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आओ संस्कृत सीखें
12 | पाठ-3
दिवादि चौथा गण 1. कर्तरि प्रयोग में शित् प्रत्यय लगने पर चौथे गण के धातुओं को य (श्य) विकरण प्रत्यय लगता है। उदा. कुप् + य + ति = कुप्यति
कुप्यत् - वर्तमान कृदन्त 2. धातु के ओ का य (श्य) प्रत्यय पर लोप होता है। उदा. सो + य + ति = स्यति, दो = द्यति, शो = श्यति
छो = छ्यति 3. शम्, दम्, तम्, श्रम्, भ्रम्, क्षम् और मद् इन सात धातुओं का स्वर य (श्य) प्रत्यय पर दीर्घ होता है।
उदा. शाम्यति, दाम्यति आदि भ्रास गण 1, भ्लास् गण 1, भ्रम् गण 1, क्रम् गण 1, लष् गण 1, क्लम् गण 4, त्रस् गण 4, त्रुट गण 6, यस् गण 4 तथा सम् + यस् - इन धातुओं को विकल्प से य (श्य) विकरण प्रत्यय लगता है। उदा. भ्रास्यते = भ्रासते । भ्लास्यते = भ्लासते ।भ्राम्यति = भ्रमति।
क्राम्यति = क्रामति । क्लाम्यति = क्लामति ।
त्रुट्यति = त्रुटति आदि । 5. भू आदि सभी गण के धातुओं के र् और व् के बाद में व्यंजन आए तो र् और व के पहले का नामि स्वर दीर्घ होता है । उदा. दिव् + य + ति = दीव्यति, सिव् + य + ति = सीव्यति ।
ष्ठित् + य + ति = ष्ठीवति । 6. दीर्घ ऋ कारांत धातुओं के ऋ का कित्-ङित् प्रत्यय पर इर् होता है । उदा. जृ+ य + ति
जीर् + य् + ति = जीर्यति
कर्मणि में जीर्यते तृ = तीर्यते 7. कित् - ङित् प्रत्यय पर ज्या गण ९ तथा व्यध् के स्वर सहित अंतस्था य का