________________ . 296 धम्मि प्रासादमीदये स्म / खेटेनानेन खेऽटता // 63 // मांसपेशीमिव श्येनः / स्तेनश्चैकावली मिव // हः / मात्रा मुमोच मामेष / काप्यरण्ये दवीयसि // 64 // निमैतुमपि मां हंतु-मसौ कीनाशनिःकृपः // | कृपाणमाकृशन्नेव / कोशादेवमवोचत // 65 // बाले मृगीव व्यालेन / मया त्वमिह हन्यसे / / मृ. योविनेषि चेत्सद्य-स्तत्प्रपद्यस्व मे वचः // 66 // नदीच्यां दूरतो यत्नात / कृतं रत्नमयं मया // अस्ति श्रीमयुगादीश-नवनं नेत्रपावनं / / 67 // मत्प्रेषितविमानेन / चैत्यमेत्य तदन्वहं // त्वया ली के हे सखि ! हुं तने शुं कहुं ? बिलकुल हुं मंदगाग्यवाळी बु. // 6 // केमके बाव्यपणामां मारा पिताना मेरुशिखरजेवडा जंचा महेलपर ज्यारे हुं चड़ी हती त्यारे अाकाशमां फरता या विद्याधरे मने दीठी. // 63 // त्यारे बाजपदी जेम मांसनी पेशीने तथा चोर जेम एकावली हा. रने तेम मने हरीने तेणे क्यांक दूर वनमां मेली. // 64 // पनी ते यमसरखो निर्दय विद्यावर निरपराधी एवी पण मने हणवामाटे मियानमांथी तलवार खेंचीने कहेवा लाग्यो के, // 65 // हे बालिका ! हाथी जेम हरिणीने तेम हुं तने यहीं मारी नाखीश, अने जो तुं मृत्युथी मरती | हो तोजलदी मारुं वचन स्वीकार? / / 66 / / उत्तर दिशामां दूर में एक रत्नमय भने नेत्रोने प. | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust