________________ धम्मि- पश्चात / दाणं व्योग्नि दाणं दितौ // वीदांचके खगेनैको–ऽप्यनेक श्व नूप नः // 11 // विस्म जय वीरावतंसेति / वादिनस्तस्य मूर्धनि / वषुः कुसुमस्तोमं / यशो मूर्त मिवामराः // 13 // वि. भतः खेचरान् विश्वान् / समाश्वास्य मृदुक्तिभिः // स तत्र दणमासित्वा-ऽपनिन्ये समरश्रमं / / | // 14 // हरिण्यः पाशनिर्मुक्ता / श्व माद्यन्मुदस्तदा // अत्यनंदन्नृपसुता-स्तिस्रोऽपि समुपेत्य मां आकाशमां अने दाणमां पृथ्वीपर एम अनेक प्रकारे ते विद्याधर जोवा लाग्यो. // 11 // आकाशमा रहेला व्यंतर अने विद्याधरोवडे आश्चर्यपूर्वक जोवाएला ते गुणवर्मा कुमारे अवसर मेलवीने तलवारथी ते विद्याधरनुं मस्तक कापी नाख्यु. // 15 // हे वीरशिरोमणि! तुं जय पाम? एम कहेताथका देवो तेना मस्तकपर मूर्तिवंत यशसरखो पुष्पोनो समूह वरसाववा लाग्या. // 13 // पनी सघला नय पामता विद्याधरोने मिष्ट वचनोथी आश्वासन पापीने तेणे त्यां कणवार रहीने संग्रामनो थाक दूर कर्यो.. // 14 // पनी पाशमांथी मुक्त थयेली हरिणीननीपेते अत्यंत हर्षित थयेली ते त्रणे राजपुत्रीने पण त्यां कुमारपासे श्रावीने तेनी स्तुति करवा लागी. // 19 // (व. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust