________________ धम्मि- // 6 // विद्याधरेश्वरे नाट्य-ध्वनिधूनितमूनि // कंपमानवपुः कोपा-कुमारेंद्रो व्यचिंतयत् / माई // 6 // विवितोऽस्मि निविमं / वेधसा मनुजेष्वहं // ममापि नायिकाऽनायि / नर्तकी त्वमनेन यत् // 70 // न कौरव्यैः संवृतांग्या / यस्या मुखमपीदितं / / सर्वागं वीदतां विद्या-भृतामयोत्सवोऽजनि // 1 // बहुमेने सदास्माभिः / सर्वस्वस्वामिनीव या ।पातेनैव सानेन / सर्व दासी. व कार्यते // ए॥ यहा न्यषेधि यद्वार-रपि रात्रौ जिनार्चनं // तदस्य कुर्वतः स्वैरं / ब्रूमः कि पोतानुं मस्तक धुणाववा लाग्यो, त्यारे कोपथी कंपित शरीरवाळो ते कुमारऽ विचारखा लाग्यो के // ए || अरे! विधाताए मने मनुष्योमां खूब वगोववाजे, कर्यु बे, केमके मारी स्त्रीने पण या विद्याधरे पोतानी नटी बनावी . // 2 // ( वस्त्रोथी) ढंकायेलां शरीवाळी एवी जेणीनुं मुख पण कुरुवंशीजए जोयुं नथी, तेणीनां बाजे या सर्व अंगोने जोता एवा या विद्याधरोने था. नंद थाय . // 1 // जेणीने में हमेशां मारी समस्त मीटकतनी मालिकसरखी मानेली . ते. पीनीपासे फक्त एक भृकुटीना इसाराथी या विद्याधर दासीनीपेठे सघj कार्य करावे . ॥शा अंथवा अन्योए पण रात्रिए जिनपूजन निषेध्यु , ते जिनपूजन स्वेगाचारयी करनारा एवा था| P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust