________________ धम्मि- मेव तत् // यजीवितेशसंदेशः / स्वर्णकोव्यापि दुर्लभः // 79 // श्मा चर्चा विना चार-करौं बु. षां गृहाण तत् // ममांगे शीलमेवैकं / जूषणं स्यादकृत्रिमं / / 70 // इत्युक्त्वा निःस्वनं बाला / | रुदती चूषणानि सा // देहाद् हुमात्फलानीव / स्वहस्तेनोदतारयत् / / 71 / / दासी जग्राह तबी. . 151 | ल-परिशीलनविस्मिता // तानि हस्तेन न हृदा-कानीत्या न च तृष्णया // 72 // तामनुज्ञाप्य अने मरुन्मीजेवी जे हुं तेनाविषे हवे लक्ष्मीनो ( कमलोनो) नदय क्यांथी होय ? // 7 // वळी हे अनवद्य शरीवाळी ! हुँ तने जे कई पापुं बुं ते खटपज बे, केमके मारा प्राणनायनो संदेशो क्रोडो सोनामहोरोथी पण दुर्खन . // 70 // माटे नर्तारविना फोकट जार करनारां मारा था बाजूषणोने तुं ग्रहण कर ? मारां शरीरपर फक्त एक शीलरूपी स्वाभाविक जुषणजी . क. // 70 // एम कहीने शब्दरहित रडती एवी ते यशोमतीए वृदपरथी जेम फलो तेम पो. ताने हाथे शरीरपरथी ते बाजूषणो जतायी. // 71 // तेणीना याचरणथी विस्मय पामेली ते दासीए हृदयथी नहि परंतु हाथथी, तेमज लोगथी नहि परंतु कुटणीना डरयी ते या षणो | सीधां // 72 // सर्व स्त्रीजातिनो यश करनारी एवी ते यशोमतीनी रजा लेश्ने ते दासीप र P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust