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________________ Serving Jin Shasan 049553 ayanmandir@kobatirth.org // श्रीजिनाय नमः॥ // अथ श्रीधम्मिलचरित्रं नाषांतरोपेतं प्रारभ्यते // (द्वितीयो नागः) ( मूलकर्ता-श्रीजयशेखरसूरिः) भाषांतरकर्ता- श्रावक मनसुखलाल हीरालाल हंसराज. (जामनगरवाळा) हस्तायातखनाशेन / घातेनेव यमस्य सः // दोदूयमानोऽनुदिनं / व्यधात्तत्रापि रोदनं ॥ण्णा ग्रामाधिपस्ततस्तस्मै / शालेयं कृपया ददौ // धेनुं च रोहिणी नाम्ना / परार्या हि सतां श्रियः // __तथा त्यां पण ते हाथ थावेलां धनना नाशथी जाणे यमे पोताने मारी नाख्यो होय नहि तेम हमेशां दुजातो थको रमवा लाग्यो / एए // त्यारे ते गामना गकोरे तेने (दुःखी जोर९) एक खेतर बाप्यु तथा एक रोहिणी नामनी गाय पापी, केमके सज्जनोनी लक्ष्मी परोप. माटे होय . // 70 // एवामां वनना दावानलने नगश करनारो ज्यारे वरसाद थान्यो त्या Jun Gun Aaradi
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________________ 100 // अन्यदा वनदावामि-दाहडहि घनागमे // में विप्रो नवप्रौढि-शाली शालीनुवाप // 1 // इतश्चासादिते व्योम-मणिग्रहणपर्वणि // धनलाजाशया सर्वे / माद्यंतिस्म हिजात. यः // 2 // शालिर्विपच्यते याव-त्तावत्पर्वणि पूषणः // गत्वा ग्रामांतरं कंचि-हिनवं संचिनो. 174 | म्यहं // 3 // ध्यात्वेति रदयं शालेयं / पाल्येयं गुर्विणी च गौः / / युवान्यामिति पुत्रौ सो ऽनु. शिष्य प्रास्थित हिजः // 4 // द्विजे दूरं गते तस्मिन् / दारिद्य श्च देहिनि // श्रियमिबत्कलापा / तत्रागानटपेटकं // 5 // नटैः स्वकलया तत्र / तथारंजि चिरं जनः // स्वयं स्पृहाधिकं तेन्यो रे नवी श्राबादीथी खुश थयेला ते ब्राह्मणे ते खेतस्मां मांगर वावी. // 1 // एवामां सूर्यग्रहणनू पर्व श्राव्याथी.धनप्राप्तिनी अाशाथी सर्व ब्राह्मणो हर्षवेला बनी गया. // 2 // जेटलामां था डांगर पा. के तेटलामां था सूर्यग्रहणना पर्वमा कोश्क गाम जश्ने थारुंक धन एकतुं करूं, // 3 // एम वि. चारी ते ब्राह्मण तमारे था डांगरना खेतरतुं रक्षण कर तथा या गर्निणी गायने पण पाळची, एम पोताना बे संतानोने शिखामण थापी त्यांथी चालतो थयो. // 4 // मूर्तिवंत दारिद्यनीपेठे ते ब्राह्मण जेटलामां दूर गयो तेटलामां धननी जावाद्यं अने कलावंत एवं एक नटोनुं टोबु ते Tathasuri.M.S. JunGunAR
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________________ वाम्म- / यथा वित्तमदत्त सः॥ 6 // सोमदेवस्तदालोक्य / व्यमृशत्कृशधीहदि // अहो एषां कला की. | दृग् / अहो लोकः कलाप्रियः // 7 // कापि किंचिन्न लगते / याचमानोऽपि मे पिता // याञ्चां विना ह्यमी पापु-रापत्तापहरं धनं // 7 // धिम् ब्राह्मण्यं शुक्लवृत्त्या। कर्णपंचकपूरकं / विद्यास्थाना 175 | न्यपि वृथा / कंठशोषकराणि धिक् // ए // साम्यमेति श्रिया हीनो / नरो निर्वाणवहिना // यथा गाममां श्राव्यु. // 5 // ते नटोए पोतानी कळाथी त्यांना लोकोने एवा तो खुशी कर्या के जेथी तेजए तेजने पोतानीमेळेज श्वाथी पण अधिक धन थाप्यु. // 6 // ते जोश्ने तुबबुधि सो. मदेव मनमां विचारवा लाग्यो के, अहो! था नटोनी केवी कला ! तथा लोको पण कलाने चाहनारा . // 7 // अने मारो बाप तो जीखी जीखीने थाक्यो, तो पण तेने क्यांय कई मळ. तं नथी, अने या नटोने तो माग्याविनाज दारिद्यरूपी तापने हरनारुं धन मळी गयुं ! // 7 // माटे या ब्राह्मणपणानेज धिक्कार , के जेमां नीख मागीने उदरपूरणा करखी पडे ने, तेमज वि. द्याशाळा पण फोकट कंठशोष करनारी बे, माटे तेने पण धिक्कार जे. // // निर्धन माणस | गरी गयेला अमिसरखो एटले राखना मेळ्मां ने, माटे गमे तेम करीने पण धन मेळववं, तेमा. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- तथा वा श्रीरा / जातिकर्मकुलैरवं // 10 // पद्मस्य पंकयोनित्वं / गोपालत्वं मुरद्विषः // कलां कित्वं विधोर्लदमी-वतः कोऽत्रः विगायति // 11 // निश्चित्येति कुलाशंका-मपास्य मिलतिस्म सः // नटानां धनलोभेन / स हि नामांतरं मधु 12 176 | यूनैकेन स्वसारेण / स्वसा तस्य स्वसात्कृता // फलं सुसिक्ता वलीवा-ऽचिरागनमधारयत् // 13 // | अशोध्यमानः केनापि / कर्मो घेरसुमानिव // नदारः शालिकेदारः / सर्वतश्गदितस्तृणैः // 14 // टे जात कर्म के कुलनी परखा करवानी नथी. // 10 // लक्ष्मीवान कमळना कादवथी थयेला जन्मने, विषणुना गोवाळीयापणाने तथा चंद्रना कलंकीपणाने कोण अहिं वगोवी शके 1 // 11 // - एम निश्चय करीने कुलाचारनी शंका गेमीने ते सोमदेव तो धनना लोभथी ते नटोसा. थे मळी गयो, केमके ते धन नामफेर मधलारसरखं . // 12 // तेनी बहेन सोमशर्माने को क धनवान युवाने पोताने स्वाधीन करी, तथा सारी रीते सींचायेली वेलडी जेम फळने तेम तेणीए तुरत गर्नने धारण को. // 13 // वळी कोइए पण नहि शोध्याथी कर्मोना समूहोथी | जेम जीव तेम ते फालेवू डांगरनुं सघg खेतर घासथी वा गयु. // 14 // तुरतमां वीयानारी / P.P.AC.Gummatnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- चिरादेव वल्लीव / पालन पोषणं विना // व्यशुष्यद्रोहिणी धेनु-रपि दृष्टफलोदया // 15 / / ई. पलब्धधनः सोऽया-गतो विप्रो निरैदत // गृहमेकांत निकांत-पात्रनाटकसंनिनं // 16 // कि मकस्मादिदं जात-मिति संत्रांतचेतसः // तस्य कोऽप्यखिलोदंत-दीपकं श्लोकमब्रवीत् // 17 // 177. सोमदेवो नटो जातः / सोमशर्मा च गुर्वाणी / शालिवप्रस्तृणैश्वनो / न प्रसूता च रोहिणी // | // 10 // तत् श्रुत्वा जन्मतः खीय-वृत्तस्मरणदुमेनाः / अशक्तः सद्मनि स्थातुं। वनं गत्वाऽरुदलिः . | रोहिणी गाय पण पालणपोषणविना वेलमीनीपेठे तुरत सूका गइ. // 15 // पडी थोडंक धन | मेळवी घेर आवेला ते ब्राह्मणे मांथी पात्रो चाल्या गयां बे एवी नाटकशाळासरखं नजम पडे. बुं पोतार्नु घर जोयु. // 16 // अरे! या अचानक शुं थश्गयु! एवी रीते मनमां गगराट पा. मेला ते ब्राह्मणने कोए तेनुं सघयु स्वरूप जणावनारो एक श्लोक कह्यो के, // 17 // सोमदेव तो ना थइ गयो, अने सोमशर्मा गर्भवती ने, डांगरनुं खेतर घासथी ज्वाश् गयु , अने रोहि णी गाय वीया नथी. // 10 // ते सांजळी बेक जन्मथी पोतानी स्थिति याद आक्वाथी ते शि. 1 व ब्राह्मण मनमां घणोज खेद पामी घरमां नहि रही शकवाथी वनमा जफडवा लाग्यो. // 15 // Jun Gun Aaradnak PP.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ धम्मि- वः // 17 // प्रम्लानवदनं दुःख–सदनं वीक्ष्य सकृपः // ऋषिः कोऽपि किमेवं भो। रोदिषीति तमालपत् // 20 // स्ववृत्तनिहिते विप्रेणाधिव्याधिमहौषधी // वाचमूचे मुनिन्द्र / मा रोदी घेहि धीरतां // 21 / / कस्य लक्ष्मी सुताः कस्य / कस्य वेश्मेति चिंतय // नदेति याति चात्मा 170 य-मेक एव जवाद्भवं // 22 // स्वदृश्चिकूणनाध्योम्नि / विचंद्रों वीदयते यथा // तत्तत्साम्यं दध. | त्यामा / स्वमनःकल्पनात्तथा // 23 // विना जिनाधिपं सर्वे-गिनः स्वार्थैकहनाः // यस्तेषु प्रेएवी रीते अत्यंत शोकातुर चहेरावाळा तथा दुःखना घरसरखा ते ब्राह्मणने त्यां जोश्ने कोक मुनिए कहां के, अरे तुं शामाटे रडे बे ? // 20 // त्यारे ते ब्राह्मणे पोतानुं वृत्तांत कह्याबाद मु. नि तेनी थाधिव्याधि दूर करवाने महान औषधीसरखी वाणी बोल्या के, हे भद्र ! तुं रड नाहि अने धैर्य राख? // 51 // कोनी लक्ष्मी ? कोना पुत्रो? अने कोर्नु घर ? ए सघg तुं विचार? या आत्मा तो एकलोज एक नवमांथी वीजा नवमां जाय . // 25 // पोतानी यांखो संकोच | वाथी आकाशमां जेम बे चंडो देखाय , तेम पोताना मननी कल्पनाथी अात्मा ते ते तुल्यप . | पाने धारण करे . // 23 // जिनेश्वरविना सर्व प्राणीने फक्त स्वार्थमांज लीन थयेला ने, माटे | P.P. Ac, Guntainguri M.S. Jun Gundararak Trust
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________________ धम्मि| मसंकल्पः / स कल्पऽत्रमः स्नुहौ // 24 // स्वमित्यागृह्णते काम-पहिला महिलादि यत् // गब. द्भवांतरं पृच-त्यपि स्वैरीव तन्नतु // 25 // धिगात्माकर्ष कुर्वेऽहं / कर्तास्मीदमितीचया // धत्ते त्रै कालिकी व्याप्तिं / विधेर्वाम्यं विदन्नपि // 16 / / दादयं दर्शयतां धत्तां / धियं धाम्ना विचेष्टतां // जनः पुनः फले याति / दैवमेव प्रमाणतां // 27 // तथाहि विध्याटवीषु गौरांगो / व्यहार्षात्कोऽपि कुंजरः // कुंजरत्तरुपत्रौघा-स्तरणं लंघयन सुखं // // तेनमा जे प्रेमनो संकल्प करखो ते थोरमां कल्पवृदानी ब्रांति करवा जेवू . // 24 // आ मारु के एम विचारीने कामातुर पुरुषो स्त्रीयादिकने जे ग्रहण करे जे, ते अवांतरमां जाताथका खे. बचारीनीपेठे रजा पण लेता नथी. // 25 // धिक्कार ने के श्रात्मा विधातानुं विपरीतपणुं जाण्या बतां एम माने जे के में था कयु, हुं करुं बुं तथा हुँ करीश एवी श्वाथी ते त्रिकालवाळी व्या प्ति धारण करे . // 16 // भले माणस महापण देखाडे, बुधि धारण करे, तथा प्रतापपूर्वक चेष्टा करे, तो पण फलसमये तो दैवज प्रमाणत थाय . // 27 // तेमाटे नदाहरण कहे - विंध्याचलना वनमां कोश्क श्वेत शरीवाळो तथा पृथ्वीपर पमेलां वृदनां जीर्ण पत्रोना स. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.
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________________ धम्मि- कपोल्पालिमालीना / यस्य भुंगाः सहस्रशः // रेजिरेऽजस्र संवाहि-दानांगोबुबुदा 2 ॥श्णी | निशांते जाग्रता येनो-दस्तो हस्तो वनेचरैः // दृष्टो नगस्तरोस्तारा-पुष्पाण्याप्तुमिवोत्तिः // 30 // कुंजीतन्यस्य यो मुक्ता-धनं कृपणवहन् / / जाग्याधिकस्य कस्यापि / कृते वाहिकनां गतः // 31 // 100 | किमयं पादपः फुल्लः / किं वा सौध वनश्रियः // यं स्थानस्य निरीदयेति / दाणं मूढाः खगा अपि | // 35 / / सोऽन्यदाँतर्नदं कुंजा-चिखेलिषुरहर्मुखे // लीलालसातिः सौधा-दिव श्रीमान विनिर्य | मूहर्नु बीछान करी सुखे रहेनारो हाथी वसतो हतो. // 20 / / तेना गंमस्थलपर चोंटेला हजारो गमे जमरा हमेशां करनारा मदरूपी जलना जाणे परपोटा होय नहि तेम शोजता हता. / / // 27 // परोढीये जागेला एवा ते दाथीए पोतानी ऊँची करेली सुंढ जाणे आकाशरूपी वृक्ष. ना तारारूपी पुष्पोने लेवामाटे धारण करी होय नहि तेम शोजती हती. // 30 // वळी ते कृ. पणनीपेठे कुंगस्थलनी अंदर मोतीरूपी धनने धारण करतोथको कोश्क भाग्यवानना वाहनपणाने प्राप्त थयो हतो. // 31 // तेंने को जगोए नन्नेलो जोश्ने शुं श्रा को वृक्ष प्रफुल्लित थयु ने! अथवा था. वनलमीनो महेल ! एम विचारी विद्याधरो (पदिजे) पण मूढ थर जता P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhalatest
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________________ धम्मि- यौ / / 33 / / इतच कश्चन व्याध--श्वापारोपितसायकः / तत्राजगाम स्वग्रामा-द्वन्यजंतुजिघांस या // 34 // सोऽहृष्यहीदय खेलंतं / सिंधुर सिंधुरोधसि / / दिष्ट्या दृष्टिपथं प्राप्तो / ममायं शकु नेरितः // 35 // हतेऽस्मिन् भजातीये / मुक्तालाजो मम ध्रुवः // अहो जाग्यचरालक्ष्मी-र. ... 101 | द्यायाता स्वयंवरा // 36 // ध्यात्वेति लघुहस्तोऽसौ / विषाक्तं संदधे शरं // स ह्यदिखि भैदो हता. // 3 // एक दिवसे परोढीये ते नदीनी अंदर क्रीमा करवानी चाथी धनवान जेम पो. ताना महेलमांथी तेम धीमी गतिथी कामीमांथी बहार निकल्यो. // 33 // एवामां धनुष्यपर बाण. चडावीने कोश्क पाराधि पोताना गाममांथी त्यां वनवासी पशुनने माखानी बाथी श्राव्यो. // // 34 // ते त्यां नदीकिनारे ते हाथीने क्रीडा करतो जोस्ने खुशीथी विचारवा लाग्यो के अ. हो! अाज तो सारं थयु के शुभ शकुनने प्रतापे मने या हाथी नजरे पंड्यो . // 35 // खरेखर याद्रजातिना हाथीने मारवाथी मने मोतीननो लान थशे, अहो! बाजे तो जाग्यने लीधे मने लक्ष्मी पोतानी मेळेज वखा यावेली . // 36 // एम विचारीने हायचालाकी यी ते. . | ले फेरी बाण सांध्यु, केमके ते हाथी पर्वतनीमाफक बीनां घणां बाणोवडे करीने पण मरी शके | .. P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- ऽनटपैरप्यपरैः शरैः // 37 // विहितालीढसंस्थानः / स यत्नान्मुमुचे शरं // अपश्यन्निजदृष्टित्वात् / / पादपृष्टस्थितं बिलं // 30 // पिपासुः पवनं प्रात-बिलाट्यालो विनिर्गतः // तं ददंश च हिंस्राः स्युः / खलवबलघातिनः // 30 // विछो व्याधेषुणा नागो। नगश्विन वापतत् // व्याधोऽपि फणिना दष्टः / प्राणैस्त्यक्तावुनावपि // 40 // व्याधेन पतता पृथ्व्यां / विषव्याकुलवर्मणा // लु. मः शिलातलेनेव / सद्यः सर्पो व्यपद्यत // 41 // कोऽपि विद्याधरो व्योम्ना / वजन वीक्ष्य तदद्तेवो नहोतो. // 37 // पजी तेणे स्थिर थश्ने यत्नपूर्वक बाण मार्य, परंतु ते वखते तेनी दृष्टि हाथी तरफ होवाथी पग पाडळ रहेg बिल तेणे जोयु नहि. // 37 / / एवामां प्रभाते पवन पी. वानी श्वाथी ते सर्प बिलमाथी बहार निकल्यो, थने तेने मंख्यो, केमके हिंसक प्राणीन खल. नीपेठे बलथी घात करनारा होय . // 35 // हवे ते पाराधिना बाणथी वांधायेलो ते हाथी कपायेला पर्वतनीपेठे पड्यो, अने सर्प मंखेलो ते पाराधि पण पड्यो, अने तेन बन्ने प्राणरहि. त थया. // 40 // विषयी व्याकुल शरीरखान तथा शिलानीपेठे पृथ्वीपर पडता ते पाराधिए च. गदेखो सर्प पण तुरत मरण पाम्यो. // 41 // ते वखते याकाशमार्गे चालतो कोश्क विद्याधर | Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ 103 | धम्मि- जुतं // मूर्धानं धूनयामास / श्लोकमेकं पपाठ च // 42 // यदिशस्य हृद्यन्य-व्याधस्यान्यत्पु. नहदि // अहेश्वान्यविधिस्त्वन्य-देव चक्रे तदस्य धिक् // 43 // नदंतं दंतिनः श्रुत्वा / सौम्य धर्मे मतिं कुरु // विधातुर्विश्ववैलोम्यं / विदन् किमनुतप्यसे // 4 // चेतितो मुनिना चेति। शिवः श्रीस्त्रीपराङ्मुखः // श्राददे चरणं युक्तं / तद्वलेन ययौ शिवं // 45 // थाकर्ण्य शिवविप्रस्य प्राणनाथ कथामिमां // विछि दैवस्य वैवश्यं / दुर्बोध सुधियामपि / / 46 / / जंपती एवमन्योऽन्यते आश्चर्य जोश्ने पोतानुं मस्तक धुणावी एक श्लोक बोल्यो के, // 42 / / हाथीना मनमां कई हतुं, अने पाराधिना हृदयमां वळी तेथी बीजुंज हतुं, सर्पना हृदयमा तेथी पण अन्य हतुं, अने विधाताए तो वळी तेथी पण उलटुंज करी दीy, माटे तेने धिक्कार बे. // 43 // माटे हे सौम्यविज! एवी रीतर्नु हायोनुं वृत्तांत सांजलीने तुं धर्ममां बुधि कर ? वली हे विद्वान ! विधातानुं तो ( जगतमां ) विपरीत पाचरण , माटे तुं शामाटे खेद करे ने ? // 44 // एवी रीते मुनिए प्र. तिबोध बाप्याथी लक्ष्मी अने स्त्रीथी विरक्त थयेला ते ब्राह्मणे चरण एटले चारित्र लीधं, अने | तेना बलथी ते मोक्षे गयो ए युक्तज . // 45 // माटे हे प्राणनाथ! एवी रीतनी आ शिवबा / PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 104 धम्मि- कथाव्याजेन संततं // तो किंचन मनोदुःखं / निवासयतां बहिः // 4 // करोति यद् घुणः का. टे / दुर्गात्रो यच्च चिर्नटे // त्वग्मात्रसारे तदेहे / पुत्रदुःखं चकार तत् // 4 // नित्यपीडाप्रदा. | पुत्र वियोगादणिकव्यथं // दारुणं बहुमेनाते / दारणं क्रकचेन तौ // 4 // दीप्ते विरसचि| त्याया-मपत्यविरहानले / तयोः शुष्केण वपुषा / विदधे कार्य मेध्मनः // 50 // नित्यावेव तरिन। / स्फुटनालेव कूपिका // अश्रुश्रावा सदैवाद् / दृष्टिःखार्तयोस्तयोः / / 51 // गत्यागत्यारणनी कथा सांजळीने बुद्धिवानोने पण अगम्य एवं यापे कर्मनुं विपरीतपणुं जाणवं. // 46 // एवी-रीते ते दंपती हमेशां परस्पर कथाना मिषथी पोताना मननुं दुःख थोडं थोडं बहार कहाडबा लाग्या. // 9 // काष्टनी अंदर रहेलो घुण जे कार्य करे, तथा चीनमामां रहेलो कीमो जे काम करे, तेवू काम चर्ममात्रसारवाळां तेननां शरीरमां पुत्रसंबंधि दुःखे कयु. // 4 // हमेशा पीडा बापनारा पुत्रना वियोग करतां दणिक दुखवायं धने जयंकर एवं पोताने करवतथी क. पाळ ते सारं मानवा लाग्या. // 4 // बेचेनीरूपी चितामां पुत्रविरहरूपी अनि बळते बते ते. जनां शुष्क शरीरे बन्तणनुं कार्य कयु. // 20 // दुःखयी पीडायेला एवा तेन बन्नेनां नेत्रो ह / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- दिकं कर्म / यध्यधत्तां तदादि तौ // तत्सर्व पूर्वसंस्कारा'न तु चैतन्यपाटवात् // 55 // तावधार | यतां प्राणा-नपि दुःखकदर्थितान् / आयुःकर्मोपरोधेन / न तु जीविततृष्णया / / 53 // एह्ये हि देहि देहि सौ-हित्यं वत्सल धम्मिल // स्वप्नेऽपीति प्रलपंतौ / तो व्यनिद्रयतां न कं // 14 // 105 एवं काले बजत्यात्मा / तयोः कायममुंचत // को वा सोपप्लवं स्थानं / न मुंचति सचेतनः // 15 // | मेश वहनारी नदीनी पेठे, तथा फुटेली सरवाणीवाळी कुश्नीपेठे हमेशां सुनने करनारी थ. | // 51 // वली त्यारथी तेन बन्ने जे गमनागमनादिकनुं कार्य करता हता, ते सघg तेन पूर्वना संस्कारथीज करता हता, परंतु सावध मनथी करता नहोता. // 12 // वळी तेन दुःखयी कंटाळे.. | ला (पोताना ) प्राणोने पण फक्त आयुकर्मना उपरोधीज धारण करता हता, परंतु जीववानी अनिलाषाथी धारण करता नहोता. // 53 // हे पुत्र धम्मिल तु याव थाव? अने अमोने था. नंद आप? एवी रीते स्वप्नमां पण बबनता एवा तेल बन्ने कोने निद्रारहित न करवा लाग्या? // // 4 // एवी रीते केटलोक काल वीत्याबाद तेजना अात्माए शरीर त्यज्यु. केमके कयो बुद्धि 1. / वान माणस उपऽववादुं स्थान गेडतो नथी ? // 55 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- विपन्नयोः श्वशुरयो-गते परिजनेऽखिले // गेहगह्वर एकैव / सिंहीवास्थायशोमतिः // 26 // निरुध्य बाढं हृदय-वार्या मीनध्वजं गजं // सा नर्तृशय्यामर्यादां / वार्धिवेलेव नाभिनत् / / 57 // | सवितर्यस्तमाप्तेऽपि / धम्मिलस्तां न कामिनीं // भृशं मुक्तामपि जहौ / रसी भंग श्वाब्जिनीं // 106 // 27 // कलाकेलिकलाकेलि-कीलितस्य पणस्त्रिया.॥ थाहरैतनवत्तस्या-तीये दादशवत्सरी // 7 // पणस्त्रियाप्रणाल्येवा-कृष्यमाणं शनैः शनैः // कुंडस्येव पयस्तस्य / धनमदीयताखिलं एवी रीते सासुससराना मरणबाद सघळो परिवार पण चाख्यो जवाथी यशोमती पोताना ते घररूपी गुफामां सिंहणनीपेठे एकलीज रहेवा लागी. // 26 // वळी तेणीए पोताना हृदयरूपी सांकळमां कामदेवरूपी हाथीने दृढ बांधीने नारनी शय्यानी मर्यादा समुद्रनी वीरनीपेठे लोपी नहि. // 27 // हवे एवी रीते मावापरूपी सूर्य प्राथम्यापली पण रसलोबुप चमरो जेम कमलि. नीने तेम अत्यंत भोगवेली एवी. पण ते गणिकाने ते धम्मिले तजी नहि. // 27 // वेश्याए पोतानी मनोहर क्रीडावाळी कलानी क्रीमायी वश करेला ते धम्मिलना बार वर्षों एक दिवसनी. पेठे व्यतीत थयां. // 27 // नहेरसरखी वेश्याए धीमे धीमे खेंची लीधेबुं तेनुं सघj धन कुं: P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि || 60 // धने प्राग्वदनायाति / धनायंत्यथ कुट्टिनी / अनुशिष्य निजां चेटीं / प्रैषीम्मिलधाम| न // 61 // षुवमनिर्मुक्ता / स्खलक्षेच्नुः दणाद्ययौ / दुरे तहामनि घना-श्रयवीथीमतीय सा // 6 // कचित् खरैः खुरैः क्षुमं / प्रवरैर्विपनीमिव / / श्रावृतं वृत्तिवत्वापि / वेलाहल्लीवितानकैः // 63 // कचिन्मयोद्गताश्व-मूलप्रभृष्टनित्तिकं // कापि शुवसुधास्थाने / बुतापुटकप्ररित // 64 // वज्रदंतकुतैः कनृप्त-सुरंगमिव सर्वतः / / लालाजालेन वृतानि-खि प्रकृततानकं / / | ना जलनीपेठे खूटी गयु. / / 60 / / हवे पूर्वनीपेठे धन न पाववाथी धनने श्वती कुटणीए पो. तानी दासीने शिखावीने धम्मिलने घेर मोकली. // 61 // बाणनीपेठे न्याययी (धनुषयी) र. हित ययेली तथा पोतानाज लदयनी श्वावाळी (लाखोगमे धननी बावाळी) ते दासी घणा घरोवाळी शेरी (घणा आश्रयवाळी सुनटश्रेणि) नलंगीने दूरसुधि धम्मिलने घेर गइ. // ६शा त्यां कोक जगोए मोटा खरोए पोतानी खरीथी नकरमानीपेठे खोदेयं, तथा क्यांक वाडनीपेठे दोलायमान थती वेलमीना समूहोथी वीटायेवू. // 63 // तथा क्यांक वच्चे नगेला पीपळाना मळीयांनथी पमी गयेली नीतवाद्यं, तथा क्यांक सफेद चुनाने ठेकाणे करोळीयानना PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- / / 65 // विजनं वनवन्मौलि-प्ररूढतृणमऽिवत // मूर्योक्तिवदसंस्कारं / निःश्रीकं दीणदेहवत / / / / 66 / / श्यामीतसुधालेपं / पतद्दारं श्लथाररि // परितोऽवस्कराकीर्ण / तदासी प्रविवेश सा // // 67 // पंचभिः कुलकं // तत्राल्पाचरणां किंचि खूनपुष्पां लतामिव // षम्लानतनुं रात्रि१०७ शेषे शशिकलामिव // 6 // एकांते स्वामिनो नाम / जपंती योगिनीमिव / शार्दूलीमिव दुई पमोथी भरे, // 64 // तथा सर्व जगोए नंदरोना समूहोए जाणे सुरंगोवाऱ्या कर्यु होय नहि ते. q, तथा करोळीयानए पोतानी लाळना जाळांथी जाणे ताणावाणावाबु कयु होय नहि तेवं, // / 65 / / वननीपेठे उजड, पर्वतनीपेठे जेनापर घास नगी नीकळेलु ने एवं. तथा मूर्खना वच ननीपेठे संस्कारविनानुं एटले खाडाखम्बावाद्यं. दीण थयेलां शरीरनीपेठे शोजाविनाचें // 66 / / काळो पनी गयेल ने चुनानो लेप जेमां एवु, पमवानी अणीपर ने हार जेनुं एवं, ढीली थग. येल अर्गला जेनी एवं, चारे बाजु कचराथी परेवु. एवां ते धम्मिलना घरमां ते दासीए प्र. वेश को. / / 67 // त्यां तेणीए थोडांक टायेला पुष्पोवाळी लतानीपेटे स्वल्प या वृषणोवा तथा प्रजातकाळ्नी संध्यासमये चंद्रनी कळानीपेठे जरा म्लान शरीरवाळी, // 67 // तथा योगि P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- पी. / सा बुलोके यशोमतीं // ६ए. // युग्मं / / तां दशां सद्मनस्तस्या / अपि वीदय दरिद्रतां॥निः। श्चिकाय तथाप्येषा / धृत्वा धाय॑मवोचत / / 70 // मां चंवदने चंद्र-वदनेककलालयः // तवो. दंतं धनं चाप्तुं / प्राहिणोदिह धम्मिलः // 71 // प्रेषिताप्यक्किया तत्र / सा धम्मिलमुदारहत् // ही 10 वेश्यानामलीकोक्तेः / कासिका दासिका अपि // 12 // नर्तुर्नाम्ना श्रुतेनापि / चंचद्रोमांचकंचुका अवदत्तमदोत्फुल्ल नेत्रांगोजा यशोमती // 73 // अहो महोत्सवः पुण्यै-रद्य जागरितं मम // नीनीपेठे एकांते पोताना स्वामिनुं नाम जपनारी, अने सिंहणनीपेठे अत्यंत सावधपणे रहेली एवी यशोमतीने दीठी. / / 65 / घरनी तथा यशोमतीनी ते अवस्था जोश्ने तेणीए निश्चय कयो के अहिं तो हवे केवल कंगालपणुंज ने, नोपण घिग धारण करीने कां के // 70 // हे चंडमखि! चंद्रनीपेने अनेक कलावाळा धम्मिले मने अहिं तारा समाचार तथा धन लेवामाटे मोकली.. // 11 // जो के तेणीने कुटणीये मोकली हती, तो पण तेणीए धम्मिलन नाम याप्यु! अरेरे! वेश्यानी दासीन पण जूगं वचनोना रोगवाळी होय . // 72 // गारनं ना. . | म सांजलवाथी पण जेणीना रोमांचो खडां थयेलां में एवी तथा हर्षयी प्रफुल्लित नेत्रकमलवाळी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- यदाकर्यत जीवंत्या / स्वामिनाम श्रवःसुधा // 14 // क्वचित्कुशलवानस्ति / प्रियः स प्रियदर्शने // तन्नाममंत्रस्मरणा-न्ममाप्यकुशलं कुतः // 75 // धनमानययां चक्रे / यद्भर्ता नर्तृदारिके // आझा मंगव्यदूर्वेव / मूर्ध्नि सारोपिता मया // 16 // पुनः किं वच्मि निःपुण्या / यत्तादृक् श्वसु. 150 / रो हितः // सापि श्वश्रुममाजाग्या-दध्यासातां परं नवं // 7 // गतः परिजनः सर्वः। वीणं च प्राक्तनं धनं / / मरुनमाविव मयि / कुतस्तत्कमलोदयः // 70 // तुन्यमद्यानवद्यांगि / यद्दद्यामटप. यशोमती बोली के, // 13 // अहो! आजे तो मारे महोत्सव थयो , तथा बाजे मारां पुण्यो जाग्यां बे, के जेथी थाजे जीवतांथकां में कर्णने अमृतसरखं स्वामीनुं नाम सांभट्यु जे. // 14 // वळी हे प्रियदर्शनवाळी ! मारा ते स्वामिनाथ कुशल तो ने? वळी तेमना नामरूपी मंत्रना स्मरपथी मने पण यकुशल क्यांधीज होय ? // 55 // वळी हे सपत्नि! मारा स्वामीए जे धन मं. गाव्यु, ते तेमनी बाझा में मंगलिक दुर्वानीपेठे माथे चमावी . // 16 // वळी हुँ पुण्यविनानी तने शुं कहुं ? जे मारो हितेच्नु ससरो हतो ते, तथा ते मारी सासु. ते बन्ने मारां अनाग्यथी परलोक पाम्यां . // 7 // सघळो परिवार पण चाल्यो गयो, तेमज पूर्व- धन पण नष्ट थयु, P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- मेव तत् // यजीवितेशसंदेशः / स्वर्णकोव्यापि दुर्लभः // 79 // श्मा चर्चा विना चार-करौं बु. षां गृहाण तत् // ममांगे शीलमेवैकं / जूषणं स्यादकृत्रिमं / / 70 // इत्युक्त्वा निःस्वनं बाला / | रुदती चूषणानि सा // देहाद् हुमात्फलानीव / स्वहस्तेनोदतारयत् / / 71 / / दासी जग्राह तबी. . 151 | ल-परिशीलनविस्मिता // तानि हस्तेन न हृदा-कानीत्या न च तृष्णया // 72 // तामनुज्ञाप्य अने मरुन्मीजेवी जे हुं तेनाविषे हवे लक्ष्मीनो ( कमलोनो) नदय क्यांथी होय ? // 7 // वळी हे अनवद्य शरीवाळी ! हुँ तने जे कई पापुं बुं ते खटपज बे, केमके मारा प्राणनायनो संदेशो क्रोडो सोनामहोरोथी पण दुर्खन . // 70 // माटे नर्तारविना फोकट जार करनारां मारा था बाजूषणोने तुं ग्रहण कर ? मारां शरीरपर फक्त एक शीलरूपी स्वाभाविक जुषणजी . क. // 70 // एम कहीने शब्दरहित रडती एवी ते यशोमतीए वृदपरथी जेम फलो तेम पो. ताने हाथे शरीरपरथी ते बाजूषणो जतायी. // 71 // तेणीना याचरणथी विस्मय पामेली ते दासीए हृदयथी नहि परंतु हाथथी, तेमज लोगथी नहि परंतु कुटणीना डरयी ते या षणो | सीधां // 72 // सर्व स्त्रीजातिनो यश करनारी एवी ते यशोमतीनी रजा लेश्ने ते दासीप र P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- निःशेष—योषितातियशस्करीं // गृहागताग्रतोऽमुंचत् / कुट्टिन्या भूषणानि सा // 3 // तदास्यः / की कूपतः पीले-यशोमत्याः कथामृतैः / / जरती विस्मिता मॉलिं / धुनतीति व्य जावयत् // 4 // या | प्रीणाति वषानि-रीदृग्दशमपि प्रियं // सर्वनारी शिरोरत्नं / सेयं जीयाद्यशोमती // 5 // क. 192 गिनः कश्मलो यस्याः। प्रेमहेम परीक्षितुं // कषपद्रायते गर्ता / सेयं जीयाद्यशोमती // 6 // मृन्मण्योः सरमासिंह्योः / कुवलीरंभयोरिख / / गुर्वी जिन्मम यस्याश्च / सेयं जीयाद्यशोमती / / / / यावीने ते भाषणो कुटणीनीपासे मेव्यां. // 3 // तेणीना मुखरूपी कुवामांयी पीधेलां यशोमतीनी कथारूपी अमृतवडे करीने विस्मय पामेली ते डोकरी कुटणी मस्तक धुणावतीथकी वि. चारवा लागी के, // 4 // जे यावी अवस्थावाला नरिने पण पोताना या नूषणोधी खुश करे बे एवी तथा सर्व स्त्रीनमा मुकुटसरखी ते श्रा: यशोमती जयवंती वर्तो. // 5 // जेणीना प्रेमरूपी सुवर्णनी परीक्षा करवामाटे कठीन अने श्याम नर्ता कसोटीसरखो थयेलो जे ते था यशोमत) जयवंती वर्तो. // 76 / / माटी अने मणि, कुतरी अने सिंहण, तथा कंथेर अने केळवच्चे जेटलो तफावत ने तेटलो मारा बने यशोमतीना वच्चे तफावत , ते आ यशोमती जयवंती वर्तो. // // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun'Gun Aaradhak Trust
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________________ सार्थ धम्मि- शैत्यमग्नौ महो ध्वांते / शमोऽही वारि जंगले / स्नेहो जस्मनि लालिन्यं / पाषाणे कमलं स्थने | | 1 | यथा तथा यदाचार-चारिम्णा मम चेतसि // दुर्घटापि दयोदीये / सेयं जीयायशोमती i Gए || युग्मं // भृशोपतुज्यमानेन्य-विनवा जोगवत्सया // सती निर्मात्यमेषा मे / नूषा न 153 | स्पृष्टुमर्हति // 50 // अथाष्टाय्यसहस्रेण / खदीनारे समन्वितां / / वृषां प्रत्यर्पयामास / यशोम त्यै तयैव तां // 1 // नाघाता कुट्टिनीव्या या / दृग्गोचरगतापि यत् // अतः सा तां प्रनावाव्या जेम अमिमां शीतलता, अंधकारमां तेज, सर्पमां शांतपणुं, जंगलमां पाणी, राखमां चौकाश, पापाणमां नरमाश तथा स्थलपर जेम कमल // 7 // तेम जेणीना याचारनी मनोहरतायी मारा मनमां कदापि पण न आवे एवी दया नत्पन्न थडे, ते या यशोमती जयवंती वर्तो. // // घणां वपरायेलां तथा शाहुकारना वैनवतरखां एवां सतीए निर्मात्य करेलांथा आनूषणने सर्पनी फणानीपेठे मारे स्पर्श करवो पण युक्त नथी. // 50 // पनी ते कुटणीए पोतानी एक हजार ने पाठ सोनामहोरोसहित ते आनुषणो ते दासी मारफतेज यशोमतीने पागं मोकलावी यायां // 51 // नजरे पडेलां एवां पण या बाजूषण ते कुटपीरूषी वाघणे सुंध्यां पण नही, माटे तेने प्र. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- -मिव जग्राह गौरवात // ए॥ अथानागमनं चर्तु-निश्चित्यारोदि बालया // हा त्वयीश तट स्थेऽपि / जाता प्रोषितपत्न्यहं // 13 // सोढः श्वशुरयोमत्युः / सोढः संपादयो मया // हा सोट व्यः कथं नाथ / यौवने विरहस्तव // 4 // नलिनीव विना नीरं / निराधारा पति विना // ए. १ए। | काकिनी कियत्काल-मवला किल नंदति // 5 // दद दक्षिणहस्तं मे / दत्वा वजनसादिकं | ॥विपर्यस्तोऽसि यहाल-मालप्य पुरुषः प्रभुः // 6 // अहं तत्राप्युपेत्य त्वा--मनुनीयानये ननु जाववालां मानीने तेणाए गौरवपूर्वक पागं ग्रहण की..॥ 7 // हवे मारो स्वामी आवशे नहि एम निश्चय करीने ते विचारी यशोमती विलाप करवा लागी के, हे स्वामी श्राप यहीज बेठांज. तां पण हुं भर्तारविनानी स्त्रीसरखी थर बुं / / 73 // में सासुससरानुं मरण सहन कर्यु, धननो वि. नाश सहन कर्यो परंतु हे स्वामी! या यौवनवयमां आपनो विरह मारे शीरीते सहन कखो?॥ || जल विना कमलनीनीपेठे पतिविना नीराधार थयेली एकली अबला केटलो काल नजी शके ? || 75 // हे चतुरस्वामी! स्वजनोनी समद मने पोतानो जमणो हाय थापीने हवे आप फररी बेठेला गे! अथवा आपने हुं शुं लंगो देन ? पुरुष मालीक ने. // 6 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ प धम्मिन चेद्विघ्नं विधत्तेसौ / पापा कुलवधूस्थितिः // 7 // नित्यं वससि मच्चित्ते / मम वेत्सि न वे. दनां // ममाजाग्यैर्गतं यत्ते / शानं तन्नाय मृष्यतां / / ए॥ यशोमती विलप्येति-विक्रीयावास " | माशु तं // त्यक्तसंसारसौख्याशा / पितुरावासमासदत् // ए // यय बुध्ध्वाऽधनं श्रेष्टी-नंदनं स्व१५ सुतां जगौ // शंजली लोनलीनांतः- करणा करुणोशिता / ए०० // पुत्रि कृत्रिमारागेण / व्या पाराः पणयोषितां / / तत्त्वं किं तात्विकं प्रेम / धत्से तुबेऽत्र धम्मिले // 1 // कलाकुलीनतारूपवळी या कुलवधूनी पापी मर्यादा जो मने बच्चे विघ्नकारी न होत तो हं ते वेश्याने घेर अावीने पण आपने समजावीने पाग लावत. // 57 // आप हमेशां मारा चित्तमा वसो गे, परंतु मारी वेदनाने जाणता नथी, केमके मारां अनाग्योथी यापर्नु ते झान पण नाश पामेधुं लागे जे, माटे हे स्वामी हवे आप कइंक विचार करो? |ए। एवी रीते ते यशोमती विलाप करीने तथा जलदी ते घर वेचीने अने संसारसुखनी आशा बोडीने पोताना पिताने घेर श्रावी रही. ॥ण्णा हवे शेग्ना पुत्र धम्मिलने निर्धन थयेलो जाणीने लोभी मनवाळी तथा निर्दय कुटणीप पोता. / नी पुत्री वसंततिलकाने कह्यु के, // ए०० // हे.पुत्रि! आपणो वेश्यानो व्यापार तो कृत्रिम P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 196 धम्मि- सौजाग्यप्रमुखाः गुणाः // धनहीना न शोभते / विसर्पिोजनं यथा // 2 // तदाचित्करं मुंच / निर्धनत्वेन धम्मिलं // महाकविवदर्थंक-रसिका हि पणस्त्रियः // 3 // तदश्रुतिचरं श्रुत्वा / वचनं मातुरातुरा // वंसततिलकावादी-दविलंब्य वचस्ततः // 4 // श्रासन्ने मरणे मात-वैकल्यं किं तवा| गतं // देवीनामपि दुःप्रापं / यत्त्याजयसि माममुं // 5 // अयं रूपेण कंदर्पो / विवेकेन बृहस्परागवालो होय बे, तो पनी या तुब धम्मिलप्रते तुं सत्य प्रेम शामाटे धारण करे ? // 1 // जेम घृतविनानु नोजन तेम कला, कुलीनपणु. रूप नथा सौनाग्यश्रादिक गुणो धनविना शोभता नथी. // 2 // माटे हवे निर्धनपणाथी निरुपयोगी एवा आ धम्मिलने तुं छोडी दे, केमके वेश्याने तो महाकविनीपेठे फक्त एक (अर्थनाज ) धननाज रसवाळी होय . // 3 // एवी री. ते मातानुं नहि सांजळवालायक वचन सांजळीने खेद पामेली वसंततिलका तुरत बोली के, // // 4 // हे माता तारूं मरण नजीक होवाथी शुं तारी बुधि फरी ग ? के जेथी देवीनने प. ण दुर्लज एवा या धम्मिलने तजवान तुं मने कहे ! // 5 // या धम्मिल रूपें कामदेवसरखो | बे, विवेकमां बृहस्पतिसमान में, गंजीरतामां समुद्रतुव्य में, तथा नदारतामां वरसादसमान . // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सार्थ धम्मि- तिः / / गांभीर्येण पयोराशि-रौदार्येण घनाघनः // 6 // कलाभिः कौमुदीकांतो / धारिम्णामर. | धरः // प्राप्तः प्राक्सुकृतैर्नैव / विनागस्त्यागमर्हति // 7 // युग्मं // गुणिन्येवानुरज्यंति / गुणज्ञा | न धनाश्रये // श्रीवृदमलयस्त्यक्त्वा / यांति जातिं कृशामपि // // पश्या विनवमप्याशु / गुणा 17 | ढ्यं रत्नकंबलं // संगृह्णते महीपाला / मातर्जातस्पृहा न किं // // अदत्त यदसौ वित्तं / किं सिंधूमिसधर्मणा / शांता न तेन ते तृष्णा / वाडवामिशिखासखी // 10 // यदीयतोऽपि ऽव्यस्य // 6 // कलानमां ते चंद्रसरखो ने तथा धैर्यमां मेरुसरखो ने, वळी ते पूर्वना पुण्योधीज आप. पने प्राप्त थयो , माटे अपराधविना तेनो त्याग करवो युक्त नथी. // 7 // गुणझ माणसो गु. णिमांज रंजित थाय ने, परंतु धनवानमां थता नथी, केमके जमरान चंदनने गेमीने दुर्बल ए. वां पण जाश्ना वृक्षप्रते जाय जे. // 7 // वळी हे माता तुं जो के अविनव एट्ले शोगांविनानो (घेटांना जनथी बनेलो) एवा पण गुणोवाळ (तंतुनवाळा ) रत्नकंबलने श्वापूर्वक शुं राजा. 5 तुरत ग्रहण करता नथी ? // 7 // वळी तेणे जे धन प्राप्यु , ते समुद्रना मोजांसरखा धन | थी पण शुं तारी वडवानलनी ज्वालासरखो तृष्णा नाश पामी नहि ? // 10 // वळी हे माता! P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ १एन धम्मि / दाता मातर्मयोज्झ्यते // स्वं न श्वानं तदा मन्ये / मनाग्दातुः सदानुगं / / 11 // इति तहचः / मा नाधार-धारधोरीकृतोऽमुचत् // वचःस्फुलिंगकानेव-मका कोपवृषाकपिः // 12 // अवदतपू. वस्ते / पुत्रि कोऽयं कदाग्रहः // विचारश्चारुबुद्धीनां ।न युक्तो गुरुशासने // 13 // याः स्खलक्ष्यममुंचंत्यः / कुवैति जनरंजनं // योगिनीनामिवैतासां / वेश्यानां प्रेम दूषणं // 14 // हीरर्थिनि दया व्याधे / कितवे सत्यसारता / वानरे स्थेम वेश्यायां / प्रेमावश्यं विवना // 15 // विधाय तदमुं थाटला बधा धनना दातारने पण जो हुँ तजी देनं तो हुँ थोडं देनारनी पारळ पण हमेशां ज नारा एवा श्वानसरखा पण मारा था.माने हुं मानी शकुं नहि. // 11 // एवी रीतनां तेणीनां व. चनोनो तिरस्कार करनारां वचनरूपी तणखानने क्रोधरूपी अमिवाळी कुटणी गेमवा लागी. // // 15 // हे पुत्रि! अगाज को पण समये नहि थयेलो एवो था तने पाजे शुं कदाग्रह थयो ने ? बुधिवानोए वडीलना हुकममाटे विचार करखो लायक नथी. / / 13 / / जे पोताना लक्ष्यने गेड्याविना लोकोने खुशी करे , एवी योगिनीसरखी वेश्यामाटे प्रेम ए एक दूषण ने. // 14 // | याचकने लड़ा, पाराधिने दया, उगाराने सत्य, वानरने स्थिरपणुं, बने वेश्यानो प्रेम ए सघयु | PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सार्थ धम्मि- कंचि-दाढ्यं मुंच परं नरं // व्रातीनता हि वेश्यानां / समायः शमिनामिव // 16 // एवमग्न्यस्त्र | वन्मत्वा / मातुः संतापकं वचः / वारस्त्री वारुणास्त्रानं / संदधे सुंदरं वचः // 17 / / यया विचारः प्राज्ञानां / न युक्तो गुरुशासने // किं प्रपन्नपरित्याग-स्तथा संगतिमंगति // 17 // पूर्व न कि. १ए। यते स्नेहः / क्रियते वा क्वचिद्यदि / / श्रेयांस्तदयमूर्णायौ / लादाराग श्व ध्रुवः // 15 // श्यनि विमंबनारूप एटले न घटी शके तेवू . // 15 // माटे हवे को बीजा धनवान पुरुषने पोतानो स्वामी करीने याने तजीदे ? केमके मुनिनीपेठे वेश्यानुं पण समायरूप एटले धनना सारा लागरूप ( सामायिकरूप ) व्रत . // 16 // एवी रीतनां पोतानी माताना अनिशस्त्रनीपेठे सं. तापकारक वचन सांगलीने वसंततिलका वारुणास्त्रसर सुंदर वचन बोली के, // 17 // जेम बुध्विानोए वमीलना हुकममाटे विचार करवो योग्य नथी, तेम स्वीकारेलानो त्याग करखो ते वात पण शुं घटी शके बे ? // 10 / / प्रथम तो स्नेहज करवो नहि, अने कदाचित् करीए तो ते ननना कापममां जेम मजीठनो रंग तेम ते निश्चल कखो तेज कल्याणकारी . // 1 // | बाटला दिवसोमां जे में था स्थिर सिघो अने उंचो प्रेमरूपी महेल चण्यो , तेने हं मारे हा. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ धम्मि- सिरैः प्रेम-प्रासादो योऽत्र निर्ममे // स्थिरः समः समुत्तुंग-स्तं स्वयं पातये कथं // 20 // ना / मा न्यत्र रमते चेतो / निध्यातजणं मम // विश्राम्यति करीरे किं / रसालरसिकः पिकः // 11 // | मातर्मातः परं वोचः / शोचनीयमिदं वचः॥ चेत्त्वं चारितवामासि / तर्हि पंया ममापि सः // 1 // 200 | नयानेवं गतः काल-स्तयोर्विवदमानयोः // नपर्यधो वा नैकस्या / अपि पदोऽजवत्पुनः // 23 // अन्यदा कुंदसंकाश-रदा.सा शरदागमे // बुनुक्षुरीभुखंडानि / ययाचे मातरं मुदा // 14 // थे केम पाउं? // 20 // या धम्मिलना गुणोनाज ध्यानवाबु मारुं चित्त अन्यविष खुश याय तेम नथ), आंबानी रसीक कोयल शं कंथेरपर विश्राम करशे? / / 21 / / माटे हे माता! हवेथी तुं वावु शोचनीय वचन बोलती नहि, अने जो तुं तेने कहामी मेलीश तो मारो पण तेज मा. र्ग तारे जाणवो? // 15 // एवी रीते विवाद करतांयकां तेन बन्नेनो घणो काळ गयो, परंतु ब. नेमांथी एकनो पण पद नपर नीचे थयो नहि. // 13 // .... पड़ी एक वखते शरद मतुसमये मोलरनी कळीसरखा दांतवाळी ते वसंततिलकाए सेलमी | खावानी श्वाथी पोतानी मापासे हर्षथी तेना टुकडा माग्या. // 24 // त्यारे तेणीए यंत्रमा पी. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- तया समर्पि तैर्यत्र-पीडितपांमुपुंमकैः // किं / कूर्च कैः करोम्येजि-रिति सा प्रत्यवोचत ॥२॥सा. थ लब्धावकाशाऽवक् / कोपकंपोष्टपञ्चवा / निःसारवस्त्वादरिणी / प्रियप्राप्तौ विषीद मा // 26 // साथै निःसारो यदि "यं / जातस्ते प्रीतिकारणं // तहस्त्रखाद्यषाधं / देयं निःसारमेव ते // 17 // सा विज्ञाततदाकूता / वाचमूचे किमंब ते // गतं दृग्धाम यन्नैषां / गुणं संतमपीवसे / मिदग्धैरपि द्वारो / योऽमीनिः किल जायते // वासोमलीमसं शोधु-मलं कस्तं विनापरः ॥रणा लेली श्वेत शेस्मी आपी, त्यारे वसंततिलका बोली के था कुचानने हं शुं करूं? // २५॥त्यारे क्रोधथी कंपता नष्टपल्लववाळी ते कुटपीए पोताने अवसर मलवायी को के हे निःसार वस्तुना यादरवाळी पुत्रि! तने वा मनगमतुंज मव्यु , माटे खेद न कर? // 26 // श्रा साररहितान तार ज्यारे तने प्रीतिना कारणरूप थयो , त्यारे वस्त्र, भोजन तया या षणयादिक पण तने साररहितज देवु जोश्ये. // 27 // त्यारे तेणीनो अभिप्राय जाणीने वसंततिलका बोली के से माता! शुं तारं अांखोनुं तेज नष्ट थयु जे ? के जेथी आना बता गुणने पण तुं जोती नयी.॥ // 20 // या कुचाउने अमिमां बाळवाथी तेनो जे खार थाय बे, तेनाविना कपमांनो मेल को | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- हेमंते हेमगौरांगी। सा कदाचिदयाचत // तिलानका मुदे हि स्या-गुरुदत्ता सुखादिका // 30 // / . म खलं समर्प्य सा दत्त-पृष्टा पृष्टा तया रयात् // जवृंखला खलापीमं / स्वं चक्रे प्राग्वदुक्तिभिः // " // 31 // सा प्रत्यूचे न किं वेत्सि / लनते यद्यमुं खलं / सैरिजी तत्पयोदाना-दंव कादंबिनी२०२ यते // 35 // यावकं याचितान्येा-स्तया क्रमनखश्रिये // जरत्यदत्त पदमाणि / नियोतितर सानि सा // 33 / / पृष्टा प्राग्वत प्रजल्पंती / तयाकाऽवादि निष्टुरं // मातर्मूढासि यदोषा-नेषु | ण कहाडी शके तेम ? // 27 // हेमसरखां गौर शरीरवाळी ते वसंततिलकाए हेमंत ऋतुमां ए. क दिवस पोतानी मातापासे तल माग्या, केमके वडीने श्रापेली सुखडी हर्षकारक थाय ने. // // 30 // त्यारे ते पण तेणीने खोळ श्रापीने जेवी पाजी वळी, त्यारे तेणीए पुवायी ते उच्च खल कुट्टिनी पूर्वनीपेठे वचनोथी पोताना अात्माने खळममान करवा लागीः // 31 // त्यारे व. संततिलका बोली के, हे माता! तुं जाणती नथी के जो या खोळ गायने आपवामां आवे तो ते दूध देवामां मेघमाळासरखी नीपजे. // 3 // वळी एक दिवसे तेणीए पगना नखो रंगवामाटे मजीव मागी, त्यारे ते मोकरीए तेणीने नीचोवेल रसवाळां तेनां फोतरां बाप्पां. // 33 // पूज 'PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सार्थ 203 धम्मि- केवलमीदसे // 34 // दीपः क्रियेत यद्येत वा नरिकोपमं // कंचित्प्रपंचयत्येवा-लोकमो / | कःप्रकाशकं // 35 // धक्का दध्यौ ध्रुवमियं / धूर्त्तनानेन वंचिता // नो चेनिर्धनमप्येतं / हा कथं धनदीयति // 36 / / गंमशैल श्व स्थूलो / मुधा रुध्ध्वा गृहं स्थितः // यया कयाचिद् बुध्यैव। निवास्योऽबलया मया // 37 // ततो द्रोहविनिद्रोहा-चांतचित्ता सदैव सा / नत्सवबमना पान-गो. टीमारजतान्यदा // 30 // वसंततिलका चान्यो-पि. च पण्यांगनाजनः // दुरुपायविदाऽपायि / वाथी पूर्वनीपेठे कहेनारी ते कुटणीने वसंततिलकाए निबंछनापूर्वक कह्यु के, हे माता! तुं के वळ मूर्ख बे, के था फोतरांमां तु केवळ दोषोज जोया करे बे. // 34 // जो आ फोतरांनी वाटथी दीपक करवामां आवे तो घरमां तेज करनारो लाल रंगनो प्रकाश थाय. // 35 // त्यारे ते कुटणीए विचार्यु के खरेखर ते धूर्ते याने गेली , जो एम न होय तो या निर्धन धम्मि लने पण ते कुबेरसमान केम जाणे? // 36 // मोटा खडकनीपेठे आ फोकट घर रोकीने बेठो बे, माटे हवे कॉक बुधि चलावीने मारे थाने कहामी मेलवो जोश्ये. // 37 // पनी हमेशा द्रोहयुक्त खुल्लाविचारवाळा मनवाळी ते कुटपीए एक दिवस नत्सवना मिषधी मद्यपाननी गोष्टी. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सार्थ धम्मि तया निःप्रसरं सुरां // 35 // उच्चावचगिरस्ताम्र-कपोला घूर्णितेदाः // प्रमदा मदयामासु-. र्न कं पीतमदास्तदा // 40 // अथायःशूलिकी. स्वांते / वचसामृतसारणी॥ शंगली दंगलीनात्मा ऽन्वशिषडम्मिलं रहः // 41 // वत्स नाडियसे मद्य / वेश्यौकसि वसन्नपि // केयं ते वैषी वस्तु 204 | -ऽन्यपदोषेऽपि रोषिणः // 42 // यदागतं वार्षिविलोमनेन / यदाढतं यादवनायकेन // यद्य| नो प्रारंग को. // 30 // ते समये दुष्ट उपायने जाणनारी ते कुटणीए वसंततिलकाने तयावी. जी वेश्याने पण खूब मद्यपान कराव्यु. // 30 // ते वखते मद्यपान करनारी ते स्त्रीन गली. च वचनो बोलतीयकी लाल गंडस्थलोवाळी तया घेरायेली आंखोवाळी 23 थकी कोने मदोन्मत्त करवा न लागी? // 40 // मनमां लोखंडनी शूलीसरखी, तथा वचनमां अमृतनी नहेरसरखी ते दानिक कुटणी. गुप्त रीते धम्मिलने कहेवा लागी के, // 41 // हे वत्स ! तुं वेश्याने घेर रह्या जतां जे मदिरा पीतो नथी, तो था निर्दोष वस्तुमां पण रोष करनारो एवो जे तुं, तेनी आ च. तुरा ते केवा प्रकारनी ? // 42 // जे था मद्य समुद्र क्लोववाथी मव्युं , तथा जेनो यादवो. ना स्वामी श्रीकृष्णणे पण पादर कर्यो ने, वळी जे बळ तथा शरीरनी कांति वधारनार में, ते मद्यः P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 205 धम्मि- देहातिवर्षनं च / तन्मद्यमुद्यबति को निषेधुं // 43 // हृदो मृषा शव्यमपैति येन / येन ख| देहेऽपि ममत्वभंगः // बाढये दरिऽपि यतः समाधि-बुंधा मुधा मद्यमिदं त्यति // 44 // ध. पेत्येके हसंत्येके / जल्पंत्यन्ये यथा तथा / तथापि दृढयोगीव / न दीवः कापि कुप्यति // 4 // मधुपा यत्र खेलति / मधु यत्रोपजायते / तत्रांबुजे वसंती श्री-रवि विद्देष्टि नो मधु // 46 // दशधाकल्पवृदाणां / प्रथमे मद्यदायिनः // चतुर्दशसु रत्नेषु / मद्यमंतरधीयते // 4 // द्विषः सुखं | नो निषेध करवाने कोण उद्यमवंत थाय ? // 43 // वली जे मद्यथी हृदयनुं खोटुं शव्य निक ली जाय , तथा जेथी पोताना शरीरनी पण ममता रहेती नथी, वली जेथी तवंगर तथा गरी. ब बन्नेने समाधि थाय , माटे यावा गुणवाला मद्यने तो पंडितो फोकट तजे . // 4H || व. ली ते मद्यपान करनार मनुष्यने को निजं , कोश् हसे बे तथा को जेम तेम बोले . तो पण ते महोटा योगीनीपेठे कोपर पण गुस्से थतो नथी. // 45 // ज्यां जमराज क्रीमा क. रेने तथा जेमां मद्य नत्पन्न थाय , ते कमलमा रहेती लक्ष्मी पण मद्यने धिक्कारती नथी. // | // 46 // दश प्रकारना कल्पवृदोमां पण पहेलां मद्य देनारां कल्पवृदो , तेम चाद स्नोमां प. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- कृषंतीना / मद्योपचितशक्तयः // आपणाः कल्पपालाना-मत एवोनितध्वजाः // 4 // तदाशु मा पिब मैरेयं / केयं वह्वी विमर्शना // निजस्थानोचितं चेष्ट-मानो न खलु निंद्यते // 4 // इ. त्युक्तः स तया ब्रष्ट-कुलाचारः सुरां पपौ // यत्रैकं व्यसनं तत्र / संयुज्यंते पराण्यपि // 10 // बुगन्निद्रालुवत्पृथ्व्यां / शिथिलांगो मुमुटुंवत् // परासुखि निश्चेष्टः / स मधेन क्रमात्कृतः // 51 / / स्त्रीराज्यमिव कुर्वाणे / गाणिक्ये जरतीगिरा // पारे पुरं प्रदोषेऽसौ / दासीनिः परितत्यजे // 1 // ण मद्य गणाय . // 47 / / मद्यपानथी बळवंत थयेला हाथीन शत्रुनने सुखें मारी शके डे, त. था तेथीज किलालोनी दुकानोपर धजा फरके . // 4 // माटे तुं जलदी मद्यपान कर ? शामाटे घणो विचार करवो पडे ? पोताना स्थानने उचित आचरण करनारो कई निंदातो नथी. // 4 // एवी रीते तेणीना कहेवाथी धम्मिले पण कुलाचारथी ब्रष्ट थश्ने मद्यपान कर्यु, केमके ज्यां एक व्यसन होय जे त्यां बीजां व्यसनो पण जोमाय . // 20 // परी मद्यपानथी ते अनुक्रमे निद्राबुनीपेठे जमीनपर लोटवा लाग्यो, मरनारनीपेठे शिथिल अंगवाळो थयो, तथा मरेलानीपेठे चेष्टारहित थयो. // 51 // स्त्रीराज्यनीपेठे गणिकानो समूह थाचरते बते ते डो. | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- पीछे लुवतस्तस्य / सकलामपि शर्वरीं / अनूप्रतभूबाय-मसहिष्णुर्दिनोदयः / / 53 // तदा. | ईतेषु चैत्यैषु / मांगव्यः कंबुरध्वनत् // निशि प्रसुप्तं श्रीधर्म-पमुद्रोधयन्निव // 24 // अनुयां ती विधु कांतं / राविस्तारकबूषणा / / न जास्करकरस्पर्श-मपि सेहे पतिव्रता // 55 // स्तोक२०७ कालं ममाजावे / तमसा जग्रसे जगत् // इति रोषादिवारक्त-मूर्तिमार्तड उद्ययौ // 56 // अ. थ जागरितः पूष्णा / स्वकरैः कृपयेव सः // स्वं रिजरजोलिप्तं / निरीदयेति व्यजावयत् / / 57 // करीना वचनथी दासीए ते धम्मिलने संध्यासमये नगरनी बहार फेंकी दीधो. // 5 // त्यां प्रा. खी रात पृथ्वीपर लोटतां थकां पृथ्वीपरनां घणा गयाने नहि सहन करनारो दिवसनो उदय थ. यो. // 53 // ते समये जिनमंदिरोमां रात्रिए सुतेला धर्मरूपी राजाने जाणे जगामतो होय न. हि तेम मंगलिक शंखनाद थवा लाग्यो. // 54 // वळी ते वखते तारारूपी बाजूषणोवाळी रात्रिरूपी पतिव्रता स्त्री पोताना स्वामी चंनी पाबळ जतीयकी सूर्यना करस्पर्शने पण न सहन करवा लागी. // 55 // मारी थोमा समयनी गेरहाजरीमां अंधकार पाखा जगतने गळी गयो, एम विचारी जाणे क्रोधथी होय नहि तेम लाल मूर्तिवाळो सूर्य उदय पाम्यो. // 26 // वे सर्व | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- क तत्सौधं क तत्तत्पं / क सा कांता मनोरमा / ममादृश्यम दिव्य-मायामयमिवाखिलं // 1 // मा किमन्यजन्म किं स्वप्न---मुत मायाथवा ब्रमः / / यत्तादृशं सुखं भुक्त्या / बुउन्नस्मि महीतले // // न मया कोपितः कोऽपि / नयेद्यो मामिमां दशां // नूनं निर्धनतादोषा-कारत्या त्याजितस्तया / | // 60 // ददे यस्यै परातिः / परावृतिस्ततो मया // लेभे तदस्याः को दोषो / नाशो दत्तस्य | जाणे दयाथीज पोताना किरणोथी जगाडेलो ते धम्मिल पोताने जमीनपरनी घणी धूमथी खरमायेलो जोश्ने विचारखा लाग्यो के, // 57 // अरे! ते महेल, ते शय्या तथा ते मनोहर स्त्री विगेरे क्यां गयु ! या सघळू मने दिव्य मायानीपेठे अदृश्य थ३ गयु ! // 27 // शुं मारो पु. नर्जन्म थयो ? अथवा शुं था स्वप्न बे ? अथवा माया के भ्रम जे ? के जे हुँ तेवू सुख जोग. वीने पृथ्वीपर लोटतो पड्यो बुं ! / / 57 // में कोइने गुस्से को नथी के जे मने था दशाए पहोंचाडे, खरेखर निर्धनपणाना दोषग्री मने ते मोकरीए फेंकावी दीधो . // 60 // जेणीने में परा ऋति एटले घणुं धन प्राप्यु , तेणीना तरफथी मने परावृति एटले था पराभव मल्यो , तेमां तेणीनो शुं दोष बे, केमके दाननो नाश नथी, अर्थात् जेवं देवु तेवू लेवू . // 61 // | P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . . Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- नास्ति यत् // 61 / / परस्परं विरोधिन्यो / यासां चित्तवचःक्रियाः / तासु लोनाभित्र्तासु / विश्रं. नः शंजलीषु कः // 6 // एता बूता श्वावेष्ट्य / कृत्रिमप्रेषतंतुनिः // मक्षिकामिव मुंवंति। निः सारीकृत्य पूरुषं // 63 // विझयोगे मिंतिकावद्या / अरक्ता अपि रागदाः // सिचामिव गुणाढ्यानां 205 / / / सतां ताधिन रंजनं // 64 / चेत्कोऽपि वसुधारान्निः। पर्जन्य श्व वर्षति / एताः स्थूलस्थली. प्राया / न तृप्यंति ततोऽप्यहो / / 65 / नत्पन्नः पौरधौरेय-श्रेष्टिनो निर्मले कुले // अवाप्नोमि ह. जेनां मन वचन अने क्रिया परस्पर विरोधवाळां बे, एवी ते लोगांध वेश्यामां विश्वास शं कामनो के ? // 6 // या वेश्यान करोळीयानीपेठे पुरुषने कपटप्रेमरूपी तंतुथी वींटीने माखीनीपेठे साररहित करीने तजी दे . // 63 // वळी ते वेश्या पोते अरक्त उतां व्यभिचारीनने राग पापनारी ने, परंतु तंतुनवाळां कपमांनीपेठे गुणवानोने तेजसाथे राग थतो नथी. // 6 // कदाच कोई वरसादनीपेठे वसुधाराथी (धनथी) वर्षे तोपण मोटी परखाळी चुमिनीपेचे ते वे. श्याननी तृष्णा मटती नथी. / / 65 // अरे! नगरना लोकोमा मुकुटसमान एवा शेउना निर्मल कुटमा उत्पन्न थयेलो था हुं श्रावी रीते वेश्याथी विझवना पामुं बु ! // 66 // बाव्यपणामां पां. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- हा सोऽहं / बाह्यस्त्रीन्यो विभवनाः // 66 // बाल्येऽपि पंचधात्रीणा-मकस्थो योव्यवाषि॥ मही पीठे बुउन्नस्मि / स एवाहमनाथवत् // 67 // जैनश्रुतामृताखाद-मनुयापि पापिनि // किं सुरा""| पानव्यसने / रसने गलितासि न // 67 // अस्तं प्रयाति सूरोऽपि / वारुणीसंगतो ध्रुवं // यदहं वारुणीयोगे / जीवनस्मि तदद्लुतं // 6 // // जाता ये योषितामिष्टा-स्ते भ्रष्टा एव धर्मतः // वि. षवल्लीवनं लीनाः / कचिङीवति ते नराः // 70 // वरं वज्रनिपातेन / शतधा चूर्णितं शिरः // च धात्रीजना खोळामां रहीने जे या हुं वृद्धि पाम्यो बुं, तेज हुं बाजे एक कंगालनीपेठे पृथ्वीपर लोट्या करुं बु ! // 67 // वळी हे पापणी जिह्वा ! जैन शास्त्ररूपी अमृतनो स्वाद अनुजव्या उतां पण मद्यपान करती वेळाए तुं गळी केम न ग? // 6 // मद्यना (पश्चिम दिशाना) संगथी शूरो मनुष्य (सूर्य ) पण खरेखर नाश (अस्त ) पामे बे, परंतु हुं जे मदिराना संगथी | पण हजु जीवतो रह्यो ळ ते पाश्चर्य ! / / 65 // जे पुरुषो स्त्रीने इष्ट थया ने तेन धर्मयी ब्रटज थया , केमके विषवल्लीना वनमां गयेला कोश्कज पुरुषो जीवता रही शके जे. // 10 // वज्र पमवाथी चूरेचूरा थयेवू मस्तक सारं , परंतु पापी स्त्रीना वचनना विश्वासथी हणाये मः | P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सार्थ धम्मि- न तु निर्धर्मनारीवा-विश्वासोपहतं मनः // 11 // धन्यास्ते मुनयो धीराः। शीलसन्नादशालिनः॥ | योषावाग्विशिखा येषां। हृदयं व्यथयंति न / / 72 // कुट्टिनीयं गुरुपाया / यस्याः शिदामिमां स्मरन् // न पुनर्निपतिष्यामि / वाक्पाशे पणयोषितां / / 73 // अथ गत्वा गृहं कुर्वे / चिंतां प्रणयिनामिति // ध्यायन पुरे प्रविश्यासौ / खसौधद्दारमासदत | // 4 // किं स्तः सुरेंद्रदत्तश्च / सुभद्रा च शुन्नास्पदे // तेनेत्युत्कंठया पृष्टः / कश्चिनिश्चिनधी गौ न सारं नथी. // 11 // ते धैर्यवान मुनिनने धन्य बे के जेजे शीलरूपी बखतरथी शोजी रहे. लाने, अने तेथी स्त्रीना वचनोरूपी बाणो तेजना हृदयने नेदी शकता नथी. // 12 // खरेखर ते कुटण) मारी गुरु थ , के जेणीनी आ शिदा याद करीने हुँ फरीथी वेश्याना वचनपा. शमां पडीश नहि. // 13 // हवे घेर जश्ने हुं मारां संबंधिननी तपास करु, एम विचारी नगरमां जश् ते पोताना महे खने बारणे याव्यो. // 14 // शुं अहिं कल्याणना स्थानसरखा सुरेंद्रदत्त अने सुन्नद्रा ने ? एवी रीते तेणे उत्कंगपूर्वक पूच्याथी कोक बुध्विान माणसे तेने कह्यु के, // 15 // हे शांतवेष. P.P.AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मिः // 35 // प्रश्नो देशांतरे शांत-वेष वक्त्येष ते स्थिति // जगत्प्रतीतमप्येत-चेन्न जानासि तवृः / ग ए / / 76 // वार्ड केऽनृत्सुरेंडस्य / सूनुः क्वेशेन धम्मिलः // ययौस यौवने दैव-वैवश्यामणिकागृहं | // 9 // तत्रानंगोरगापेत-चेतनः स चिरं स्थितः // पित्राहूतोऽपि नायासीत् / प्राप्तसंयमधीरिख / 215 | // 70 // विपन्नौ पितरौ तस्य / व्ययाच निष्टितं धनं / गता विक्रीय वेश्मेदं / तदवः सविधे पितुः // 70 // सतोऽसतो वा को वेत्ति / शुहिं तस्याय पाप्पनः / कुलप्रलयकाले हि / जवंत्ये. वाळा! था तारो प्रश्न तुं देशांतरमा रहेतो होय एम सूचवे , हवे दुनियामां प्रसिद्ध एवा या वृत्तांतने जो तुं नथी जाणतो तो सांभळ? // 76 // सुरेंद्रदत्तशेठने तेनी वृद्धावस्थामां केटलेक कष्टे एक धम्मिल नामे पुत्र थयो हतो, परंतु कर्मयोगे यौवनवयमां ते वेश्याने घेर गयो. // 7 // त्यां कामदेवरूपी सर्पना दंशथी निश्चेतन थने ते घणा काळसुधी रह्यो, तथा जाणे चारित्रनी बुध्विाळो थयो होय नहि तेम तेना मातपिताए बोलाव्या बतां पण ते पागे धाव्यो नहि. // // 70 // पनी तेना ते मावाप गुजरी गयां, तथा तेना खरचथी धन पण खूटी गयु, थने ते धम्मिलनी स्त्री था घर वेचीने पोताना पिताने घेर गश्. / / // ते दुष्ट पुत्र हवे ने के नहि | P.P. Ac. Gunratnasuti M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि वंविधाः सुताः // 70 // अथ पित्रोः श्रुते मृत्या-वत्याकुलितमानसः // शंपासंपानसंकाशं / वहन सुःखमचिंतयत् / / 71 // खां कीर्तिमपि शृण्वंतो। लांते केचिदुत्तमाः // स्वामकीर्ति स्वक न्यां / शृण्वतोऽपि न मे त्रपा / / 72 // यथायं तददन्योऽपि / परोक्षे मे तनिष्यते // दुर्यशः सकलो लोको / धिर धिर मां कुलपांसनं / / 73 / / आसंसार ध्वनायेव-मकीर्तिपटहे पट / / ही वज्रहृदयो नोर्ध्व-शोषं शुष्यति धम्मिलः // 4 // पितरौ मे विपेदाते / महियोगेऽपि वत्सलौ // एम तेनी शुछि पण कोण जाणे ? वळी कुलना विनाशसमये एवा पुत्रो पेदा थाय जे. // 0 // हवे पोताना मातपितार्नु मरण सांजळवाथी अत्यंत व्याकुल मनवाळो धम्मिल वीजळी पमवासर दुःख धारण करतोथको विचारखा लाग्यो के, // 1 // केटलाक उत्तम मनुष्यो पोतानी कीर्ति सांजळीने पण लङा पामे , त्यारे पोतानेज काने पोतानी अपकीर्ति सांभळतां बतां पण मने लड़ा थती नथी. // 2 // जेम था माणस तेम बीजा पण सघळा लोको परोद मारी अपकी. ति विस्तारशे, माटे कुलमां अंगारासरखा एवा मने धिक्कार ! धिक्कार ! // 3 // श्रा समस्त संसारमा थावी रीते मारो अपकीर्तिनो पटह वागतां बता पण वज्रसरखां मनवाळो या हं धम्मि PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- बाः कारिन्यं तयोर्मत्या-वपि झाते श्वसिम्यहं // 75 // मृगनाभिर्मगोहित्य / मौक्तिक शुक्ति कानिदे // फलं रंनानिशुंजाय / तथाहं जनकबिदे / / 76 // मरुदेशं मरालीव / महानागा य. शोमती // मां प्राप्य नीरसं नाथं / न लेभे जातु निति // 7 // संचिक्ये पूर्व जैर्लक्ष्मी 214 कष्टं कणराशिवत् // स्वादं स्वादं दयं निन्ये / मूषकेणेव सा मया // 7 // यन्मे पित्राश्रितं सिंल अरेरे! नगो जजो शोषा पण जतो नथी! // 4 // मारा वहाला मातपिता मारा वियो गथी मृत्यु पाम्या, अने अरे ! मारुं हृदय केQ कठण के तेनुं मृयु जाण्या उतां पण हजु हं जीवं वं! // 5 // जेम कस्तूरी हरणनो नाश करे , मोती बीपनो नाश करे तथा केळनां फल जेम केळ्नो नाश करे , तेम में पण मारा मातपितानो नाश कर्यो बेः // 6 // मरु देश पामीने जेम हंसणी तेम महानाग्यवाळी यशोमती मारा जेवा नीरस गरिने पामीने को पण समये सुख पामी नहि. // 7 // मारा पूर्वजोए कष्टथी धान्यना ढगलानीपेठे जे लक्सी ए. कली करी हती ते में जंदरनीपेठे खा खाइने खूटामी. // 77 |मारा जे घररूपी गुफामां सिं. हसरखा मारा पिता रहेता हता, ते घरमां बाजे अरेरे! कोक घुवमनीपेठे अन्य मनुष्यो वि. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ . 215 | धम्मि- हे-नेव मंदिरकंदरं // ही तत्र विलसंत्यद्य / केऽप्यन्ये हरवा श्व // 7 // खद्योतो द्युतिमत्सु का। .. मा चशकलं रत्नेष्वगेषु स्नुही / मेषो योध्धृषु खेचरेषु मशको भारदमेबूंदिरः / / प्रेतो नाकिषु गोष्प- .. दं जलधिषु स्थानेषु नाकुर्यथा / तद्दजातिविम्बनाय विहितो धात्रा मनुष्येष्वहं / / ए० // केचिज्जीवंति जीवंतो / नियंते च मृताः पुनः // मृता अप्यपरे जीवं-त्यहं जीवन्मृतः पुनः // 1 // अतःपरमयुक्ता त-कदाशा जीवितस्य मे // प्राणैरमीनिः पर्याप्त-मपवादमलीमसैः // 7 // लसी रह्या ! // 79 // तेजवंतोमा जेम खद्योत, रत्नोमा जेम काचनो टुकमो, वृदोमां जेम थोर, सुन्नटोमां जेम बेटो, पदीनमा जेम मबर, मजुरोमां जेम नंदर, देवोमां जेम प्रेत, समुद्रोमां जेम खाबोचीन तथा मकानोमां जेम बिल तेम फक्त जातिनी निंदामाटे विधाताए मने मनुष्यो. मां पेदा कर्यो बे. // 50 // केटलाक जीवताथका जीवे , अने मुश्राबाद मुएला गणाय . तथा बीजा केटलाक मुश्रा छतां पण जीवे , अने हुं तो जीवते मुबाजेवो थयो . // 1 // हवेथी मारे जीववानी खोटी आशा करवी ते अयुक्तज. केम के अपवादोथी मलीन थयेला या | प्राणोथी हवे सयु. // 7 // अरे नीच जीव ! तुं हजु शामाटे बेठो ? अरे प्राणो! तमोज. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- स्थितोऽसि जीव किं क्लीव / प्राणा व्रजत सत्वरं // प्राणानां मार्गदानाय / जव रे हृदय दिया / / // 73 // एवं विकल्पसंदोहै-र्दधानो मृत्युसाहसं / / जाताऽशुकनबह-दारादेवावलिष्ट सः // 4 // | युग्मं // शुष्यइल्लिगणं दृश्य-कूपं जीर्यन्महीरुहं // ययौ बहुबिलं नाकु-संकुलं स जरहनं // // 5 // तत्र निर्मुक्तसंसार-सुखाशो मरणाग्रही // कृपाणं निजपाणिस्थ मज्यधादियनंदनः / / // 76 // मतं धनं गता भार्या / गतस्तंत्रो गतं गृहं // स्वामिजक्त त्वमेवासि / मम संनिहितोऽ. लदी चाव्या जान ? वळी हे हृदय! तुं पण प्राणोने मार्ग प्रापवामाटे चीराश्ने बे टुकड़ा था जा? // 73 / / एवी रीतना विकल्पोना समूहोथी मृत्युना साहसने धारण करतोथको ते धम्मिल जाणे अपशकुन थयु होय नहि तेम ते घरने बारणेथीज पागे वन्यो. // 4 // पड़ी ते सुका. ती वेलझीजना समूहवाळ, पडी जता कुवावाळां, जीर्ण थतां वृदोवाळां, घणां दरोवानं तथा . दरोधी नरेलां एवां एक जीर्ण वनमा गयो. // 55 // त्यां संसारसुखनी याशा गेडीने मर. वामाटे तैयार थयेलो शेउनो पुत्र ते धम्मिल पोताना दाथमा रहेलां खाने कहेवा लाग्यो के, // 6 // धन गयु, स्त्री गश्, व्यापार गयो, घर गयुं, परंतु हे स्वामिभक्त खा! हवे तो तुज ए. . P.P.Ac, Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- धुना // 7 // तदेहि कंपीठे मे / परिरन्य दृढं 'पृणु // चिरचिंतितमावन-मित्रमृत्युमनोरयं / / // // वणिग्योगाद्रणे वैरि-वारणेऽनुपयोगिनः // नवतादवतारस्ते / देवादेवं फलेग्रहिः ॥ए| | निस्त्रिंशोऽसि वधे पत्यु- शंकिष्टा मनागपि / / अनुशिष्येति सोऽकुंठं / कंठे खामवाहयत् // // 1000 // . तदा तं: पवनोध्धूत-पत्रपाणिप्रकंपनैः॥ न्यवारयन्निव जर-त्तरखो मृत्युसाहसात् // 1 // क. मारो नजीकनो संबंधी ने, // // माटे तुं पाव? अने मारा कंठने खूब नेटीने घणा वख. तथी:चिंतवेलो तथा दुःखीनना मित्रसरखो मारो मृत्युनो मनोरथ तुं सफल कर? // ए // दै. वयोगे तने वणिकनो संग यवाथी रणसंग्राममां वैरीनने निवारवामां तुं उपयोगी थ६ शक्यो नः थी, परंतु बाजे यावी रीते तारो.अवतार फलीत थाने ? // // तुं निस्त्रिंश एरले निर्दय छो, माटे स्वामीना वधमाटे तारे जरा पण शंका करवी नहि, एम कहीने अटकावविना तेणे पोताना कंठपर तलवार चलावी. // 1000 // . ते वखते पवनथी कंपेला पत्रोरूपी हाथ हलावीने जोर्ण वृदो तेने मृत्युना साहसयी जाणे | P.P.AD, Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- अव्यक्तवचनत्वात्तं / निषेधयितुमदमाः // जहुरास्यात्कुशग्रासान / हरिण्योऽप्याईदृष्टयः ॥२॥सं. / नृय तुमुलं व्योनि / तन्वंतस्त्यक्तचूणयः // पदिणोऽपि दणं जाता-स्तं दृष्ट्वा दुःखनाजनं // 3 // हहासौ श्रीमतः सूनु-रसमाप्तमनोरथः // विधास्यति विपद्याद्य / वनं हत्यापवादि मे // 4 // इत्यु 210 लसितकारुण्या / मातेव वनदेवता / / कदलीदलवत्तस्य / मृदुधारं व्यधादसि // 5 // सर्वया जी तितोहिम-श्चितामौ सोऽविशत्ततः // चितां च शीतलीचके / क्रीमावापीमिवामरी // 6 // मायि. घटकाववा लाग्यां. // 1 // अवाचक होवाथी तेने निषेधवाने असमर्थ एवी हरिणीयो पण अांखोमां बांसु लावीने पोताना मुखमांथी घासना ग्रासोने तजवा लागी. // 2 // वळी तेने जो श्ने थाकशमां एकठा थश्ने कीकीयारी करता पदीने पण चण तजीने दणवार दुःख अनुजव वा लाग्यां // 3 // अरे या धनवाननो पुत्र मनोरथ संपूर्ण थयाविना बाजे पापघात करीने मा वन हत्याना अपवादवालु करशे // 4 // एम विचारी दया लावीने मातानीपेठे वनदेवताए ते. नी तलवार केळ्ना पत्रजेवी कोमळ धारवाळी करी. // 5 // पनी ते धम्मिल जीववाथी बिलकुल | कंटाळीने चितानी अमिमां पेठगे, त्यारे ते देवताए ते चिताने क्रीडा करवानी वावसरखी शीतल Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ धम्मि- चित्त वागाधे / निर्मम हृदे ततः // देवतातिशयात्तत्र / तरतिस्म तरंमत्रत् // 7 // ततो विष ताबुपुटं / सविषादश्वखाद सः // जहार हारहूरावत् / तत्क्षुधं देवतेलया / / 7 // अय प्रसह्य वृ. दाग्र—मारुह्य स्वं मुमोच सः // तस्य तूलीयितं पात-स्थानं दिव्यानुनावतः // ए // एवं सर्वै 21 रप्युपायै-रविंदन्मरणोत्सवं // दीनो दश दिशो दर्श / दर्श खिन्नः स दध्यिवान् // 10 // अहो मे मंदजाग्यत्वं / यदृष्टप्रत्यया अपि // पदार्था व्यघटतामी / खजवह्निविषादयः // 11 // पास्तां य. करी नाखी. // 6 // त्यारे ते धम्मिल कपटीना चित्तनीपेठे अगाध एवा द्रहमां पड्यो, परंतु देवताना प्रजावथी ते तेमां वहाणनीपेठे तरवा लाग्यो. // 7 // पड़ी तेणे खेदयुक्त थश्ने तालपुट फेर खाधुं, परंतु देवतानी बाथी ते फेरे दादनीपेठे उलटी तेनी कुधा दूर करी. // // पनी तेणे वृदानी टोचे चमीने त्यांथी पातुं मेव्युं, परंतु दिव्य प्रनावथी तेनुं पमवानुं स्थान रुना द. गसरखं थ गयु. // ए // एवी रीते सर्व उपायोथी पण थापघात न करी शकवाथी ते विचारो खेद पामीने दशे दिशा जोतोथको विचारखा लाग्यो के, // 10 // अरे था मारूं केर्बु मंद जा. | ग्य जे के या खातरीवाळा तलवार अमि तथा फेरयादिक उपायो पण व्यर्थ गया. // 11 // मा. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि दपरे संप-त्स्यते मम मनोरथाः / अधुना निधनाशापि / निष्पुण्यस्य न पूर्यते // 12 // आयुर्य: मा दि पुनः सर्वो-स्कृष्टं मम नविष्यति // दृश्यते प्रायशः पृथ्व्यां / दुःखिनश्चिरजीविनः / / 13 / / नि | हेतुः शत्रुरवास्ति / कोऽप्यलोचनगोचरः // स्वेबया म्रियमाणस्य / यः प्रत्यूहं करोति मे // 14 // | इति मूढमतिर्याव-तत्र तिष्टति धम्मिलः // मा मृत्युसाहसं कार्षी-स्तावट्योम्नीति वागत् // 15 // ततोऽसौ विस्मयापनः / को मां मृत्योर्निषेधति // इत्यैदिष्ट दिशः सर्वाः / पुन:दिष्ट कंचन // रा बीजा मनोरथो संपूर्ण थवानी वात तो एक बाजु रही, परंतु हमणा मारी निष्पुण्यनी मृत्युनी बाशा पण पूरी यती नथी. // 15 // कदाच मारूं थायु जत्कृष्टुं संजवी शके डे, केमके प्रायें क. रीने या पृथ्वीमां दुःखील लांबां आयुष्यवाळा देखाय . // 13 // खरेखर अहिं कोश्क मारो अदृश्य कारणविनानो शत्रु होवो जोश्ये, के जे पोतानी मरजीमुजब मने श्रापघात करतां विघ्न करे . // 14 // एम विचारतोथको ते धम्मिल दिग्मूढ थश्ने जेवामां त्यां जनो ने तेवामां श्राकाशमां एवी वाणी थश् के तुं मृत्यु- साहस कर नहि. // 15 // त्यारे ते याश्चर्य पामीने विचारवा लाग्यो के मने मृत्युमाटे कोण निषेध करे ? एम विचारीने ते सघळी दिशातरफ .PP.AC. Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- // 16 // दध्यौ च सेयं दैवी वा-गियं मान्यैव मानवैः / / हंहो निःपुण्यकेऽद्यापि / देवी किं मयिवी. सार्थ || | दते // 17 // अन्यच्चैवमकाले मे / बलान्मृत्युरसंगतः // वक्ति लोकोऽपि यज्जीवन् / नरो नद्रा|णि पश्यति // 10 / / मृतश्चेत्तर्हि दुःकीर्ति-मम स्थेमानमाप सा // जीवन पुनः कदाप्येतां / स| चरित्रैः प्रमार्जये // 15 // एवमेवानपत्योऽसौ / म्रियते यदि धम्मिलः // दत्ता सुरेंदत्ते न्य-कु. लस्यास्तमिता कथा // 20 // महान्मम मतेर्मोहो / यद् शातजिनशासनः // ववे स्वस्य निषिके जोवा लाग्यो, परंतु त्यां तेणे कोश्ने पण जोयो नहि. // 16 // त्यारे ते विचारखा लाग्यो के खरेखर या देवता वाणी , अने ते माणसोए मानवीज जोश्ये, वळी हूँ जे निष्पुण्य तेना तरफ पण शुं हजु देवी जुए बे ? // 17 // वळी या थकाळे मारे बलात्कारे म योग्य नथी, केमके लोको पण कहे जे के जीवतो नर नद्र पामे. // 10 // वली जो हुँ बाम आपघात करी मरी जश तो मारी अपकीर्ति तो एमनी एमज स्थिर रहेशे, परंतु जो जीवतो रहीश तो कोड वखते पण ते अपकीर्तिने हुं मारां सदाचरणोथी दूर करीश. // 17 // वळी जो आ धम्मिला या मने थाम संतानविना मरी जाय तो सुरेंद्रदत्तशेठना कुलनी कथा तो यस्तज पामे. // 20 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- पि / नानोपायानहं व्यधां // 21 // जीवतो मम जायेत / लक्ष्मीरपि कदाचन // वीदयंते फलिः / मा ताः काले / दवदग्धा अपि हुमाः // २॥ध्यात्वेति देवतावाचा / सावष्टंभमना मनाक् // स र. यान्निरयाज्जीर्णो-द्यानाद्यमगृहादिव // 3 // श्तश्च लब्धचैतन्या / वसंततिलकापि सा ॥अपश्यंती प्रियं कृत्तां-त्रेव बाढमदूयत // 24 // मातः क मे प्रियोस्तीति / साथ पाक कुट्टिनी // साप्याख्यत् पुत्रि जानाति / शुद्धिं तस्याधम्यस्य कः // 25 // मा मां पुनः पुनः प्रादी-नं तस्य वळी खरेखर मने था मोटो मतिमोहज थयो ने के जेथी जिनधर्म जाण्या रतां पण निषेधेला थापघातमाटे पण में नानाप्रकारना जपायो का. // 21 // जो हुँ जीवतो रहीश तो मने कदा च लक्ष्मी पण मळशे, केमके दावानलथी बळेलां वृदो पण कोक समये फळेला देखाय . // // // एम विचारीने तथा देवताना वचनथी जरा विश्वासयुक्त थश्ने ते जेम यमना घरमांथी तेम ते जीर्ण उद्यानमांथी जलदी पागे वव्यो. // 3 / / हवे चैतन्य मब्यावाद ते वसंततिलका वेश्या पण त्यां पोताना प्रियतमने नहि जोवाथी जाणे यांतरमा कपाश् गयां होय नहि, तेम अत्यंत दुनावा लागी. // 24 // परी ते कुटणीने पुरावा लागी के हे माता! ते मारो प्रियतम | डोषा P.P.Ac, Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सार्थ धम्मि- प्रतिजरहं // दरिद्रबहुले लोके / ज्ञायते कति तादृशाः // 26 // दिस्त्रिःप्रबोधितो वेत्ति / युक्तायुः |क्तं जडोऽपि हि // वत्से स्वयं विदुष्यास्ते / कोऽयं लमः कदाग्रहः // 27 // त्वामेष्यंत्यमुना मुक्ता -मथ स्मेराब्जलोचनां // के के न तरुणाः पांथा / अग्राहां सरसीमिव // 20 // सर्वथा निर्धन२५३ | त्वाचे-द्यद्यस्मिन्नेव रज्यसि // तद् ब्रूहि तादृशं येना-नये कंचिदकिंचनं // 25 // साय व्य| क्या बे ? त्यारे ते पण बोली के हे पुत्रि! ते नीचनी कोने खबर ? // 25 // वळी तेनाविषे मने फरी फरीने पुछीश नहि, हुं कई तेन जामीन नथी, केमके दरिखोथी नरेली या दुनियामां तेना जेवा तो केटलाए रखडे बे. // 16 // कोश् मूर्ख पण बेत्रणवार कहेवाथी युक्तायुक्त समजी जाय , त्यारे हे पुत्रि! तुं तो पोतेज चतुर , तो पनी तने या कदाग्रह शुं लाग्यो ? // 27 / / मगरविनानी तलावमीपते जेम वटेमागुन तेम तेणे त्यजेली तथा प्रफुल्लित नेत्रकमः लवाळी एवी जे तुं, तेनीपासे हवे कया कया तरुण पुरुषो नहि श्रावे? // 2 // वळी कदाच बिलकुल निर्धनपणाथी जो तुं ते धम्मिलमांज खुशी हो, तो कहे तो तेवा कोक कंगालने में / लावी श्रापुं. // 27 // हवे ते वसंततिलका विचारवा लागी के खरेखर था मोकरीएज मद्योत्स Jun Gun Aaradhak Trus P.P.AC. Sunratnasuri M.S.
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________________ धम्मि चिंतयन्नून-मनयैव मम प्रियः // मधूत्सकबलात्पीता-सवः स निरखास्यत // 30 // रे रे हुता शन हताश मदंबिकायाः / सर्वस्वदातरि दुरुक्तिकरोऽसि कस्त्वं // यन्मुंचसि गुपति नरसनाकराला / ज्वालावलीमधुहविःपरितर्पितोऽपि // 31 / दीरप्रदेऽपि पुरुषे विषदायकत्वं / हंहो मुजंगम नि४ जं गमयस्व गर्व // एषा मदीयजनी धनलदादेऽपि / यल्लीलया वदति तस्य विशतांशः // 3 // यथा मेऽतिप्रथामेति / प्रीतिस्तदचसाप्यहो / परदत्तैः परोलदै-रपि खणैर्न सा तथा // 33 // त. वना मिषयी मद्य पाइने मारा प्रियतमने कहामी मेव्यो बे. // 30 // अरे दुष्ट हुताशन! पोतार्नु सर्वस्व पापनारनी निंदा करनार एवो पण तुं मारी मातापासे शुं हिसाबमा जे? के जेयी मध घी आदिकथी तृप्त कर्या उतां पण तुं यमनी जिह्वासरखी जयंकर काळोनी श्रेणि कहाडी रह्यो . // // 31 / / वळी हे सर्प! दूध यापनार पुरुषने पण फेर देवारूप तारा गर्वने हवे तुं गेमी दे? के. मके लाखोगमे धन देनारमाटे पण या मारी माता फक्त सहेजमां पण जे जद्गारो कहाडे जे, ते. | नी पासे तारं झेर एक शतांश एटले सोमे जागे . // 3 // अरेरे ते धम्मिलना वचनथी पण मने जे प्रीति थती हती ते बीजाए आपेला लाखोगमे सोनामहोरोथी पण थवानी नथी. // 33 // | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- नुगृहमनोऽपवरके / धीमंजूषामतिस्मृतिसमुझे // निवसत् क तस्य वचनं / क कांचनं त्वगुपरिनि | वासि // 34 // व ते मे दिवसाः सार-सुधारसमया च // कामि तु मुर्मुराष्ट्र–ववामिस ढ़ोदराः // 35 // अतः परं शरीरे मे / लगत्येकः स धम्मिलः / / विरहव्याधिविध्वंसौ-पवं नो चे. 225 | चितानलः // 36 // नास्वादयामि तांबूलं / जूषां वपुषि नो दधे // वेणीबंधं न मुंचामि / यावत् पश्यामि न प्रियं // 37 / / श्त्यधिग्रहिणी खग-धारातीव्रसतीव्रता // अनैषीत्कुलबानेव / दिना केमके मारां शरीररूपी घरमां मनरूपी जेरडामां बुधिरूपी पेटीमां मतिनी याददास्तीरूपी मावमा मां वसनारूं ते धम्मिलनुं वचन पण क्यां? अने मात्र चाममीपर वसनारूं सुवर्ण क्या? // 34 // सारत अमृतरससरखा ते मारा दिवसो क्या ? अने धगधगती नहीना वडवानलसरखा था दि. वसो क्यां? // 35 // आजथी मांडीने जो तेना विरहरूपी व्याधिनो नाश करवामाटे औषधस. मान चिताग्नि मारां शरीरने न लागे तो पड़ी एक धम्मिलज माझं शरीर चोगवी शकशे..॥३६॥ | हवे ह ज्यांसुधि मारा प्रियतमने जोश नहि त्यांसुधि हुँ तांबूल चावीश नहि, शरीरपर या वृष. | ण धारण करीश नहि तथा वेणीबंध बगेडीश नहि. // 37 / / एवी रातना बनिग्रहवाळी तथा ख P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 16. धम्मिन दैववशंवदा // 30 // युग्मं // धम्मिलोऽपि ततो जीर्णो-द्यानात्याप नवं वनं // पचेलिमफलान म्र-दादामंडपमंडितं // 35 // सांरंनागृहकोम-क्रीडदबीडकामुकं // दरपुष्परसासार-सुरजी. ततलं // 40 // युग्मं // किशलश्रीफलांजोज-रंजास्तंजपिकारवैः / / स्मार्यमाणः प्रियापाणिस्तनास्योरध्वनीनसौ // 41 / / ब्रमन जमवत्तत्र / हुमालोकनतत्परः // पुरः स्फुरशुणग्राम-रत्न जधारासरखां तीव्र सतीव्रतवाळी ते वसंततिलका वेश्या दैवने अाधीन थश्ने कुलीन स्त्रीनीपेठे दिवसो व्यतीत करवा लागी. // 30 // हवे धम्मिल पण ते जीर्ण वनमांथी निकळीने पाकेला फळोथी नमी गयेला डादाना मांडवानथी शोजावाळा एक नवीन बगीचामां दाखल थयो. // // 35 // ते बगीचामां घाटां केळनां घरोनी अंदर लारहित कामुको क्रीडा करता हता, तथा त्यांनु पृथ्वीतल पण खरतां पुष्पोना मकरंदना वरसादथी सुगंधी थयेबु हतुं. // 40 // त्यां नवां कुंपळो श्रीफलो कमल केळना स्तंगो तथा कोयलना नादथी ते पोतानी प्रियाना हस्त स्तन मु. ख साथळ तथा वचनोने याद करवा लाग्यो. // 41 // त्यां वृदोने जोतोयको जमरनीपेते ते जमवा लाग्यो, एवामां अगाडीना भागमां स्फुरायमान थता गुणोना समूहरूपी रत्नोने नत्पन्न कः | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- रोहणरोहणं // 42 // अदृश्यं भाग्यहीनाना-मस्पृश्यं सर्वपाप्मनां / संकरं सारविद्याना-मविद्या नां भयंकरं // 3 // आलयं धीरधर्माणां / प्रलयं च कुकर्मणां / / अशोकानोकहस्याधः / साधु | मेकं ददर्श सः // 44 // चतुर्भिः कलापकं // नितुकोपकारी यो। भृशं प्रशमवानपि // लुप्तस२५७ | तन्नयनांति-रपि प्रतिजयान्वितः // 45 // वने स्थितोऽपि निःशेष-सत्त्वानामवने स्थितः // सुध स्थानिविष्टोऽपि / न देवानां प्रियः पुनः // 46 // एकांते प्रमदागोग-जागपि ब्रह्मनिर्मलः / / खामां रोहणाचल पर्वतसरखा, // 42 // जाग्यहीनोने नजरे न पडे एवा, सर्व पापी जेनो स्प. र्श न करी शके एवा, उत्तम विद्याना समूह सरखा अने अज्ञानीनने भय करनारा, // 3 // स्थिर धर्मोना स्थानसरखा तथा कुकर्मोनो नाश करनारा एवा एक साधुने तेणे अशोक वृदनीचे बेला जोया. // 44 // अत्यंत शांतिवाळा होवा बतां पण ते मुनि कई पण कारणविना परनो | नपकार करनारा हता, तथा साते जयोनी भ्रांति दूर कर्या उतां पण ते प्रतिजयान्वित एटनेब. ध्यिक्त हता. // 45 // वनमा रह्या बतां पण ते सर्व प्राणीजना अवनमा एटले रक्षणमां तत्पर | हता, वली सुधर्मास्था एटले उत्तम. धर्मनी थास्थामा रह्या छतां पण ते देवानां प्रिय एटले मर्ख P.P.AC. Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मिः स्वयमाश्रवमुख्योऽपि / वारिताश्रवविप्लवः // 4 // अस्य दूरेऽस्तु सुश्रूषा / वचोऽप्येकं सुखाकरं // माई| अास्तां वचोऽस्य निःशेष-दुःखोलेदाय वंदनं // 40 // दूरेऽस्तु वंदनं वीदा-प्यस्य वश्यकरी | श्रियां // वीदाप्यस्तु ध्रुवं नाम-स्मृतिरप्यस्य पापनित् // 4 // तत्तत्परिनवार्चिष्म-दवा यात्रु श्शन | न्मम व्यथा / विजिदे जलदेनेव / साधुना साधुनामुना // 20 // स एवमालपन्नेव / सृष्टिवल्ली नहोता. // 46 / / एकांते प्रमदागोगनागपि एटले हर्षने अनुजवनारा होवा उतां पण ते ब्रह्मच यथी निर्मल हता, तथा स्वयमाश्रवमुख्योऽपि एटले पोताना नियमो पाळवामां तत्पर उतां पण ते थाश्रवोना पद्रवने निवारनारा हता. // 4 // तेमनी सेवा तो एक बाजु रही, परंतु तेमनुं ए. क वचन पण सुख करनारं हतुं, वली तेमनुं वचन तो एक बाजु रहो, परंतु तेमनुं वंदन सर्व दु:खोने नाश करनारं हतुं. // 4 // वली तेमनुं वंदन एक बाजु रडं, परंतु तेमनुं दर्शन पण ल. मीने वश करनारं हतुं, वली तेमनुं दर्शन पण एक बाजु रह्यु, परंतु तेमना नामनु स्मरण पण खरेखर पापोने नाश करनार हतुं. // 4 // ते ते पराभवरूपी अमियो नत्पन्न थयेली जे व्यथा | मने थर हती, ते व्यथा वरसादथी जेम तेम या साधुना दर्शनथी मारी दूर थने. // 20 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- प्ररोहवत / मुदा प्रदक्षिणीचके / तं पुण्यफलदं मुनि // 11 // तस्मै प्रणमते दत्वा / धर्मलाना शिर्ष मुनिः // ध्वनिर्षितपर्जन्य-गर्जिरेवमुपादिशत् // 5 // नमनिःशेषविदेषि-कुलगाः सुल नाः श्रियः / / सुलजाः खलु जामिन्यो / लावण्योदकदीर्घिकाः / / 53 / / सुलगा कलानाश्वादि१५० | संपत्तिरपि देहिनां // वल्लजो धीमतामेक। एव धर्मः सुदुर्लभः // 54 / / धर्मः स्वर्मणिसंकाशो / ध. मः शर्मवनीघनः // धर्मो वर्म विषां जीतौ / धर्मः कर्महतिदमः / / 55 // गुरूक्तविधिना धर्मएवी रीते बोलताथका ते धम्मिले वृदने जेम वेलडीनो रोपो तेम हर्षपूर्वक ते पुण्यफलने देना. रा मुनिने प्रदक्षिणा करी. // 51 // पी प्रणाम करता एवा ते धम्मिलने धर्मलागनी आशीष देने ते मुनिए मेघना गर्जाखने जीतनारा शब्दथी यावी रीते उपदेश थाप्यो. // 52 // सर्व शत्रुनना समूहनी शोजाने नाश करनारी लक्ष्मी सुलन , तेमज लावण्यरूपी जलनी वावसरखी स्त्रीने पण सुलन जे. // 53 / / तेम हाथी घोमायादिकनी संपत्ति पण प्राणीजने सुलभ , प. रंतु बुध्विानोने वान एवो एक धर्मज दुर्लग बे. // 14 // धर्म चिंतामणि सरखो, सुखरूपी व. | नमां वरसादसमान, शत्रुजना डरसमये बखतरसमान तथा कर्मोने नाश करवामां समर्थ जे. // 5 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trus!!
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________________ धम्मि- निधेरधिगमे नृणां / / याविनवंति विघ्नाय / विषया व्यंतरा श्व // 16 // ये बिजीषिकयामीषां / / न कुन्यंति मृदुचेतसः // ते मोहोद्ग्रहिलीता / ब्रमति नवचत्वरे / / 57 // ज्ञानादिरत्नसंदोह-म | निशं डोहबुधिनिः॥ दंड्यते विषयस्तेनै-जनः शिवपुराध्वगः // 50 // न कुर्वति जना जैनं / 230 | धर्म ये विषयेनवः / / लोनेन काचखंडानां / चिंतारत्नमहारि तैः // 55 // सांगारसारैषाशा / भोजनाशा विषेण सा // कुंतैः कंम्यनाशा सा / विषयैर्या सुखस्पृहा // 60 // माधुर्यमुपदश्यादौ गुरुए कहेली विधियी माणसोने ज्यारे धर्मरूपी निधाननी प्राप्ति थाय ने त्यारे तेमां व्यंतरोनी. पेठे विषयो विघ्न करवामाटे तत्पर थाय . // 56 // जे काचा हृदयना माणसो तेन्ना मरथी दोभ पामे , ते मोहथी प्रथिल थयाथका संसाररूपी चहुटामा जम्या करे . // 27 // मो. दमार्गे जता मनुष्यना ज्ञानादिरूप रत्नोना समूहने हमेशां देषबुझिवाळा विषयरूपी चोरो बुंटी जाय . // 17 // जे माणसो विषयना श्बक थश्ने जैन धर्म करता नथी, तेन काचना टुक. माना लोनी थश्ने चिंतामणि रत्न हारी जाय . // 55 // विषयोथी सुखनी जे श्ला करवी ते अंगाराजथी बाजूषणनी अाशा, विषवडे चोजननी अाशा तथा नालांथी खरज करवानी प्रा. P.P.AD, Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak. Trust
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________________ धम्मि- / येते दुःखं वितन्वते // विषयेषु न विश्वासः / कार्यस्तेषु खनेष्विव / / 61 // विषयानरकाध्वन्य- / ध्वन्यप्रायानपास्य ये // नपासते सदा धर्म / ते धन्या गुणवर्मवत् // 6 // तयाहि - ध्रुवमानवरत्नाई-सुवर्णस्थितिसुंदरं // हास्ति हस्तिनापुरं / कुरुमंडलममनं // 63 // दृढधर्मा२३१ | ख्यया ख्यात-स्तत्रासुधाधवः // यस्य खमलता वर्ग-पद्येव विहिषां // 64 // चरितार्था शा करवासर . / / 60 // जे प्रथम मीगश देखाडीने आवटे दुःख आपे , एवा ते खलसरखा विषयोमा विश्वास करवो नहि. // 61 // नरकना मार्गमां वटेमार्गुसरखा विषयोने तजीने जेन हमेशां धर्मनी उपासना करे , तेनने गुणवर्मनीपेठे धन्य . / / 62 // ते गुणवर्मन न. दाहरण नीचेमुजब - निश्चळ मनुष्यजन्मरूपी रत्नने योग्य एवा सुवर्ण एटले नत्तम वर्णना लोकोनी स्थितिथी सुंदर थये अने कुरु देशने शोजावनाएं हस्तिनापुर नामे नगर . // 63 // ते नगरमां दृढध. म नामनो प्रख्यात राजा हतो, के जेनी तलवार शत्रु ने स्वर्गरूपी किल्लापर चमवाने पगथीयां | सरखी हती. / / 64 // तेने सार्थक नामवाळी चंडानना नामनी राणी हती, के जेणीनु रूप जो P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 532 धम्मि निधा तस्या-ऽनवचंद्रानना प्रिया // यपवीदाणायेव / दधुर्देव्योऽनिमेषतां // 65 // तस्याः पं. म चाननस्वाम-सूचितातविक्रमः // बच्व गुणवर्मेति / कुमारः सुकुमारगीः // 66 / / उद्यतो जास्क -रस्येव / प्रजा यस्य शिशोरपि // विसारिवैरिध्वांतस्यो-शासनाशमुपाविशत् / / 67 // उवास सहवासस्य / लोगादिव यदंगके // संकीर्णेऽपि शिशुत्वेन / निखिलं गुणमंमलं // 6 // स पित्रा पारितो यत्ना-दुपाध्यायस्य संनिधौ // विद्याविहंगविश्राम-विटपी समजायत // 6 // // समं स वामाटेज जाणे होय नहि तेम देवीन अनिमेषपणाने धारण करती हती. // 65 // तेणीने सिं. हना खपथी अद्भुत पराक्रम सूचवनारो अने कोमल वाणीवाळो गुणवर्मा नामे कुमार हतो.॥ // 66 / / जगता सूर्यनीपेठे ते बाळकनी कांति विस्तार पामता वैरीनरूपी अंधकारना जल्लासनो नाश करवा लागी. // 67 // तेनी साथे रहेवाना लोगयीज होय नहि जाणे तेम तेना बाट्यपपाथी नाना शरीरमां पण सघळो गुणोनो समूह रहेवा लाग्यो. // 60 // पिताए नपाध्यायपासे यत्नपूर्वक नणावेलो एवो ते गुणवर्मा कुमार विद्यारूपी पदीने विश्राम लेवामाटे वृक्षासरखो थ. यो. // 65 // गुणोना समुद्रसरखा मंत्रिपुत्रनी साथे सर्व कलानो हमेशां अभ्यास करतो ते P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सार्थ धम्मि- मंत्रिपुत्रेण / सागरेण गुणाधिना // अन्यस्यन्नन्वहं सर्व-कलाः शैशवमत्यगात // 10 // तारं तारुण्यमाप्तोऽसौ / रूपेण च बलेन च // शव्यायतेस्म नारीणां / नानारीणां च चेतसि // 11 // अन्यदा विनिविष्टेषु / पार्षयेषु यथात्र मं // कुमारेऽस्मिन गुणागारे / श्रृंगारयति संसदं // 7 // 233 | एत्य पृथ्वीपतेः पादो-पांतं प्रणतिपूर्वकं // वेत्री व्यजिझपन्मौलि-कोटीरकीरितांजलिः // 3 // महीप श्रीपुरेशस्य / मंत्री श्रीषेण जुजः // मूर्त्यतरमिवायात-स्तिष्टति द्वारि वारितः // 4 // तमानयत मामत्र | मंदिवति दितिजानिना // श्रादिष्टोऽसौ ससन्मान-मानिन्ये मंत्रिणं सभां // बाव्यपणुं जलंधी गयो. / / 70 // मनोहर युवावस्थाने प्राप्त थश्ने ते रूप अने बळथी स्त्रीनना अने शत्रुजना मनमां शव्यरूप थयो. i // 11 // हवे एक दिवस सजासदो अनुक्रमे बेटे ते त. था ते गुणवान कुमार पण राजसभाने शोजावते ते // 12 // जमीदारे राजापासे यावी मस्त. कपर हाथ जोडीने प्रणामपूर्वक विनंति करी के, // 13 // हे स्वामी! श्रीपुर नगरना श्रीषेण रा. जानो रूपांतरसरखो मंत्री बारणे थावेलो, अने तेने में अटकाव्यो . // 9 // तेने तुरत मारी. | पासे लाव? एवी रीते राजाए हुकम कर्याथी ते सन्मानपूर्वक ते मंत्रीने राजसणामां लाग्यो / Gun Aara PP.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ धम्मिः // 35 // प्रणम्य प्रणयेनैनं / निविष्टं विष्टरे नृपः // पप्रब कुशलप्रश्न-पूर्वमागमकारणं // 16 // मा कुशलः कुशलोदंत-मुदित्वा मंत्रिपुंगवः // एवं निवेदयामास / कार्यतत्वं महीनुजः / / 99 / / पु. नाग नागकन्येव / भुवमुद्यि निर्गता // श्रीश्रीषेणमहीजर्तुः / श्रीपुरस्वामिनः कनी / 70 / / 35 नाम्ना कनकवत्यस्ति / कनकातिरछूता // मांगव्यदीपिकेवास्त–तमः कल्याणकारणं॥॥ | लाविलासिनीकेलि-वसतिः श्रुतपारगा // अनाहार्यमलंकारं / वपुषः सापुषयः // 7 // तन्वा | प्रेमपूर्वक नमस्कार करीने ज्यारे ते बासनपर बेठो त्यारे राजाए कुशल पूजवापूर्वक तेने प्राववार्नु कारण पूज्यं. // 16 // त्यारे ते चतुर मंत्री कुशल समाचार कहीने नीचे मुजब पोताना राजानुं कार्य कहेवा लाग्यो. // 7 // हे उत्तम पुरुष ! पृथ्वी जेदीने निकळेली जाणे नागकन्या होय नहि तेम अमारा श्रीपुरनगरना स्वामी श्रीषेण राजानी एक कन्या जे. // 70 // तेणीनुं नाम कनकवती , तथा नष्ट करेल के अज्ञानरूपी अंधकार जेणीए एवी अने जाणे कल्याणना कारणरूप मंगलदोवी होय नहि तेवी अद्भुत सुवर्णसरखी कांतिवाळी . // 17 // कलानरूपी स्त्रीनने क्रीमा करवाना घरसरखी तथा शास्त्रोना पारने पहोंचेली एवी ते शरीरनी अनुपम था. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- ना शारदी शोनां / लीलालसपदान्यदा // हंसीवाजं पितुः क्रोमं / सदःसरसि साऽनजत् / / 71 / / खनीव रूपरत्नस्य / मंजूषेव गुणश्रियः / चक्रे जामातृचिंताः / चेतो दृष्टापि सा पितुः / / 72 // | कः स्यादस्या वरो योग्यः / पभिन्या श्व भास्करः // इति पृष्टा विशांपत्या / कुलामाया बगाषिरे 235 // 3 // स्युर्नाथ कोटिशः कन्या / न कापि पुनरोदशी // रंगायोरगवत्येव / यसीष्वपि वलि | षु // 4 // अस्या अस्थानविवाह–घटनाजन्मदुर्यशः // अस्माकं पलितश्वेते / न मूर्ध्नि स्थातु ऋषणसरखी लायक जमरने पहोंचेली . // 70 // शरद तुनी शोजाने विस्तारती एवी ते क. न्या एक दिवसे लीलापूर्वक धीमां पगला मुकतीथकी हंसी जेम कमलपर तेम सनारूपी तळावमां बेला पोताना पिताना खोलमां यावी बेठी. // 1 // रूपरूपी रत्ननी खाणसरखी तया गुणो. रूपी लक्ष्मीनी पेटीसरखी तेणीने जोवामात्रथीज राजानुं मन जमाश्नी चिंतायी पीडित थयु.॥ // 72 // कमलिनीनो जेम सूर्य तेम थानो योग्य चार कोण थशे? एम राजाए पुग्वाथी म होटा मंत्रीन बोल्या के, // 3 // हे स्वामी! था दुनियामां कोडोगमे कन्यान होय ने, परंत थाना सरखी कोइ पण नथी, केमके घणी वेलडी-मां पण नागरवेलज आनंद बापनारी / .P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि मीश्वरं // 5 // मनुष्यो न दमोऽमुष्याः / प्रख्यातुमुचितं वरं // येनेयं निर्मिता धात्रा / स एव / मा स्याद्यदि प्रनुः // 6 // तदर्हति महीपाल / बाला सेयं स्वयंवरं / पुण्यान्येवोपदेदयति / तदस्या नचितं पति // 7 // तेषामेकांतभक्तानां / मेने नुमानिमां गिरं // राझा हि मंत्रिणो नेत्रं। त्व | मेत्रे तु मुखश्रिये // 7 // नृत्यहारांगनायुप्त-लोकलोचनचापलं // हेमकुंगांशुमंगार-शाश्वतीक // 4 // था कन्याना अयोग्य जगोएं विवाह करवायी नत्पन्न थयेलो अपयश या अमारां श्वे. त वाळवाळां मस्तकपर रही शके तेम नथी. // 5 // थाने लायक वर कहेवाने मनुष्य तो समर्थ नथी, माटे जे विधाताए थाने बनावी , तेज कदाच तेणीनो वर निर्माण करी शके ते. म लागे . // 6 // माटे हे स्वामी! या कन्या तो स्वयंवरने योग्य ने, तया ते वखते तेणी नां पुण्योज तेणीनो नचित वर देखाडी आपशे. / / 7 // एवी रीते एकांत नक्तिवाळा ते महामंत्रीननु वचन राजाए पण मान्यु. केमके मंत्री राजानी खरी अांख बे, बाकी चर्मनेत्रो तो मुखनी शोजामाटे . // 7 // पजी राजाए नाचतो वारांगनाए नष्ट करेल ने लोकोना नेत्रो. / नी चपलता जेमां एवो, तया सुवर्णकळशोना किरणोना समूहयी ज्यां शाश्वतो दिवज नगी Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasun M.S.
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________________ 237 धम्मि- तवासरं // 5 // चलध्वजांचलापास्त-जनजातपरिश्रमं // शिल्पिणिः कल्पयामास / स स्वयंवर मंडपं / / 70 // यत्र स्फटिकजागे / विचित्रोझोचबिंधनैः // विना यत्नं जवचित्र / चित्रं कस्य च कार न / ए१ // यत्र स्तंगानवष्टन्य / निश्चलांगतया स्थिताः / जनसंमर्दनीत्येव / रेजिरे स्वर्णपुत्रिकाः // 7 // चतुर्दिगितजूपानां / संमुखीजवनेन यः // यातिथ्यमिव निर्मातुं / चतुर्दारमुखोऽजनि / / ए३ // महत्वाद्यत्र मंचेषु / प्राप्तेष्वासनमुख्यतां // वर्णसिंहासनश्रेणी। बजार मु. रह्यो में एवो, // 7 // तथा नमती ध्वजाना बेडानथी दूर थयेल ने लोकोनो परिश्रम ज्यां एवो एक स्वयंवरमंम्प कारीगरोपासे कराव्यो . // ए० // जे मंडपमां स्फटिकनुं त्रुमितल बना व्यु , तेमां (जंचे बांधला) विचित्र चंद्रवानां प्रतिबिंबोथी प्रयत्नविनाज थयेधुं चित्रामण को. ने अाश्चर्य करतुं नथी? // 1 // त्यां लोकोनी गीरदीना मरथी जाणे स्तंनोने बालीने निश्चल शरीरथी रहेली स्वर्णनी पुतली शोभी रही . // 7 // चारे दिशाथी श्रावता राजाननी सन्मुख होवाथी जाणे तेजना अादरसत्कारमाटे होय नहि तेम ते मंझप चार दरवाजावाको थ यो.... / / 73 / / महोत्सव होवाथी मुख्य बासनपणाने प्राप्त थयेली खुरशीजपर रहेली स्वर्णना Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S
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________________ 130 धम्मि- कुटायितं // ए४ // दृतान् पुरुहूताना-माहानाय चतुर्दिशि // प्रैवीन्नृपोऽथ पांथानां / वसंतः मा सीकरानिव // 55 // मां पुनर्जुमिसूत्रामा / त्वामाह्वातुं न्ययोजयत् / तत्प्रसीद पुनीह्याशु / स्व शा श्रीपुरं पुरं // 76 // नृपोऽध्यायदयायुक्तं / जरसालिंगितस्य मे // चित्तमात्तव्रतस्येव / पाणि ग्रहणपाटवं // 7 // अतीतयौवनस्यापि / दृष्ट्वा विषयविप्लवं // वितनोति जरा युक्तं / पलितब. | लतः स्मितं // 7 // युक्ता शिरीषमृदंगी। सुंदरी गुणवर्मणः // अस्माकं तु दर प्रस्थ-पुटस्थपु. सिंहासनोनी श्रेणी तेलना मुकुटपणाने धारण करे . // ए४ // पठी वसंत ऋतु पंथिनने बो. लाववामाटे जेम मकरंदोने तेम राजाए नृपोने त्यां बोलाववामाटे चारे दिशाए दूतोने मोकल्या बे, // 55 // अने आपने बोलाववामाटे राजाए मने मोकडयो बे, माटे श्राप कृपा करीने था. पना चकुथी श्रीपुर नगरने तुरत पवित्र करो? // 6 // हवे राजाए विचार्य के हुं तो हवे जरायुक्त थयो बु, माटे व्रतधारीनीपेठे मारे परणवानुं मन करवू अयुक्त . // ए9 // यौवनवय वीत्याबाद पण जे विषयमां लोलुप थाय , तेनी श्वेत वाळना मिषथी जरा जे हांसी करेने ते युक्तज . // 7 // माटे ते सरसवना पुष्पसरखी कोमल शरीवाळी सुंदरी गुणवर्म कुमारने यो. PP.Ac, Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि-टितांतरा // एए // सन्मुहूर्त कुमारं त-मथ प्रातिष्टपन्नृपः // दिपाश्वरथपत्त्योध-परा तेंद्रवैन / // 1100 // प्रयाणैरनवछिन्नैः / सोऽप्युर्वी खर्वयन्निव // विनोदैर्विदुषां कृत्त-क्वमो मार्गमलंघयत् // 1 // स श्रीपुरमकूपार-पारं पोत श्वाचिरात् // अवाप प्रेरितो हृद्यैः / शकुनैः पवनैखि // 2 // २३ए कुमारमागतं श्रुत्वा / श्रीपुरप्रतुरन्यगात् // जनयित्वा जनः कन्यां / स्थाने स्थातुं लनेत कः // 2 // ग्य , अने अमोने तो हवे पबरोना समूहथी नरेला मध्य जागवाळी गुफा पाश्रय करवालायक . // एए // पनी राजाए हाथी घोडा रथ तथा पायदळना समूहथी इंद्रने पण जीती श. के तेवा गठमाउथी उत्तम मुहूर्त समये ते कुमारने प्रयाण कराव्यु. // 1100 // ते कुमार पण अनवबिन्न प्रयाणोवडे पृथ्वीने आक्रमण करतो अने विद्वानोना विनोदोथी थाकने दुर करतोय. को मार्ग नवंघवा लाग्यो. // 1 // पवनथी प्रेरायेद्धं वहाण जेम समुडने किनारे तेम उत्तम श. कुनोथी प्रेरायेलो ते कुमार तुरत श्रीपुर नगरमां थाव्यो. // 2 // हवे ते गुणवर्मा कुमारने थावेलो जाणीने श्रीपुरनो राजा तेनी सन्मुख अाव्यो, केमके कन्याने उत्पन्न करीने कोण सुखे काणे बेशी शके ने? // 3 // तेने जोवाने श्वातुर थयेली स्त्रीनना जरुखा मांथी बहार निः PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- मुखैर्गवादनिवांत-र्दिदृक्षूणां मृगीदृशां // व्योमांनोजमं तन्वन् / पुरं प्रावी विशत स तत् // 4 // | कुमारं सपरीवारं / व्यूढेऽवस्थाप्य वेश्मनि // ग्रासघासादिसामग्रीं / समग्रामप्यपूरयत् // 5 // एव. मेवं समायाताः / प्रवेश्य परमोत्सवैः // यथास्थाने न्यवेश्यंत / तेनान्येऽपि नरेश्वराः // 6 // र. 240 ज्ज्वाकृष्ट श्वासीद-त्यथ वीवाहवासरे / विदुषी व्यमृशद् द्रुप-दुहिता स्वहिताशया // 7 // सद | सत्त्वं स्वयं तातो / राज्ञां विज्ञातुमदमः // ददौ स्वयंवर ताव-न्मह्यमत्यंतवत्सलः // 7 // ये ताते. कळेला मुखोथी थाकाशकमलोना ब्रमने विस्तारता ते कुमारे ते नगरमा प्रवेश कर्यो. // 4 // पजी राजाए ते कुमारने तेना परिवारसहित एक विशाळ महेलमा उतारो थापीने तेनेमाटे जो. जन घास यादिकनी सघळी सामग्री करावी थापी. // 5 // वली एवीज रीते त्यां आवेला बीजा | राजानने पण महोत्सवपूर्वक प्रवेश करावीने तेणे योग्य स्थानके उतार्या. // 6 // हवे जाणे दोरीथी खेचायो होय नहिं तेम विवाहनो दिवस नजीक भाववाथी राजानी ते चतुर पुत्री पो ताना हितनी बाशाथी विचारवा लागी के, // 7 // मारा पिताए पोते राजाना सद्गुण अवगु. - / एने नहि जाणी शकवाथी मारापर स्नेह लावीने मारामाटे या स्वयंवर मंडप रच्यो . . // 7 // Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ धम्मि- न स्फुरचार–चनुषापि न लदिताः // गृहकोणकुटुंबिन्या / ते लट्या हि कथं मया // // अः / मी विश्वेऽपि विश्वक-मल्ला महागलोबुपाः // तदावदातनेपथ्या / दृदयंते सदृशा ज्ञ // 10 // सुबोधं हि वयोवेष-रूपायन श्वोदधेः // राजन्यकस्य दुर्बोधा / मुक्ता श्व गुणाः पुनः // 11 // 241 मया कश्चिदनिश्चित्य / निर्गुणश्चेद्वतो वरः / / तज्जातो राजमेलोऽयं / व्ययमात्रफलः पितुः ॥१शा निष्फलं जन्म नारीणां / नायके निर्गुणे ननु / तदद्य राजकं रात्रौ / प्रेक्ष्यं प्रबन्नया मया // 13 // हवे जे राजाननी मारा पिता पोताना स्फुरायमान मनोहर चक्षुथी पण परीदा न करी शक्या तेननी घरना खुणामां बेठेली हुं शीरीते परीदा करी शकीश ? // // जगतमां एक सुनटसर. खा तथा मने परणवाने लोलुप थयेला या सर्व राजा ते वखते मनोहर वस्त्रालंकारोवाळा मने तो सरखाज देखाशे. // 10 / / समुद्रना जमनीपेठे ते राजपुत्रोना नमर वेष तया रूप आदिक तो सुखे नळखी शकाशे, परंतु मोतीनीपेठे गुणोने नळखवा मुश्केल . // 11 // श्रने तेथी निश्चय कर्याविना जो कदाच निर्गुणी वर वराश् गयो तो था राजाननो मेळो फक्त मारा पिता. |ने खरचाबुज थ पडेलो गणाशे. // 15 // वळी जो खामी निर्गुणी मब्यो तो स्त्रीनो जन्म नि P.P Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 242 धम्मि- अथ सख्या सहाऽलक्ष्या-कृतिनिशि निशातधीः // राजसद्मसु सर्वेषु / बनाम ब्रमरीव सा // 14 // / मा अयं विट श्वाश्लील-वाक्पटुक्ष्यितां सखि // अयं दीव श्व स्वीय-कलागण मूर्जितः // 15 // अयं व्याल श्वोत्ताल-रोषणः प्रणयिष्वपि // अयं विप्लुतवन्न्यास्थ-दावयोर्विकृतां दृशं // 16 // | अयं ग्रामीणवदिद-गोष्टीसुखबहिर्मुखः // अयं पशुविालापं / न तनोत्यतिथावपि // 17 // वदं. फल जाय , माटे बाजे रात्रिए मारे बुपा वेशथी या सर्व राजसमूहनी परीक्षा करवी. // 13 // पजी ते बुझिवाळी कुमारिका वेषबदल करीने रात्रीए सखीसहित जमरीनीपेचे ते सर्व राजानना नतारामां जमवा लागी. // 14 // हे सखी! तुं जो? था राजकुमार तो लफंगानीपेठे गलीच नाषामांज चतुर जणाय , अने आ तो बायलानीपेठे पोतानी कलाना गर्वथीज मूर्जित थयेलो जे. // 15 // था तो सर्पनीपेठे स्नेही मां पण अति रोषवाळो , अने या तो लफंगानापेठे श्रापणापर पोतानी विकारी दृष्टि फेंके . // 16 // आ तो गाममीथानी माफक विद्वानोसाथेना वार्तालापथी रहित , अने आ तो पशुनीपेठे परोणासाथे पण कई वातचित करतो नथी.॥ // 17 // एवी रीते राजाना दोषोथी मनमां असंतुष्ट थयेली ते कुमारिका गुणवर्मा कुमारने | P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ * धम्मि- त्येवमसचित्त-तोषा दोषान्महीजुजां // सा जगाम कुमारस्य / निवासं गुणवर्मणः // 17 // चतु. / निः कलापकं // तत्र मित्रैः सह स्नेहं / दर्शयंत मनाक् स्मितैः // श्रुतामृतस्य तत्वज्ञैः / सप्रीति प्रीतमानसं / / 15 / निक्षिपंतं दृशं स्निग्धां / पादपातिषु पत्तिषु // कलावतां कलालोका-धु२४३ / न्वानं विस्मयाबिरः // 20 // सर्वालंकारसुजग-मनीघ्त्यमहासनं // बाबुलोके कुमारं सा। लू मिष्टमिव वासवं / / 21 // विनिर्विशेषकं // अहो मूर्तिरहो स्फुर्ति-रहो अस्य प्रसन्नता // ध्यायत्या इत्यसौ तस्या-श्चकारोचितगौवं / / / रिजरमणस्थान-ज्रमसंजनितश्रमं // कुमारे तत्र नतारे गइ. // 10 // त्यां मित्रोसाथे जरा हास्यपूर्वक स्नेह देखाडता, तथा शास्त्रामृतना तत्वने जाणनारानी साथे प्रीतिपूर्वक खुशथयेल मनवाळा, // 15 // नमस्कार करता नोकरीपर स्नेहयुक्त दृष्टि नाखता, कलावान लोकोनी कलान जोश्ने अाश्चर्यथी मस्तक धुणावता, // 20 // सर्व अलंकारोथी मनोहर बनेला, तथा नछता रहित महान बासनवाळा जाणे पृथ्वीपर रहेन इंड होय नहि एवा ते गुणवर्मा कुमारने तेणीए जोयो. // 21 // अहो! बानुं स्वरूप चाला. की तथा प्रसन्नपणुं केवु ! एम विचारती एवी ते राजकुमारीनो तेणे घनोज आदरसत्कार क. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S. .
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________________ साह धम्मि- साये / स्थितमालीय तन्मनः // 23 // धागादथ निजागारं / पतीयंती तमेव सा // तत्रैव स्वं / मनो मुक्त्वा / प्रियपादपरीष्टये // 24 // हारं हार्दमिव स्नेहं / दत्वा संदेशकं च सा॥स्वधात्री प्रे| षयामास / समीपे गुणवर्मणः // 25 // तेन गौरविता गाढं / विजनीकृत्य कृयवित् // सा व्याज हार नियाजं / हारहस्ता नृपांगजं // 26 // कुमार हारदंनेन / त्वत्कंठेऽस्ति निधापिता // पुत्र्या कनकवत्येयं / वरमाला रमालय // 27 // वरिष्यति दितीशेषु / प्रातस्त्वामेव सा ध्रुवं // शृणु त. o. // 12 // घणा राजाना उतारे भमवाथी थाकी गयेझुं तेणीनुं मन मनोहर वीवाळा ते गुणवर्मा कुमारप्रते स्थिर थयु. // 23 // पड़ी तेनेज पोताना स्वामी तरीके निश्चय करीने ते कु. मारीका पोताना स्वामिना चरणनी सेवामाटे पोतानुं मन त्यांज मूकीने पोताने घेरावी. // 24 // स्यारवाद पोताना हृदयना स्नेहने जेम तेम हार तथा संदेशो यापीने पोतानी एक धावमाताने ते गुणवर्मा कुमारपासे तेणीए मोकली. // 25 // ते चतुर कुमारे पण एकांते तेणीनो घणो | सत्कार कर्यो, पनी तेणीए हाथमा हार लेश्ने कपटरहित गुणवर्मा कुमारने कह्यु के, // 16 // हे खसीना स्थानरूप कुमार! मारी पुत्री कनकवतीए या हारना मिषयी तमारा कंठमां या वरमा | P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- स्या इमामेकां / विज्ञ विज्ञापनां पुनः // 2 // स्वामिन वृत्तविवाहेऽपि / कियंत्यपि दिनान्यहं // सेविष्ये ब्रह्म माजिह्म-स्नेहोऽचियानया // 25 // स्नेहश्चायं वयश्चेदं / प्रार्थना पुनरीदृशी। किं ब्रूमः सांप्रतं सर्व-मपि कालेऽवगोत्स्यते // 30 // ध्यात्वेत्युरोगिरितटी-निर्फरायितमायतं / / | दत्वा तस्मै निजं हारं / कुमारः प्रत्यवोचत // 31 // वचनं जीवितेश्वर्या / वयं तस्याः कदाचन // न बुप्स्यामस्ततः स्वस्था / सापि खस्थानमासदत् // 35 // मेने हारः सनोहार -श्वेतशीतलमौ. ला आरोपी ने. // 27 // प्रगाते ते खरेखर सर्व राजा-मां बापनेज वरशे, परंतु हे चतुर! ते. णीनी एक विनंति आप-सांजळो? // 20 // हे स्वामी ! विवाह थयावाद पण केटलाक दिवसोसुधि हं ब्रह्मचर्यव्रत पाळीश, मारी या मागणीथी थापे मारापर स्नेह घटामवो नाद. // 5 // श्रावो स्नेह! यावी यौवनवय! अने प्रार्थना पानी यावी रीतनी! माटे अमो हाल शुं कहीये? अवसरे सघg जणा रहेशे. // 30 // एम विचारीने पोताना हृदयरूप पर्वतमां नदीना करणा| सरखो एक मोटो हार तेणीने देश्ने कुमारे कडं के, // 31 // ते प्राणप्रियानुं वचन अमो कटी / पण नथापीशुं नहि, ते सांगली शांत थयेली ते धावमाता पोताने स्थान के प्रावी. // 32 / / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 246 धम्मि- क्तिकः // राजकन्या वियोगिन्य-नला निहितो हृदि / / 33 // दृताहूतमय प्रातः / शुन्यदंनो मा घिसन्निनं // राजन्यकं विवेशांतः / स्वयंवरणमंमपं // 34 // मंचेषु सप्रपंचेषु / पंचेषुसममूर्तयः // सिंहासनानि नामांका-न्यध्यास्यंत नरेश्वराः // 35 // अस्थायि मंचमारूढे / निध्याते गुणवर्मणि // अपि मुक्तविवाहाशैः / दिनिपैः सत्रपैखि // 36 // तदा स्नातविलिप्तांगी। धृतसर्वांग वृषणा।। वाह्य यानमारूढा / निगूढानंगविन्रमा // 37 // पुरः प्रियसखीहस्त–विन्यस्तवरमालिका | पृष्टे बरफजेवां श्वेत अने शीतल मोतीवाळा ते हारने हृदयमा धारण करीने ते राजकन्या कुमारना वियोगथी तेने अमिशस्त्रसरखो मानवा लागी. // 33 // हवे प्रजाते दोभ पामेला समुऽसरखा स्वयंवर मंडपमां दूतोमारफते बोलावेलो राजाननो समूह दाखल थयो. // 34 // त्यां गोठवेली खुरशोनपर रहेला पोतपोताना नामना सिंहासनोपर कामदेवसरखी मूर्तिवाळा राजानं यावीने बेग. // 35 // पजी ज्यारे गुणवर्मा कुमार खुरशीपर बेग त्यारे तेमने जोवाथी बीजा राजान तो जाणे लड़ा पाम्या होय नहि तेम (पोताना) विवाहनी आशा बगेडी बेठा. // 36 // ढवे * | ते समये स्नान कर्याबाद शरीरे सुगंधी लेप करीने, सर्व शरीरपर या ऋषणो धारण करीने पुरुषों | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 247 धम्मि- गीतगुणा स्त्रीजिस्तत्रागान्नृपपुत्र्यपि // 30 // युग्मं // का श्रीः का जारती रंना / रती वा के साथ यतः परे // ध्यायतामिति नृपानां / पेतुस्तत्र समं दृशः / / 35 // श्यं भवतु वा मा वा / कि वस्या दर्शनेन नः // दूराध्वश्रमसाफल्य-मासीद्दध्युपा इति // 40 // ततो ज्ञाताखिलमापनामस्थानगुणान्वया // व्याजहार प्रतीहारी / कुमारीमियुदारवाक् // 41 // रूपसंपङितानंगा / एचकेली पालखोमां बेग्ली तथा गुप्त कामविलासोवाळी, // 37 / / अगामी चालती प्रिय स. खीना हाथमां आपेली ने वरमाला जेणीए एवी, पाठ रहेली स्त्रीन जेणीना गुणो गा रहेली ने एवी ते राजकन्या पण त्यां यावी. // 30 // था कुमारीशिवाय वळी बीजी लक्ष्मी, सरस्वती, रंभा के रती कोण हशे? एम विचारता ते सर्व राजानी दृष्टि एकीवखते तेणीनापर पडी. // // 30 // या कन्या नले आपणने मळो अथवा न मळो परंतु याना दर्शनथीज पापणो दूर देशशी भाववानो श्रम सफल थयो , एम ते राजा मानवा लाग्या. // 40 // पनी सर्व रा. जाननां नाम स्थान गुण तथा वंशने जाणारी वाचाल प्रतीहारी ते राजकुमारोने कहेवा लागी के, / / 41 // रूपनी संपदाथी कामदेवने जीतनारा या सर्व राजा श्राधमां जेम ब्राह्मणो तेम P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- अमी श्राफ व विजाः // नृपा समुदीताः सर्वेऽप्यत्र वल्लाभकाम्यया // 42 // अमुमेतेषु निःमा शेष-हेषिशाखिदवानलं // मालवेशं महीपालं / महाशालं निजालय // 43 // तपनातपती बेण / यत्प्रतापेन पीमिताः // वसंति सततं शीत-बाये वैरिनृपा वने // 4 // श्वन समाये बंधुरस्कंधे / सत्पत्रे सुमनःप्रिये // बालेऽमुष्मिन् महाशले / वल्लीवलीयसे न किं // 45 // | यथेष मालवेशस्त-धुरि राज्ञां कथं स्थितः // उपहासपरामेवं / कन्यां प्रोवाच सा पुनः // 46 // अहाँ तने मेळववानी बायी एकठा थया ने // 42 // या सर्व राजा-मां सर्व शत्रुनरूपी वृ. दोने बाळवामां देवानल सरखा माव्वाना महाशाल राजाने तुं जो? // 43 // सूर्यना तापसरखा जेना तीव्र प्रतापथी खेद पामेला वैरी राजान हमेशां शीतल गयावाळां वनमां जश् रहेला ने. // 4 // उत्तम याकारवाला (गयावाला), मनोहर खजावाला ( स्कंधवाला), संतोनुं रक्षण करनारा (सारां पत्रोवाला) विद्वानोने प्रिय (पुष्पोवडे प्रिय लागता) एवा या महा. दासरखा महाशाल राजापते तुं वल्लीनीपेठे शामाटे वीटाती नयी ? // 45 // जो था ' मालवे| श' एटले लेशमात्र लक्ष्मीनो स्वामी ने तो पनी राजानमा ते अगामी थइने शामाटे बेठो ने ? PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ १४ए T धम्मि- पश्चाप्रौढरणारूढे / यः स्वं धनुरनामयत् / / पूर्वमेव नमंतिस्म / शिरांसि रिपु नुजां // 4 // त. | मेनं नाथमंगानां / सिंहं सिंहौजसं वृणु / अस्तु चंपाधुनाऽदृष्ट-कुहका त्वन्मुखेंदुना // 4 // सा प्रोचे नन्वयं घर-धुर्योऽहं त्वबला पुनः // धीरकातरयोर्योगः / कियनंदति चिंतय // 4 // साथ गत्वाग्रतोऽवादी-दयं बाले महाबलः / मगधाधिपतिः कीर्ति-मुखरीकृतमागधः // 50 // येएवी रीते हांसी करनारी ते राजकन्याने वळी फरीने ते प्रतीहारीए कह्यु के, // 46 // जेणे म. हारणमां चमीने पोतानुं धनुष्य तो हजु पाबळथी नमाव्युं, पण तेनी पहेलांज शत्रुराजानां मस्तको तो नमी पड्यां बे, // 4 // ते या सिंहसरखा तेजवाल अंगदेशना सिंह नामना राजाने तुं वर? के जेथी तारां मुखरूपी चंवडे करीने चंपा नगरी हवे अमावास्यारहित थाय. // // 4 // त्यारे राजकुमारी बोली के था तो सुगटोनो अग्रेसरी ने, अने हुँ तो अबळा वं. माटे हे प्रतिहारी! तुं विचार के शूरा भने कायरनो संयोग केटझुक नगी शके ? // 45 // त्यारे ते प्रतिहारी आगल जश्ने बोली के हे बाला ! जेनी कीर्ति भाटलोको गाइ रह्या ने एवो या मा ... | ध देशनो महाबल नामे राजा बे. // 50 // आ राजाए राजगृह नगरनुं राज्य एकत्र करीने P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि न राजगृहैश्वर्य-मेकलत्रं वितन्वता // लोकेऽप्यनुगृहं राज-गृहता विहिता श्रिया // 11 // तः / मा व्येव स्वजाश्लेष-सुखी मंच विधीयतां // साप्यूचे ताततुल्योऽयं / मम प्रणतिमर्हति // 5 // ततोऽग्रतो गता साऽवक् / कासीवासी कलानिधिः / वीरसेनो रसेनायं / वियतामुचितस्तव // 13 // 250 आसमुहं गता शंख-श्वेता विबुधवाजा // अस्य कीर्तिश्व गंगा च / पुनीतः सकलामिला / / // 55 // यो देहेनेदृशः कृष्ण-स्तद्नुः कीर्तिः कथं सिता / कुमार्येत्युदिते प्रोचे / प्रतीहारी ग लक्ष्मीवडे लोकोना दरेक घरमां राजाना घरोजेवू करी दीधुं . // 51 // माटे हे तन्वि! आराजाने तुं पोतानी लुजाना आलिंगनथी तुरत सुखी कर? त्यारे कनकवती बोली के या तो मारा पितासरखो , माटे मारे ते नमवा योग्य . // 5 // पछी बागळ जश्ने तेणी बोली के पा कलार्जना भंडारसरखो वीरसेन नामनो काशीनो राजा तने लायक , माटे तेने तुं रसपूर्वक व. र? // 3 // क समुद्रसुधि पहोंचेली, शंखसरखी नजळी तथा पंमितीने (देवोने) वहाली एवी तेनी. कीर्ति बने गंगा बन्ने समस्त पृथ्वीने पवित्र करे . // 55 // या शरीरे तो भावो का ले स्यारे तेनी कीर्ति सफेद क्याथी थ? एम राजकुमारीए कहेवायी प्रतिहारी आगळ चालीने बो. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- ताग्रतः / / 55 // पिपर्ति संपदो यस्य / कोशाध्यद वोदधिः // सोऽयं सूरः सुराष्ट्रायाः / पतिरा श्रियतां पतिः // 56 // शत्रुजयोऊयंताख्ये / दूरगव्यैरासदे / / पत्यानेन सुखेन त्वं / महाती थै प्रणस्यसि // 27 // सावदद्यांति सौराष्ट्रा / निशि निद्रासुखं कथं // येषां संनिहितः कर्ण-स्फो. 251 ट्घोषः सदोदधिः // 27 // सर्वानेवं प्रतीहारी। व्याचचक्षे दमानुजः // चुकुन्ने न पुनर्वाला / खलयाद्योगिनीव सा ॥रणा अबायेव सा कन्या / यमुपेयाय सोऽतुषत् // यं मुमोच पुनः सो. लीके, // 25 // नंडारीनीपेठे जेनी संपदाने समुद्र पूरी पाडे, ते था सुराष्ट्र ना सूरराजाने तुं पोताना स्वामीतरीके स्वीकार? // 56 // वळी या स्वामीनी साथे तुं दूरजव्योने लन एवा शत्रु जय अने गीरनार नामना महातीर्थोने सहेलाथी नमी शकीश. // 57 / / त्यारे कनकवती बोली के कान फोडी नाखे एवा शब्दवाळो समुद्र जेनी नजीकमां रहेलो एवा सुराष्ट्रना लो. को सखे निद्रा पण केम करी शके ? // 50 // एवी रीते प्रतिहारीए सर्व राजानुं वर्णन कर्य, परंतु ते राजकन्या योगिनीपेठे पोताना निश्चयथी चलित थ नहि. // 55 // वादळांनी गया. | नापेठे ते कन्या अहिं जेनीपासे आवो ते खुशी थवा लाग्यो, परंतु जेने गेमवा लागी ते खे . Jun Gun Aaradhak Trust . P.P.AC. Gunratnasuri M.S.
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________________ सार्थ 252 रो वैलि धम्मि- ऽत्र / नृपः खेदमुपागतः // 60 // क्रमागतं कुमारेंड-मुद्दिश्याथ जगाद सा / / गौरांगि गुणवानेष | | गुणवर्मावगम्यतां / / 61 // दृढधर्मकुलव्योम–सोमः कोमलगीरसौ / कलाविलासः प्रीत प्रणयिस्वांतकैरवः // 6 // अस्यास्यशशिनि श्याम-परिवेष श्वेदितः // श्मश्रूनेदोऽज्जवदीति-क| रो वैरिकुलेऽखिले // 63 // विशालं विदधे वदो / यस्य धाता धियां निधिः / सुखवासाय विद्या नां / विनयादिगुणैर्युजां // 64 // विधित्ससि विधेः सृष्टि-साफल्यं चेदिचदणे / / संगवस्त्र वरारो. द पामवा लाग्यो. // 60 // हवे अनुक्रमे थावेला गुणवर्मा कुमारने नद्देशीने प्रतीहारी बोली के, हे गौर शरीरवाळी ! आने तारे गुणवर्मा नामे गुणवान राजपुत्र जाणवो. // 6|| आ कुमार दृढधर्म राजाना कुलरूपी याकाशमां सूर्यसमान, कोमल वाणीवाळो, कलाउने विलास करवानी चुमिसरखो तथा स्वजनोना हृदयरूपी कैरवने खुश करनारो . // 6 // पाना मुखरूपी चंद्रनी यासपास रहेला श्याम कुंमाळांजेवी देखाती दहाडीमुनी नत्पत्ति सर्व वैरीनना समूहने गय करनारी थ. येली . // 63 // विनयादि गुणोवाळी विद्यानने सुखे रहेवामाटे बुधिशाळी विधानाए था कु. मारनुं वदःस्थल विशाल बनाव्युं . // 64 // हे उत्तम अने विचक्षण स्त्री! जो तुं विधातानी P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- हे / रोहिणी वेंदुनामुना / / 65 // बाला प्रोक्तेति हर्षाश्रु-पूरप्लावितलोचना / / स्वयमुत्कंठिता के | ते / तस्याक्षेप्सीदरजं // 66 // अहो सुष्टु वृतं सुष्टु / वृतमित्युलसकिरः / तत्र विद्याधरा व्यो. म्नः / . पुष्पवृष्टिं वितेनिरे / / 67 // . 253 अथातितामितातोद्य-ध्वनिध्वनितदिगाणे // गौरांगीगीयमानाय्य-धवलश्रेणिबंधुरे // 6 // वनावसंगतं सादी-कृत्य तद्राजमंडलं // कुमारेणोत्सवैः पुती / श्रीषेणः पर्यणाययत् / / 65 / / सृष्टि सफल करवाने श्वती हो तो चंडसाथे जेम रोहिणी तेम पानीसाथे तारो संगम कर ? / / // 65 // एवी रीते प्रतिहारीए कह्यामद हर्षाश्रुना समूहथी भीजाएली अांखोवाळी ते कुमारिका. ए पोतेज नत्कंठित थश्ने ते गुणवर्मा कुमारना कंठमां वरमाळा नाखी. // 66 // अहो! ठीक वरी, तीक वरी, एम मोटेयी बोलता विद्याधरोए त्यां याकाशमाथी पुष्पवृष्टि करी. // 67 // हवे मोटेथी वगाडेला वाजितना नादोथी दिशानो समूह गाजते बते, तथा मनोहर स्त्रीनं मनोज्ञ गीतोनी श्रेणि गाते बते / / 60 / / प्रसंगे मळेला ते सर्व राजाजना समूहन सा दीए श्रीषेण राजाए महोत्सवपूर्वक पोतानी पुत्रीने ते गुणवर्मा कुमारसाथे परणावी. // 65 // Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ धम्मि युग्मं // गजाश्वस्वर्णरत्नाद्यं / यद्यऽम्यं रसातले // अदान्मुदा तदा तत्तत् / कुमाराय नरेश्वरः / / मा // 70 // उद्मनानेन नः सिद्धं / देशदर्शनमित्यलं // प्रीताः परेऽपि सत्कृत्य / विसृष्टास्तेन जूनुजः // 71 / / कुमारः कतिचित्तत्र / स्थित्वाहानि न्यवर्त्तत // वधूमादाय रत्नाडे-खि लब्धमणिर्वणि 254 क् // 72 // सह दत्वा प्रयाणानि / कतिचित्सप्रियो नृपः // निवृतो रुदती पुत्री-मंके कृत्वैवम. न्वशात् // 13 // अन्युबानं गृहायाते / पत्यौ तस्यासनार्पणं // शयनं शयिते तत्र / शय्यात्यागहाथी, घोडा स्वर्ण तथा रत्न श्रादिक था दुनियामां जे जे मनोहर वस्तु हती, ते ते राजाए हर्षथी ते गुणवर्मा कुमारने अापी. // 50 // आ मिषयी आपणने था देश जोवाणो ते पण ठीक थयु, एम धारी संतोष मानता बीजा राजानने श्रीषेण राजाए सत्कारपूर्वक विसर्जन कर्या. // 71 // हवे ते गुणवर्मा कुमार त्यां केटलाक दिवसो रहीने वणिक जेम मणिन मेलवीने र. लाFिथी तेम पोतानी पत्नीने लेश्ने त्यांथी पागे वख्यो. // 72 // राणी सहित राजा पण केटलीक मजल तेनी साथे भावीने पाग वळती वखते पोतानी पुत्रीने खोळामां लेश्ने भावी रीते शिखामण देवा लाग्यो. / / 73 // पति ज्यारे घेर आवे त्यारे नना थर तेनी सामे जवू, तथा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 255 डुमनद्यााद धम्मि- स्तदग्रतः // 14 // तत्प्रसादेऽप्यनुत्सेक-स्तदन्यैरप्रजल्पनं // परवेश्मन्ययानं चा-संकृतियोपितो मियं / / 75 / / युग्मं / / श्वश्रूसुश्रूषणं गर्तृ-क्तिः स्वजनरंजनं // गर्तृमित्रेषु च प्रीति-रिति री तिर्मगीदृशां / / 76 // श्मां प्राप्य पितुः शिदां / सुश्रीमिव चचाल सा // पत्या विनोद्यमानादि| अमनद्यादिदर्शनैः // 70 // समं सैन्यैरतिकाम -नध्वानं प्राप पनुः // स्नेहादभिमुखायात-मिव डाग हस्तिनापुरं // 70 // अनुरागात्तमन्यांगा-ज्जनको जनकोटियुक् // शीतांशावुदिते वार्डः तेने आसन आपq, तेना सुताबाद सुवं, तथा तेनी पहेला जठवू. // 14 // पतिनी घणी महेरबानी थाय तो पण घणो नत्सेक करवो नहि, तेना शिवाय अन्य पुरुषोसाथे बोलवू नहि, अने परघर जq नहि, ए स्त्रीनने शोगावनारां . // 35 // सासुनी सेवा करवी, जरिनी नक्ति के | खी, स्वजनोने खुशी करखा, तथा पोताना जरिना मित्रोपते प्रीति राखवी, ए स्त्रीनन रीत में. // 16 // एवी रीतनी उत्तम लक्ष्मीजेवी पितानी शिखामण ग्रहण करीने ते त्यांथी चालवा लागी. तथा पति तेणीने मार्गमा पर्वत, वृक्ष तथा नदी आदिक देखामीने विनोद कराववा लाग्यो / | // 7 // सैन्यसहित मार्ग जेलंगतो ते राजपुत्र स्नेहथी जाणे सन्मुख अाव्यु होय नहि तेम ते / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 256 धम्मिः / किं स्थानस्थोऽवतिष्टते // Hए // स्तुमः कुमारं यस्येयं / जाया जातेति पूरुषैः // यस्याः पतिरयं | माई धन्या / सा कन्येत्यंगनाजनैः // 70 // वमाने समानेनो-बापेनैकमुखैरिव // प्रावेशयन्नृपः | सूनु-स्नुषे नृत्यध्वजं पुरं // 1 // युग्मं // शय्यासनधनैर्युक्ते / पृथग्वेश्मन्यतिष्टिपत् // कांता | मेकांतरक्तोऽपि / कुमारः सत्यसंगरः / / 72 // क्रीड्यते सा कुमारेण / दिवसे ववशेव सा॥ नितुरत हस्तिनापुरमां बावी पहोंच्योः / / 3 || ते वखते तेनो पिता पण स्नेहथी क्रोमोगमे मनुध्योसहित तेनी सामे याव्यो, केमके चंद्र नगते बते समुफ शुं स्थिर रही शके ? | 0 | ते कुमारनी अमो स्तुति करीये बीये के जेनी या पत्नी थने एम पुरुषोथी, तथाजेणीने या पति मब्यो ने ते कन्याने पण धन्य जे. एम स्त्रीनथी॥ 70 // मानसहित वचनोवडे अनेक मु. खोथी वर्णवाते बते नळती ध्वजा वाळा नगरनी अंदर राजाए पुत्रवधूने प्रवेश कराव्यो. // // 1 // हवे एकांत रक्त एवा पण कुमारे पोते करेली प्रतिज्ञा पाळीने पोतानी ते प्रियाने श य्या, श्रासन तथा धनथी युक्त थयेला जुदाज घरमा राखी. // 2 // दिवसे तो कुमार पोतानी .. / स्त्रीनीपेठेज तेणीनी साथे क्रीडा करे , परंतु रात्रीए हमेशां परस्त्रीनीपेठे तेणीने मुकी दे जे. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. * Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- शि दुरे परस्त्रीव / मुच्यतेस्म पुनः सदा // 3 // आदित्योदयतोऽन्येा-विद्यागोष्ट्या विनोद्य तां // स्वसौधमध्यमध्यास्त / मध्याह्ने नृपनंदनः // 7 // तत्र स्नातः समन्यर्थे / जिनान् परिज नान्वितः / स यावद् बुभुजे ताव-द्योगी कश्चिदुपाययौ // 5 // नस्मना पांमुरं हस्त-व्यस्तदंड२७ कममधं // दीपित्वग्वसनं प्रेत-नेतारमिव तं पुरः // 6 // वीदया येत्य कुमारेंडः / प्रीतिप्रणति पूर्वकं // सहसागमने हेतुं / पृबतिस्म सविस्मयः / / 77 // युग्मं // सोऽवादीदाह्वयत्यद्य / गुरुर्मम // 3 // एक दिवसे ते राजकुमार सूर्योदयथा मांझीने विद्यागोष्टीवडे तेणीने खुशी करीने बेक मध्याह्न समये पोताना महेलमां श्राव्यो. // 4 // त्यां स्नान करी प्रभुने पूजीने ते परिवार सहित जेवामां जमवा बेसे वे तेवामां त्यां कोक योगी आव्यो. // 5 // जस्मथी पांमुर बनेला, हाथमां दंड बने कमालुवाळा, व्याघचर्मना वस्त्रवाळा तथा प्रेतोना नायकसरखा / / 76 // ते योगीने पोतापासे आवेलो जोश्ने कुमारे सामा आवी प्रीतिथी प्रणाम करीने आश्चर्ययी त्यां अ. चानक श्राववानुं कारण पूज्यु. // 7 // त्यारे ते बोव्यो के हे वीर ! वनमा रहेला मारा गुरु से रखाचार्य बाजे तमीने त्यां बोलावे , परंतु तेनुं प्रयोजन हुं जाणतो नयी. // 7 // एम कही. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सार्थ 257 धम्मि- वने स्थितः // त्वां वीर नैरवाचार्यः / कार्यतत्वं तु वेद्मिन // 7 // इत्युदित्वा निवृत्तं त-मनु गम्य नृपात्मजः // प्रातरायात एवाय-महमिति लपन स्थितः // 5 // युग्मं // कोऽयं योगी किमावानं / ममेत्यूहं वितन्वतः / / कथंचिदतिचक्राम / तस्य सर्वापि शर्वरी / / 50 // अथोदिप्त श्वामुष्य / मनोरथवरत्रया / जबति सहस्रांशौ / जगौ मंगलपाठकः // 1 // वीर ध्वांतरिपु: ध्वंसा-न्मित्रस्योदयदानतः // ददत् पूर्वामुखे रागं / जातः प्राजातिकः दाणः // 12 // ततः दमापसुतस्त्यक्त-तल्पः स्वल्पपरिबदः / प्रातस्त्यं कर्म निर्माय / निर्मायः स ययौ वनं // 13 // अ. ने पाग वळेला ते योगीनी पानळ जश्ने राजपुत्र बोल्यो के हुँ प्रभातमांज त्यां जरुर अावीश. // 79 // था योगी कोण हशे? मने तेणे शामाटे बोलाव्यो हशे? एम विचार करतां थकांज केटलीक मुशीबते तेनी सर्व रात्रि पसार थ. // 50 // हवे जाणे ते गुणवर्मा कुमारना मनो. रयरूपी दोरीथी जंचो खेचायो होय नहि तेम सूर्य नगते बते मंगलपाठक बोल्यो के, // 1 // हे वीर! अंधकाररूपी शत्रुना नाशथी तथा सूर्यने ( मित्रने ) उदय देवाथी पूर्व दिशाना मुख। मां रंग देतो प्रजातनो समय थयो . // 2 // ते वखते ते निष्कपटी राजपुत्र बिगन गेमीने | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि| मिलिप्ता व जटाः / कपिशा मूर्ध्नि विव्रतं // जपसग्मणिसंचार-व्यग्रदक्षिणपाणिकं // ए४ // ब. / छपद्मासनं रत्न-रोचिःसंकोचिलोचनं / स तत्र नैरवाचार्य-मार्यबुधिखंदत / / 55 // युग्मं ॥था शीः पूर्व ददद्योगी। व्याघ्रचर्मासनं निजं // नाहं पूज्यासनस्याहः / कुमारणेत्यवार्यत // 6 // 255 निविश्य भृत्यमुक्तेऽथो-तरीये योजितांजलिः // प्रजो नियुंदव मां योग्ये / कर्मणीति जगाद सः // 7 // बालापगोचरीचक्रे / योगतं गीतविक्रमं / हृदि नस्त्वं निविष्टोऽसि / वार्ता चर्मासन| प्रानातिक कार्य करीने स्वल्प परिवारसहित वनमा गयो. // ए३ // जाणे अमिथी लेपायेला होय नहि तेम पिंगळी जटाने मस्तकपर धारण करनारा, जपमालाना मणका फेरववामां रोकायेल ने जमणो हाथ जेनो एवा, // ए४ // पद्मासन वाळीने बेठेला तथा रत्ननी कांतिसरखा संकोच पामेला नेत्रोवाळा ते भैरवाचार्यने त्यां शुरू बुध्विाळा ते राजकुमारे वांद्या. // 55 // श्राशीर्वा. दपूर्वक पोतानुं व्याघचर्मर्नु अासन देनारा ते योगीने हुं आप पूज्यना धासनने योग्य नथी. एम कही ते कुमारे तेम करतां अटकाव्या. // 76 // पनी पोताना नोकरे मुकेला दुपट्टापर बे. | शीने हाथ जोमीने कुमार बोल्यो के हे प्रतु ! मने योग्य कार्यमा जोडो? // // पजी प्रसि. Jun Gun Aaradhak P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ धम्मि- स्य का // 4 // श्रुताचारधनौदार्य-शमस्थाम्नां विनेदविद् // लोकोत्तरत्वं वक्त्येषा / कृतिनाक तिरेव ते // ए // वज्रदंमौ दिषां कंठे / पद्मनालोपमौ सतां // विव्रतस्ते जुजो शेष-शोगां जु. भारधारणे // 1200 // परार्थैकधियो धन्या / मध्यास्तु स्वार्थसाधकाः // न परार्थ च न स्वार्थ / 160 साधयंत्यधमाः पुनः / / 1 // धनं कापि यशः कापि / पुण्यं कापि ययाक्रमं // नीचपध्योत्तमैः प्रा. छ परात्र मवाळा ते कुमारसाथे योगीए वात शीरु करी के, हे कुमार तुं तो घमारा हृदयमांज बेगे, तो पजी या चर्मासननी तो वातज शुं करवी? // 7 // वळी हे कृतार्य! या तारी प्रा. कृनिज ज्ञान, आचार, धन, नदारता, शांतता, तथा परात्र मना भेदविनानुं तारुं लोकोत्तरपणुं सू. चवे . // ए // शत्रुना कंठपर वज्रदंडसरखा तथा सऊनोना कंठपर कमलनालसरखा तारा बन्ने हाथो पृथ्वीनो भार धारण करवामां शेषनागनी शोभाने धारण करे . // 1200 // उत्तम मनुष्यो एक परोपकारनीज बुध्विाळा होय , अने मध्यम मनुष्यो स्वार्थ साधनारा होय . प रंतु अधम मनुष्यो तो परमार्थ के स्वार्थमानुं कई पण साधी शकता नथी. // 1 // नीच मध्यम | अने उत्तम पुरुषो अनुक्रमे नपकाररूपी वृदाना फलरूप क्यांक धन क्यांक यश अने क्यांक पु. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- N-मुपकारतरोः फलं // 2 // तप्तविके थपि स्वर्ण-मौक्तिके जगतः श्रिये / / सौरन्यहेतू श्रीखमा -गुरू क्षुप्लोपधावपि // 3 // रसाय पीमितोऽपीकु-धमप्यंबु शस्यकृत् / / भृशं कुसुंभमंजिष्टे / रंगा य क्षुमखंमिते // 4 // धान्याय नहलैः कृष्टा / रत्नेन्यो मथितोबुधिः // परार्थनिरताः संतः। स्वं | दुःख गर्यति न // 5 // शृणु सौम्य ममास्त्येको / मंत्रः सजुरुणार्पितः / / यं मे साधयतोऽगद्वत्स संवत्सरीष्टकं // 6 // अथैकरजनीसाध्या / सिधिस्तस्यावशिष्यते / / सा च सत्त्ववदायत्ता / न यनी मागणी करे . // // स्वर्ण अने मोतीने तपाब्याथी तथा वांध्याथी पण जगतने पा. नुषणरूप थाय बे, तेमज चंदन अने अगुरु घस्याथी तथा बाव्याथी पण सुगंधना हेतुरूप थाय जे. // 3 // सेलडी पील्या बता पण रस आपनारी थाय , बांधेलु जल पण धान्य नीपजावनाएं थाय ने तेम कसुबो बने मजीठ अत्यंत कचर्याथी तथा खांड्याथी रंग यापनारां थाय . // 4 // हलोथी खेडेली पृथ्वी धान्य देनारी थाय , मथेलो समद्र रत्न यापनारो थाय बे, एवी रीते परोपकारमा रक्त थयेला पुरुषो पोतार्नु दुःख गणकारता नयी. // 5 // हवे हे सौम्य ! तुं सांग ल? मारी पासे सजुरुए आपेलो एक मंत्र के जे मंत्रने साधतां थका हे वत्स ! मारां आठव P.P. Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- स कोऽपीदितः दितौ // 7 // अद्य त्वयादिते सत्त्व-वतां सीमनि मे मनः // मनाक्सौम्य समा. धत्त / दृष्टार्कमिव पंकजं // 7 // तघीर धीयतां साधू-तरसाधकतां तथा // मंत्रसिधिश्व कीर्तिश्च / मां च त्वां च यथांचतः // // कुमारोऽवग् नृकीटस्य / ममालं श्लाघयानया / आदिशध्वं य. 262 तिष्ये वः / क कदा कार्यसिधये // 10 // अस्यां कृष्णचतुर्दश्यां / तिथौ यामे गते निशः // स्म. o व्यतीत थयां . // 6 // हवे फक्त तेनी सिहि थवामाटे एक रात्रि बाकी रहे, परंतु ते मः हाहिम्मतवान पुरुषने आधीन बे, अने तेवो हिमती माणस को पण पृथ्वीपर देखातो नथी. // 7 // परंतु हे सौम्य ! हिमतवानोमां शिरोमणि एवा तने आजे जोवायी सूर्यने जोवाथी जेम कमल तेम जरा मारा मनमां समाधान थयुं . // 7 // माटे हे धीर पुरुष! तुं मारुं उत्तरसाध. | कपाणु एवी नत्तम रीते बजाव के जेथी मंत्रसिधि मने अने कीर्ति तने शोजावे. // ए // त्यारे गुणवर्मा कुमार बोल्यो के हे योगीराज! मारी मनुष्यरूप कीडानी बाटली बधी श्लाघा करवानी कई जरुर नथी, परंतु कहो के क्यां घने कये समये आपना कार्यमाटे हुं प्रयत्न करूं? // 10 // | ( त्यारे योगी बोल्या के ) हे सौम्य ! था कृष्ण चतुर्दशीने दिवसे पहोर रात्रि गया बाद त्रण * P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि-| शानेऽहं समेष्यामि / सौम्य शिष्यत्रयान्वितः // 11 // तत्रागम्यं त्वयापीति / पीतवान् योगिनो वः / | चः // मित्युक्त्वा तदादेशा-द्ययौ स स्वं निकेतनं // 15 // युग्मं // नियावय चतुर्दश्यां / कृ. तदैवसिकक्रियः // निर्दोषः स प्रदोषेऽधा-दंठवेषमकुंठधीः // 13 // अननुशाप्य पितरा-वनापृ. 263 ज्य सखीनपि // सोऽलक्ष्यस्तमसा खा-सहायो निर्ययो गृहात // 14 // अशूकशाकिनीकेलि कंदुकन्नरमस्तकं // एकरुंडार्थसंवाद-दायादायितरादासं // 15 // कपालिपालिनिर्मत्र-सिध्यै शिष्योसहित हुं श्मशानमां श्रावीश, // 11 // माटे तारे पण त्यां श्रावq. एवी रीतनो तेनो ह. कम स्वीकारीने ते राजकुमार पोताने घेर गयो. // 12 // हवे चतुर्दशीने दिवसे देवसिक क्रिया करीने ते निर्दोष अने तीदणबुध्विाळा गुणवर्मा कुमारे मल्लजेवो वेष धारण को. // 13 // 1. जी ते मातपिताने पण जणाव्याविना थने मित्रोने पण पूज्या विना अंधारामां कोश्ना पण ल. दमां न आवे एवी रीते खा लेश्ने घेरथी निकल्यो // 14 / / कंश पण सूगविनानी शाकिनी. माटे क्रीडा करवाना दडासरखी ने मनुष्योनी तुंबडीन ज्यां, तथा एक कलेवर लेवावाटे पितराइ. | योनीपेठे पाचरण करता ने रादसो जेमां, // 15 // कापालिक योगीनए मंत्रसिधिमाटे मुमदां. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aarac
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________________ धम्मि निरसुवर्मसु // ध्रियमाणेषु माशैः / फेरमैः कृतविश्वरं / / 16 // पारे पुरमसौ सत्व-संगतःस. त्वरं गतः / / प्राप प्रेतवनं रंक-करकशतसंकुलं / / 17 // निनिर्विशेषकं / / आगबागल वत्सेतिवादिने प्राप्तपूर्विणे // तत्रातहोमविधये / योगिने समगस्त सः // 10 // योगी तं स्माह मन्मंत्रसिधिस्तव वशंवदा // ऋदाकारनिदाका / एव शिष्या अमी मम // 17 // स स्माह यूयं मा भैष्ट / विघ्नेन्यो मयि रदके // स्वाधिने गरुडास्त्रे किं / जवेनौजंगमं जयं // 20 // कुमारं दिशि नने ले लेवाथी निराश थयेला शियाळीयानना पोकारवाळ // 16 / / तथा सेंकळोगमे रंकोना मुमदांनथी भरेबुं एवं नगरनी बहार रहेछु जे प्रेतवन तेमां ते हिम्मतवान राजकुमार तुरत गयो. // 17 // वत्स! पाव श्राव? एम कहेता तथा हवननो सरंजाम लेश्ने तेनी पहेलांज त्यां गयेला एवा ते भैरवनाथ योगीने ते मव्यो. // 17 / / पजी योगीए तेने कह्यु के मारा मंत्रनी सिछि तारे याधीन , या मारा शिष्यो तो इंद्रनो वेष धरनारा निखारीसरखाज . // 15 // त्यारे गुणवमां कुमार बोल्यो के ज्यांसुधि हुँ उत्तरसाधक ढुं त्यांसुधि तमारे विघ्नोथी डर्बु नहि, केमके जो | गरुमात्र स्वाधीन होय तो पनी सर्पनो जय शुं होश् शके ? // 20 // पनी ते योगीराजे उत्तर P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- कौबेर्या / करवालकरं ततः // योगी तिसृषु काष्टासु / शिष्यांश्च त्रीनतिष्टपत् / / 21 // स्वयं च मं डलं कृत्वा / शवमंतर्यवेशयत् / / अज्वालयच्च ज्वलनं / तस्य कुंड श्वानने // 1 // अनुचमुच्चरन् मंत्र / स्वतंत्रोऽत्र जुहाव सः / पुष्पाणि कवीरस्य / गुटिका गुग्गुलस्य च // 23 // तं ततः | शाकिनीरदो-तोता विजीषिका // वात्या श्वाचलं पादैः / समं शिष्यैर्न उडुवुः // 24 // घोरघोषोऽथ निर्घात-स्तस्याग्रे सहसाजवत् // ब्रह्मांडजिगिरिभ्रंश-वज्रपातसहोदरः // 25 // दिशामां हाथमां तलवारसहित ते राजकुमारने, तथा बीजी त्रण दिशा-मां पोताना ते त्रण शि. ष्योने स्थाप्या, // 21 // अने पोते ममल करीने तेनी अंदर ( मनुष्यनुं ) एक शब राख्यु, तथा जेम कुंममां तेम ले शबना. मुखमां तेणे अनि सळगाव्यो. // 2 // पग धीमे धीमे मंत्रनो नचार करतो ते स्वतंत्र योगी तेनी अंदर कणेरनां पुष्पो तथा गुगळनी गोळीन होमवा लाग्यो. // 3 // ते वखते शाकिनी रादास तथा नृतोथी उत्पन्न थयेलो डर, वायु जेम मेखलासहित पवतने तेम शिष्योसहित तेने उपद्रव करी शक्यो नहि. // 24 / / एवामां अचानक तेनी बाग ळ ब्रह्मांडने फोमी नाखे एवो, तया पर्वतने तोमवामाटे करेला वज्रपातसरखो भयंकर अवाजवा | Jun Gun Aaradhak Trust I. PP.AC. Gunratnasuri M.S. .
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________________ धम्मि- शिष्येषु तेन बाधिर्य / लंभितेषु धरातलं // वदाःस्थलं वियोगिन्या / श्वाकस्माट्यदीर्यत / / 26 // / माई रंध्रादाविरवृत्तस्मा-द्विलादिव महोरगः // दवदेश्यशिरःकेश-तुदृग्नेरिनाशिकः // 17 ॥श्र | मिज्वालाकरालास्य-कुहरः क्रोमदंष्ट्रिकः // जमकुंगकपाला-गंडः करमकंधरः // 20 // अलिंज| लोदरस्ताल-बाहः शैलतटीकटिः // नदुखलपदः कोऽपि / वेतालः क्रूरदर्शनः // 25 // विधिविशेषकं // तेन दुष्टेन दृष्टेन / सर्वेऽप्युत्तरसाधकाः // सुविना कुमारें / मार्जारेणेव मूषकाः // लो निर्घात थयो. // 25 // ते अवाजवी ते त्रणे शिष्यो बहेरा थर गये बते वियोगिनी स्त्रीन जेम वदःस्थत तेम अकस्मात पृथ्वीनुं तल फाट्यु. // 26 // हवे बिलमांयी जेम सर्प तेम ते बा. कोरामांथी दवानलसरखा मस्तकना केशोवाळो, बिलामासरखी अांखोवाळो, लुंगळसरखां नाकवा. लो, // 27 // यमिज्वालाथी जयंकर मुखरूपी कोतवाळो, मुक्करसरखी दाढोवाळो भने नांगेला घडानी गीबडीसरखा गालवाळो तथा जंटसरखी गरद नवाळो, // 2 // कोठीसरखा पेटवालो, ताडसरखा हाथवा, पर्वतनी मेखलासरखी केमवाळो, तथा खांमणीयासरखा पगवाळो भयंकर देखावनो कोक वेताल प्रकट थयो. // 25 // ते इष्टने जोवाथीज बीलामाथी जेम नंदरो तेम P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 267 धम्मि- // 30 // गुरुमुझरमुद्गीर्य / योगिनं निजगाद सः // बलेन कस्य मद् छमौ / मंत्रं सानोषि रे वद. // 31 // नविता मामनाराध्य / मंत्रसिदिः कथं तव // पर मौ विशन् श्वेव / लप्स्यसे प्रत्युतापदं // 3 / / यावत्तवचनैत्रास-करैः शुन्यति योगिराद् // कृपाणं नर्तयन् पाणौ / तावदूचे नृपात्मजः // 33 // अहो मम बलादेष / मंत्रं सानोत्यहं पुनः॥ न शुन्ये वह्निवदंश-त्राद कारैर्वचनस्तव // 34 // यदि त्वं सांयुगीनोऽसि / तद्वौकख मया युधे // योगी निदानरस्तस्य / तुदने किं | ते गुणवर्मा कुमारशिवाय ते सघला उत्तरसाधको त्रास पाम्या // 30 / / पनी ते वेताल एक मो. ट्रं मुझर नगामीने योगीने कहेवा लाग्यो के, अरे! बोल के मारी ऋमिमां कोना बलया तुं मं. त्र साधे ? // 31 // वळी मने बाराध्याविना तारी मंत्रसिधि केम थशे ? परनी ऋमिमां दाखल थवाथी नलटो कुतरानीपेठे तुं आपदा पामीश. // 3 // पनी जेवामां त्रास करनारां तेनां ते व. चनोथी ते योगीराज त्रास पामे , तेवामां हायमां तलवार नचावतोयको ते गुणवर्मा कुमार बोल्यो के. // 33 // अरे प्रेत! या योगीराज मारा बलथी मंत्र साधे , अने हुँ तारा वांसना त. | डाकासरखां वचनोथी अमिनीपेठे दोज पामुं तेम नथी. // 34 // वळी जो तारी लडवानी जा P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 160 धम्मि- यशस्तव // 35 // अयं खारविः शत्रु-नेत्रकैरवनैरवः // स्थितो मे पाणिपूर्वानी / त्वां तमित्रमा मिवादितुं // 36 // स प्रोचिवानहो बाल / कस्त्वया सह विक्रमः // परार्ये मा वृया याहि / फलं नज नृजन्मनः // 36 // कुमारः स्माह जो बाल / इति मां मावजीगणः // सिंहः शिशुरपि प्रौद / किमु हंति न हस्तिनं / / 37 // लघुर्दीपो गुरु ध्वांतं / लघु वज्रं गुरुर्गिरिः // लघुः पशुर्गुरुर्वृदो | / वद कः केन जीयते // 30 // यः परार्थः स हि स्वार्थः / वार्यः कोऽस्स्यपरः सतां // को मेघ. होय तो मारी साथे युद्ध कर? या योगी तो निदाचर , तेने दुःख देवाश्री तारो शुं यश थ. वानो के ? // 35 // शत्रुजेना नेत्रोरूपी कैखोने जय पमामनारो या मारो खारूपी सूर्य अंध. | कारसरखा तने नष्ट करवामाटे मारा हाथरूपी पूर्वाचलमां उदय पाम्यो . / / 36 // त्यारे ते प्रेत बोल्यो के अरे! तुं तो हजु बालक बे, तारीसाथे बळ करवू शा कामनुं ? फोकट परने माटे तुं मर नहि, अने मनुष्यजन्मनुं फल नोगव? // 36 // त्यारे कुमार बोल्यो के अरे! बालक कही. ने तुं मारी अवगणना न कर? केमके सिंहनुं बच्चुं पण शुं मोटा हाथीने मारतुं नथी? // 37 // | दीपक लघु ने अने अंधकार महोटो बे, वज्र नानुं बे अने पर्वत महोटो , कुहाडी नानी ने P.P.AC.Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradeak Trust
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________________ धम्मि- स्यापरः स्वार्थो / जगदुजीवनं विना // 35 // परोपकरणात्पुण्य -यशसी पेशलं फलं // फलं / धनांगनारंगाः / फटगु मानुष्यरुहः // 40 // यदोक्त्वालं स्वशक्तीडा / वीमाहेतुर्महात्मनां // शू. रोऽसि चेत्पुरस्तिष्ट / फले व्यक्तिर्भविष्यति // 41 // कुमारस्येति सत्वोक्त्या। विस्मितात्मा स नि. 265 र्जरः // बच्च नटवत्त्यक्त-दुर्वेषो दिव्यरूपनाक् // 42 // ऊचे च धीर तुष्टोऽस्मि / तव सत्त्वादरं भने वृक्ष महोटुंजे, परंतु कहे के कोण कोने जीते जे? // 30 // वळी जे परार्थ ने तेज स्वार्थ बे, सज्जनोने तेना शिवाय बीजो कयो स्वार्थ के ? केमके जगतने जीवितदान प्रापवाशिवाय मेघनो बीजो कयो स्वार्थ ? // 35 // पुण्य अने यश ए परोपकारनुं मनोहर फल , तेमज धन बने स्त्रीना जोगविलास ए मनुष्यजन्मरूपी वृदनां नकामां फल . // 40 // अथवा वधारे कहेवाथी सर्य, केमके पोतानी शक्तिनी जे स्तुति करवी ते महात्मानने लगा करनारंजे, माटे जो तुं शूरो होय तो मारी सामे बावीने नन्न के जेथी प्रगट फल जणाशे. // 41 // एवी रीत. नां कुमारनां हिम्मत नरेलां वचनथी विस्मय पामेलो ते देव नटनीपेठे पोतानो भयंकर आकार | तजीने दिव्य रूप धरनारो थयो. // 42 // पनी ते बोल्यो के हे धीर! तारी हिम्मतथी हं तुष्टमा- | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- वृणु // सोऽप्यवग्योगिनोऽमुष्य / तत्पूरय समीहितं // 43 // देवोऽवादीन्मया मंत्र-सिधिस्तस्य कृमा तैव गोः // त्वं वदव प्रियं किंचि-दमोघं देवदर्शनं / / 44 // कुमारः स्माह यद्येवं / देव तदद मे प्रिया // धत्ते हेतोः कुतः शीलं / स्नेहलापि युवत्यपि // 45 // अवधिज्ञानतो बुध्वा-ऽन्य. धत्त विबुधस्ततः // पश्य प्रानातिकं लम-मेतत् प्राच्यामुदित्वरं // 46 // अयं निशावसानोबघटिकाघातनिःस्वनः // शक्तिवेधमिवायत्त / नारीषु स्वैरिणीषु च // 4 // विशाय सूरमायांतन थयो बु, माटे तुं वर माग? त्यारे कुमार बोव्यो के जो एम ने तो था योगीनी श्वा तुं सं. पूर्ण कर? // 43 // त्यारे देवे कह्यु के हे कुमारेंड ! में तेनी मंत्रसिकि करी यापीज , हवे तुं पण कक शबित माग ? केमके देवदर्शन निष्फल होय नहि. // 4 // हवे कुमार बोल्यो के जो एम ने तो हे देव! तुं कहे के मारी स्त्री (माराप्रते ) स्नेहवाळी तथा युवावस्थावाळी बे, बतां ते शामाटे शील धारण करे ? // 45 // त्यारे ते देव अवधिज्ञानथी जाणीने बोल्यो के तुं जो? या प्रभातकाळ्नु लाम पूर्व दिशामां नगवानी तैयारीमां . // 46 // या परोढीयानी घ. मीयालना टकोरानो अवाज स्वेबाचारी स्त्रीजना मर्मस्थानोने भेदी नाखे . // 4 // वळी था | Jun Gun Aaradimak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ धम्मि- ममी निर्वसुगंबराः // पलायनाय विरली-नवंति व्योग्नि तारकाः // 4 // तातेयं गतप्राया / दपा स्त्रीवतत्रपातुरा // बहुकालोपदेश्यं त—द्यत्पृबति जवान पुनः // 4 // तदेतमंजनं योगं / गृहीत्वा स्वगृहं व्रज // श्रनेनादृश्यमूर्तस्ते / सर्व सादाद्भविष्यति // 20 // 271 __श्युदित्वा सुरो दत्वा / तस्यादृश्यांजनं ययौ // कृतकृत्यः कुमारोऽपि / ननामोपेत्य योगिनं // 51 // जगौ सगौवं योगी। वत्स त्वत्संगतेर्गतः // साफल्यं मे श्रमो मंत्र-साधनस्याष्टवार्षिक: सूर्यने ( शूरा सुन्नटने ) पावतो जोश्ने तेजना घामंबरविनाना तारान आकाशनी अंदर नाश वामाटे बुटवलुट थर जाय . // 4 // माटे या रात्री स्त्रीनीपेठे लज्जातुर थश्यकी नष्टप्राय श्रयेली, अने तुं जे पूजे जे ते घणे वखते कही शकाय तेवू . // 4 // माटे या यौगिक अंजन लेश्ने तुं तारे घेर जा? अने ते अंजनथी अदृश्य थश्ने ज्यारे तुं जोश त्यारे तने सघ सादात देखाशे. // 50 // एम कहीने ते देव तेने अदृश्य करनारं अंजन देश्ने गयो, तथा कृतार्थ थयेलो ते कु | मार पण यावीने योगीने नम्यो. // 11 // त्यारे ते योगी पण तेनुं सन्मान करीने बोल्यो के. | Jun Gun Aaradhak fusil P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ धम्मिः // 5 // अहं तवोपकारस्या-ऽनृणः स्यां न कदाचन // तत्किं करोमि किं स्तौमि / प्रियं किं / ते ददामि वा // 13 // समस्ति चैत्रसत्तिस्ते / तत्काम्यं किमतः परं // वदनिति निशांतेगानिशांते पस्ततः // 55 // अनुनय दणं निद्रा-सुखमुन्मलितेदणः // बालातपनकाश्मीर| लिप्तामिवैदत दिति // 55 // सहसा त्यक्ततटपोऽथ / कृतप्राभातिकक्रियः // जगाम धाम कनक |-वत्या अत्यादरेण सः॥ 26 // समं तयैकतपस्य / तस्य गोष्टीं वितन्वतः // तां दिदृक्षुरिख हे वत्स ! तारा सहाययी मारो आठ वर्षासुधि साधेला मंत्रनो श्रम सफल थयो . // 5 // व ली हुँ तारा अपकारना करजथी को पण दिवसे मुक्त थ शकुं तेम नथी, माटे हं शं करु ? शुं तारी स्तुति करूं? अथवा तने शुं प्रिय वस्तु यापुं? // 53 // जो पापनी कृपा तो पनी तेथी बीजु मारे शुं जोश्ये ? एम कहीने परोढीए ते राजकुमार त्यांथी घेर गयो. // 54 // त्यां दाणवार निडासुख अनुभवीने जेवामा ते अांख जघाडे में तेवामां उगता सूर्यना तेजश्री. जाणे केसरथी लींपायेली होय नहि एवी पृथ्वीने ते जोवा लाग्यो. // 55 // पनी ते एकदम विजन गेमीने तथा प्रभातनी नित्यक्रिया करीने अत्यंत आदरमानपूर्वक कनकवतीने आवासे गयो. / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- व्योम-मध्यमध्यास्त जास्करः / / 57 // अय स्वावसथं प्राप्य / स्नात्वा जुक्त्वा समुखितः // विजि झासुः प्रियावृत्तं / कुमारश्वकमे निशं // 27 // अहमस्मि त्रिजगतो-ऽथादृश्यीकरणदमा॥ स्वस्यै व त्वमिति ज्योति-दनात्तमहसन्निशा // 27 // चलचित्तोऽप्यसौ मित्र-गोष्टीरंग तरंगयन् // ग. 273 | ते यामे त्रियामाया / विससर्ज परिबदं // 60 // त्वा सिघ वादृश्य-रूपः सिघांजनेन सः // // 16 // त्यां एक बिगनापर बेसीने तेणीनी साथे ते वार्ता विनोद करवा लाग्यो, अने एम करतांथकां जाणे तेणीने जोवामाटेज होय नहि तेम सूर्य याकाशना मध्य भागमा आयो. // // 7 // पछी पोताने आवासें यावीने स्नान तथा भोजन करीने नठेलो ते गुणवर्मा कुमार पोतानी स्त्रीन. वृत्तांत जाणवानी बाथी हवे तुरंत रात्रि थाय तो ठीक एम श्ववा लाग्यो. ॥र॥ हुं तोत्रणे जगतने अदृश्य करवाने समर्थ बु. अने तुं तो फक्त पोतानेज अदृश्य करवाने समथै बगे, एम विचारी ताराना मिषयी रात्रि तेनी हांसी करवा लागी. // 27 // हवे ते कुमारे उचक मनवाळा होवा बतां पण मित्रोसाथे वार्ता विनोद करीने रात्रिनो पहेलो पहोर गयावाद | परिवारने विसर्जन को. // 60 // पी ते सिघांजनयी सिनीपेठे अदृश्य थश्ने हिम्मतथी | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhek Trust
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________________ धम्मि- सारं सत्वं कृपाणं चा-मुंचन पत्न्या ययौ गृहं / / 61 // निस्तंद्रश्चंद्रशालाया-मारुह्य विजनें स्थि तः / जाग्रती तां कुरंगादी-मजादीद्दीपिकामिव / / 65 // जाग]षा किमद्यापी-त्येकचित्ते नृपां गजे / अतीये कियती रात्रि-रिति पप्रब सा सखी / / 63 // नमो निनाल्य सागाणीत् / क्षणः 14 सोऽभूहिचदणे // त्वर्यतां क्रियतां सार-शृंगारस्तत्र गम्यतां / / 64 // तां वीदयाय कृतस्नानां / स लिंकार धारिणीं // युगपत्कामकोपान्यां / कुमारो व्याकुलीकृतः // 65 // अपास्य कामवैवश्यतलवार साथे लेश्ने पोतानी स्त्रीने श्रावासे गयो. // 61 // त्यां ते प्रमादरहित अगासीपर च. मीने एकांते बेठो, ते वखते तेणे दीवानीपेठे जागती एवी ते कनकवती मृगादीने दीठी. // 6 // केमा हजुसुधी जागे जे ? एम विचारी ते राजकुमार जेवामां एक चित्तथी जोया करे तेवा. मां ते कनकवतीए पोतानी सखीने पूज्यु के केटली रात्रि गश् ? // 63 // त्यारे तेणीए आकाशतरफ जोश्ने कह्यु के हे विचदाण ते वखत थर गयो , माटे मनोहर शृंगार करो ? अने त्यां चालो ? // 6 // हवे तेणीने स्नान करेली तथा सर्वालंकारोथी शोनिती बनेली जोश्ने गुण| वर्मा कुमार एकीहारे काम अने कोपथी व्याकुल थयो. // 65 // पनी ते कामदेवनी व्याकुलतानगे P.P.AC.Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- मथासौ दध्यिवानिति // धिग योषा निखिला दोषा / श्व घोरतमोमयीः // 66 // अस्या अवगतं / शील–स्वरूपं चेष्टयानया // श्राइं दीपालिकायां चे-त्तत्संदेहः कुलस्य कः / 67 ॥मम ब्रह्मप्र. तिझाय / खेलत्येषा यथारुचि // मृषावाक्सहजा स्त्रीणां / त्यग्गतिः सरितामिव // 67 // तदे. 275 ] नामसिनानेना-धुनैव करवै विधा // यहा नेयमनित-दुर्वृत्ता वधमर्हति // 6 // // एवं संवत | कोपेऽस्मि-नारूढा बलजीमनीः // विमानं मंत्रसिझेव / हुंकारेणानकर्ष सा // 70 // विमानं त. .डीने विचारखा लाग्यो के, अरे रात्रिनीपेठे घोर अंधकार (अज्ञान) वाळी सर्व स्त्रीने धिक्कार . // 66 // यावां थाचरणथी तेणीना शीलनुं स्वरूप तो हवे जाणी लीधुं, जो दीवाळीने दि. वसेज श्राफ होय तो पड़ी कुलना (नाशनो) संदेह शुं करवो ? // 67 // मने पोतानुं ब्रह्मच. र्य जणावीने बा तो मरजीमुजब खेच्या करे , माटे नदीनी नीचाणमां जेम खानाविक गति बे, तेम स्त्रीननी पण मृषा वाणी स्वानाविकज . // 60 / / माटे हमणाज तेणीना बा तलवारथी बे टकमा करी नावं, अथवा तेणीना उराचारनी खातरी कर्याविना मारखी ए योग्य नति / // 67 // एम विचारी कुमारे ज्यारे पोताना क्रोधने अटकाव्यो त्यारे ते कनकवतीए जयरहित P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि त्पुरः प्रादु-रासीदाशु विकासुरं // चलध्वजनृत्य-दिव तपवीदाणात् // 31 // तत्र सख्या स हारूढां / कुमारोऽन्वारुरोहतां // पथि नैकाकिनी योग्या / स्त्रीति नीति स्मरन्निव // 12 // कि मितो यास्यति स्वर्ग-मेषा लेखैश्विखेलिषुः // किंवा वैताब्यमत्याब्य-विद्यावर रिरंसया // 13 // 3 त्याद्यनट्पसंकल्प-तल्पस्थे गुणधर्मणि // मणिरुग्मथितघ्वांत / प्रतस्थे तन्नमोऽध्वनि / / 9 // विअगासीपर चीने मंत्रसिंघनीपेठे हुंकारामात्रमांज एक विमानने खेंची लीधुं. // 70 // तुरंतज देदीप्यमान तथा तेणीनुं रूप जोश्ने चालती पताका रूपी हाथोथी जाणे नाचतुं होय नहि तेम एक विमान तेणीनी पासे यावी . / / 71 // मार्गमा स्त्रीने एकली मोकलवी योग्य न. हि एवी नीतिने जाणे याद करतो होय नहि तेम ते कुमार सखीसहित ते विमानपर चडेली कनकवतीनी पाउळ (अदृश्यपणे ) चडी बेगे. // 15 // शुं था यहींथी देवोसाथे क्रीडा कर. वानी बाथी स्वर्ममां जशे? अथवा महासंपत्तिवाळा को विद्याधरनीसाथे क्रीमा करवानी वाथी-शुं वैताब्यपर्वतपर जशे ? / / 73 // एवी रीतें अनेक प्रकारना संकल्पोरूपी बिगनामां गुणव. र्मा कुमार बेसते ते मणिनी कांतिथी दूर थयेल ने अंधकार जेमांयी एवा आकाशमार्गे ते P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 277 धम्मि- मान खर्वयन मानं / मनसस्त्वरया ततः / नत्तरस्यां विमानं त-द्ययौ किंचिन्महासरः // 15 // / | वनं तदा तदासन्नं / दासनंदनमाप्य तत् // तस्थौ चिराध्वसंचार-परिश्रांतमिव स्वयं // 76 // वि. मानतः समुत्तीर्य / सा चचाल वनावना // पृष्टस्थितः कुमारोऽपि / दंपयोः किं पृयगतिः // 7 // पुरः स जैन नवनं / वनशृंगारमैदत / / स्फुरद्रत्नप्रजाऽपास्त-ब्रह्मांतरतमोगरं / / 90 // प्रियया पा. विमान चालवा लाग्यु. // 14 // पनी पोताना वेगथी मनना प्रमाणविनाना वेगने पण जीततुं थकुं ते विमान त्यांथी उत्तर दिशामा कोश्क महासरोवरप्रते गयु. // 75 / / त्यां नजीक रहेलां तथा नंदनवनने पण जीतनारां एवां एक वनमा जश्ने ते विमान घणो वखत मार्गे चालवायी जाणे थाकी गयु होय नहि तेम पोतानी मेळेज स्थिर थयु. // 76 // हवे ते कनकवती विमानथी नतरीने वनने मार्गे चाली, तथा तेनी पागल ते गुणवर्मा कुमार पण चाव्यों, केमके स्त्रीभरतारनी शुं जूदी गति होय ? // 9 // बागल चालतां तेणे वनने शोनावनाएं तया तेजस्वी रत्नोनी कांतिथी बहारना तथा अंदरना अंधकारना समूहने दूर करनारुं एक जिनमंदिर जोयं. // 70 // पनी साथे रहेली स्त्रीसहित जिनमंदिरमा प्रवेश करतों एवो ते कुमार नवो परणेलो P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- रिपाश्चिक्या / प्रविशन जिनवेश्म सः // वृत्तं स्वस्य नवोढस्या-ऽस्मरदेवांगणदणं // // त. त्रानंदकरीमिंदु-करैखि विनिर्मितां // नत्वाहत्पतिमां बाला / रंगमंडपमाप सा // 70 // तिस्रस्त. लागताः कन्या / अन्या अपि तथा जिनं // प्रणम्य तत्पतिबाया / श्व तां परितः स्थिताः // 1 // 270 तत्रास्ति हस्तिन्निः श्वेत-दंतीव परिवारितः // खेचरैः खेचराधीशो। निविष्टोऽग्रे महाबलः ॥शा निवेद्य ताश्चतस्रोऽपि / कन्यास्तस्मै स्वमागमं // तस्थुः स्तंभानवष्टज्य / स्वर्णपांचालिका व // 3 // पोते जाणे सजोड देववंदनमाटे जातो होय नहि एवा अवसरने ते याद करवा लाग्यो. ॥णा त्यां जाणे चंद्रना किरणोवडे बनावी होय नहि एवी आनंद करनारी जिनप्रतिमाने नमीने ते क. नकवती रंगमंडपमां श्रावी. // 70 // वळी त्यां आवेली बीजी त्रण कन्या पण तेवीज रीते जि. नप्रतिमाने नमीने जाणे तेणीनी गयान होय नहि तेम तेणीनी आसपास बेठी. // 1 // त्यां जेम अन्य हस्तीनसहित श्वेत हस्ती तेम विद्याधरोथी वाटायेलो एक महा बळवान विद्याधरोनो राजा बागल बेठो हतो. // 2 // पनी ते चारे कन्यान तेने पोतानुं बागमन जणावीने जाणे | सोनानी पुतळोन होय हि तेम स्तंगोने अठंगीने जजी. / / 73 // पछी अविजिन्न जलधाराथी - P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- चके स्नानं जिनस्याय / खेचरः सपरिबदः / / जत्पादयन्निव नवा / नदीनीं निरंतरैः / / 4 // पू. जानेदैः समन्य» / समग्रैः स जिनाधिपं / / कौतुकी नाट्यरंगाय / पुनः शिश्राय मंझपं // 5 // तेनाद्य नाट्यावसरः / कस्या युष्माखितीरिते // गुणवर्मवधूमेव / दर्शयांचक्रिरेऽपराः / / 76 // त. दाझ्या रयादात्त-चलना नलिनानना // ननत तत्र सा रंना / जनारेखि संसदि / / 7 // कः / न्या अन्याः क्रमात्ताल-वेणुवीणा अवीवदन // कः स्यादस्यां प्रनृत्यंत्या-मपरः खलु तौर्यिकः॥ जाणे नवी नदीन उत्पन्न करतो होय नहि तेम ते विद्याधरे जिनेश्वरप्रभुर्नु स्नात्र कर्यु. // 4 // पजी सर्व प्रकारनी पूजाथी जिनेश्वरप्रजुने पूजीने नाट्यरंगना कौतुकमाटे ते पागे रंगमंडपमां याव्यो. // 5 // तमारामांथी बाजे नृत्य करवानो कोनो वारो ने ? एम तेणे पूज्वाथी ते बी. जी कन्यानए गुणवानी स्त्रीनेज देखामी. // 6 // पनी तेनी आझाथी जलदी उठीने ते कमलसरखां लोचनवाळी कनकवती इंद्रनी सनामां जेम रंना तेम त्यां नाचवा लागी. // 7 // बीजी कन्या अनुक्रमे कांसीया वांसली तथा वीणा वगाडवा लागी, केमके आना नाचमां वळी वाजिन वगाडनार बीजो कोण होश् शके ? | G || हवे नाटकना ध्वनिथी ते विद्याधरेंद्र ज्यारे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- // 6 // विद्याधरेश्वरे नाट्य-ध्वनिधूनितमूनि // कंपमानवपुः कोपा-कुमारेंद्रो व्यचिंतयत् / माई // 6 // विवितोऽस्मि निविमं / वेधसा मनुजेष्वहं // ममापि नायिकाऽनायि / नर्तकी त्वमनेन यत् // 70 // न कौरव्यैः संवृतांग्या / यस्या मुखमपीदितं / / सर्वागं वीदतां विद्या-भृतामयोत्सवोऽजनि // 1 // बहुमेने सदास्माभिः / सर्वस्वस्वामिनीव या ।पातेनैव सानेन / सर्व दासी. व कार्यते // ए॥ यहा न्यषेधि यद्वार-रपि रात्रौ जिनार्चनं // तदस्य कुर्वतः स्वैरं / ब्रूमः कि पोतानुं मस्तक धुणाववा लाग्यो, त्यारे कोपथी कंपित शरीरवाळो ते कुमारऽ विचारखा लाग्यो के // ए || अरे! विधाताए मने मनुष्योमां खूब वगोववाजे, कर्यु बे, केमके मारी स्त्रीने पण या विद्याधरे पोतानी नटी बनावी . // 2 // ( वस्त्रोथी) ढंकायेलां शरीवाळी एवी जेणीनुं मुख पण कुरुवंशीजए जोयुं नथी, तेणीनां बाजे या सर्व अंगोने जोता एवा या विद्याधरोने था. नंद थाय . // 1 // जेणीने में हमेशां मारी समस्त मीटकतनी मालिकसरखी मानेली . ते. पीनीपासे फक्त एक भृकुटीना इसाराथी या विद्याधर दासीनीपेठे सघj कार्य करावे . ॥शा अंथवा अन्योए पण रात्रिए जिनपूजन निषेध्यु , ते जिनपूजन स्वेगाचारयी करनारा एवा था| P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि| मविवेकिनः / / 53 // असिममायमन्याय-मस्य मृष्येन निश्चितं / / जाविवृत्तांतजिज्ञासुः / स्यां विघ्नाय न चेदहं // 4 // ध्यायत्येवं कुमारडे / किंकिणी सहसाऽपतत् // कांचीतः कांचनी त. स्या / नृत्यधूनितवर्मणः // 55 // जग्राह तां समीपस्थः / कुमारः करलाघवात् // खेटेरलदितो नाट्य-रसनिःस्पंददृष्टिनिः / / 56 // ब्रष्टैकदंता दंतालि-खि सालोकि मेखला / / नाट्यांते बा. लया शून्यां-तराला किंकणी विना // 7 // विदितामपि यत्नेन / किंकिणीमनवाप्य सा // पृ. अविवेकी विद्याधरने शं कहे ? // 13 // वळी हवे थनारा वृत्तांतने जाणवानी बावालो एवो. हूं जो आ समये विनरूप न होत तो मारी या तलवार खरेखर था विद्याधरना अपराधने सहन करत नहि. |एजेटलामां ते कुमार एवी रीते विचारे ने तेटवामां नृत्यथी चलायमान थयेला कनकवतीना शरीरपर पहेरेला कंदोरामांथी एक सोनानी घुघरी अचानक पडो गश्.॥॥त्या. रे पासे रहेला ते कुमारे हाथचालाकीथी ते घुघरी ले लीधी तथा नृत्यना रसमां लीन दृष्टि वाला ते विद्याधरो तेने तेम करतां जोर शक्या नहि. // 76 // पनी नृत्य कर्याबाद बच्चे एक | दांत पमी जवाथी देखाती दांतोनी पंक्तिजेवी एक घुघरीविनानी बच्चे खाली देखाती पोतानी क P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ .. साथै | श धम्मि- बंती खेचराधीशं / तेनैवं समजाष्यत // 7 // गताद्य यसी रात्रि-गतास्ते खेचरा थपि / शुदि कर्तास्मि किंकिण्याः / खस्ने स्वस्त्यस्तु तेऽधुना // 7 // अथारुह्य विमानं त-दाश्रितं प्रेयसापि सा // दणात्स्वस्थानमानंच / यानं च द्राक् तिरोदधे // 1300 / / कुमारः प्राप्य धाम स्वं / सेवकैरप्यलदितः // सुप्तोऽपि धर्मना निद्रां / सस्वजे न प्रियामिव // 1 // कोऽसौ खेटः कथमियं / तदृशे वध्य एव सः // इति ध्यायत ए. टीमेखला कनकवतीए दीठी. // 7 // तेथी चीवटथी जोया तां पण तेणीने ज्यारे ते न मळी त्यारे तेणीए तेसंबंधि विद्याधरने पूज्वाथी तेणे कडं के–॥ ए हे बेहेन ! आजे तो घणी रात्री गश्बे, तेम ते विद्याधरो पण गया, हं तेनी तपास करीश, हमणा तो तुं जा? // एए / पनी ते कनकवती गुणवर्माए याश्रय करेला विमानपर चमी. ने क्षणवारमा पोताने स्थानके आवी, अने ते विमान पण तुरत अदृश्य थ गयु. // 1300 // हवे ते गुणवर्मा कुमार पोताने घेर गयो, या बाबतनी तेना सेवकोने पण खबर नहोती, पनी | ते उचक मने सुतो, परंतु पोतानी प्रियानीपेठे तेणे निद्राने आलिंगन पाप्यु नहि. ॥१॥श्रा | P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ शा३ धम्मि- वास्य / वासतेयी व्यलीयत // 2 // स्वीयवशा परवशा / इयमेतविरुध्यते // इत्यब्जिनीप्रबोधेन / वदन्नुदितवान् रविः // 3 // मित्राय मंत्रिपुत्राय / दत्वा तां किंकिणीं रहः // प्रगे प्राग्वत्कुमारोऽ. गा-दयिताया निकेतनं // 4 // दणं विनोद्य वा निः / कुमारः सारिपाशिकैः / / पत्नी प्रीत्या परमया / रमयामास रागनुः // 5 // निशावृत्तवशात्मासौ / वायकध्यानयाऽनया // पदक्रमगमविद्याधर कोण हशे? या कनकवती केम तेने वश थर हशे? ते विद्याधरने मारे मारखोज जो. श्ये, इत्यादिक विचारतांज तेनी रात्रि व्यतीत थर. // 2 // पोताने जे वश होय ते परने पण वश होय, ए बन्ने बावत तो ( परस्पर ) विरोधवाळी , एवी रीते कमलिनीने विकस्वर करवायी जाणे कहेतो होय नहि तेम सूर्य उदय पाम्यो. // 3 // पनी पोताना मित्र मंत्रिपुत्रने गुप्तरीते ते घुघरी पापीने प्रनाते पूर्वनीपेठे ते गुणवर्मा कुमार पोतानी ते स्त्रीने घेर गयो. // 4 // प. जी ते रागी थयोथको दाणवारसुधि पोतानी पत्नीने वाताथी खुशी करीने परम प्रीतिथी सोगठां. बाजीवडे रमामवा लाग्यो. // 5 // रात्रिना वृत्तांतमां चिंतातुर बनेला तथा सोगगंनी चाल च लाववामां चतुर एवा पण ते कुमारने फक्त पातान। बाजामांज एकचित्तवाळी ते कनकवतीए जी Jun Gun Aaradhak PP.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ ২০ষ धम्मि- न्यास-चतुरोऽपि व्यजीयत // 6 // किंचिद्दत्वा फलं नाय / व्यंजयस्व जयं मम // अतः परं रिः / रंसुश्चेत् / तत्त्वं किमपि सारय // 7 // तया सोत्पासमित्युक्ते / कुमारः स्फारकैतवः // किंचित्तवांतिके ऽस्तीति / सुहृदो मुखमैदात ॥ायुग्यं। सोऽप्यूचे किंकिणीं मुक्त्वा / नान्यत्किंचिदिहास्ति मे // सोडवक् तामेव मे देहि। यत्तयास्ति प्रयोजनं॥णा सागरोऽथ कुमारस्य। किंकिणीमार्पयत्करे / / प्रत्यनिझाय तां दृष्ट–मात्रां साद् भृशाकुला // 10 // श्यं न वृश्चिकः किंतु / किंकिणी किं त्वमाकुसो. // 6 // हे स्वामी! मने कईक फल पापीने मारी जीत प्रगट करो? अने हवे पजी पण जो आप रमवाने चहाता हो तो कर्शक शरत करो? // 7 // एवी रीते तेणीए जरा तमाकाबंध कहेवाथी कपटक्रियामां चतुर एवा ते कुमारे पोताना मित्रसन्मुख जोश्ने कह्यु के तारीपासे कई वस्तु ? // 7 // सारे ते पण बोल्यो के घुघरीविना बीजं कई यहीं मारीपासे नथी, त्यारे कुमार बोल्यो के तेज मने श्राप ? केमके मारे तेनुज प्रयोजन . // 7 // त्यारे ते सागर नाम ना मित्रे कुमारना हाथमां घुघरी थापी, त्यारे तेने जोतांज नळखी कहाडवाथी कनकवती अ. त्यंत गजराटमां पमी. // 10 // ( कुमार बोल्यो के ) या कई वींगी नथी, परंतु घुघरी ने तं केम | P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- ला // तद्दीव्यं दुरेऽस्त्यद्यापि / प्रातराशदाणोऽपि सः // 11 // सावदद्देव किं दत्से। किंकिणीयं म. मैव यत् // न हि नट्टारिका तोष्या / हूतैस्तन्मूर्तिगुग्गुलैः // 12 / / हसित्वा भूपः स्माद / प्रिये किमिदमुच्यते // अमी वयमिदं राज्यं / सर्वमेतन्न किं तव // 13 // सा जगाद हसिवाल-मत्र शर तुल्यं शपे प्रिय // सस्ता कापि कटीसूत्रात् / किंकिणीयं ध्रुवं मम // 14 // यद्येवं देवि तद् बहि | कासौ निपतिता तव // इति पृष्टे कुमारेण / जगौ श्रीषेणनंदिनी // 15 // प्राग्जन्मवृत्तवनेतव्याकुल थाय ने ? हजु रमत तो बेटी , तेमज प्रागातिक शिरामणीनो वखत पण हजु दूर.जे. // 11 // त्यारे.कनकवती बोली के हे स्वामी ! aa ते शुंबापो गे? या घुघरी तो मारीज ने, केमके नट्टारिका कई तेनीज मूर्तिनो गुगळ होम्याथी संतुष्ट थश् शकती नयी. // 15 // त्यारे / राजकुमार हसीने बोब्यो के हे प्रिया! था तुं शुं बोले ? या यमो तथा आ राज्य, ए सघर्बु शं तारं नथी ? // 13 // कनकवती बोली के हे स्वामी! हांसी करवाथी सर्यु, या बाबतमा हं था. पना सोगन लेझने कहुं बु के खरेखर या मारी घुघर मारा कंदोरामांयी.क्यांफ खरी पनी // // 14 // हे देवी! जो एम ने तो कहे के ते तारी घुघरो क्या खरी. पड़ी ने? एवो. रीते कुमारे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ . शा६ धम्मि- नैतत्स्थानं स्मराम्यहं / स प्रोचे तर्हि पृलामुं / मित्रं मे गणिकोत्तमं // 16 // झानं विघटतेऽमुष्य / नाईदच श्व कचित् // मंदवसौ किंकिणीभ्रंश-जूमि त्वां झापयिष्यति // 17 // एवं शधिया तेन / विपलब्धान्यधत्त सा // किंकिणीयं क मे ब्रष्टा / वद कोविद देवर / / 10 / सोऽपि जाननजिप्राय / कुमारस्याब्रवीदिति // दक्षे प्रातरिदं वदये / झावा लमोपदेशतः // 15 // एवं वित्र. ममुत्पाद्य | तस्याः सरलचेतसः // स्वस्थानं गुणवर्मा च / सागरश्चापि जग्मतुः // 20 // कृत: पूज्वाथी ते श्रीषेण राजानी पुत्री बोली के. // 15 // हे स्वामी! पूर्वनवना वृत्तांतनीपेठे ए स्थाननी मने यादी नथी, त्यारे ते बोल्यो के त्यारे ज्योतिषी-मां श्रेष्ट एवा था मारा मित्रने तुं पु. उ? // 16 // अरिहंतना वचननीपेठे तेनुं ज्ञान जूठं पडतुं नथी, अने तेथी ते तने जलदी घु. घरी पमवानुं स्थान देखाडी प्रापशे. // 17 / / एवी रीते तेनी शबुछियो उगायेली ते बोली के हे चतुर देवर ! तुं कहे के मारी था घुघरी क्यां पमी हती? // 10 // त्यारे ते पण कुमारनो य. निप्राय जाणीने बोब्यो के, हे दद! प्रभाते लगना उपदेशथी जाणीने हं तने ते कहीश. / / // 17 // एवी रीते ते सरल मनवाळी कनकवतीने विन्रम नपजावीने गुणवर्मा तथा सागर बन्ने | P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- स्नानाशनः सिघां-जनबन्नवपुर्निशि // निशितासिकरस्तस्या / गुणवर्मागमदगृहं // 21 // वनः / भेन विमानस्या-ध्यारोहं सह कृत्वरी // सा प्राग्वदेव देवाधि-देवपासादमासदत् // 12 // स्ना. त्रं कृत्वा यथास्थानं / खेचरौवे निषेदुषि // एकाऽनृत्यत्प्रवीणा सा / पुनर्वाणामवादयत् // 53 / / श सन्येषु वल्लकीनाद-स्वादतो मूर्जितेष्विव / पपात वीणादमांत-तामितं तत्पादांगदं // 24 // यः झातं तत्तया नाद-लीनया कौरवोऽग्रहीत् // ज्ञात्वा नाट्यावसाने तु / सा नेतुः संसदो जगौ पोताने स्थानके गया. // 20 // पनी ते स्नान तथा भोजन कर्याबाद सिघांजनथी अदृश्य थश्ने हाथमां सजेली तलवारसहित गुणवर्मा कुमार कनकवतीने घेर गयो. // 21 // पजी पोताना स्वा. मीसाथे विमानपर चडीने ते पूर्वनी पेठेज श्रीतीर्थकर प्रभुना मंदिरमां ग. // // त्यां स्नात्रपूजा कर्याबाद खेचरोनो समुह योग्य स्थानके बेठाबाद एक नाचवा लागी, अने ते चतुर कन: कवती वीणा वगामवा लागी. // 13 / / वीखानादना स्वादथी सगासदो मूर्जितनी पेठे होते ते वीणादंडना बेडाथी ठपकाएझुं तेणीना पगर्नु कांकर पडी गयु, // 24 // परंतु नादमां लीन थयेली कनकवतीना जाणवामां ते याव्यु नदि, अने गुणवर्मा कुमारे ते ले लीधुं. पठी नृत्य य. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri.M.S.
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________________ धम्मि- // 25 // गृहीतमद्य केनापि / मामकं नूप नूपुरं // अनाया श्व मुष्यंते / तव दृष्टौ हहाबलाः माई // 16 // जुकुटीजीष्मजालोऽथा-न्यधादिद्याधराधिपः // अवदतपूर्वा जो–श्चैत्यांनश्चौरिकाकु | तः // 17 // यस्य चैत्यालये चेत–श्चिनुते चौर्यचापलं / सोऽचिरान्मे शलगतां / लगतां को. 2 पपावके // 20 // गल वत्सेधुना प्रात-स्त्वां करिष्ये प्रमोदिनी // श्युक्त्वा प्रस्थितो विद्या-धरे. शो विससर्ज तां // 27 // साथ प्राप समं नो / निजं वेश्म विमानगा // कुमारोऽप्येय धाम | 3 रह्याबाद तेणीए ते जाण्यु, तथा सजापतिने पण ते वात तेणे जणावी के, // 25 // हे रा. जन् ! आजे कोइए मारुं झांकर लेश्ली , अने एवी रीते अरेरे! आपनी नजरे आ अब ला अनाथनोपेठे बुटाय . // 26 // हवे चुकुटीथी जयंकर थयेला ललाटवाळो ते विद्याधरप ति बोल्यो के अरे! या जिनमंदिरनी अंदर प्रगान कद पण न थयेली एवी चोरी क्यांयी थ वा लागी ? // 27 // श्रावी रीते जिनमंदिरमा पण जेनुं मन चोरी करवामां तत्पर थयु ने ते तुरत मारा कोपरूपी अमिमां पतंगपणुं पामो ? // 27 // हे वत्स हमणा तो तुं जा? प्रजाते तने खुशी करीश, एवी रीते तेणीने विसर्जन करीने ते विद्याधरेंड चालतो थयो. // 25 // हवे ते P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- स्वं / निशाशेषमवाहयत् // 30 // प्रातः प्रदाय मित्राय / कुमारस्तत्पदांगदं / गत्वा वध्वा गृहं सः / त्रा। तया रंतुं प्रचक्रमे / / 31 // सा न्यगादीदमी दूरे / मुच्यतां देव देवनाः // ह्यःपृष्टं किंकीणी. | वृत्तं / प्राग्मित्रेण प्रकाशय // 32 // सोऽवदविदितं दाम-विलमे लमतो मया // किंचित्तवान्य 20U | दप्यस्ति / स्रस्तं सम्यग्विचिंतय // 33 // ततः सा चकिताऽवोचत् / तत्किं वद जगाद सः // यत्ते | पादांबुजे धत्ते / हंसलीलां तदेव तत् / / 34 / प्रत्येमि किंकिणीवन्मे / तत्सादात कुरुषे यदि // कनकवती विमानमां बेशीने जारसहित पोताने वेर गइ. तथा ते गुणवर्मा कुमारे पण पोताने घेर आवीने बाकीनी रात्रि निर्गमन करी. // 30 // प्रजाते मित्रने ते फांफर देश्ने, तथा कन. कवतीने घेर जश्ने तेणीनीसाथे ते रमवा लाग्यो. // 31 // त्यारे कनकवती बोली के हे स्वामी! या पासानने हमणा दूर मुको ? अने गरेकाले पूजेद्यं घुघरीनुं वृत्तांत प्रथम मित्रमारफते कहे. वरावो? // 3 // त्यारे ते सागरमित्र बोल्यो के हे गगरायेली कनकवति! में लमयी जाण्यु ले के तारं बीजं पण कईक खरी पडद्यं बे. माटे बरोबर विचार ? // 33 // त्यारे तेणी चकित थश्ने बोली के ते शं? ते कहे ? त्यारे ते बोल्यो के जे तारां चरणकमलपर हंसनी लीलाने धारणः | P.P: AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि तयेत्युक्ते कुमारस्य / मंजीरं मंत्रिसूर्ददौ // 35 // कोऽस्ति झातोपनेता च / त्वदन्यो नष्टवस्तुनः // एवमंतहसन चुप-सुतः सुहृदमस्तुत // 36 // तेन प्राभृतवत्पाणौ / नूपुरे पुरतो धृते // मर्म| विछेव सा बाला / जे कांचिञ्चमत्कृति // 37 // तवेदं स्यान्न वा सम्यक् / प्रत्यनिझाय तलिये | // स्यान्चेत्तत्स्वपदस्पर्शात् / पुनीहीति जजल्प सः // 30 // तदादायाथ साऽवादी-भो निमित्त दे. करे ने ते. // 34 // जो घुघरीनीपेठे ते मने सादात देखाडो तो खातरी थाय, एम तेणीए क. हेवाथी ते मंत्रिपुत्रे ते कांकर कुमारने प्राप्यु. // 35 // अहो मित्र! ताराविना गयेली वस्तुने जाणनार तथा लावी थापनार वळी बीजो कोण ? एवी रीते ते राजपुत्रे मनमां हंसतां थकां पोताना मित्रनी प्रशंसा करी. // 36 // हवे गेट थापवानीपेठे ते फांकर तेणे हाथमां अगाडी धारण कर्याथी ते कनकवत जाणे मर्मस्थानमां नेदाणी होय नहि तेम विचित्र चमत्कार पामी. // 37 // त्यारे ते राजकुमार बोव्यो के हे प्रिये ! था फांकर तारुंजे के नहि? तेनी तुं बरोबर खातरी कर? अने जो ते तारुं होय तो तारा चरणना स्पर्शयी तेने पवित्र कर? // 30 // पड़ी | ते लेइने ते बोली के हे निमित्त जाणनार देवर! हजु तमो था बन्ने था भूषणो परवानुं स्थान | P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- वर / किं वृषणोजयत्रंश-जुवं नाद्यापि नापसे // 35 // ततो जगौ स गौरांगि / शृणु वच्मि स्फु / / | टादारं // तत्स्थानं दीप्तिमद् दूर-वर्ति मत्त्यै रासदं // 40 // मत्त्यैः दुरासदं तच्चेत् / तत्तत्र पतिते | श्मे // ऋषणे कथमानैषी-रिति राजसुतावदत् / / 41 // स प्रोचे यस्य जातः श्री-गुणवर्मा गुणा२७१ | लयः // स्वामी सर्वकलाधाम / तस्य किं नाम दुर्घटं // 42 // अविंदती गति कांचि-दरण्यपति| तेव सा // ततो व्यचिंतयद् बाला / करतल्पीकृतानना // 43 // विद्यागम्यं क तत्स्थानं / क चे. केम कहेता नथी? / / 37 // त्यारे ते सागरमित्र बोल्यो के हे गौर शरीरवाळी! हुं प्रकट रीते कहं बुं ते सांजळ ? ते तेजस्वी स्थान मनुष्यो ज्यां न ज शके तेटवू दूर रहेवू . // 40 // त्यारे राजकुमारी बोली के जो माणसो त्यां न जश् शके तो पनी त्यां पडेलां आ पाषणो तमों के मलावी शक्या ? // 41 // त्यारे सागर बोल्यो के जेने माथे धावा महागुणवान बने सर्व क लाना स्थानरूप गुणवर्मा जेवा स्वामी , तेने कयु कार्य अघळं थ पडे तेम जे ? // 42 // हवे कई पण इलाज न मलवाथी जाणे ते कनकवती वनमां पड़ी होय नहि तेम दथेळीपर मु. ::| ख राखीने विचारवा लागी के, // 53 // विद्यावडे जश् शकाय एवं ते स्थान क्या? अने या प. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि मौ जमिचारिणौ / क तत्र भूषापतनं / क चावायं तैदागमः / / 44 // किं न जानाम्यहं नैव / / दैवज्ञः सैष सागरः // अस्तु वाचस्तु दूरस्थं / कथमतानयेत्पुनः // 45 // नूनं केनापि योगेन / / तत्र संभाव्यते गतः / / स्वामी में सात्विकः सत्व-वतां किं नाम दुर्घ // 46 // यदद्यश्वोऽयमाया 22/ ति / प्रातरेवात्र सत्वरः / / अधाते व निखाया / दृश्ये अस्येदणे अपि // 4 // ध्रुवमेकमंति ये। यःशाव्यनिधी श्मौ // दंनेनानेन मुग्धायाः। प्रवृत्तौ खेदनाय मे // 40 || ध्रुप मैन्युपूराथ्वीपर चालनारा मनुष्यों क्या ? ते पाषण पडवानुं स्थान क्यां? अने तेनु या नहीं पाववं क्यों ? // 4aa वळी आ सागर ज्योतिषी नंथीज एम पण शुं हुं नयी जाणती? वळी तेसंबंधि कहे तो दूर रहूं, परंतु ते भाषण अहीं ते केम लावी शके ? // 45 // माटे खरेखर कक प्रयोग थी मारो हिंमती स्वामी त्यां गयेलो संभवे ने, केमके हिमतवानोने शुं मुश्केल ? // 6 // केमके आजकाल तो ते वळी प्रजातमांज जलदी अहिं आवे , तेम तेनी आंखो पण जाणे निद्राथी न धराणी होय नहि तेम घेरायेली देखाय . // 4 // खरेखर अत्यंत लुचाश्ना नं. डारसरखा तेन बन्ने एकमत थश्ने श्री कपटक्रियाथी मने मुग्धाने खेदित करवाने तत्पर थया ने. / P.P.AC. Gunratnasuri M.S... . Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्भि- -कंठयाय तया जगे / मां वंचयसि विश्वस्ता-माः किमेवं मृषोक्तिन्निः // 45 // अपरांतर. | जाताना-मन्याचां विचेष्टितं // हार्दीनां तु नवेदन्य-देव लीलायितं पुनः // 20 // क्रीडामा त्रफलं नर्म / तव मर्माविधं मम // कंम्ययापि नागस्य / लतायाः प्रलयो न किं // 11 // युवा 203 मुभावहं त्वेका / युवां कावहं वृजुः / युवा पुमांसावबला / त्वहं तत् किं प्रतिब्रुवे // 5 // खे| दितायां मयि प्रीति-यदि ते तत्तथा कुरु // स्वामिन्नवाप्स्यसि क्रीमा-पात्रं क पुनरीदृशं // 53 // // 4 // पजी क्रोधथी रंधायेला कंठवाळी ते कनकवती कुमारपते बोली के, 'अरे स्वामी! मने विश्वासीने प्रावी रीतनां जूगं वचनोथी आप शामाटे गो गे? || 4 || होठवच्चे उत्पन्न थ. येली वाणीनी चेष्टा बीजा प्रकारनीज होय , अने हृदयना वचनोनी चेष्टा वळी तेथी निनज होय // 50 // आपने तो मारी था मश्करीथी गम्मत थाय , परंतु मारां मर्मस्थानो दाय ने, केमके हाथीनी खरजयी पण शुं वेलमीनो नाश नथी थतो? // 51 // तमो बे बगे, हं ए. कली बं, तमो बन्ने हुशियार बो, हुं सरल बुं, तमो बन्ने पुरुषो जगे, अने हुं तो अबळा बं, माटे -- | आपने हं शुं जवान आपुं? // 52 // वळी हे स्वामी! मने खेदित करवायीज जो आपने खशी | Jun Gun Aaradh P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ Suu धम्मि- इत्यादिवाधितालापा-माश्वास्य वचनांतरैः / / वल्लनां सह मित्रेण / कुमारः स्वगृहं ययौ / / 54 // माई दादिण्यात्प्रकटं वक्तु-मशक्तश्चापलं मम // अज्ञापयप्रियो नंग्यं–तरेणायं धियां निधिः॥१५॥ सत्या अपि ममासत्या / ही जातेयं कलंकिता // संतापेनेति सा कष्टं / गमयामास वासरं // 16 // | // युग्मं // रजन्यां राजसूर्गुप्त-गात्रः सिखांजनेन सः // गत्वा पन्या गृहं कोण-देशमालंब्य | तस्थिवान् // 57 / पर्यकेऽथ विपर्यस्त-गात्रां मत्सीमिव स्थने // जगाद यामिनीयामा-पगमे तां थती होय तो तेम करो? केमके माराजेवू गम्मतनुं पात्र आपने बीजं क्यां मळशे? // 53 // एवी रीते दुःखित वचनोवाळी पोतानी ते स्त्रीने बीजी रीते अाश्वासना पापीने ते गुणवर्मा कु. मार मित्रसहित पोताने घेर गयो. // 55 // मारा महाबुद्धिवान नारे फक्त दाक्षिणताने लीधे मारं आ नगंबनपणुं प्रगटरीते नदि कही श्वकवाथी मने जुदा प्रकारथीज जणावी दीधुं . // // 55 // अरे हुं सती छतां पण मारापर असतीपणानुं कलंक याव्यु , एवी रीते संतापवडे | करीने तेणीए कष्टथी ते दिवस निर्गमन को. // 26 // पनी रात्रिए ते गुणवर्मा कुमार सिद्धांत जनथी अदृश्य शरीरवाळो थर कनकवतीने घेर जश् एक खुणामां बेठो. // 27 // हवे जमीन P.P.AC.Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- प्रियंवदा // 27 // यमुद्यममधार्षीः प्राग् / यियासुस्त्वं जिनालये // किं सोऽद्य हास्तिो छूते / है. तः केनापि वा सखि // 55 // किं ज्वरः किं स्मरः किं वा / कोऽपि व्यतिकरः परः // अद्या दं गतापाय / गतापायमिदं वद // 60 // न किं वेत्सि खगः कर्ता / विलंबेनाविलं मनः // त्वरस्व 255 सानवहेला-ऽवहेला खलु वैरिणी // 61 // साय निःश्वासबूकानि-लपयंत्योष्टपल्लवं // बनाषे सखि किं वच्मि / मंदनाग्यास्मि सर्वथा // 6 // यतो बाल्येऽहमारूढा / मेरुशृंगमिवोन्नतं // पितुः पर जेम माउली तेम पलंगपर अस्थव्यस्थ शरीरे पडेली ते कनकवतीप्रते रात्रिनो एक पहोर गयाबाद प्रियंवदा बोली के, // 50 // हे सखि ! पूर्व जिनालयमां जवामाटे तुं जे नद्यम धारण करती हती, ते उद्यमने शुं आजे जुगारमा हारी गश् लु ? के कोए ते हरी लीधो ? // 5 // वळी बाजे तारां या शरीरने हेरान करनारो शुं तने ताप चड्यो ? अथवा शुं कामातुर थ बु? के कई बीजी बाबत बनी जे ? तुं सत्य कहे ? // 60 / / वळी तुं नथी जाणती के जो विलंब थशे तो ते विद्याधरनुं मन क्रोधातुर थशे, माटे उतावल कर ? केमके तेनी अवगणना वैर क रावनारी थशे. // 61 // हवे निःश्वासरूपी बृथी पोताना उष्टपल्लवने सूकावतीथकी कनकवती बो| P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ . 296 धम्मि प्रासादमीदये स्म / खेटेनानेन खेऽटता // 63 // मांसपेशीमिव श्येनः / स्तेनश्चैकावली मिव // हः / मात्रा मुमोच मामेष / काप्यरण्ये दवीयसि // 64 // निमैतुमपि मां हंतु-मसौ कीनाशनिःकृपः // | कृपाणमाकृशन्नेव / कोशादेवमवोचत // 65 // बाले मृगीव व्यालेन / मया त्वमिह हन्यसे / / मृ. योविनेषि चेत्सद्य-स्तत्प्रपद्यस्व मे वचः // 66 // नदीच्यां दूरतो यत्नात / कृतं रत्नमयं मया // अस्ति श्रीमयुगादीश-नवनं नेत्रपावनं / / 67 // मत्प्रेषितविमानेन / चैत्यमेत्य तदन्वहं // त्वया ली के हे सखि ! हुं तने शुं कहुं ? बिलकुल हुं मंदगाग्यवाळी बु. // 6 // केमके बाव्यपणामां मारा पिताना मेरुशिखरजेवडा जंचा महेलपर ज्यारे हुं चड़ी हती त्यारे अाकाशमां फरता या विद्याधरे मने दीठी. // 63 // त्यारे बाजपदी जेम मांसनी पेशीने तथा चोर जेम एकावली हा. रने तेम मने हरीने तेणे क्यांक दूर वनमां मेली. // 64 // पनी ते यमसरखो निर्दय विद्यावर निरपराधी एवी पण मने हणवामाटे मियानमांथी तलवार खेंचीने कहेवा लाग्यो के, // 65 // हे बालिका ! हाथी जेम हरिणीने तेम हुं तने यहीं मारी नाखीश, अने जो तुं मृत्युथी मरती | हो तोजलदी मारुं वचन स्वीकार? / / 66 / / उत्तर दिशामां दूर में एक रत्नमय भने नेत्रोने प. | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- गौरांगि संगीतं / कार्यमई निशागरे / / 67 // न कार्य दारकर्मापि / ममादेशं विना त्वया // 6 ति तस्य वचो मेने / मया जीवितकाम्यया // 6 // . तदादि यामि यामिन्यां / तत्र नृयाय नि. | त्यशः / व्यधां तु जीतजी तैव / पाणिग्रहणमप्यहं / / 10 / न तनिया मयाद्यापि / कौमारं सखि 297 | खंड्यते // नदंतोऽयमियत्कालं / गोपितः स्वपतेरपि / / 11. // चर्ताद्य स्वयमेवेदं / विदांचके. क वित्र करनारं श्रीमान ऋषभदेवप्रजनुं मंदिर यत्नपूर्वक बनाव्यु जे. / / .67 // माटे हे गौर शरोरखा. ळी ! में मोकलेला विमानमां बेशीने तारे हमेशां मध्यरात्रिए ते जिनमंदिरमा प्रावीने संगीत कवं. // 6 // वळी मारा हुकमविना तारे परणवू पण नहि. त्यारे में पण जीववानी श्वाथी ते. नुं ते वचन कबुल कयु. // 67 / / अने त्यारथी हुं हमेशां रात्रिए त्यां नाचवामाटे जानं , त. था या विवाह पण में ( तेनाथी ) बीतां बीतांज को बे. // 10 // वळी हे सखि ! ते विद्याध. रना मरथी में हजु माझं कुमारीपणुं पण खमित कयु नथी तेम थारला वखतसुधा या वृत्तांत में मारा पतिथी पण गुप्त राख्यो रे // 11 // परंतु आजे मारा स्वामीए ते वृत्तांत कोयन रीते पो. तानी मेळेज जाती लीधोने, केमके महात्माननी बुद्धि दिव्य रयनीपेठे सर्व जगोए पहोंची। Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.
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________________ श्त धम्मि- थंचन // धीर्दिव्यस्थवत्सर्व-पथीना हि महात्मनां // 12 // मवृत्तमयमझासीत् / स्वदृशा चेन्न त. म द्वयं // यदि चान्यगिराबोधि / शोधिस्तन्नामिनापि मे // 13 // जाननय कथं नायः / सोढा द्वैप विकीमिति / / स्वैरिणीति धिया हन्या-न्मामप्येष कदाचन // 14 // भिंद्याविद्याधराधीशं / तत्र ग. त्वा कदाप्यसौ // यहा कुर्यात्स एवास्य / दशां दुहृदभीप्सितां / / 75 // अनया चिंतया तन्धि / जातास्मि भृशमाकुला / कार्ये दैवस्य वश्येऽस्मिन् / न जाने किं भविष्यति // 16 / / मृयुर्मे पा. | वळे ने. // 72 // वळी या मारा स्वामीए मारुं वृत्तांत जो पोतानी आंखोथी जोयुं होशे तो मने जय नथी, पण जो अन्यना कहेवाथी जाण्यु होशे, तो ते मारु कलंक अमिथी पण शुरू शके तेम नथी. // 73 // वळी ते मारा स्वामी मने बे मार्गे चालनारी जाणीने केम सहन कर शे? वळी या स्वेबाचारी , एवी बुद्धि लावीने कदाच मने ते मारी पण नाखे. // 14 // वळी | कदाचित् ते त्यां जश्ने ते विद्याधरपतिने पण मारी नाखे, अथवा ते विद्याधरज कदाच दुर्जनों | ने इलित एवी तेनी सुर्दशा करे. // 15 // एवी रोते हे तन्वि! हुं या चिंताथी अत्यंत व्याकु. | ल थ ढुं, अने या दैवाधीन कार्यमा हवे शुं थशे? ते जाणी शकातुं नथी. / / 76 // मारो P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- णिना पत्युः / प्रत्युत प्रीतिकारणं // पांसुलत्वापवादश्चे--मांसलत्वमियर्ति न // 3 // चकोरी | निशि कोकी तु / दिवा भवति निर्वृता // मया तु निर्वतिः प्रापि / पापिन्या न दिवानिशं / / Gil | निलिनी निशि निद्राति / दिवा कैरविणी पुनः // सुखं दिवा च रात्रौ च / न नियं मया सखि || // // एकतो तरि प्रीति-रन्यतः खेचराद्भयं // कियत्कालं सखि स्थेय-मीदृशे संकटे म| या // 70 // तत्तत्राद्य न यास्यामि / त्वयैव सखि गम्यतां // यद्भाव्यं तनवत्वेव-मुक्त्वा तस्थौ नृ. या कुलटापणानो अपवाद जो विस्तार न पामे तो मारा पतिना हाथे मरवू ते पण मने प्रीति करनारं . // 9 // चकोरी रात्रिए तथा कोकी दिवसे पण निरांत मेलवी शके चे, परंतु मने पापणीने तो दिवसे के रात्रिए पण विश्राम मळनो नयी. 190|| कमलिनी रात्रिए सुए , तथा कैरविणी दिवसे सुए , परंतु हे सखि! मने तो दिवसे के रात्रिए पण सुखे निद्रा मलती नयी. // 15 // एक बाजुथी मने स्वामिप्रते प्रीति ने, घने बीजी बाजुयी मने ते विद्याधरनो नय. माटे हे सखि ! अावा संकटमां ते मारे हवे केटलोक वखन रहेवू ! // 70 // माटे आज तो त्यां नहि जनं, अने तुंज जा? जे थवानु होय ते थान? एम कहीने कनकवती त्यांजर Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.
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________________ धम्मि- पांगजा / / 71 // कुमारश्चाखबन्न-प्रचारोऽथ व्यचिंतयत् // निपीयास्या श्मा वाचो / हृदयं स्फुटनीव मे // // 2 // एका पाणिगृहीतीयं / स्नेहला साप्यनारतं // पराधीनतया दुःखं / धत्ते धिग्मम पौरुषं // 73 // बध्वा तदद्य विद्वेषी / वध्य एव स खेचरः // वध्वाश्च प्रीतिरुपाद्या-ब्जिन्या श्व तमःदये // 4 // आरूढा नत्दाणायाते / विमानेऽथ प्रियंवदा // अन्वारोह्य कुमारोऽपि / प्रचचा. ही. / / 1 // बुपी पोलीसनीपेठे त्यां गुप्त रहेलो गुणवर्मा कुमार हवे विचारखा लाग्यो के मारी प्रियाना या वचनो सांजलीने तो माझं हृदय जाणे फाटी जाय जे. ॥शा एक तोया मारी परोली स्त्रीने. अने तेमां पण वली अत्यंत स्नेहवालो ने, अने ते ज्यारे पराधीनपणाग्री दुःख सहन करे . त्यारे मारां पुरुषपणाने धिक्कार . // 73 / / माटे आज तो ते मारा शत्रु विद्याधरने मारे बांधीने मारखोज जोश्ये,अने अंधकारनो नाश थवाथी जेम कमलिनीने तेम मारे था मारी स्त्रीने प्रीति नपजाववी जोश्ये. // 4 // हवे तत्दाण थावेलां ते विमानमां प्रियंवदा चमी बेठी, अने गुणवः | P.P. Ac, Gunratnasuri M.S Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मिः ल नभोऽध्वना / / 75 // उपचैत्यं विमानेऽस्मि-नवतीर्य स्वयं स्थिते // युग्मिनाविव संपृक्तौ / ज / ग्मतुस्तौ जिनालयं // 6 // चिरं प्रतीक्ष्य कनक-वती रिक्षपात्यये // तावत्खेचरचक्रेशः / स्नात्रं | चक्रे जिनेशितः // 7 // नाट्यं विनापि निर्ग-नसौ नानेयमंदिरात् / / द्वार एव निरैक्षिष्ट / 301 / प्रविशंती प्रियंवदां // // सोऽपृढन्मत्सरी किं रे / स्वामिनी न तवागता / श्यानस्याः प्रमादः | किं / मयि शास्तरि जीवति // 7 // तस्याः शिरोतिरस्तीति / मंदमुक्ते तया जिया // एषा मृ. | र्मा कुमार पण तेनी पाबळ तेमां चमीने आकाशमार्गे चालवा लाग्यो. / / 79 // पड़ी ते जिन| मंदिरपासे ते विमान पोतानी मेळेज नतरीने स्थिर थये बते युगलीयांनी पेठे जोमायेला ते व ने जिनालयमां गया. // 6 // घणो वखत कनकवतीनी राह जोश्ने घणी रात्रि गयाबाद ते खे. चरेश्वरे प्रभुनुं स्नान कर्यु. // 77 // पनी नृत्यविनाज श्रीयादिनाथप्रभुना मंदिरमाथी बहार नि. कलता ते विद्याधरे बारणामांज प्रवेश करती प्रियंवदाने जो. // 6 // त्यारे ते मत्सरी विद्या. धरे तेणीने पूज्यु के घरे! बाजे तारी शेगणी केम श्रावी नहि? हुं नपरी तां तेंणीनो या. टलो प्रमाद शुं जीवी शकशे ? // 7 // त्यारे डरथी प्रियंवदाए धीमेथी तेणी- आज माथं दः. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सार्थ धम्मि- षोक्तिरेवेति / विपश्चिनिश्चिकाय सः // 11 // पश्चादुल्लापयिष्यामि / लघु तां शस्त्रकर्मणा // प्र थमं दर्शयिष्यामि / तब कैतववाक्फलं // 42 // इत्युक्त्वा तां गले धृत्वा / क्रंदती कुरीमिव // स्मरेष्टदेवतामेवं / जिघांसुर्निजगाद सः // 13 // साप्यवादीदहो खेट / झातमेतद नृत्पुरा // संग तेस्ते यमस्येव / जवितायतिरीहशी // 4 // नवंचितनवारण्यः / कारुण्यरससागरः // शरण्यः श. रणं पूर्व-मयमेव जिनोऽस्तु मे // 55 // पेष्टुं कंकतवलिदाः / परोलदानरीनलं // शरणं गुखे बे एम कहेते बते ते हुशियार विद्याधरे निश्चय कर्यो के खरेखर आ तेणीनुं जूठं बहानुं जे. // 1 // ते कनकवतीने तो हुँ पाउलथी तुरत शस्त्रवडे हलकी करीश, हमणा तो प्रथम तारां कपटी वचननु फल तने देखाडीश. // 72 // एम कहीने आनंद करती कुतरीनीपेठे तेणीने ग. ळांमांथी पकडीने मारवानी श्वावाळो ते विद्याधर कहेवा लाग्यो के तारा इष्ट देवचं स्मरण क. र? || 53 // त्यारे ते पण बोली के अरे खेचर! अमोए प्रथमथीज जाण्यु हतुं के यमसरखो जे तु तेनी सोबतथी आज परिणाम यावशे. / / 4 / नळंगेल ने संसाररूपी वन जेणे तया करुणारसना समुष्सरखा एवा था जिनेश्वरज प्रथम मने शरणरूप थान ? // 55 // पनी का P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- एवर्मा मे / ततो मत्स्वामिनीपतिः // 76 // अथो तदनिधासीधु-पानप्रविलसन्मदः // नृकीटो मत्पुरः कोऽय-मित्युच्चैर्गर्जितोर्जितः // 7 // नल्लालयन खाशुंमां / वासयन्नखिलान् खगान // साथ यावलतावन्मृद्राति / तां स खेचरकुंजरः // 7 // परप्राणहरी खग-चपेटां व्योम्नि वल्गयन् // 303 | सहसाविरजुत्तावत् / कुमारः केसरीव सः // एए // विजिविशेषकं / / वाचालयन्नसौ शैला-नमि. कसी जेम.लीखोने तेम लाखोगमे शत्रुजने मारवाने जे समर्थ , एवो मारी शेगणीनो स्वामी गुणवर्मा मने शरणरूप था ? // 6 // हवे ते गुणवर्माना नामरूपी मदिराना पानयी मदो. न्मत्त थयेलो ते विद्याधर मोटे स्वरेथी गर्जारव करवा लाग्यो के अरे! ते मनुष्यरूपी कीडो वळी मारी आगल शुं हिसाबमां ने ? // 5 // पजी ते विद्याधररूपी हाथी पोतानी तलवाररूपी सुंढने नगळतोयको तथा सर्व खेचरोने त्रास थापतोथको जेवामां तेणीने वेलडीनीपेठे कचरी नाखवानी तैयारी करे , तेवामां // ए // शत्रुना प्राण हरनारी खारूपी थप्पडने आकाशमां न. गळतोथको ते गुणवर्मा कुमार केसरी सिंहनीपेठे एकदम प्रगट थयो. // ए // घणा पमघान. | वडे करीने पर्वतोने वाचाळ करतोयको वैरिपदाने नय करनारं सिंहनादसरखं वचन बोलवा ला. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- तैः प्रतिशब्दितैः // वाचं दवेडामिवादत्त / वैरिपदानयंकरौं // 1400 // रे पाप कठिनालाप / जी / रुजांपक तापक // वीरमानिन्निमां मुंच / बालां मम पुरो भव // 1 // ग्रस्यते बलिना हीन-बलः कुलकलंकिना / / अयमारण्यको न्याय-स्त्वया चैत्येऽवतारितः // 2 // मा मंस्था यकिनार्चा मे 304 / जविता विघ्नशांतये // कृतं ह्यविधिना पुण्यं / प्रत्युतानर्थवद्यतः // 3 // यथा गुणकर वैद्यो-पदे. शात्कृतमौषधं // यथा गुरूपदेशेन / स्मृतो मंत्रः फलप्रदः // 5 // यथा कृषिः कृता काल / एव ग्यो के, // 1400 // अरे! पापी! कठोखचनी! बीकणने मरावनारा! ताप आपनारा! तथा सुनटनों डोळ राखनारा! या बालिकाने बगेडीने मारा सामो याव? // 1 // कुळमां कलंक नृत ब. लवान निर्बलने ग्रसी जाय , एवो या जंगली न्याय तें अहिं जिनमंदिरमा उतार्यो बे. ॥शा वळी एम पण तुं नदि मानजे के या जिनपूजा मारां विघ्नो शांत करशे, केमके अविधियी करेवु पुण्य पण उलटुं अनर्थोने करनालं. // 3 // वळी वैद्यना नपदेशयी करेलु औषध जेम | गुणकारी याय , तथा गुरुना उपदेशथी याद करेलो मंत्र जेम फल थापनारो थाय ने, // 5 // तथा अवसरेज करेली खेती जेम धान्यनी वृद्धि करनारी थाय ने, तेम धर्म पण गुरुनी माझा. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- शस्यस्य वृष्ये // तथा फलति धर्मोऽपि / कांले गुझिया कृतः // 6 // निशि देवार्चनं बाला। कृष्टिस्तद्भोगविघ्नता // इत्यादिपंकशुधिर्मत्-खधाराजलेऽस्तु ते // 7 // पादाहतोऽथ जोगीव / क्रोधांधः खेचरेश्वरः // मुक्त्वा स्त्रियमुदस्तासिः / कुमारं प्रत्यधावत // 7 // पतनोत्पतनव्यग्रौ। द 305 | ए कंदुकलीलया // संयुक्तौ च वियुक्तौ च / कांस्यतालाविव दणं / / 7 // मल्लाविव क्रमन्यासः / | कंपयंती दणं दंमां // कुमारखचेरेघौ तौ / युयुधाते मिथश्चिरं / / 10 // युग्मं / / दणं पुरः कणं पूर्वक अक्सरे करेलो फले . // 6 // रात्रिए देवपूजा, कुमारीकानन पकडवू, तेलेना गोगोमां विघ्न करवू, इत्यादिक तारा ( कादवनी) पापोनी शुछि मारा खाधारारूपी जलमां थाने ? // 7 // हवे पगेथी हणेला सर्पनीपेठे ते क्रोधाँध विद्याधर ते स्त्रीने गेमी तलवार जगामीने कुमारप्रते दोड्यो. // 7 // पनी दणवार दमानोपेठे तेन बने जबब्वा तथा नीचे भाववा लाग्या, तया कांसीधाननीपेठे दाणवार जोमावा तथा विखुटा पमवा लाग्या. // 7 // वळी मलनीपेठे चरण न्यासोथी दाणसुधी पृथ्वीने कंपावताथका ते कुमार अंने विद्याधर बन्ने घणा वखतसुधि परस्पर युछ करवा लाग्या. / / 10 / / एक एवा पण ते राजपुत्रने दणमा आगल, दणमा पाछत, दण / Jun Gun Aaradhak Trust - P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ धम्मि- पश्चात / दाणं व्योग्नि दाणं दितौ // वीदांचके खगेनैको–ऽप्यनेक श्व नूप नः // 11 // विस्म जय वीरावतंसेति / वादिनस्तस्य मूर्धनि / वषुः कुसुमस्तोमं / यशो मूर्त मिवामराः // 13 // वि. भतः खेचरान् विश्वान् / समाश्वास्य मृदुक्तिभिः // स तत्र दणमासित्वा-ऽपनिन्ये समरश्रमं / / | // 14 // हरिण्यः पाशनिर्मुक्ता / श्व माद्यन्मुदस्तदा // अत्यनंदन्नृपसुता-स्तिस्रोऽपि समुपेत्य मां आकाशमां अने दाणमां पृथ्वीपर एम अनेक प्रकारे ते विद्याधर जोवा लाग्यो. // 11 // आकाशमा रहेला व्यंतर अने विद्याधरोवडे आश्चर्यपूर्वक जोवाएला ते गुणवर्मा कुमारे अवसर मेलवीने तलवारथी ते विद्याधरनुं मस्तक कापी नाख्यु. // 15 // हे वीरशिरोमणि! तुं जय पाम? एम कहेताथका देवो तेना मस्तकपर मूर्तिवंत यशसरखो पुष्पोनो समूह वरसाववा लाग्या. // 13 // पनी सघला नय पामता विद्याधरोने मिष्ट वचनोथी आश्वासन पापीने तेणे त्यां कणवार रहीने संग्रामनो थाक दूर कर्यो.. // 14 // पनी पाशमांथी मुक्त थयेली हरिणीननीपेते अत्यंत हर्षित थयेली ते त्रणे राजपुत्रीने पण त्यां कुमारपासे श्रावीने तेनी स्तुति करवा लागी. // 19 // (व. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ सार्थ धम्मि- तं // 15 // वयं तिस्रोऽपि पाल–बालिकास्त्वधरिख // नीत्वा. मृत्युदशामत्र / नाट्यमेतेन का | रिताः // 16 // पाणिग्रहणमप्यस्य / वाक्पाशपतिता वयं // नाकामं कीदृशी बंदी-कृतस्त्रीणां सु. | खस्पृहा // 17 // अस्मान मोचयता धीमन / किं नादीयत नस्त्वया // अय स्वस्थानकं यामः / 307 | सौम्य यद्यनुमन्यसे // 17 // ततस्तदाझया तासु / प्रस्थितासु यथागतं // प्रियंवदान्वितोऽध्यास्त / | स्वं विमानं नृपांगजः // 15 // तेन प्राप्तनभःपारः / स्वपुरं पुरुषार्थवित / / गत्वा सत्वाधिको मंक्षु / ळी ते बोली के ) अमो त्रणे तमारी स्त्रीनीपेठे राजपुत्रीन जीये, तथा ते विद्याधरे मरणदशाने पहोंचामीने अहीं अमोने नचावी . // 16 // वळी तेना वचनरूपी पाशमां पम्वाथी अमोए विवाह पण कर्यो नथी, केमके केद करेली स्त्री ने सुखनी वांग वळी केवी होय ? // 17 // वळी हे बुध्विान ! अमोने गमाववाथी तमोए अमोने शुं नथी बाप्यु? हवे हे सौम्य ! जो तमो रजा पापो तो अमो अमारे स्थानके जश्ये. // 17 // पनी तेनी आझाथी तेन जे रीते यावी हती ते रीते पाजी वळते ते गुणवर्मा पण प्रियंवदासहित पोताना विमानमां बेठो. // 10 // पजी पुरुषार्थने जाणनारो तथा महाहिमती ते कुमार ते विमानवडे याकाशनो पार पामी पोता. SUM Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- वध्वा वेश्म विवेश सः // 20 // वामांगस्पंदनैः पूर्व / संसूचिततदागमा // प्रियं प्रेक्ष्य प्रमोदाब्धि | -वीचिनित्यतिस्म सा // 21 // सखी सा खेचरोदंतं / पप्रल भृशमुत्सुका // सापि तद्दधमाचष्ट / कुमारपरिकल्पितं // 25 // ततः प्रोधृतशल्येव / कुमारी न्यगदन्मुदा // त्वयाद्य सत्यता नीतं / 307 | निजं नाम प्रियंवदे // 23 // कथं तत्रागमत्तं चा-ऽवधीदत्रांगमत्पुनः / / श्यस्य चरितैश्चित्रं / म. य्य दिशदैरपि // 24 // पास्तां ते विक्रमेणास्य / कृता ऋतनुजामपि // चित्रीया चिरमित्युक्त्वा | ना नगरमां जश् जलदी कनकवताना महेलमां दाखल थयो. // 20 // माबु योग फरकवायी प्रथ. मथीज सूचित थयेल के जरिनुं आगमन जेणीने एवी ते कनकवती भरिने जोड्ने हर्षरूपी समुद्रना मोजावडे नाचवा लागी. // 21 // पछी तेणीए अत्यंत नत्सुक बनीने संखीने ते वि. द्याधरनो वृत्तांत पूज्यो, त्यारे तेणीएं पणं कुमारे करेलो तेनो वध जणाव्यो. // // हवे जा. णे पोतानुं शव्य निकळी गयु होयं नहि तेमं कनकवती हर्षयी बोली के हे सखि! तें बाजें ता. प्रियंवदा नाम सार्थक फयु जे. // 23 // ते त्यां केम श्राव्या ? तेने केम मार्यो ? अने वळी | यहिं शी रीते पाग याव्या? एवी रीतना तेना निर्मल चरित्रथी पण मारा मनमां आश्चर्य (चि. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ धम्मि- / विरराम प्रियंवदा // 25 // एकतरपे शयानोऽथ / चिरोत्कंठितयानया / समग्रश्रमसाफल्य | ममस्त नृपनंदनः / / 26 // तावत्तत्रागतो व्योना / हतविद्याधरानुजः // पार्थीपपीडदयितं / कुमारं | सुप्तमैदान // 27 // विधाय परलोकाध्व-न्यध्वनीनं ममाग्रज / कथमेष सुखं शेत। इति बाद चुकोप सः // 20 // सुप्तमेव तमुध्धृत्य / पुरत्नं सोऽर्णवेऽदिपत् // सत्यां कर्तुमिवामुष्य / रत्नाकर इति श्रुतिं // // नसललोलकल्लोला-दोलितात्माप्यनाकुलः // सात्विकस्तरितुं सोऽब्धिं / त्रामण) थयुं . // 24 // तने तो एक बाजु रहो, परंतु तेमना पराक्रमे तो देवोने पण घणा कालसुधि पाश्चर्य नपजाव्यु , एम कहीने ते प्रियंवदा मौन रही. // 25 // हवे घणा काळग्री उत्कंठित थयेली ते कनकवतीनी साथे एक बिगनामां शयन करीने ते राजकुमार सर्व श्रम सफलपणुं मानवा लाग्यो. / / 16 / / एवामां ते मारेला विद्याधरनो नानो नाश्त्यां आकाशमार्गे याव्यो, अने स्त्रीने आलिंगन देश सुतेला ते कुमारने तेणे जोयो. // 27 // मारा मोटा जाने परलोकमां पहोंचामीने या सुखे केम सुतो ? एम विचारी ते अत्यंत कोपायमान थयो. ॥शा पजी ते सुतेलाज पुरुषरत्नने नपाडीने जाणे, समुद्रनी रत्नाकरपणानी प्रख्यातिने सत्य करखामा P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 310 धम्मि- बाहुल्यामुपचक्रमे // 30 // कथंचिद्भमपोतस्या-स्फलत्फलकमाप्य सः // चिराय मिलितं मित्र मिवोपगृढनिर्नरं // 31 // सप्ताहेन यदाधारा-त्तीर्णाऽब्धिः स तटं गतः // फलकं तन्मुमोचासौ। व्याधौ दाणे निषग् रिपुः // 32 // एकतः सागरं पश्य-नन्यतो गहनं वनं // एकतो मकरक्रीडां | | व्यालचापलमन्यतः // 33 // सत्वेनैकेन हस्त्यश्व-रथपत्तिपरिस्कृतं // स्वं मानयनयं दूरे। यया. होय नहि तेम तेणे समुष्मां फेंक्यो. // 25 // जगन्तां अने चपल मोजांनथी दोलायमान थया उतां पण ते हिमती कुमार व्याकुल थयाविना बन्ने हाथोयी समुद्र तरवा लाग्यो. // 30 // एवामां केटलेक प्रयासे कोश्क जांगेला वहाणर्नु नबळतुं पाटीयुं तेन हाय यावी जवायी घणे काले मळेला मित्रनीपेठे तेने दृढ आलिंगन करीने रह्यो. // 31 / / पजी तेना आधारथी ते सा. त दिवसे समुद्र तरीने कांठे गयो, तथा त्यां तेणे ते पाटीनं गेडी दी, केमके रोग गयावाद वैद्य वैरिसरखो थाय . // 31 // हवे त्यां एक बाजु समुज्ने तथा बीजी बाजु गहन वनने, ते. मज एक बाजु मगरोनी क्रीडाने तथा बीजी बाजु हाथीननी गम्मतने ते जोवा लाग्यो. // 33 // फक्त एक हिम्मतथीज पोताने हाथी, घोमा, स्थ अने पायदळयी वीटायेलो मानतोयको ते दूर-| P.P.AC. Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- वेकेन वर्त्मना // 34 // अजलोऽपि जलार्थ स / हंसगत्या ब्रमन् वने // एकं तापसमैदिष्ट / के रोपात्तकमंडधं // 35 // दिष्ट्या दृष्टो मनुष्योऽय-मरण्ये श्वापदास्पदे // इति प्रमोदमेदवी / त. साथ मुपेयाय नूपभूः // 36 // पृष्टव्योऽसि कुतः शून्ये ऽरण्येत्र मतिमन्निति // तेन पृष्टः कुमारः . स्वं / जामपोतं न्यवेदयत् // 30 // जलैः फलैर्विनिर्माया-तिथेयों तापसेन सः // अन्यर्थ्य स्वाश्रमं निन्ये / तादृशाः कस्य न प्रियाः // 30 // स्फुरफटः सदापत्त्र-प्रोढस्तेन दृढासनः // दृष्टः कुल सुधी एक मार्गे चालतो थयो. // 34 // जलविनानो ते जलमाटे हंसनीपेठे वनमां नमवा ला ग्यो, त्यां तेणे हाथमां कमालुवाळा एक तापसने जोयो. // 35 // सारं थयु के जंगली पशुन नां स्थानसरखां था जंगलमां मनुष्य नजरे पड्यो, एम विचारी हर्षथी पुष्ट थयेलो ते राजपुत्र तेनीपासे याव्यो. // 36 // हे बुद्धिवान ! हुँ पूलु के था नज्जड जंगलमां तुं क्यांथी? एम ते तापसे पूजवाथी कुमार बोल्यो के समुद्रमा मारुं वहाण नांगी जवाथी हुँ अहिं याव्यो बु. // // 37 // पजी ते तापस जल तथा फलोवडे तेनी परोणागत करीने प्रार्थनापूर्वक तेने पोताना थाश्रममा लाव्यो, केमके तेवा मनुष्यो कोने प्रिय थ६ पडता नयी? // 30 // हवे त्यां तेपो PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- पतिः क्लांति-वार वट श्वाग्रतः // 30 // सानंदं वंदमानस्तं / तेनाथालापितो मुदा // स्वधाम्नी मा वोटजे तता-गितो व्यापारयदृशं // 40 // ददर्श कोणदेशस्थां / तत्र नेत्रसुधांजनं // अनवृ. ष्टिसंकाश-दर्शनां स्वां स वलनां // 41 // तस्यात्यंतिकमानंद-माकलय्य महर्षिणा // किमेषा 312 तव पत्नीति / पृष्ट नमित्युवाच सः // 42 // दंतानिप्रणाय्याय / मुनिरेवं स्ववाक्सुवां // चिक्षेप लटकती जटावाळा, सऊनोने यापदाथी रक्षण करनारानमा अग्रेसर ( हमेशां पत्रोथी प्रौढ बनेला) दृढ श्रासन ( थम) वाळा तथा खेद निवारनारा वडसरखा कुलपतिने गाडीना जागमां जोया. // 35 // आनंदसहित कुमारे तेने वंदन कर्यु. अने तेणे पण तेने हर्षयी बोलाव्यो. पजी ते पोताना घरनीपेठे ते कुलपतिनी कुंपमीमां चारे बाजु दृष्टि करवा लाग्यो. // 40 // एवामां त्यां तेणे एक खुणामां बेठेली तथा आंखोमां अमृतांजनसरखी अने वादळांविनानी वृष्टि सरखां दर्शनवाळी पोतानी प्राणवल्लभा कनकवतीने दोठी. // 41 // पजी तेने थता अत्यंत या. नंदने जाणीने ते महर्षिए पूज्युं के शुं था तारी स्त्री ने? त्यारे गुणवर्माए पण हा पाडी. ॥शा | हवे ते मुनि पोताना दांतोनी कांतिरूपी नळीथी तेना कर्णरूपी कुंडमां पोतानी वाणीरूपी अ. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- तत्व कुंडे / शृणु तन्नृपनंदन // 43 / / शो गतस्तृतीयेऽह्नि / फलाद्याहृतये वनं / / बहमेतां ल तागुटम-व्यवधानां व्यलोकयं // 4 // आतपे यामिनीवात्र / कामिनी नस्तपोवने // केयं कुर्या स्किमित्यंत-मयि ध्यायति सा जगौ // 45 // सर्वे शृएवंतु दिक्पाला / वनदेव्योऽखिलाअपि // 313 | प्रणाममंत्यमाधाय / साहं विझपयामि वः // 46 // मम कृते दुःखं / तत्किं यन्नाधिसोढवा. न् // तृणीयतिस्म स प्राणा-नपि वात्सख्यतो मयि // 4 // मनागपि मया नास्य / कृते प्रतिकृतं मृत रेमवा लाग्या के हे राजपुत्र! तु सांगळ? // 43 // श्राजथी त्रीजे दिवसे हं फलयादिक लेवामाटे वनमां गयो हतो, त्यां में लतार्जना गुबानी अंदर या तारी स्त्रीने जो. // 4 // तमकामां जेम रात्रि तेम था अमारां तपोवनमां या स्त्री कोण हशे? तथा अहिं ते शुं करशे? एम ज्यारे हुँ मनमां विचारखा लाग्यो त्यारे ते बोली के, // 45 // हे सर्व विक्पालो ! तथा सर्वे वनदेवीन ! तमो सर्वे सांगतो? हुँ तमोने बेल्ला प्रणाम करी विनंति करुं बु के, // 46 // श्रा जगतमां ते कयं दुःख ने के जे दुःख मारा स्वामीए मारेमाटे सहन कयु नथी, वळी ते मारापर नी प्रीतिथी पोताना प्राणोने पण तृणसमान गणे. // 4 // वली तेने बदले हं तेनापर जग, Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ धम्मि- कृतं // यहा किमुपकुर्वीत / जीमूतस्य कलापिनी // 4 // पार्श्वस्श एव प्रेयान् / हृतः केनापि / धिविधि // दैवं हि राहुमुत्पाद्य / चकोरीउवियोगकृत् // 4 // विद्युलोके ततस्तीरे / वा.रत्र दिनत्रयं / / न तु लेने प्रियश्चक्षु-खि जन्मांधया मया // 50 // बवुस्तं विना प्राणाः। प्रया: णाभिमुखा मम // वारिणो विरहे हंत / कियन्नंदति पूतराः // 51 // कदाचिदत्र यद्येति / जीवन्मे जीवितेश्वरः / तत् प्रसद्य निवेद्याहं / संदेश व मामकः // 55 // सर्वथा जीवितस्यास्थापण प्रत्युपकार करी शकी नथी, अथवा मेघपर शुं कई मयूरी उपकार करी शके वे ? // 4 // मार पासेज रहेला ते मारा स्वामीने को हरी गयुं बे, माटे दैवने धिक्कार ! खरेखर विधाताए राहुने नत्पन्न करीने चकोरी अने चंडवच्चे विरोध कराव्यो . // 45 // वळी अहिं समुद्रकिनारे में त्रण दिवसोसुधि तपास करी, परंतु जन्मांध जेम नेत्रने तेम हं मारा स्वामीने मेळवीशकी नहि. // 50 // हवे तेनाविना था मारा प्राणो निकळीजवानी तैयारीमां बे, केमके जलविना पूराज केटलुक जीवी शके. // 51 // वळी कदांच मारा स्वामी यही जीवता यावे तो मारापर कृपा करीने मारा संदेशानीपेठे तमारे मारो वृत्तांत कहेवो के, / / 52 // पापना विरवधी जीव. P.P. Ac. Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- विरहे तव हेतवे // बाला बलादसून वेला-बनेऽत्र मुमुचे ततः / / 53 // विस्मारयंति- यद्येत-सु. खिन्यो वनदेवताः॥ तद्यूयं स्मरयिष्यध्वे / हे वल्लीवृक्षपक्षिणः // 14 // स एव शरणं स्वामी / मम स्तादिति वादिनी / / सारं सा रज्जुमावश्य / तरौ पाशं गले ददौ / / 55 / / ततो जातदयोऽहं ता-मुपगम्येत्यवादिशं / / मा कृथा मा कृथाः पुत्रि / वृयैवं मृत्युसाहसं // 16 // पाशे चिन्ने मया बाला / जगौ हा किं कृतं त्वया / / यन्न शक्ता दणमपि / प्राणान् धर्तु प्रियं विना // 7 // मया. वानी बाशा छोडीने या समुद्रकिनारापरना वनमां ते बालिकाएं पराणे पोताना प्राण त्यज्या जे. // 53 // वळी कदाच या सुखी वनदेवता जो या वृत्तांत विसरी जाय तो हे वेलमी वृद अने पदिने ! तमो ते याद राखशो. / / 54 // तेज मारा स्वामी मारा शरणरूप था ? एम कहेती ते बालिकाए एक मजबूत दोरहुं वृदपर बांधीने गळामां पाश नाख्यो. // 55 // त्यारे मने दया श्राववाथी में त्यां जर तेणीने कडं के हे पुत्रि! तुं फोकट आवी रीते आपघात कर नहि. // 16 / / पछी ज्यारे में तेनो पाश कापी नाख्यो त्यारे ते बोली के अरे! तमोए था शुं कयु ! केमके हं " | मारा स्वामीविना दाणवार पण प्राणो धारी शकुं तेम नयी. // 7 // त्यारे में तेणीने का के P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 316 धम्मि- ज्यधायि मा शोची-पदर्थ प्रियते त्वया // संगस्यते स ते प्रर्ता / व्यहेऽतीते ममाश्रमे // // माई इत्याशाकीलितपाणा-नीता सेयं मयाश्रमे // फलाजीत्रिकयातीये / कथंचन दिनत्रयं // पणा | जन्मीलितत्रणेवाद्य / माद्यदर्तिरियं पुनः // मृत्यवे निर्यती कृन्नात् / तपस्विजिरवार्यत // 60 // | प्राणानां प्रतिवरस्या / वत्स तावत्त्वमागतः // अथो वियोगपाथोधौ / मनामेतां समुघर // 61 // त. | तः कुलपति नत्वा / जगदे गुणवर्मणा // श्मां जीवयता तात / दत्तं मे जीवितं त्वया // 65 / / तुं दिलगिर न था, जेनेमाटे तुं श्रापघात करे ने ते तारो स्वामी त्रण दिवसोबाद तने अहिं मा. रा आश्रममा मळशे. // 27 // एवी रीतनी पाशायी तेणीने मृत्युयी बचावीने हं यहीं पाश्रममा लाव्यो , अने यहीं फलाहार करी केटनेक कष्टे तेणोए त्रण दिवसो व्यतीत कर्या ने // // 50 // (रसीथी) नरायेलां गुममांनी पेठे दुःखना नगराथी पाली ते आज आपघातमाटे ज वा लागी, त्यारे केटलीक महेनते तापसोए तेणीने अटकावी . // 60 // एवामां हे वत्स! ते. पीना प्राणोनो सादी तुं यहीं भावी पहोंच्यो बुं, हवे वियोगसमुद्रमां बुडेली या तारी स्त्रीनो तुं. उघार कर ? // 61 // पनी गुणवर्मा कुमार कुलपतिने नमीने बोल्यो के हे तात! या मारी P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- फलकं वार्षिममस्य / त्वां त्वरण्यगतस्य च // दर्शयन दृढतास्थानं / न देषी सर्वया विधिः / / 63 / / एतामथाश्लथप्रेमा-मादाय त्वदनुझया // यामि स्वविषयं भूयो / यात्वदर्शनोत्सवः // 64 // श्त्यशंसागिरा वित्त-निमित्तस्तापसाग्रणीः // यो निजाश्रमे तस्या-गमनं निरचैष्ट सः // 65 // 317 | गुणवर्मा ततस्तात-गृहादिव घनाग्रहः / / गृहीत्वा गृहिणीं ग्राम्य / वागात्पदिकः पथि // 66 // स्त्रीने जीवाडीने यापे मने जीवितदान प्राप्यु . // 6 // समुद्रमां बुड्यो तो मने पाटीनं मट्यु, घने वनमां आव्यो तो मने पापनां दर्शन थयां, एवी रीते मने अाधार देखाडवाथी हं ए. म मार्नु बु के मारुं दैव हजु सर्वथा मारुं देषी थयु नथी. / / 63 // हवे हुं आपनी पाशायी या मारी अत्यंत प्रेमवाळी स्त्रीने लेश्ने मारा देशमां जलं लु, अने वळी पण मने पापना दर्शननो उत्सव प्राप्त था ? // 64 // तेनी एवी रीतनी याशंसावाणीथी निमित्त जाणनार ते तापसेश्वरे निश्चय कर्यो के हजु भानुं फरीने मारां पाश्रममा बागमन थशे. / / 65 // पजी ते गुणवर्मा कुमार घणा आग्रहपूर्वक जेम पिताने घेश्यी तेम त्यांयी पोतानी स्त्रीने लेश्ने मार्गमां गामडी. | यानीपेठे पगे चालवा लाग्यो. // 66 // संध्याकाळे आगळ श्रावेली नदीना जलायी नज्ज्वल Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.
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________________ धम्मि- सायं पुरः समायात-नदीतीरे जलोज्ज्वले // मरालकेलिस्तेनाऽहा-रि स वैहारिकः क्रमः // 6 // स चेटवञ्चिरादश्रु-पूरप्लावितकज्जलैः // स्वयं प्रदालयामास / प्रियायाः कबुषं मुखं // 67 // फ लाशनपयःपान-प्रोतां पप्रब स प्रियां // वने वनेचरीव त्व-मायातासि कथं वद // 6 // साप्यु. 310 वाच तदा हृत्वा / स त्वां विद्याधराधमः // किंकर्तव्यविमूढात्मा-मेत्य मामित्यतर्जयत् / / 70 ॥नि. नाय नायकं नक्र-पासतां तेऽहमंबुधौ // पापे श्वापदसधीची / करिष्ये त्वां पुनर्गिरौ // 11 // तबनेला किनारापर तेणे हंससरखी कीमा करी, केमके वटेमाननी ते रीति . // 67 // घणा काळ्ना यांसुर्जना समूहथी धोवायेलां काजळयी श्याम थयेद्धं पोतानी प्रियार्नु मुख तेणे पोते दासनीपेठे धोयु. // 60 / / पजी फलाहारथी तथा जलपानथी खुशी थयेली पोतानी प्रियाने ते. णे पूयं के वनचरीनीपेठे तुं यहीं वनमां शीरीते भावी ते कहे ? // 6 // त्यारे तेणी पण बोली के ते नीच विद्याधर ते समये तमोने हर्याबाद, हवे मारे शुं करवू? एवा विचारमा मुंफाएली एवी जे हं तेनोपासे श्रावीने तर्जना करखा लाग्यो के, // 70 // में तारा भर्तारने तो समु. द्रन अंदर फेंकीने जलचर जीवोनो लक्ष्य बनान्यो बे, हवे हे पापिनी: तने वळी पर्वतपर फेंकी। P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- तोऽन्यपुरुषस्पर्श-नीरुकामप्युदस्य मां / / कचिनिचिदिपे तुंग-गिरिशृंगेऽश्मखम्वत् // // नि मरोदकवत्तस्मा उत्तीर्णाहं शनैः शनैः // वा. वेलावनेब्राम्यं / सुचिरं त्वां गवेषितुं // 3 // च्युतं चिंतामणिमिव / त्वामप्राप्य भृशाकुला // तत्रागां तापसो यत्र / स मनोजवतोऽमिलत् // 317 | // 14 // शेषः सर्वोऽप्युदंतस्ते / विदितोऽस्ति विदांवर // एवं तयोर्तियतोर्ययावस्तं दिवाकरः // 7 // हसंतो कोकयुग्मं तौ / रात्रौ विरहविह्वलं // अन्योऽन्यकंठसंसक्त-बाहुपाशौ निदद्रतुः ने वनचर जीवोने स्वाधीन करीश. // 71 // पठी परपुरुषना स्पर्शयी डरती एवी पण मने जंचकीने तेणे कोश्क जंचा पर्वतना शिखरपर पबरना टुकडानीपेठे फेंकी दीधी. // 15 // पजी करणाना जन्नीपेठे ते पर्वतपरथी हुं धीमे धीमे नतरीने आपने शोधवामाटे घणा वखतसुधि स. मुकिनाराना वनमां नमी. // 73 // परंतु गुम थयेलां चिंतामणिनीपेठे बापने नदि मेलववाथी अत्यंत व्याकुल थश्ने ज्यां मने ते तापस मल्यो त्यां मनोवेगसरखी जडपथी यावी. // 7 // बाकीनो सघळो वृत्तांत हे चतुरशिरोमणि! आपे जाण्यो बे, एवी रीते तेन वात करते बते सूर्य अस्त पाम्यो. // 79 // पनी तेल बन्ने रात्रिए विरहथी व्याकुल थयेला चकवाना जोडलांनी ढां P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि // 76 // सुखशय्याशयानौ तौ / बलान्वेषी स खेचरः // उदस्य मंशु चिक्षेप / पूर्ववजिरिसागरे | // 9 // पुनः पूर्वप्रयोगेण / तो तत्रैव समागतौ // नत्वा कुलपति प्रीत्या / प्रस्थितौ स्वपुरंपति // 9 // फलैः संकल्पितप्राण-वृत्ती तो पदाचारिणौ // दृष्ट्वा दून श्वादियो-ऽमऊत्पश्चिमसागरे 310 // 70 // तद्दशादर्शनोद्त-दुःखदिक्पत्युदीरितैः / श्वासधूमैखि ध्वांतैः / सर्वा व्यानशिरे दि. शः // 70 // राजनंदन राझोऽपि / मम राहोरहिसितात् // अस्त्येवापदिदं वक्तु-मिवोदेतिस्म चं. | सी करताथका परस्पर कंठमां हाथरूपी पाश नाखीने त्यां निद्रावश थया. // 16 // हवे ते लाग जोता विद्याधरे सुखे सुतेला तेन बन्नेने नपाडीने पूर्वनीपेठे तुरत पर्वतपर तया समुद्रमा फेंकी दीधा. / / 99 // वळी पूर्वे कहेला नपायथी तेज बन्ने तेज आश्रममां याव्या, तथा प्रीतिथी क. लपतिने नमीने पोताना नगरप्रते प्रयाण करवा लाग्या. // 7 // फलाहारयी प्राणवृत्ति करनारा तथा पगे चालनारा एवा तेन बन्नेने जोश्ने जाणे दुनाणो होय नहि तेम सूर्य पश्चिम समद्रमां मुबी गयो. // 7 // तेजनी था दशा जोश्ने दुःखी थयेला दिक्पतिनए कहाडेला निःश्वासरू-: / पी धूमाडासरखा अंधकारथी सर्व दिशान व्याप्त थ // 70 // हे राजपुत्र! मने राजाने पण न. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ धम्मि-द्रमाः // 1 // यापद्यपि युता पर्चा / धन्या कनकवत्यसौ / / मया तु कथमुलंध्या। यामिनीय मिनं विना // 2 // इत्यंतर्गतरोलंब बद्मना पद्मिनी हृदि // अस्ते गनस्तौ संकोचं / गता मू ती शुचं दधौ / / 73 // युग्मं // कुमारोऽयावदत्तन्वि / किं कृतं दुःकृतं मया // यदद्यापि न दुःखाब्वे-गाधस्य तटं लाने // | | | कसा पुरी प्रमुदित-प्रजा संजनितोत्सवा // क चेयमटवी व्यात्त-वदनव्यालसंकुला // हि मारेला एवा राहुथी बापदा सहन करखी पडे , एम तेने कहेवामाटे होय नहि तेम चंड नदय पाम्यो. // 1 // जे आपत्काले पण गरिनी साथे रहेली ने एवी या कनकवतीने धन्य बे, अने हं मारा स्वामीविना था रात्री शीरीते कहाडी शकीश! // 72 // एम विचारीने सूर्य यः स्त पामते ते संकोचायेली कमलिनी अंदर रहेला नमराना मिषयी मूर्तिवंत शोकने पोताना हृदयमां धारण करवा लागी. // 3 // ' हवे ते गुणवर्मा कुमार बोल्यो के हे कोमलांगि! में एवं ते शुं पाप कर्यु जे? के हज पण | हुँ अगाध दुःखसागरनो पार पामतो नथी. // 7 // खुश थयेल प्रजावाली तथा पानंद आपनाः | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- // 5 // नास्ति तत्किंचनस्थानं / यद्देवस्य दुरात्र मं / / क्वेशयति कदाशामि-Kधा स्वं मंदमेधसः मा // 6 // ममं महोदधौ मत्स्य-पृाघातोललकाले // सुप्तं कांतार नुपीठे / रिनोगिबिलाकुने // 7 // अनेकश्वापदोबिष्टं / पयः पीतं च नैमरं // न जानेऽद्यापि दुःखानि / दाता धाता कि 312 | यति मे // 7 // ततः कनकवत्यूचे / किमेवं देव खिद्यसे // न जातु वृणुते लक्ष्मी-जन नि. | र्वेदनाजनं // जय // श्वनं बिलं गिरिावा / वनं वेश्मायुधं तृणं // सिंहो मृगोंबुधिर्बिदु-खि री ते (मारी ) नगरी क्या ? श्रने विकासेल मुखवाळा अजगरोथी नरेली या अटवी क्यां? / / // 5 // ज्यां देव पहोंची वळतो नथी एवं को पण स्थान नथी, माटे मंदबुधि माणसो फो. कट खोटी पाशाथी पोताना आत्माने क्लेश आपे . // 6 // मत्स्यपुबनी पगयी नगळ. ता जलवाळा महासागरमा हुं बुड्यो, तेमज घणा सोना बिलोथी भरेली वनजमीना तलपर प. ण सुतो. // 7 // वळी अनेक जंगली पशुञ्जनुं एठं करणान्नुं जल पण पीई, परंतु हजु विधाता मने केटलां दुःखो देशे ते मालुम पडतुं नथी. // 7 // त्यारे कनकवती बोली के हे स्वा. | मी! थाप ग्राम खेद शामाटे करो गे? केमके कंटाळेला मनुष्यने कोइ पण समये लक्ष्मी वर डोण P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- मन्येत सात्विकैः // 50 // अवधीः खेचरें तं / येन तेजः क ततं / सत्त्वं वीरावतंस वं / मा / मुंच खोचितं कुरु // 1 // कुमारोऽप्यवदत् कांते / किं कुर्मः कर्मग अपि // अदृष्टं प्रहरत्येष / साथ यदयं निर्दयो विधिः // 9 // क्षुद्रोचितचरित्रः स्या-ददृष्टं प्रहरनरिः / / मशकः किं न तीन मदृष्टं प्रविशन श्रुतौ // 73 // गृहखामिनि निजाणे / न किं श्वापि विज़ुभते // जाग्रतो मे यदि ती नथी. // // हिम्मतवान माणसो तो नरकने बिलसमान, पर्वतने पबरसमान, वनने घरसमान, हथियारने तृणसमान, सिंहने हरिणसमान तथा समुज्ने बिंदुसमान गणे . // 50 // जे तेजथी थापे ते विद्याधरेंडने मार्यो हतो ते आपy तेज क्यां गयु ? माटे हे वीरशिरोमणि! याप हिम्मत गेडो नहि, अने पोताने उचित कार्य करो? // 1 // त्यारे कुमार पण बोल्यो के हे प्रिये! हिम्मतवान छतां पण हुं शुं करूं? केमके ते विद्याधर नजरे पड्याविना मारे जे. माटे खरेखर दैव निर्दय . // // नजरे पड्याविना अजाणतां मारनारो शत्रु नीचने लाय. कपाचरणवाळो कहेवाय , केमके मबर नजरे पड्याविना कानमां पेशीने शं हाथीने पणन थी मारतो? // 13 // घरनो मालिक ज्यारे नवेलो होय त्यारे शुं कुतरो पण तेमां घुसतो नः | Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ धम्मि- पुरः / स्फुरत्येष तदा स्टंः // 4 // तन्मयाद्य न नियं / निद्रामाहुमहाधियः // मार्गवृष्टिमिवैता की सां / मूलमंत्रं महापदां // 55 // त्वं तु निद्रासुखं देहि / नेत्रयोपूर्णमानयोः // प्रसुप्तं पंकजैस्ते षां / मित्रैर्यत्प्रतिपदवलं // 16 // ततः पल्लवशय्यायां / जायामयमसूषुपत् / / अस्थाच स्वयमुजी 314 | र्ण-खको वल्हीवनांतरे / / ए // प्राविघुतं पुरो भूत-मिव खेटं दाणेन सः॥ रे दुष्ट तिष्ट ति. टेति / वदन्नेवाभ्यधावत / / ए // अकालचक्रवद्दोदया-पतितं खेचरेण तं // हतेनेव मृतेनेव / थी? माटे मारा जागतां जो ते मारी सामो अावे तो ते सुट कहेवाय. / / माटे बाजे तो मारे निडा करवी नहि, केमके महाबुध्विान माणसोए मार्गमां थयेली वृष्टिनीपेठे निद्राने ते ते महादुःखोना मूलमंत्रसरखी कहेली . // 7 // हवे हे प्रिये! तुं तारी घेराती अांखोंने निदान सुख श्राप ? केमके तेजना मित्रो एवां कमलो पण दरेक तळावोमां मुदित थयेला . // // 16 // पछी तेणे पोतानी पत्नीने कुंपळी यांनी शय्यामां सुवामी, अने पोते तलवार नगामी ने वल्लीवननी अंदर जागतो रह्यो. // ए // पनी त्यां दाणवारमा नृतनीपेठे प्रगट थयेला ते खे. | चरने अरे दुष्ट ! तुं नगो रहे नन्नो रहे एम कहीने तेनी सन्मुख ते दोड्यो. // // अचा- | P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- विलीनेनेव संस्थितं | 0 | दृष्टेनास्य तमितुव्य-तेजसा तवारिणा / खेटस्य. सहसाचष्ट / / नति कंप्रात्करादसिः / / 1500 // जीवग्राहं गृहीत्वा तं / कुमारः प्रोचिवानिति // वद रे किं करो. | म्येष / तव कैतवघातिनः // 1 // यस्त्रियेताजिपन्नस्य / कुरु तत्त्वं ममाप्यहो // इति विद्याधरेणो 325 |क्ते / जगाद जगतीशत्रुः // 2 // यद्येवं शक्तिरिक्तोऽसि / तन्मया किं विरुध्यसे // अहाश्मिः ना यन्मां / तदीराणां त्रपाकरं // 3 // खेचरः प्रत्युवाचेति / मंदजाग्योऽस्मि किं ब्रुवे / / सत्वं स्व. नक श्रावी पडतां चक्रनीपेठे तेने बावतो जोश्ने ते विद्याधर जाणे हणायो होय नहि. मरी गयो होय नहि, तथा गळी गयो होय नहि तेम स्थिर थ गयो. / / ए // वीजळीसरखा तेज वाळी तेनी तलवार जोश्नेज ते खेचरनी तलवार तेना कंपता हायमांथी नीचे पडी. // 1500 // पजी तेने जीवतो पकडीने कुमार बोल्यो के अरे तु बोल के कपटथी मारनार एवो. जे तुं तेनुं ढवे शं करूं? // 1 // शरणे. श्रावेलानुं जे कराय ते तुं माझं पण कर ? एवी रीते विद्याधरे कहेवाथी ते राजकुमार बोब्यो के, // 2 // जो तुं एवी रीते शक्तिबिनानो तो प्रजी मारामाचे शामाटे विरोध करे ? मने तुं जे कपटयी हरी गयो ते सुनटोने लज्जित करनारुं . // 3 // Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
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________________ 316 धम्मिः यि स्थितं सर्वं / मयि निःसत्वता पुनः // 4 // त्वां विनिद्रमुपद्रोतु-मृनुदापि न हि प्रनुः // स्था। मा तुमीष्टे महेगोऽपि / जाग्रतो नाग्रतो हरेः // 5 // प्रेरितेन प्रजावत्या / दुःकर्मेदं मया कृतं // वा योदस्ता न किं रेणु-श्गदयत्यर्कमंडलं // 6 // कुमारस्तमुवाचेति / सचेतन विचारय // कुपथ्य : मिव रोगिणां / स्त्रीवचो मूलमंहसां // 7 // वनितावाक्यजंबाले / विघ्ने पुण्याध्वचार्यपि // स्खलि. त्वा निपतत्येव / बुद्धिमान बलवानपि // 7 // तत्सदा तुबुद्धीनां / स्त्रीणां मा विश्वसीरिति / न. त्यारे ते विद्याधर बोल्यो के हुँ शुं कहुं ? खरेखर हुं मंदजागी डं, सर्वे हिम्मत तारामां रही जे, भने मारामां तो नाहिम्मत गरेली में. // 4 // तने जागतांथकां उपद्रव करवाने इंद्र पण समर्थ नथी, केमके महान हस्ती पण जागता सिंहनी पासे नन्नी शकतो नथी. // 5 // स्त्रीनी प्रेरणाथी में या दुष्कार्य कयु , केमके वायुए नडाडेली धूळ शुं सूर्यमंडलने थानादित नयी करती ? // 6 // त्यारे कुमारे तेने कह्यु के हे बुध्विान् ! तुं विचार के रोगीनने जेम कुपथ्य तेम स्त्रीन वचन पापोर्नु मूळ जे. // 7 // शुग मार्गे चालनारो बुध्विान तथा बलवान प्राणी पण स्त्रीना वि. मरूप वचनरूपी कादवमां लपटीने पमी जाय . / / 7 // माटे तुब बुध्विाळी स्त्रीननो तारे है. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- क्त्वा मुक्तोऽमुना खेटः / सिंहेनेव मृगो ययौ // 7 // जायाया यामिकी व्य / यामिनीमतिबाह्य सः // प्रातस्तस्याः प्रबुछाया / निशावृत्तं न्यवेदयत् / / 10 / अटवीमपि मन्वानौ / मियो योगा साथ पुरीमिव // तीदणदर्जाग्रविघांही। चेलतुस्तौ दिशैकया / / 11 / / पुरः पुरस्य कस्यापि / बहिर्बहुत३१७ | रौ वने // लोकवंद्य बुलोकाते / गुणरत्नानिधं गुरुं // 15 // प्रदक्षिणय्य नत्वा च / निषलो तौ गुरोः पुरः // पटुश्रुतिपुटैरेवं / पपतुर्वचनामृतं // 13 // मेंशां विश्वास करवो नहि, एम कहीने सिंहे मुकेलो जेम हरिण तेम तेणे मुकेलो ते विद्याधर चाल्यो गयो. // 5 // पनी ते स्त्रीना रदकतरीके रात्री निर्गमन करीने प्रजाते ज्यारे ते जागी त्यारे तेणे तेणीने रात्रिनो वृत्तांत कही संगलाव्यो. // 10 // परस्पर थयेला मेलाषयी ते अट वीने पण नगरीनीपेठे मानताथका तेन तीदण घासना अपनागोथी पगमां वींधाया बता पण एक दिशातरफ चालवा लाग्या. // 11 // आगल कोश्क नगरनी बहार घणां वृदोवाळां वनमां लोकोवडे वंदाता गुणरत्न नामना गुरुने तेणे जोया. // 12 // त्यारे तेन तेमनी प्रदक्षिणा देश्ने तथा नमीने वागळ बेग, तथा सावधान कर्णपुटोथी तेमना वचनामृनने पीवा लाग्या. / 13 / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 320 धम्मि- ___भव्या मानुष्यतां जाग्यैः / प्राप्य रत्नखनीमिव // विषयाश्मविवेकेन / कार्यो रत्नत्रयाग्रहः // / . मा // 14 // जदारा नो दारा विवृतविनया नापि तनया / विदग्धा न स्निग्धा बिरदवरमा नापि च र. मा // न च स्वामी चामीकरनिकरदातापि शरणं / विना जैन धर्म गवति जवकूपे निपततां // 15 // श्ह लोकसुखे रक्ताः / परलोकपराङ्मुखाः // ही कुर्वति जनाः पापं / जवलदविनाशकं // 16 // मोहोत्कटकुटुंबस्य / यधर्मस्यावधीरणं / / रीरीधातूररीकारा-तदर्जुनविवर्जनं // 17 // श्रुत्वेति दे. हे जव्यो! जाग्ययोगे रत्नोनी खाणसरखो मनुष्यजन्म पामीने विषयरूपी पत्थरोने बोमीने रत्नत्रयन ग्रहण करवु. // 14 // या संसाररूपी कुवामां पडता प्राणीनने जैन धर्मविना मनोहर 'स्त्री, विनयी पुत्रो, चतुर स्नेहीन, हाथीननी उत्तम शोजावाळी लक्ष्मी तथा सुवर्णनो समुह दे. नार शेठ पण शरणरूप थतो नथी. // 15 // खेदनी वात जे के या लोकना सुखमां आसक्त थइने तथा परलोकमाटे बेदरकार रहीने माणसो लाखो वोने नाश करनारुं पाप आचरे ने. // 16 // मोहरूपी विकट कुटुंबवाळा माणसे धर्मनी जे अवगणना करवी ते पितलनी धातु ले. | ने सुवर्णने तजवा जेवू . // 17 // एवी रीतनी पापोना आवेशने नाश करनारी श्राचार्यनी दे / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- शनां सूरेः / दुरितावेशनाशिनी // सोऽपसृत्य मनाप्रोचे / जवनिर्वेदतः प्रियां // 17 // तन्त्रि जानन् भवं कारा–मिव श्रुत्वा गुरोगिरं // मनो धावति मे मुक्ति निवासंप्रति संप्रति // 15 // विषयाणाममित्रत्वं / मया सादादवैदयत / यैरहं राजवंश्योऽपि / पोलिंडी प्रापितो दशां // 20 // 325 | जन हित्वा जवाधांति / प्रांतेऽमी विषयाः शठाः / / हित्वा प्रत्युत तान कश्चि-देकरजेकत्वमश्नुते / // 21 // दुःखार्ता विषवह्नयाथै-जनाः केचित्त्यजत्यसून // तत्साहसं न शंसंति / संतः संसारखशना सांजळीने ते गुणवर्मा कुमार जरा खसीने संसारथी कंटाळीने पोतानी स्त्री कनकवतीने का हेवा लाग्यो के, // 17 // हे प्रिये ! गुरुनी वाणी सांजलवाथी संसारने केदखानासरखो जाणीने मारं मन हवे मोदनिवासमाटे दोडे . // 15 // विषयोनुं शत्रुपएं में सादात अनुजव्यं ने के जेनए मने राजवंशीने पण नीलनी दशाए पहोंचाइयों में. // 20 // वळी अंते या दुष्ट विषयो मनुष्यने गोमीने तुरत चाल्या जाय , परंतु ते ने गेडनारो तो कोक विरलोज सुजटपाणुं पा मे . // 21 // दुःखथी कंटाळेला केटलाक मनुष्यों फेर तथा अमिश्रादिकथी प्राणो तजेले. पं. | रंतु संसारने वधारनारा तेजना ते साहसनी विद्वानो प्रशंसा करता नथी. // 15 // जो तुं कहे P.P. Ac Gunratnasuri M.S. .Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ 330 धम्मि- ईनं // 22 // चेददि तजुरोः पार्था / परिव्रज्य तपोऽसिना // श्रावां भवावः कारीन् / हत्वा ता. | स्विकसात्विको // 3 // साप्यूचे प्रिय सूरींडो-पदेशश्रवणोचितं // त्वयोच्यत न को मुंचत्युझारं भक्तसन्निनं // 24 // परं चिंतय तारुण्य-मद्याप्युटवणमावयोः // विषमा विषयाश्चैते / दु. जैया यतिनामपि // 25 // मनश्च वृश्चिकग्रस्त-गोलांगूलचलाचलं // दीणा नाद्यापि जोगेडा / कथं व्रतमुपास्वहे // 26 // प्रारखेचरवचोबंधात् / ततस्तत्रातृविप्लवात् // जोगरंगं विना न्मे-5. तो आपण बन्ने गुरुपासे दीदा लेश्ने तपरूपी तलवारवडे कर्मरूपी शत्रुनने हणीने खरा पराकमी थश्ये. // 23 // त्यारे ते पण बोली के हे प्रिय ! थापे सुरीऽनो उपदेश सांगलीने योग्य. ज कहुं , केमके आहारसरखो कोने जमार थावतो नथी? // 24 // परंतु पाप विचारो के हजु थापणी नरयुवावस्था मे, अने या विषम विषयो मुनि ने पण जीतवा मुश्केल . // 25 // वळी मन वांछीए करडेला बळदना मांसरखं चंचल , तेम हजु पापणी गोगोनी बाकीण थ नथी, तो पड़ी शीरीते व्रत लेश्शुं? // 26 // प्रथम ते विद्याधरना वचनबंधथी तथा पनी ते. ना जाना नपऽवधी नोगरंगविना मारूं यौवनरूपी वृत निष्फल श्रये बे. // 27 // वळी वि. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- वकेशी यौवनमः // 27 // व्रजेविषयवातूलः / कदाचित्पतिकूलतां // तदा किं शीलशैलापात् / / पततामवलंबनं // 27 // ततत्रिकालविदं कंचित् / पृष्ट्वा नाय यथोचितं // करिष्याव इति प्रोक्ते। तया प्रोवाच नृपः // 27 // प्रिये मम न विश्वासः / कोऽपि कालस्य रदसः // क्रीडाकंकव. द्यस्य / पातोत्पातरतो रविः // 30 // श्रेयांसि बहुविघ्नानि / जति महतामपि // श्रयोविधौ विलं. बंते / तत एव न धीधनाः // 31 // मृत्युः कदापि जातश्चे-देवमेव विषण्ययोः // तदाचकर्ष नौ नेत्रै-दर्शयित्वा निधि विधिः // 32 // तथापि नन्वि नेदानीं / यदि ते स्वदते व्रतं // तलमा. षयोरूपी वायुविकार जो प्रतिकूल थाय तो पजी शीलरूपी पर्वतनी टोंचेथी पडतांयकां अापणने कोण अाधारत थशे? // // माटे कोक त्रिकाळझानी मुनिने पूछीने आपणे यथोचित करीशं, एवी रीते कनकवतीए कहेवाथी राजकुमार बोल्यो के // 27 // हे प्रिये ! मने था का. ळरूपी राक्षसनो जरा पण विश्वास नथी. के जेने क्रीडा करवाना दडानीपेठे सूर्य उगळी रह्यो ने. // 30 // वळी महान पुरुषोने पण श्रेयकार्यों बहु विघ्नवानं थ५ पडे , अने तेथीज बुझिवा. | न लोको श्रेयकार्यमां विलंब करता नथी. // 31 // वळी कदाच पुण्य कर्याविना श्रापणुं जो एम Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.
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________________ धम्मि- स्त्वत्समाध्यर्थ / स्थास्यामि कतिचित्पुनः / / 33 // अथो तरुतले मुक्त्वा / क्वचित्तां नृपर्नदनः / कर्तुं जोजनसामग्रीं / प्रविवेश पुरांतरा // 34 // द्यूतेन कितवान जित्वा / प्राप्य किंचन कांचनं / / तेन कांदविकात् खम-मंझकाद्यमुपाददे / / 35 // जक्तपूर्णशरावोऽय / नगरान्निरयन्नसौ / / केषां | 332 प्रविशतां ना-दिष्टश्रीलाजसूचकः // 36 / / गत्वा तरुनले लक्ष्य-दैपालभूः प्रियां // भो. जयित्वा ततोऽभुंक्त / स्वात्मनोऽपि प्रिंया हि सा // 37 // .. ने एम मरण थशे तो विधाताए निधान देखामीने पाडं लेश लीघा जेवू थशे. // 32 // तो प. ण हे प्रिये ! हमणां जो तने दीदा गमती नहि होय तो तने खुश करवामाटे हुँ केटलाक वर्षो सुधी ( गृहस्थपणामी ) रहीश. // 33 // पड़ी ते गुणवर्मा कुमार तेणीने कोश्क वृतानीचे मुकी. ने नोजनंनी सामग्रीमाटे नगरनी अंदर गयो. // 34 // त्यां जुगारवडे जुगारीनने जीती कईक सुवर्ण मेलवी तेवडे कंदोपासेथी तेणे मालपुडायादिक लीधुं. // 35 // भोजनधी नरेलां पा. वाळी ते नगरमांथी निकलतोयको कोने वांबित लगीनो लान सूचवनारो न थयो? // 36 // | पनी ते राजपुत्रे वृदानीचे जश्ने विविध योजनथी पोतानी प्रियाने जमाड्याबाद पोते जोजन | P.P.AC. Gunratnasuri Ms. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- मनाग्दुर्मनसं दृष्ट्वा। प्रियां नृपसुतस्ततः // नूनमेषा स्वबंधनां / स्मरती युन्निनाय सः // 30 // / सविशेषमसौ तस्याः / परीदितुमना मनः // देहचिंतामिषाद् द्वित्रि-पादपांतरितोऽजवत् // 35 // | तावद्भावोंचितं मौ / सा पुंस्त्रीयुग्ममालिखत // अमुचत् पंचमोद्गारान् / कोकिलेव कलध्वनिः // 333 // 40 // नत्तानीकृतवदोज-कोटिरामोटयद्गुजौ // ज्वरातेवातनोद्दीर्घ-दोर्षी निःश्वासबोरणिं // // 41 // विलक्ष्मदिपदिक्षु / चकुर्बाष्पजलाविलं // तत्सादाहोदय तद्वृत्तं / मुणवर्मा व्यचिंतयत् | कयु, केमके ते तेने पोताना जीवथी पण वहाली हती. // 37 / / हवे पोतानी प्रियाने त्यां जरा दुभायेला मनवाळी जोने गुणवर्मा कुमारे विचार्य के ख. रेखर याने पोताना बंधुन याद याव्या लागे जे. // 30 // परी तेणीनी विशेष प्रकारे परीदा करवानुं मन थवाथी ते कुमार देहचिंताना मिषयी बेत्रण वृदोनी पाउळ गुप्त रह्यो. // 3 // त्यारे तेणीए पोताना मननी श्वाप्रमाणे पृथ्वीपर स्त्रीपुरुषनुं जोड़ें चीतयु, तथा कोयलनीपेठे ते मनोहर स्वरथी पंचमरागना जझारो कहाडवा लागी. // 40 // पडी पोताना स्तनोनी धार खुल्लो करीने पोताना हाथ मरडवा लागी, तथा तापथी पीमायेलानीपेठे निःश्वासोनी लांबी लांबी श्रेणिवि. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- // 4 // पाः किमेषां निमेषार्धात् / परावर्त्तव लक्ष्यते / / यहा तत्तादृशस्नेह-पात्रं किं परिवर्त्तते // 43 // मन्ये मम वियोगेन / दशां प्राप्तेयमीदृशीं // यद्दा मयि तटस्थे किं / स्यादस्या विरह व्यथा // 44 // स्यान्चेन्मां वीदय सोल्लासा / तदासौ मदियोगिनी // आकारगोपनं कुर्या-द्यदि त३३५ बंधकी ध्रुवं / / 45 // ध्यावेति सहसा तस्याः / पुरः प्रादुर्वस्व सः // क्षुनितेव दाणात्सापि / च. | स्तारवा लागी. // 41 // वळी ते विलखी थश्ने अश्रुजलवाळी दृष्टिने दिशातरफ फेंकवा ला. गी, एवी रीतनुं तेणीनुं सादात चरित्र जोश्ने गुणवर्माए विचार्यु के, // 42 // अरे! शं या अ. रधा दाणमांज बदलाएली जेवी देखाय ! अथवा शुं तेवा स्नेहवाळी वळी बदला जाय खरी? // 43 // हं धारुं बु के मारा वियोगने लीधे ते प्रावी दशा पामी , अथवा हुँ नजीक होवा ब. तां तेणीने विरहनी वेदना शामाटे थाय ? i4 // हवे मने जोश्ने जो ते नल्लासवाळी थाय तो तेणीने मारा वियोगथी थातुर जाणवी, परंतु जो ते पोतानो थाकार गोपवे तो तेणीने कुलटा जाणवी. // 45 // एम विचारीने ते तेणीन। पासे बचानक प्रगट थयो, त्यारे ते कनका. ती पण जाणे दोन पामी होय नहि तेम दाणमां पोतानो आकार गोपववा लागी. // 46 // हे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि काराकारसंवरं // 46 // किं ते कांते स्मृता अद्य / बंधवः स्नेहसिंघवः॥ यदुन्मनायसे तेने यंसार्थ नुयुक्ता जगाद सा // 4 // त्वयि संनिहिते मन्ये-ऽरण्येऽपि स्वं दिवौकसं // स्मर्तयो जीवितव्ये श। तन्मे त्वदपरोऽस्ति कः // 4 // स दध्यिवांस्ततो विश्व-परीक्षणविचदाणः॥ कपोलकल्पना३३५ मात्र- मेष वाग्विस्तरो ध्रुवं // 45 // चिरपरूढविश्रंग-प्रेमयोः खलु पुस्त्रियोः // व्यनक्ति प्रत्युत | स्नेहा-नावं चाटुवचनमः // 20 / / श्रस्या गूढोऽप्यन्निप्रायः / प्रायः प्रकटयिष्यते // कामवीरे | प्रिये ! आजे शुं तने स्नेहना सिंधुसरखा तारा बंधुन याद याव्या ? के जेथी तुं नचक मनवा|ळी जणाय ने, एवी रीते तेणे पूजवाथी ते बोली के, // 7 // हे जीवितेश! आप मारी पासे बगे तो हं या जंगलमां पण मारा आत्माने देवतुल्य मानुं बुं, वळी यापशिवाय मने बीजो कोण याद करवालायक बे ? // 4 // हवे ते सर्व परीक्षा मां विचक्षण कुमार विचारवा लाग्यो के खरेखर या तेणीनी वचनचतुराश् कपोलकल्पनारूप . // 4 // घणा काळयी जामेला विश्वा. सबने प्रेमवाळ स्त्रीपुरुषनो जोमांवच्चे 'थती माखणीयां वचनोनो क्रम नलटो स्नेहनो बनाव सूचवे // 20 // या स्त्रीना गूढ अभिप्रायने पण पृथ्वीमां वावेलां बीजने जेम जल तेम पायें | P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- ण नीरेणा-वनीविन्यस्तबीजगत् // 51 // एवमासादितस्वांत-वित्रमः स ब्रमन् वने. // केनाः / सार्य प्यादि पुंसा किं / कुमारोऽत्रास्ति वा न वा // 12 // कोऽसौ कुमारः कस्त्वं च / किमुत्सुक श्वे. | दयसे // इति पृष्टे कुमारेण / स पुमान् प्रत्यवोचत / 53 // शंखोज्ज्वलयशःपूर-पोरं शंखपुरं पुरं // इदं पालयतीशान-चंद्रो नाम महीपतिः // 14aa गुणचंडः सुतस्तस्य / यलावण्यामब्धिमज्जनैः | // ममृजुललनादीणि / चापट्यं कीर्तिकल्मषं // 55 // केलिप्रियतया प्राप्तः / कुमारः सोऽत्र का. करीने कामदेवरूपी सुट खुल्लो करी थापशे. // 11 // एवी रीते मनमां ब्रम पामीने ते गुणवर्मा कुमार वनमां जमवा लाग्यो, एवामां कोक पुरुषे तेने पूज्यु के अहिं राजकुमार ने के न. हि? // 55 // कयो ते राजकुमार? तथा तुं कोण ? तथा नत्सुकजेवो केम जणाय ? ए. वी रीते गुणवर्मा कुमारे पूजवायी ते पुरुष बोव्यो के, || 53 // शंखसरखा नज्ज्वल यशना स. मूहवाळा लोकोवाळा या शंखपुरनामना नगरनुं ईशानचंड नामे राजा रक्षण करे . // 14 // तेनो गुणचंद्र नामे पुत्र बे, के जेना लावण्यरूपी समुद्रमां नहावायो स्त्रीननी अांखोए कीर्तिने | कलंकित करनारं चपलपणुं धोश् नाख्यु जे. // 55 // ते कुमार क्रीडा करवानी इलायी था वनः | P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun-Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- नने // प्रेषयामास मां कार्या-तरेण स्वांगसेवकं / / 56 // स्वामिकार्य विनिर्माय / सत्वरं सोऽह. मागतः॥ अनाऽपश्यन कुमारं तं / त्वां पृबन्नस्मि सुंदर // 7 // स्थिरस्थाम धियां धाम-गुणव मन्यिधादय / श्ष्टप्राप्तिप्रमुदित-कुमारः सोऽगमद्गृहं // 17 // तत्किं सा मिलिता तस्य / त्रस्य 337 न्मृगविलोचना // इति तेन पुनः पृष्टे / जगदे गुणवर्मणा // 17 // मेलः किमुच्यते. मुग्ध / | स तामादाय सादरं / / विवेश नगरं व्योम / हिमांशुखि कौमुदीं // 60 // प्रथमे प्रथमालोके मां श्राव्यो हतो, भने तेणे मने पोताना खानगी नोकरने कक कार्यमाटे पागे मोकल्यो ह. तो. // 56 // ते मारा खामीनू कार्य करीने हुं यहीं तुरत पागे थाल्यो ढुं, परंतु यहीं कुमारने नहि जोवाथी हे सुंदर! हुं तमोने पूढे बु. // 57 // हवे ते महा धैर्यवान तथा बुध्विान गु. णवर्माए तेने कह्यु के, ते गुणचंड कुमार तो पोताने इबित वस्तु मलवायी खुशी थश्ने र गयो. // 50 // त्यारे शुं चमकेला हरिणसरखां लोचनवाळी ते स्त्री तेने मळी ? एम तेणे फरी. | वार पूजवाथी गुणवर्मा बोल्यो के, // 55 // अरे मुग्ध! मेलापनी तुं शुं वात करे जे? ते तो चंड जेम चांदनीने लेश्ने थाकाशमां तेम तेणीने सन्मानपूर्वक लेश्ने नगरमां दाखल पण थ. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- ऽप्यनयोः प्रेम यभृशं / / तदिदं साधु संजात-मियुक्त्वा सोऽपि जग्मिवान् // 61 // सर्वागममिमाई कीलानि-रालीढ श्व दुःखितः // गुणवर्मा च दध्यौ धिग् / रामा वामा खनावतः // 6 // या त्रिलोकेऽपि धीराणां / चरत्यस्खलिता मतिः / / सापि न स्त्रीमनोवली-वनं गाहितुमीश्वरी // 63 / / 330 ध्रुवं ध्वजगजश्रोत्र-वीचिविद्युद्धनौकसः // चापल्यविद्याचार्यस्य / विनेया वनिताहृदः // 64 // दोषा योषासु निःशेषा / अपि प्राप्तापदाः सदा // पुनः स्त्रीलिंगसाधा-मन्ये मायामहाग्रहाः / / गयो. // 60 // अरे! प्रथम नजरे पमतांज तेज बन्नेवच्चे घणोज प्रेम प्रगट थयो हतो, माटे था ठीक थयु, एम कहीने ते पुरुष पण त्यांची चालतो थयो. // 61 // हवे जाणे सर्व शरीरपर अमिनी काळ लागी होय नहि तेम दुःखित थयेला ते गुणवर्माए विचार्य के कुदरतयीज नीच एवी स्त्रीनने धिक्कार . // 6 // विद्वानोनी जे बुद्धि त्रणे लोकमां पण अटकावरहित चाली जाय , ते बुद्धि पण स्त्रीनना मनरूपी वेलमीनना वनमां पहोंचवाने समर्थ थती नथी. // 63|| खरेखर चपलतारूपी विद्याचार्यना ध्वजा, हाथीना कर्ण, मोजां, विजळी, वृदो तथा स्त्रीननां हृद. य ए शिष्यो बे. // 64 // स्त्रीजनेविषे हमेशां दुःख आपनारा सघन दोषो , तथा स्त्रोलिंगना P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ साद धम्मि- // 65 // यच्चेतसि न तहाचि / वाचि यत्तनं कर्मणि // स्वात्मन्येव कलिः स्त्रीणां / कथं ताः पर शर्मणे // 66 // न दानेन न मानेन / न कलानिः कुलेन न // एताः कृतांतवत्क्रूरा / जति व वशा वशाः // 67 // खेटेनायोधनं वार्डि-मज्जनं वनगाहनं // अन्य वं कृते यस्या / वश्या सा३३५ न्यस्य कस्यचित // 6 // मिमंक्षुर्मक संसार-सागरे यो नवेऊनः // स एवालिंगताद्गाढ-कावि न्या महिलाशिलां // 6 // // यावदासो मषीवेयं / कलंकयति नो कुलं / मलिना निर्मलं तावसधर्मपणाथी तेन मायानां तो महोटां घरसरखी ने एम हुँ मानुं बु. // 65 // जे तेन्ना मनमां होय ते वचनमां न होय, जे वचनमा होय ते कार्यमां न होय, एवी रीते स्त्रीनमां पोतामांज ज्यारे अव्यवस्था रहेली ने त्यारे तेन परने शीरीते सुख पापी शके ? // 66 // यमसरखी कर एवी ते स्त्रीन दानवडे, मानवडे, कलाथी के कुलथी पण पोताने वश यती नथी. / / 67 // जे. णीने माटे में विद्याधरसाथे युछ कर्यु, समुद्रमा पड्यो, तथा वनमा नटक्यो ते स्त्री वळी कोइ बीजानेज स्वाधीन . // 6 // जे माणसने तुरत या संसाररूपी समुद्रमां बुडवानी ला होय | तेणेज अत्यंत कठोर एवी स्त्रीरूपी शिलाने यालिंगन करखं. // 65 // माटे वस्त्रने जेम मषी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि देतां काप्यन्यतो नये // 70 // हुं ज्ञातं मातुलोऽस्यस्या / नृपः संनिहिते पुरे // मुक्त्वेमां तत्र | सेविष्ये / सुहितः स्वहितं व्रतं // 11 ॥ध्यात्वेति तामुपेयासौ / गाढं गूढाशयो जगौ // यावः पुरः प्रिये पश्य / गतं माध्यंदिनं दिनं // // अद्येह नाय विश्रम्य / यास्यावः प्रातरातः // श्यू. 340 | चुषी स तां सार्थ-लाजदंगादचालयत् / / 73 // किं कुर्वे कोऽपि नोपैति / नियाहं वक्तुमक्षमा तेम ज्यांसुधी या मलिन स्त्री मारां निर्मल कुलने कलंकित करे नहि त्यांसुधीमां तेणीने क्यां. क अन्य स्थले ले जलं. // 70 // अरे! ठीक याद थाव्यु, आनो मामो यहीं नजीक नगर नो राजा ने माटे तेणीने त्यां नोमीने हुं सावधान थश्ने यात्महित करनारं व्रत सेवीश. // 1 // एम विचारी तेणीनी पासे आवी ते गुप्त अभिप्रायवाळो गुणवर्मा कुमार बोल्यो के, हे प्रिये! ते जो के मध्याह्नकाळ व्यतीत थयो , माटे यापणे आगळ जश्ये. // 7 // हे स्वामी! याजनो ... दिवस यहीं विश्राम लेश्ने बापने प्राते पागल चालीशुं, एम कहेती ते कनकवतीने साथ मलवाना मिषयी तेणे चालती करावी. // 3 // शुं करूं? को हजु श्रावतो नथी, अने हं पण | डरथी कई कही शकती नथी, एवी रीते व्याकुल थयेली पण ते कनकवती पाबु वाळी जोतीयकी P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- // इत्याकुदापि साऽचालीत / पश्चात्प्रहितलोचना // 14 // प्राप्य फुतप्रयाणैस्तो / पुरः सिंढपरं पुरं // जग्मतुः सिंहपस्य / सजा दाःस्थनिवेदिती / / 75 // जागिनेयों नरेंद्रोऽपि / कथंचिदुपल| दय तां // अंके निवेश्य चारोदी-तारोदारितहग्जलः / / 76 // इह स्थितौ स्वधाम्नीव / सुखिनो भ. 341) वतं युवां // इति तो नुजा प्रोक्तौ / बुजुजाते ययारुचि / / 99 // निशि ववनया साकं / श यितो वासवेश्मनि // निशीयमतिचक्राम / जाग्रदेव नृपांगजः // 70 // यामिकीमिव निद्राणां / परित्यज्य प्रियामसौ / / कथंचिनिय यो वाना-गारात्कारागृहादिव // 15 // प्राकारं विशुदुत्क्षेपचालवा लागी. // 14 // पजी तेन बन्ने नतावळी चालथी अगाडी सिंहपुर नगरमां जश्ने बारपाले खबर प्राप्यावाद सिंहराजानी सनामां गया. // 15 // त्यां राजा कोश्क प्रकारे तेणीने पो तानी भाणेजी जाणीने खोळामां बेसाडी यांखोमा घणां आंसु लावी रमवा लाग्यो / 76 // पो. जाना घरनोपेठे यहीं रहीने तमो सुख जोगवो? एवी रीते राजाए कह्याथी तेनए. बामुजब भोजन कर्य. / / 99 / / रात्रीए स्त्रीनीसाथे वासवनमा सुतेला ते गुणवर्मा कुमारे जागतांथकांज मध्यरात्री प्रसार करी. // 7 // . निद्रामां पडेली चोकीदार स्त्रीने जेम तेम कनकवतीने गेडीने P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- करणेन विलंध्य सः / / सुगुरोर्गुणरत्नस्य / सविधे सुविधेर्ययौ // 70 // गुणवर्माथ जावारि-नि | मायरसिकस्ततः // कातरैऽर्धरां दीदा-मादत्तासिलतामिव / / 71 // ज्ञश्च गतनिद्रा सा / प्रातः कनकवत्यपि // पार्श्वे प्रियमनालोक्य / चकितेवानवत्दणं // 2 // असौ शरीरचिंताय / गतः 342 कापि समेष्यति // विलंब्येति दणं शोकं / विनापि विललाप सा // 73 // तज्ज्ञात्वाऽशोधि सर्व ते कुमार केदखानामांथी जेम तेम वासभुवनमांयी केटोक प्रयासे निकली गयो. // // प जी वीजळीनी माफक किलो नलंगीने ते नत्तम पाचरणवान गुणरत्न नामना गुरुनी पासे गः यो. // 70 // पनी अंतरंग शत्रुनने मारवामां रसिक थयेला ते गुणवर्मा कुमारे कायरोथी न ले. इंशकाय एवी तलवारसरखी दीदा ग्रहण करी. // 1 // हवे प्रजाते जागेली कनकवतो पण पोतानी पासे नारने न जोवाथी दाणवारसुधी चकितजेवी थर गश्. / / 72 // खरेखर देहाचं. तामाटे ते क्यांक गया होशे, एम विचारी दाणवार राह जोयाबाद ते शोकविना पण रमवा ला. गी. // 3 // पछी ते हकीकत जाण्याबाद तेणीना मामाए पृथ्वीपर सर्व जगोए गुणवर्मानो तलास करावी, परंतु जाणे आकाशमां नमी गयो होय नहि तेम क्यांय पण तेनो पत्तो लाग्यो | P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- त्र / दमातले मातुलेन सः // वियद्गत व वापि / कुमारः प्रापि नो पुनः // 4 // - ततस्तेनैव साबोधि / किमेवं पुत्रि खिद्यते // नालं प्राग्जविकं कर्म / निरोधुं विबुधा अपि | // 5 // गवेषयंश्वरैः सर्वैः / पथीनैखि लोचनैः / नदंतमचिरादेवा-नेष्येऽहं प्रेयसस्तव // 7 // 343 | स्थिता तावत्त्वमत्रैव / दुर्दैवदवशांतये // वारिधारोपमं धर्म्य / कर्म पुत्रि समाचर || G // शोकं लोकानुवृत्त्यैव / दधाना सा दिनत्रयं / व्यतायुषी हृषीकार्थ-वश्या दध्याविदं रहः // 7 // ना. नहि. // 4 // पनी तेणे तेणीने समजावी के हे पुत्रि! तुं एवी रीते खेद केम पामे जे? केमके देवो प. / पूर्व नवनुं कर्म अटकाववाने समर्थ थता नथी. // 75 // वळी हुं पंथी लोचनसरखा मारा सर्व बुपा माणसोमारफते तारा ते नरिना तुरत समाचार मगावीश. // 6 // माटे हे पुत्रि! त्यांसु. धी तुं यहींज रहीने तारां दुष्कर्मरूपी दावानलनी शांतिमाटे जलधारासरखू धर्मकार्य कर ? || पनी लोकाचारमुजब त्रण दिवसोसुधी शोक पाळीने ते कनकवती इंडियार्थने वश थमने गत | रीते विचारखा लागी के, // मारो नार तो आयो नहि, माटे ते चाल्यो गयेलो संभ Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.
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________________ 344 धम्मि. यात एव जग में / स हि संजाव्यते गतः // मन्ये कुतोऽपि जज्ञेऽसौ / मम तच्चित्तचापलं // बन्यो दृष्ट्वा स्त्रियो दोषं / मास्येत्तां म्रियेत वा / पुण्यवानेष यद् द्वेषं / मयि वाचापि नाचरत् / / // 50 // श्रुत्वा वाचं गुरोरेष | मां मुमुक्षुः पुराप्य त् / इदानीं तु ममाऽन्यायं / विझाय पावः जध्रुवं // 1 // एष प्रवजितश्चेत्तत् / फलितं मे मनोरथं // यांत्या ममेप्सितं स्थानं / यनिर्विघ्न| मथावत् // 2 // यतो मामात्मसात्कन्तु / सुतः शंखपुरेशितुः / चक्रे चाटूनि दूत्युक्त्या / गुण . धारं नु के मारा मननी ते चपलता तेणे कोइ पण रोते जाणी लीधी बे. ॥जए॥ बीजो माणस तो स्त्रीनो दोष जोश्ने तेणीने मारे अथवा पोते मरे, परंतु ते पुण्यवाने तो वचनयी प. माराप्रते देष देखाड्यो नहि. // // गुरुनी वाणी सांजळीने ते प्रथम पण मने गेडवानी हावाळो हतो, अने हवे तो मारो अन्याय जाणीने तेणे खरेखर दीदा लीधी बे. // 51 || बने जो तेणे दीदा सीधी होय तो मारो मनोरय पण सफल थयो , केमके हवे मने जित स्थाने जवामां कई विघ्न रहो नथी. // ए॥ वळी शंखपुरना राजाना गुणचंद्र नामना गुणवान पुत्रे मने पोतानी स्त्री करवामाटे दूतीमारफते कालावाला कर्या . / / ए३ // ते वखते में नार P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मि- चंद्रो गुणाकरः // 13 // मया चतुर्निया मेने / सम्यग्नास्य तदा वचः // परमद्यापि सोत्कठे / / मारी चेतस्तंप्रति धावति // 6 // तत्तत्रैव मया गम्यं / लोकोक्त म किं भयं // वैजयंती न किं न. म-दंडादंडांतरं भजेत् // 7 // ध्यात्वेति तमसां राशि-स्तमखिन्या बलेन सा // निरगान्मा. 345 तुलागारा-नगराच्च कथंचन // 7 // प्रेयःप्राप्तिमनोरयः खलु रथो हाई बलं शंबलं / तृष्णा दीपधरा पुरः प्रचलितोत्कंठा सखी पार्श्वतः // सौगाग्यप्रमदः प्रशस्तशकुनो दोषाश्च संप्रेषकाः। मा. नी बीकथी तेनुं वचन सम्यकप्रकारे मान्यु नहोतुं, परंतु हजु माझं नत्कंचित मन तेनापते दोडे बे. // 6 // माटे हवे मारे त्यांज जवू, लोकापवादनो शुं जय के ? केमके एक दंड नांगी ज. वाथी शुं बीजा दंडपर पताका नथीचमती? // 9 // एम विचारीने अंधकारना समुहसरखी ते कनकवती रात्रिना बलवडे युक्तिथी मामाना घरमांथी तया नगरमाथी पण बहार निकली गइ. // // ते समये तेणीना प्रयाणमाटे प्रियतमनी प्राप्तिना मनोरयरूपी रथ हतो, मनोबलरूपी नातुं हतुं, तृष्णारूपी दीवी नपाडनारी बागल चालती हती, नत्कंठारूपी सखी तेणीनी पासे ह. ती, सौजाग्यना हर्षरूपी तेणीने उत्तम शकुन थयां हतां, दोषोरूपी तेणीना नोकरो हता, अने। P.P.AC.GunratnasuriM.S.
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________________ धम्मि- गझः स्मर एन पुखितशरस्तस्याः प्रयाणेऽभवत् // 7 // साथ शंखपुरं प्राप्य मिलिता। सुपसूनवे // सोऽपि तां परमप्रीत्या / विदधेतःपुरेश्वरीं / / 1600 // तृणीयतिस्म तऽक्तः / सोऽवरोधवधूः पराः // यूनां हि परमप्रेम्णः / पुरो बिंदयतेंबुधिः // 1 // उक्तं ताजिरुपालब्धं / यत्तद् पलुवोऽजवत् // व दारः कसुंजस्य / तस्यां प्रत्युत रागकृत् // 2 // रहस्ताभिर्विहस्ताभि-रालोच्यत मियस्ततः / / थायातोऽयमनध्यायः / सुखानां नः सनातनः // 3 // केनापि संजनितया / कुतोऽप्यागतया तया मार्ग देखाडनारो कामदेवरूपी धनुर्धर सुजट हनो. Or || पडी ते शंखपुरमां जश्ने ते राज. पुत्रने मळी, त्यारे तेणे पण परम प्रीतिथी तेणीने पोताना अंतःपुरमा पटराणी बनावी. // 1600|| हवे तेणीमां आसक्त थश्ने ते गुणचंद्र कुमार अंतःपुरनी बीजी स्त्रीनने तृणसमान मानवा ला. ग्यो, केमके युवानोना नत्कृष्ट प्रेमपासे समुद्र बिंदुसमान यश् पड़े . // 1 // तेनए तेमाटे रा. जकुमारने जे कई नपालंज थाप्यो, ते सघळो उलटो कसुंबाप्रते जेम खार तेम कनकवतीप्रते वधारे राग करनारो थयो. // 2 // एवी रीते तिरस्कार पामेली ते स्त्रीनए एकठी थइ विचार्य के आपणने तो हवे या सदानो सुखोनो विनाश आवी पहोंच्यो. // 3 // कोण जाणे केणे जणे. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
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________________ धम्मिः // राजवंश्या अपि वयं / दासीवत्तनुकीकृताः // 4 // एकांगणे प्रियं दृष्ट्वा / सपत्नीनिरतं स्त्रियः / / मन्यते शूलिकाध्यासं / दणं क्वेशकरं वरं // 5 // व्यापाद्यापि तदेतां किं / न भवामः सुखास्पदं // एकस्या मारणे बढयो / जीवंतीति न पुर्नयः // 6 // 347 // इति श्रीधम्मिलचरित्रस्य द्वितीयो जागः समाप्तः / / | ली क्यांकथी यावेली ते स्त्रीए आपणने राजवंशीनने पण दासीनीपेठे हलकी करी नाखी. // | // 4 // एकज बांगणामां रहेली शोकमां आसक्त थयेला पोताना प्रियतमने जोश्ने क्षणवार | क्वेश करनारा एवा शूलीपर चडवाना दुःखने स्त्रीने सारं माने जे. // 5 // माटे याने मारीने प. ण आपणे शामाटे सुखी न थश्ये? केमके एकने मारवाथी घणी जीवे ए कई अन्याय कहेवा. | य नहि. // 6 // // एवी रीते श्रीधम्मिलचरित्रनो बीजो जाग संपूर्ण थयो . // Jun Gun Aaradhak Trust PPAC.Gunratnasuri M.S.
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________________ -500 // इति श्रीधम्मिलचरित्रस्य नाषांतरोपेतस्य द्वितीयो जागः समाप्तः // डोधा Syress PANCHA P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust