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________________ धम्भि- -कंठयाय तया जगे / मां वंचयसि विश्वस्ता-माः किमेवं मृषोक्तिन्निः // 45 // अपरांतर. | जाताना-मन्याचां विचेष्टितं // हार्दीनां तु नवेदन्य-देव लीलायितं पुनः // 20 // क्रीडामा त्रफलं नर्म / तव मर्माविधं मम // कंम्ययापि नागस्य / लतायाः प्रलयो न किं // 11 // युवा 203 मुभावहं त्वेका / युवां कावहं वृजुः / युवा पुमांसावबला / त्वहं तत् किं प्रतिब्रुवे // 5 // खे| दितायां मयि प्रीति-यदि ते तत्तथा कुरु // स्वामिन्नवाप्स्यसि क्रीमा-पात्रं क पुनरीदृशं // 53 // // 4 // पजी क्रोधथी रंधायेला कंठवाळी ते कनकवती कुमारपते बोली के, 'अरे स्वामी! मने विश्वासीने प्रावी रीतनां जूगं वचनोथी आप शामाटे गो गे? || 4 || होठवच्चे उत्पन्न थ. येली वाणीनी चेष्टा बीजा प्रकारनीज होय , अने हृदयना वचनोनी चेष्टा वळी तेथी निनज होय // 50 // आपने तो मारी था मश्करीथी गम्मत थाय , परंतु मारां मर्मस्थानो दाय ने, केमके हाथीनी खरजयी पण शुं वेलमीनो नाश नथी थतो? // 51 // तमो बे बगे, हं ए. कली बं, तमो बन्ने हुशियार बो, हुं सरल बुं, तमो बन्ने पुरुषो जगे, अने हुं तो अबळा बं, माटे -- | आपने हं शुं जवान आपुं? // 52 // वळी हे स्वामी! मने खेदित करवायीज जो आपने खशी | Jun Gun Aaradh P.P.AC.Gunratnasuri M.S.
SR No.036431
Book TitleDhamil Charitra Bhashantar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1914
Total Pages176
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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