________________ धम्मि- चित्त वागाधे / निर्मम हृदे ततः // देवतातिशयात्तत्र / तरतिस्म तरंमत्रत् // 7 // ततो विष ताबुपुटं / सविषादश्वखाद सः // जहार हारहूरावत् / तत्क्षुधं देवतेलया / / 7 // अय प्रसह्य वृ. दाग्र—मारुह्य स्वं मुमोच सः // तस्य तूलीयितं पात-स्थानं दिव्यानुनावतः // ए // एवं सर्वै 21 रप्युपायै-रविंदन्मरणोत्सवं // दीनो दश दिशो दर्श / दर्श खिन्नः स दध्यिवान् // 10 // अहो मे मंदजाग्यत्वं / यदृष्टप्रत्यया अपि // पदार्था व्यघटतामी / खजवह्निविषादयः // 11 // पास्तां य. करी नाखी. // 6 // त्यारे ते धम्मिल कपटीना चित्तनीपेठे अगाध एवा द्रहमां पड्यो, परंतु देवताना प्रजावथी ते तेमां वहाणनीपेठे तरवा लाग्यो. // 7 // पड़ी तेणे खेदयुक्त थश्ने तालपुट फेर खाधुं, परंतु देवतानी बाथी ते फेरे दादनीपेठे उलटी तेनी कुधा दूर करी. // // पनी तेणे वृदानी टोचे चमीने त्यांथी पातुं मेव्युं, परंतु दिव्य प्रनावथी तेनुं पमवानुं स्थान रुना द. गसरखं थ गयु. // ए // एवी रीते सर्व उपायोथी पण थापघात न करी शकवाथी ते विचारो खेद पामीने दशे दिशा जोतोथको विचारखा लाग्यो के, // 10 // अरे था मारूं केर्बु मंद जा. | ग्य जे के या खातरीवाळा तलवार अमि तथा फेरयादिक उपायो पण व्यर्थ गया. // 11 // मा. PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust