________________ धम्मि दपरे संप-त्स्यते मम मनोरथाः / अधुना निधनाशापि / निष्पुण्यस्य न पूर्यते // 12 // आयुर्य: मा दि पुनः सर्वो-स्कृष्टं मम नविष्यति // दृश्यते प्रायशः पृथ्व्यां / दुःखिनश्चिरजीविनः / / 13 / / नि | हेतुः शत्रुरवास्ति / कोऽप्यलोचनगोचरः // स्वेबया म्रियमाणस्य / यः प्रत्यूहं करोति मे // 14 // | इति मूढमतिर्याव-तत्र तिष्टति धम्मिलः // मा मृत्युसाहसं कार्षी-स्तावट्योम्नीति वागत् // 15 // ततोऽसौ विस्मयापनः / को मां मृत्योर्निषेधति // इत्यैदिष्ट दिशः सर्वाः / पुन:दिष्ट कंचन // रा बीजा मनोरथो संपूर्ण थवानी वात तो एक बाजु रही, परंतु हमणा मारी निष्पुण्यनी मृत्युनी बाशा पण पूरी यती नथी. // 15 // कदाच मारूं थायु जत्कृष्टुं संजवी शके डे, केमके प्रायें क. रीने या पृथ्वीमां दुःखील लांबां आयुष्यवाळा देखाय . // 13 // खरेखर अहिं कोश्क मारो अदृश्य कारणविनानो शत्रु होवो जोश्ये, के जे पोतानी मरजीमुजब मने श्रापघात करतां विघ्न करे . // 14 // एम विचारतोथको ते धम्मिल दिग्मूढ थश्ने जेवामां त्यां जनो ने तेवामां श्राकाशमां एवी वाणी थश् के तुं मृत्यु- साहस कर नहि. // 15 // त्यारे ते याश्चर्य पामीने विचारवा लाग्यो के मने मृत्युमाटे कोण निषेध करे ? एम विचारीने ते सघळी दिशातरफ .PP.AC. Gunratnasuri M.S... Jun Gun Aaradhak Trust