________________ धम्मि- यदाकर्यत जीवंत्या / स्वामिनाम श्रवःसुधा // 14 // क्वचित्कुशलवानस्ति / प्रियः स प्रियदर्शने // तन्नाममंत्रस्मरणा-न्ममाप्यकुशलं कुतः // 75 // धनमानययां चक्रे / यद्भर्ता नर्तृदारिके // आझा मंगव्यदूर्वेव / मूर्ध्नि सारोपिता मया // 16 // पुनः किं वच्मि निःपुण्या / यत्तादृक् श्वसु. 150 / रो हितः // सापि श्वश्रुममाजाग्या-दध्यासातां परं नवं // 7 // गतः परिजनः सर्वः। वीणं च प्राक्तनं धनं / / मरुनमाविव मयि / कुतस्तत्कमलोदयः // 70 // तुन्यमद्यानवद्यांगि / यद्दद्यामटप. यशोमती बोली के, // 13 // अहो! आजे तो मारे महोत्सव थयो , तथा बाजे मारां पुण्यो जाग्यां बे, के जेथी थाजे जीवतांथकां में कर्णने अमृतसरखं स्वामीनुं नाम सांभट्यु जे. // 14 // वळी हे प्रियदर्शनवाळी ! मारा ते स्वामिनाथ कुशल तो ने? वळी तेमना नामरूपी मंत्रना स्मरपथी मने पण यकुशल क्यांधीज होय ? // 55 // वळी हे सपत्नि! मारा स्वामीए जे धन मं. गाव्यु, ते तेमनी बाझा में मंगलिक दुर्वानीपेठे माथे चमावी . // 16 // वळी हुँ पुण्यविनानी तने शुं कहुं ? जे मारो हितेच्नु ससरो हतो ते, तथा ते मारी सासु. ते बन्ने मारां अनाग्यथी परलोक पाम्यां . // 7 // सघळो परिवार पण चाल्यो गयो, तेमज पूर्व- धन पण नष्ट थयु, P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust