________________ धम्मि // 76 // सुखशय्याशयानौ तौ / बलान्वेषी स खेचरः // उदस्य मंशु चिक्षेप / पूर्ववजिरिसागरे | // 9 // पुनः पूर्वप्रयोगेण / तो तत्रैव समागतौ // नत्वा कुलपति प्रीत्या / प्रस्थितौ स्वपुरंपति // 9 // फलैः संकल्पितप्राण-वृत्ती तो पदाचारिणौ // दृष्ट्वा दून श्वादियो-ऽमऊत्पश्चिमसागरे 310 // 70 // तद्दशादर्शनोद्त-दुःखदिक्पत्युदीरितैः / श्वासधूमैखि ध्वांतैः / सर्वा व्यानशिरे दि. शः // 70 // राजनंदन राझोऽपि / मम राहोरहिसितात् // अस्त्येवापदिदं वक्तु-मिवोदेतिस्म चं. | सी करताथका परस्पर कंठमां हाथरूपी पाश नाखीने त्यां निद्रावश थया. // 16 // हवे ते लाग जोता विद्याधरे सुखे सुतेला तेन बन्नेने नपाडीने पूर्वनीपेठे तुरत पर्वतपर तया समुद्रमा फेंकी दीधा. / / 99 // वळी पूर्वे कहेला नपायथी तेज बन्ने तेज आश्रममां याव्या, तथा प्रीतिथी क. लपतिने नमीने पोताना नगरप्रते प्रयाण करवा लाग्या. // 7 // फलाहारयी प्राणवृत्ति करनारा तथा पगे चालनारा एवा तेन बन्नेने जोश्ने जाणे दुनाणो होय नहि तेम सूर्य पश्चिम समद्रमां मुबी गयो. // 7 // तेजनी था दशा जोश्ने दुःखी थयेला दिक्पतिनए कहाडेला निःश्वासरू-: / पी धूमाडासरखा अंधकारथी सर्व दिशान व्याप्त थ // 70 // हे राजपुत्र! मने राजाने पण न. Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.