________________ धम्मि- तोऽन्यपुरुषस्पर्श-नीरुकामप्युदस्य मां / / कचिनिचिदिपे तुंग-गिरिशृंगेऽश्मखम्वत् // // नि मरोदकवत्तस्मा उत्तीर्णाहं शनैः शनैः // वा. वेलावनेब्राम्यं / सुचिरं त्वां गवेषितुं // 3 // च्युतं चिंतामणिमिव / त्वामप्राप्य भृशाकुला // तत्रागां तापसो यत्र / स मनोजवतोऽमिलत् // 317 | // 14 // शेषः सर्वोऽप्युदंतस्ते / विदितोऽस्ति विदांवर // एवं तयोर्तियतोर्ययावस्तं दिवाकरः // 7 // हसंतो कोकयुग्मं तौ / रात्रौ विरहविह्वलं // अन्योऽन्यकंठसंसक्त-बाहुपाशौ निदद्रतुः ने वनचर जीवोने स्वाधीन करीश. // 71 // पठी परपुरुषना स्पर्शयी डरती एवी पण मने जंचकीने तेणे कोश्क जंचा पर्वतना शिखरपर पबरना टुकडानीपेठे फेंकी दीधी. // 15 // पजी करणाना जन्नीपेठे ते पर्वतपरथी हुं धीमे धीमे नतरीने आपने शोधवामाटे घणा वखतसुधि स. मुकिनाराना वनमां नमी. // 73 // परंतु गुम थयेलां चिंतामणिनीपेठे बापने नदि मेलववाथी अत्यंत व्याकुल थश्ने ज्यां मने ते तापस मल्यो त्यां मनोवेगसरखी जडपथी यावी. // 7 // बाकीनो सघळो वृत्तांत हे चतुरशिरोमणि! आपे जाण्यो बे, एवी रीते तेन वात करते बते सूर्य अस्त पाम्यो. // 79 // पनी तेल बन्ने रात्रिए विरहथी व्याकुल थयेला चकवाना जोडलांनी ढां P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust