा. गा = गीयते, गीतः, गीतवान्, गीत्वा ।
पा = पीयते, पीतः, पीतवान्, पीत्वा ।
परंतु प्रगाय यहाँ त्वा का य नहीं होने से ई नहीं हुआ । 3. खन्, सन् और जन् धातु के न् का धुट् व्यंजनादि कित् प्रत्यय पर आ होता है, परंतु य कित् पर विकल्प से आ होता है। उदा. खन् + त = खातः, सातः, जातः ।
खायते, खन्यते, सायते, सन्यते, जायते, जन्यते । 4. धातु के अंत्य ऋ के पहले संयोग हो तो ऐसे धातु के ऋ का तथा ऋ धातु के ऋ का य (क्य) प्रत्यय पर गुण होता है।
स्मृ = स्मर्यते
ऋ = अर्यते 5. कित् प्रत्यय पर पहले गण के यज् आदि (यज्, व्ये, वे, वे, वप्, वह्, श्वि,
वद्, वस्) तथा वच् (गण 2) धातुओं के स्वर सहित अंतस्था का इ, उ तथा ऋ (ट्वृत्) होता है। य का इ, व का उ तथा र का ऋ होता है, इसे संप्रसारण भी कहते हैं। उदा. यज् = इज्यते
वच् = उच्यते वप् = उप्यते
व्ये = वीयते वह् = उह्यते
वे = ऊयते वद् = उद्यते
। = हूयते वस् = उष्यते
श्वि = शूयते