________________ 160 धम्मि- यशस्तव // 35 // अयं खारविः शत्रु-नेत्रकैरवनैरवः // स्थितो मे पाणिपूर्वानी / त्वां तमित्रमा मिवादितुं // 36 // स प्रोचिवानहो बाल / कस्त्वया सह विक्रमः // परार्ये मा वृया याहि / फलं नज नृजन्मनः // 36 // कुमारः स्माह जो बाल / इति मां मावजीगणः // सिंहः शिशुरपि प्रौद / किमु हंति न हस्तिनं / / 37 // लघुर्दीपो गुरु ध्वांतं / लघु वज्रं गुरुर्गिरिः // लघुः पशुर्गुरुर्वृदो | / वद कः केन जीयते // 30 // यः परार्थः स हि स्वार्थः / वार्यः कोऽस्स्यपरः सतां // को मेघ. होय तो मारी साथे युद्ध कर? या योगी तो निदाचर , तेने दुःख देवाश्री तारो शुं यश थ. वानो के ? // 35 // शत्रुजेना नेत्रोरूपी कैखोने जय पमामनारो या मारो खारूपी सूर्य अंध. | कारसरखा तने नष्ट करवामाटे मारा हाथरूपी पूर्वाचलमां उदय पाम्यो . / / 36 // त्यारे ते प्रेत बोल्यो के अरे! तुं तो हजु बालक बे, तारीसाथे बळ करवू शा कामनुं ? फोकट परने माटे तुं मर नहि, अने मनुष्यजन्मनुं फल नोगव? // 36 // त्यारे कुमार बोल्यो के अरे! बालक कही. ने तुं मारी अवगणना न कर? केमके सिंहनुं बच्चुं पण शुं मोटा हाथीने मारतुं नथी? // 37 // | दीपक लघु ने अने अंधकार महोटो बे, वज्र नानुं बे अने पर्वत महोटो , कुहाडी नानी ने P.P.AC.Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradeak Trust