________________ धम्मि- सायं पुरः समायात-नदीतीरे जलोज्ज्वले // मरालकेलिस्तेनाऽहा-रि स वैहारिकः क्रमः // 6 // स चेटवञ्चिरादश्रु-पूरप्लावितकज्जलैः // स्वयं प्रदालयामास / प्रियायाः कबुषं मुखं // 67 // फ लाशनपयःपान-प्रोतां पप्रब स प्रियां // वने वनेचरीव त्व-मायातासि कथं वद // 6 // साप्यु. 310 वाच तदा हृत्वा / स त्वां विद्याधराधमः // किंकर्तव्यविमूढात्मा-मेत्य मामित्यतर्जयत् / / 70 ॥नि. नाय नायकं नक्र-पासतां तेऽहमंबुधौ // पापे श्वापदसधीची / करिष्ये त्वां पुनर्गिरौ // 11 // तबनेला किनारापर तेणे हंससरखी कीमा करी, केमके वटेमाननी ते रीति . // 67 // घणा काळ्ना यांसुर्जना समूहथी धोवायेलां काजळयी श्याम थयेद्धं पोतानी प्रियार्नु मुख तेणे पोते दासनीपेठे धोयु. // 60 / / पजी फलाहारथी तथा जलपानथी खुशी थयेली पोतानी प्रियाने ते. णे पूयं के वनचरीनीपेठे तुं यहीं वनमां शीरीते भावी ते कहे ? // 6 // त्यारे तेणी पण बोली के ते नीच विद्याधर ते समये तमोने हर्याबाद, हवे मारे शुं करवू? एवा विचारमा मुंफाएली एवी जे हं तेनोपासे श्रावीने तर्जना करखा लाग्यो के, // 70 // में तारा भर्तारने तो समु. द्रन अंदर फेंकीने जलचर जीवोनो लक्ष्य बनान्यो बे, हवे हे पापिनी: तने वळी पर्वतपर फेंकी। P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust