________________ धम्मि- शि दुरे परस्त्रीव / मुच्यतेस्म पुनः सदा // 3 // आदित्योदयतोऽन्येा-विद्यागोष्ट्या विनोद्य तां // स्वसौधमध्यमध्यास्त / मध्याह्ने नृपनंदनः // 7 // तत्र स्नातः समन्यर्थे / जिनान् परिज नान्वितः / स यावद् बुभुजे ताव-द्योगी कश्चिदुपाययौ // 5 // नस्मना पांमुरं हस्त-व्यस्तदंड२७ कममधं // दीपित्वग्वसनं प्रेत-नेतारमिव तं पुरः // 6 // वीदया येत्य कुमारेंडः / प्रीतिप्रणति पूर्वकं // सहसागमने हेतुं / पृबतिस्म सविस्मयः / / 77 // युग्मं // सोऽवादीदाह्वयत्यद्य / गुरुर्मम // 3 // एक दिवसे ते राजकुमार सूर्योदयथा मांझीने विद्यागोष्टीवडे तेणीने खुशी करीने बेक मध्याह्न समये पोताना महेलमां श्राव्यो. // 4 // त्यां स्नान करी प्रभुने पूजीने ते परिवार सहित जेवामां जमवा बेसे वे तेवामां त्यां कोक योगी आव्यो. // 5 // जस्मथी पांमुर बनेला, हाथमां दंड बने कमालुवाळा, व्याघचर्मना वस्त्रवाळा तथा प्रेतोना नायकसरखा / / 76 // ते योगीने पोतापासे आवेलो जोश्ने कुमारे सामा आवी प्रीतिथी प्रणाम करीने आश्चर्ययी त्यां अ. चानक श्राववानुं कारण पूज्यु. // 7 // त्यारे ते बोव्यो के हे वीर ! वनमा रहेला मारा गुरु से रखाचार्य बाजे तमीने त्यां बोलावे , परंतु तेनुं प्रयोजन हुं जाणतो नयी. // 7 // एम कही. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust