________________ सार्थ 257 धम्मि- वने स्थितः // त्वां वीर नैरवाचार्यः / कार्यतत्वं तु वेद्मिन // 7 // इत्युदित्वा निवृत्तं त-मनु गम्य नृपात्मजः // प्रातरायात एवाय-महमिति लपन स्थितः // 5 // युग्मं // कोऽयं योगी किमावानं / ममेत्यूहं वितन्वतः / / कथंचिदतिचक्राम / तस्य सर्वापि शर्वरी / / 50 // अथोदिप्त श्वामुष्य / मनोरथवरत्रया / जबति सहस्रांशौ / जगौ मंगलपाठकः // 1 // वीर ध्वांतरिपु: ध्वंसा-न्मित्रस्योदयदानतः // ददत् पूर्वामुखे रागं / जातः प्राजातिकः दाणः // 12 // ततः दमापसुतस्त्यक्त-तल्पः स्वल्पपरिबदः / प्रातस्त्यं कर्म निर्माय / निर्मायः स ययौ वनं // 13 // अ. ने पाग वळेला ते योगीनी पानळ जश्ने राजपुत्र बोल्यो के हुँ प्रभातमांज त्यां जरुर अावीश. // 79 // था योगी कोण हशे? मने तेणे शामाटे बोलाव्यो हशे? एम विचार करतां थकांज केटलीक मुशीबते तेनी सर्व रात्रि पसार थ. // 50 // हवे जाणे ते गुणवर्मा कुमारना मनो. रयरूपी दोरीथी जंचो खेचायो होय नहि तेम सूर्य नगते बते मंगलपाठक बोल्यो के, // 1 // हे वीर! अंधकाररूपी शत्रुना नाशथी तथा सूर्यने ( मित्रने ) उदय देवाथी पूर्व दिशाना मुख। मां रंग देतो प्रजातनो समय थयो . // 2 // ते वखते ते निष्कपटी राजपुत्र बिगन गेमीने | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust