________________ 104 धम्मि- कथाव्याजेन संततं // तो किंचन मनोदुःखं / निवासयतां बहिः // 4 // करोति यद् घुणः का. टे / दुर्गात्रो यच्च चिर्नटे // त्वग्मात्रसारे तदेहे / पुत्रदुःखं चकार तत् // 4 // नित्यपीडाप्रदा. | पुत्र वियोगादणिकव्यथं // दारुणं बहुमेनाते / दारणं क्रकचेन तौ // 4 // दीप्ते विरसचि| त्याया-मपत्यविरहानले / तयोः शुष्केण वपुषा / विदधे कार्य मेध्मनः // 50 // नित्यावेव तरिन। / स्फुटनालेव कूपिका // अश्रुश्रावा सदैवाद् / दृष्टिःखार्तयोस्तयोः / / 51 // गत्यागत्यारणनी कथा सांजळीने बुद्धिवानोने पण अगम्य एवं यापे कर्मनुं विपरीतपणुं जाणवं. // 46 // एवी-रीते ते दंपती हमेशां परस्पर कथाना मिषथी पोताना मननुं दुःख थोडं थोडं बहार कहाडबा लाग्या. // 9 // काष्टनी अंदर रहेलो घुण जे कार्य करे, तथा चीनमामां रहेलो कीमो जे काम करे, तेवू काम चर्ममात्रसारवाळां तेननां शरीरमां पुत्रसंबंधि दुःखे कयु. // 4 // हमेशा पीडा बापनारा पुत्रना वियोग करतां दणिक दुखवायं धने जयंकर एवं पोताने करवतथी क. पाळ ते सारं मानवा लाग्या. // 4 // बेचेनीरूपी चितामां पुत्रविरहरूपी अनि बळते बते ते. जनां शुष्क शरीरे बन्तणनुं कार्य कयु. // 20 // दुःखयी पीडायेला एवा तेन बन्नेनां नेत्रो ह / P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust