________________ धम्मि- प्रियंवदा // 27 // यमुद्यममधार्षीः प्राग् / यियासुस्त्वं जिनालये // किं सोऽद्य हास्तिो छूते / है. तः केनापि वा सखि // 55 // किं ज्वरः किं स्मरः किं वा / कोऽपि व्यतिकरः परः // अद्या दं गतापाय / गतापायमिदं वद // 60 // न किं वेत्सि खगः कर्ता / विलंबेनाविलं मनः // त्वरस्व 255 सानवहेला-ऽवहेला खलु वैरिणी // 61 // साय निःश्वासबूकानि-लपयंत्योष्टपल्लवं // बनाषे सखि किं वच्मि / मंदनाग्यास्मि सर्वथा // 6 // यतो बाल्येऽहमारूढा / मेरुशृंगमिवोन्नतं // पितुः पर जेम माउली तेम पलंगपर अस्थव्यस्थ शरीरे पडेली ते कनकवतीप्रते रात्रिनो एक पहोर गयाबाद प्रियंवदा बोली के, // 50 // हे सखि ! पूर्व जिनालयमां जवामाटे तुं जे नद्यम धारण करती हती, ते उद्यमने शुं आजे जुगारमा हारी गश् लु ? के कोए ते हरी लीधो ? // 5 // वळी बाजे तारां या शरीरने हेरान करनारो शुं तने ताप चड्यो ? अथवा शुं कामातुर थ बु? के कई बीजी बाबत बनी जे ? तुं सत्य कहे ? // 60 / / वळी तुं नथी जाणती के जो विलंब थशे तो ते विद्याधरनुं मन क्रोधातुर थशे, माटे उतावल कर ? केमके तेनी अवगणना वैर क रावनारी थशे. // 61 // हवे निःश्वासरूपी बृथी पोताना उष्टपल्लवने सूकावतीथकी कनकवती बो| P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust