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आओ संस्कृत सीखें
इहोता है।
उदा.
विध्यति, विध्यते । ज्या का जिनाति
8. व्यंजनांत धातु के उपांत्य न् तथा न् के स्थान पर हुए अनुस्वार या अनुनासिक व्यंजन का कित् - ङित् प्रत्ययों पर लोप होता है ।
परंतु आशंस्, कम्प्, क्रन्द्, काङक्ष, खण्ड्, चिन्त्, जृम्भू, नन्द्, निन्द्, मण्ड्, लघु, लम्ब्, लिङ्ग्, वन्द्, वाञ्छ्, शङ्क्, स्पन्द, हिंस् आदि धातुओं में अनुनासिक का लोप नहीं होता है।
उदा.
9.
=
भ्रंश् + य(श्य) + ति भ्रश्यति । कर्मणि में भ्रश्यते । शंस् + य + ते = शस्यते । शंस् + त (क्त) = शस्तः, प्रशस्तः। सज् + य + ते = सज्यते, सक्तः । आसक्तः
चौथे गण के सू, दू, दी, धी, मी, री, ली, डी, वी इन नौ धातुओं से जब त और
त्तवत् प्रत्यय लगता है, तब त का न हो जाता है।
उदा. दूनः, दूनवान् ।
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क्लम् = थक जाना छो = छेद करना
नृ = वृद्ध होना
तम् =
दुःखी होना
त्रस् = दुःखी होना
दीन, दीनवान् स्त्री लिंग में दीनवती ।
10. र् और द् अंतवाले धातुओं से त तथा तवत् के त का न हो जाता है। उस समय धातु के अंत्य द् का भी न हो जाता है। न् उदा. पूर् + त = पूर्ण:, पूर्णवान् ।
उत् + पद् + त = उत्पन्नः, उत्पन्नवान् । चौथे गण के धातु
( परस्मैपदी) | दम् = दमन करना
(परस्मैपदी) दिव्
अस् = फेंकना
इष् = जाना
अनु+इष् =अन्वेषण करना ( परस्मैपदी)
(परस्मैपदी)
( परस्मैपदी
( परस्मैपदी )
= क्रीड़ा करना
दो = छेद करना
भ्रम् = भटकन
भ्रंश् = भ्रष्ट होना
यस् = प्रयास करना
(परस्मैपदी) व्यध् = बींधना
( परस्मैपदी) श्लिष् = मिलना
(परस्मैपदी)
(परस्मैपदी)
(परस्मैपदी)
(परस्मैपदी)
( परस्मैपदी)
(परस्मैपदी)
(परस्मैपदी)
(परस्मैपदी)