________________ 103 | धम्मि- जुतं // मूर्धानं धूनयामास / श्लोकमेकं पपाठ च // 42 // यदिशस्य हृद्यन्य-व्याधस्यान्यत्पु. नहदि // अहेश्वान्यविधिस्त्वन्य-देव चक्रे तदस्य धिक् // 43 // नदंतं दंतिनः श्रुत्वा / सौम्य धर्मे मतिं कुरु // विधातुर्विश्ववैलोम्यं / विदन् किमनुतप्यसे // 4 // चेतितो मुनिना चेति। शिवः श्रीस्त्रीपराङ्मुखः // श्राददे चरणं युक्तं / तद्वलेन ययौ शिवं // 45 // थाकर्ण्य शिवविप्रस्य प्राणनाथ कथामिमां // विछि दैवस्य वैवश्यं / दुर्बोध सुधियामपि / / 46 / / जंपती एवमन्योऽन्यते आश्चर्य जोश्ने पोतानुं मस्तक धुणावी एक श्लोक बोल्यो के, // 42 / / हाथीना मनमां कई हतुं, अने पाराधिना हृदयमां वळी तेथी बीजुंज हतुं, सर्पना हृदयमा तेथी पण अन्य हतुं, अने विधाताए तो वळी तेथी पण उलटुंज करी दीy, माटे तेने धिक्कार बे. // 43 // माटे हे सौम्यविज! एवी रीतर्नु हायोनुं वृत्तांत सांजलीने तुं धर्ममां बुधि कर ? वली हे विद्वान ! विधातानुं तो ( जगतमां ) विपरीत पाचरण , माटे तुं शामाटे खेद करे ने ? // 44 // एवी रीते मुनिए प्र. तिबोध बाप्याथी लक्ष्मी अने स्त्रीथी विरक्त थयेला ते ब्राह्मणे चरण एटले चारित्र लीधं, अने | तेना बलथी ते मोक्षे गयो ए युक्तज . // 45 // माटे हे प्राणनाथ! एवी रीतनी आ शिवबा / PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust