________________ धम्मि- स्यापरः स्वार्थो / जगदुजीवनं विना // 35 // परोपकरणात्पुण्य -यशसी पेशलं फलं // फलं / धनांगनारंगाः / फटगु मानुष्यरुहः // 40 // यदोक्त्वालं स्वशक्तीडा / वीमाहेतुर्महात्मनां // शू. रोऽसि चेत्पुरस्तिष्ट / फले व्यक्तिर्भविष्यति // 41 // कुमारस्येति सत्वोक्त्या। विस्मितात्मा स नि. 265 र्जरः // बच्च नटवत्त्यक्त-दुर्वेषो दिव्यरूपनाक् // 42 // ऊचे च धीर तुष्टोऽस्मि / तव सत्त्वादरं भने वृक्ष महोटुंजे, परंतु कहे के कोण कोने जीते जे? // 30 // वळी जे परार्थ ने तेज स्वार्थ बे, सज्जनोने तेना शिवाय बीजो कयो स्वार्थ के ? केमके जगतने जीवितदान प्रापवाशिवाय मेघनो बीजो कयो स्वार्थ ? // 35 // पुण्य अने यश ए परोपकारनुं मनोहर फल , तेमज धन बने स्त्रीना जोगविलास ए मनुष्यजन्मरूपी वृदनां नकामां फल . // 40 // अथवा वधारे कहेवाथी सर्य, केमके पोतानी शक्तिनी जे स्तुति करवी ते महात्मानने लगा करनारंजे, माटे जो तुं शूरो होय तो मारी सामे बावीने नन्न के जेथी प्रगट फल जणाशे. // 41 // एवी रीत. नां कुमारनां हिम्मत नरेलां वचनथी विस्मय पामेलो ते देव नटनीपेठे पोतानो भयंकर आकार | तजीने दिव्य रूप धरनारो थयो. // 42 // पनी ते बोल्यो के हे धीर! तारी हिम्मतथी हं तुष्टमा- | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust